अयोध्या में आज से मोरारीबापू की रामकथा `मानस: गणिका’

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, शनिवार – २२ दिसंबर २०१८)

दुनिया में सभी को स्वीकार करके जीने का संकल्प लेने का कार्य कोई सामान्य बात नहीं है. हम सभी के अपने अपने आग्रह होंगे, अपने पूर्वाग्रह होंगे, अपनी पसंद-नापसंद होगी. हम जैसे सामान्य मनुष्यों की दृष्टि से इस दुनिया में कई लोग अपनाने योग्य होते हैं, तो कई को छोड देना होता है. ऐसे वातावरण में जो व्यक्ति सभी को स्वीकार करता है और अपने जीवन से इस बात का आदर्श प्रस्तुत करे तो वह निश्चित ही संत होता है.

पू. मोरारीबापू केवल रामायणी या महज कथाकार नहीं हैं. रामायण की कथा कहकर वे इस समाज पर गहरा और स्थायी प्रभाव डाल रहे हैं. दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति को स्वीकृति मिलनी चाहिए, कोई भी तिरस्कृत या उपेक्षित न रहे, इस भावना से मोरारीबापू ने दो वर्ष पहले मुंबई-ठाणे में `मानस: किन्नर’ शीर्षक से नौ दिन रामकथा की थी. तुलसी रामायण के संदभों का उल्लेख करते हुए उन्होंने समाज में अभी तक तिरस्कृत माने जानेवो किन्नर समाज को गौरव दिलाया. कन्नरों को कथा मंडप में श्रोता के रूप में आदर सहित आमंत्रित किया गया था. उन्हें मंच पर बुलाकर उनके मुख से उनकी बातें लाखों श्रोताओं-टीवी दर्शकों तक पहुंचाईं और उन्हें अपनाकर उनके हाथों से रामायण की पोथी की आरती भी करवाई.

ऐसा क्रांतिकारी कार्य आज से अयोध्या में शुरू होने जा रहा है. मोरारीबापू की इस ८२१वीं कथा का विषय है `मानस: गणिका’.

लगभग दो वर्ष से बापू सार्वजनिक रूप से अपनी इच्छा व्यक्त करते रहे हैं कि वे गणिका को केंद्र में रखकर नौ दिन की रामकथा करना चाहते हैं. तुलसीकृत रामचरित मानस में एक से अधिक बार गणिका के बारे में सम्मानजनक उल्लेख हुआ है ऐसा बताकर बापू ने तुलसी रचित चौपाइयों का भी उल्लेख किया है.

मोरारीबापू कहते हैं कि हमारे यहां पारंपरिक शगुन शास्त्र में गाय को, पोथी ले जा रहे ब्राह्मण इत्यादि को जिस प्रकार से शकुन माना जाता है उसी प्रकार से गणिका यदि दृष्टि में पड जाती है तो वह भी शकुन माना जाता है ऐसा शास्त्र में लिखा है. दसेक दिन पहले बापू एक दिन के लिए मुंबई आए थे. उनके साथ मुंबई की रेड लाइट एरिया के एक दौरे का आयोजन किया गया था और अपने साथ वे मुझे भी ले गए थे. सबसे पहले हम मुंबई के लैमिंग्टन रोड के पास स्थित कॉन्ग्रेस हाउस नामक परिसर में गए. स्वतंत्रता से पहले किसी जमाने में यह इमारत कॉन्ग्रेस पार्टी से संबंधित हुआ करती थी. कॉन्ग्रेस हाउस की गली में दो चार इमारत पहले एक जमाने में गुजराती साहित्य की अत्यंत पुरानी गौरवपूर्ण संस्था `फार्बस गुजराती सभा’ थी जो अब जूहू में अमिताभ बच्चन के `प्रतीक्षा’ बंगले से वॉकिंग डिस्टेंस पर है. इसीलिए कॉन्ग्रेस हाउस का यह पुराना परिचय दिया. वहां के कमरों में खुलेआम देह व्यापार नहीं होता. सुना है कि उन लोगों के पास नृत्य शाला चलाने का सरकारी लाइसेंस होता है. भडकीले रंग के वेलवेट, साटिन और रंगबिरंगी बत्तियों से सजे कॉन्ग्रेस हाउस के सैकडों कमरों में मोटे तौर पर हिंदी फिल्मी गीतों पर नृत्य होता है. नृत्य करनेवाली महिलाएं खुद को तवायफ कहलाती हैं, लेकिन पुलिस से सभी डरते हैं. बारह साल से लेकर बयालीस वर्ष की लडकियां- स्त्रियां मोरारीबापू का भावपूर्वक चरण स्पर्श करने आती रहीं. बापू उन्हें रमानामी-नकद और आशीर्वाद देते रहे. उनके साथ बात करते करते बापू की आंखें छलक आईं. बापू मेरे घुटने पर हाथ रखकर मानो सांत्वना खोज रहे थे. उनके प्रेम भरे हाथ पर हाथ रखकर मैं उनकी वेदना को साझा कर रहा था. मुझे संतोष इस बात का था कि बापू इन सभी के लिए, समाज के लिए अनिवार्य किंतु समाज से तिरस्कृत स्त्रियों को समाज में सम्मान दिलाने जा रहे हैं. बापू अपने हाथ की चाय पीना चाहते थे. चाय का समय हो गया. बापू ने कहा, भले ही मेरा संकल्प गंगाजल का हो, लेकिन बहन, तुम्हारे घर का पानी मेरे लिए गंगाजल से कम पवित्र नहीं है.

यह सुनकर वहां उपस्थित हर किसी की आंखें छलक आईं और वे आंसू भी गंगाजल से कम पवित्र नहीं ते. हमने जिनके घर में चाय पी, उनकी मालकिन के हाथ में काफी बडी राशि का कवर रखकर बापू ने विदाई ली. रीता नामक वह स्त्री हमें रोककर भावविभोर होकर बापू के गुणगान गाती रही.

कॉन्ग्रेस हाउस की स्थिति दयनीय है. यहां वैसे आलीशान कोठे नहीं हैं जो फिल्मों देखने को मिलते हैं और जहां सलाम ए इश्क मेरी जां जरा कुबूल कर लो गाती रेखाएं हों और इसके आगे की अब दास्तां मुझसे सुन कहनेवाले अभिताभ बच्चन हों. दस बाय दस के कमरे में कभी उत्साह से भरी तो कभी मुरझाई-थकी लडकियों- स्त्रियों का नर्तन चलता रहता है. इस नर्तन कक्ष के पास के दरवाजे से बहार इन लोगों के रहने के कमरे के साथ रसोईघर होता है. उसमें दूसरे किसी नर्तन का दरवाजा खुलता है और कभी पुलिस की इमरजेंसी आती है तो एक दूसरे के कमरे के दरवाजों में से रफू चक्कर हो जाने की भी सुविधा होती है. अपना चेहरा रेकॉर्ड न हो इसकी सावदानी रखने के लिए फोटोग्राफी नॉट अलाउड.

कॉन्ग्रेस हाउस से निकल कर क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया में आयोजित अन्नपूर्णा देवी के श्रद्धांजलि कार्यक्रम में मौजूदगी दर्ज करा कर, पंडित हरिप्रसाद चौरसिया, उस्ताद जाकिर हुसैन तथा पंडित बिरजू महाराज से अलग अलग मिलकर उनसे विदा लेकर बापू के साथ कमाठीपुरा की बदनाम बस्तियों में पहुंचे.

कमाठीपुरा का सारा इलाका मुंबई का काफी पुराना रेड लाइट एरिया है. शायद भारत का सबसे विशाल रेड लाइट एरिया होगा. दिल्ली में अजमेरी गेट से लेकर लाहौरी गेट तक जी.बी. रोड का नंबर तो काफी पीछे आता है. कमाठीपुरा की १३वीं गली में हमें जाना था. स्थानीय राजनीतिकों का सहयोग और पुलिस का बंदोबस्त यहां पर आवश्यक था, क्योंकि यहां पर बापू सार्वजनिक रूप से, माइक पर सभी गणिकाओं को सम्मानपूर्वक अयोध्या की कथा में आमंत्रण देने गए थे. कॉन्ग्रेस हास में यह निमंत्रण सार्वजनिक रूप से नहीं बल्कि कमरे में जो भी दर्शन हेतु आया था, उसे दिया गया. बापू के हाथ से यहां भी रामनामी, साडियां इत्यादि वितरित की गईं और भारी भीड के बीच से रास्ता निकालकर बापू ने कमाठीपुरा में व्यवसाय करनेवाली एक स्त्री के घर गए.

समाज के उपेक्षित वर्ग के लिए, उन्हें केंद्र में रखकर, उनके लाभार्थ रामकथा करना बापू के लिए कोई नई बात नहीं है. `आहुति’ नामक पुस्तक में `उपेक्षित और बापू’ शीर्षक के अंतर्गत लेख में मैने बापू की ऐसी कथाओं का एक संक्षिप्त इतिहास लिखा है. उस समय किन्नर कथा लेटेस्ट थी. अब देवीपूजक, भटकनेवाली जातियों से लेकर वनवासी, वाल्मीकि समाज, १८ वर्ष तक के समाज के तमाम शोषित, पीडित, उपेक्षित और वंचितों के लिए कथा करने के बाद बापू आज से अयोध्या में `मानस: गणिका’ शुरू कर रहे हैं. आज पहले दिन कथा का आरंभ सायं तीन से साढे छह बजे का है. कल से शेष आठ दिनों तक प्रात: ९.३० बजे कथा शुरू होगी. लंच तक चलेगी. ये नहीं बल्कि इसके बाद वाला रविवार, ३० दिसंबर २०१८ का रविवार कथा की पूर्णाहूति का दिन है.

मैं अयोध्या जाने के लिए बैग पैक कर रहा हूं. रात में दस डिग्री की ठंडी होगी. ऊनी कपडे भी साथ लेने हैं. वहां से मैं प्रतिदिन `गुड मॉर्निंग’ कॉलम के माध्यम से आप सभी `मुबई समाचार’ के पाठकों के लिए कथा का लाइव कवरेज भेजता रहूंगा. `आस्था’ चैनल पर तो आप देखेंगे ही, प्रति दिन सबेरे मेरी नजर से भी कथा का आनंद लेंगे.

भारत के वर्तमान इतिहास में एक लैंडमार्क बनने जा रही इस घटना के हम सभी साक्षी बनने जा रहे हैं. प्रभु इस कार्य को निर्विघ्न संपन्न करने की क्षमता, समता सभी को प्रदान करें. जय सियाराम.

आज का विचार

“गणिका”
टीस तो होगी मन में
एक लंबी फेहरिस्त रही तो होगी मन में
दर्द का वर्जनाओं का
सामाजिक स्वीकृति का
कहीं अतीत और भाग्य को
कोस तो रही होगी वो
ईश्वर भी है? इस बात का
भ्रम भी तो हुआ होगा कभी

खुद की मनोरंजिका की उपमा,उफ़्
वेदना तो देती होगी कहीं
शारीरिक सुख और यौन वर्जनाएँ
भ्रांतियाँ फैलाती तो होंगी मन में
लोलुपता, और सुख जैसे शब्द
सिर्फ शब्द रहे होंगे उसके लिए

ढूंढती तो रही होगी वो मायने दर्पण के
अपने अक्स में अपने परछाई में
असमंजस में, स्थूल सहवास में
छद्म प्रेम में, वियावन विश्व में
और सामाजिक व्यवस्थाओं में
सजग संस्कृतियों में, संस्कारों में

नए चेहरे रोज और उसके संग
व्यभिचार की नई गाथा,
एहसासों की मलिन चित्र
और रंगहीन विश्व…..श्श्श्श

कहीं उसे विश्वास न हो गया हो
कि यही इंसानियत का चरित्र है!!

भास्कर
(अहमदाबाद निवासी भास्कर आनंद एक कवि, ब्लॉग लेखक, कथा लेखक, कला प्रेमी हैं, उनके ब्लॉग से यह कविता साभार प्रस्तुत है)

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