३,००० सिखों का कत्ल करनेवाले हमें सहिष्णुता सिखा रहे हैं

गुड मॉर्निंग

सौरभ शाह

सुब्रमण्यम स्वामी सुप्रीम कोर्ट का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है. सऊदी अरब जाकर देखिए या फिर गुगल में `डिमोलिशन ऑफ मॉस्क्स इन सऊदी अरेबिया’ डालकर सर्च कीजिए. आपको एक लंबी सूची देखने को मिलेगी. मक्का में खुद पैगंबर मोहम्मद के आदेश से मस्जिद बनाई गई थी जिसे सऊदी अरब की सरकार ने नई इमारत बनाने के लिए तोड दिया जिसका युनेस्को ने विरोध किया था, लेकिन सऊदी अरब में उसका विरोध नहीं हुआ था. युनेस्को ने कहा था कि एक हेरिजटेज इमारत के रूप में वह मस्जिद आपको रहने देनी चाहिए थी. सऊदी सरकार ने युनेस्को को लिखा: `डोन्ट टीच अस आयडॉल वर्शिप….’ हमें मूर्ति पूजा सिखाने की जरूरत नहीं है. मस्जिद केवल नमाज करने के लिए एकत्रित होने की जगह है, इससे ज्यादा और कुछ नहीं है. उसे अन्यत्र हटाया जा सकता है, तोडा जा सकता है.

सऊदी अरब में नए रास्ते बनाने, नए रेसिडेंशियल अपार्टमेंट्स बनाने के लिए मस्जिदों को डिमोलिशन किया जाता है. तुर्की के प्रेसिडेंट ने भी सार्वजनिक रूप से कहा है कि मस्जिदों के बजाय हाइवे बनाना ज्यादा जरूरी है. यदि मुझे हायवेज बनाने के लिए हर मस्जिद को तोडना पडे तो मैं ये करूंगा.’

ईराक, कतर, पाकिस्तानी आतंकवादी आतंक फैलाने के लिए मस्जिदों को बम से उडा से देते हैं. और अब ये लोग भारत में हमें बता रहे हैं कि मस्जिदों का महत्व मंदिर जितना है? बाबरी मस्जिद कब मस्जिद थी? १८८५ से आज तक वहां पर नमाज नहीं पढी गई है. १९४९ में अचानक वहां पर मूर्ति आ गई, किसी को भी पता नहीं है कि किस तरह से आई लेकिन आज भी वह मूर्ति वहीं पर है. लेकिन जवाहरलाल नेहरू ने उस पर ताला लगवा दिया ताकि हम भगवान राम की पूजा न कर सकें. १९८६ में राजीव गांधी ने ताला खोल दिया. १९८९ में उन्होंने शिलान्यास करने की मंजूरी दे दी. १९४९ से यह केवल मंदिर है और इसीलिए आडवाणी, उमा भारती, मुरली मनोहर जोशी को मस्जिद तोडने के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता. छह दिसंबर के दिन इन महानुभावों ने जो तोडक कार्रवाई की थी वह नया मंदिर बनाने के लिए पुराना मंदिर गिराने का काम था.

मस्जिद बनाने के लिए हमें कोई आपत्ति नहीं है. अयोध्या के राम मंदिर परिसर में मुस्लिम हैं ही नहीं फिर भी वहां पर मस्जिदें हैं. मैंने खुद २१ मस्जिदें गिनी हैं जिसमें से ७ मस्जिदों में मैं गया हूं जहां पर मैने देखा है कि वहां कोई भी नमाज पढने नहीं जाता. उस जगह पर बकरी, गाय, भैंस इ. पशु भटकते रहते हैं. राम जन्मभूमि की जगह पर यदि मैं (स्वामी) मैं मस्जिद बनाऊंगा तो कोई भी वहां पर नमाज पढने नहीं आएगा, क्योंकि उस जगह के आस-पास कोई मुसलमान नहीं रहता. मसलमान पास के आंबेडकर जिले में रहते हैं.

मैं(स्वामी) कहता हूं कि यह देश हिंदू राष्ट्र है और आज की तारीख में भी यहां पर ८२ प्रतिशत हिंदू हैं. ये सुनकर लोग  मुझसे कहते हैं कि नहीं, इसे हिंदू राष्ट्र नहीं कहा जा सकता क्योंकि इस देश को बनाने में मुस्लिमों और इसाइयों ने भी योगदान दिया है. यह तर्क गलत है. गंगा बहते बहते आगे बढती तब उसमें कई नदियां मिल जाती हैं. इलाहबाद में तो यमुना भी मिल जाती है फिर भी गंगा का नाम नहीं बदलता. इस परंपरा का गौरव हम सभी को होना चाहिए.

हमने भारत के विभाजन को स्वीकार किया है, मुस्लिमों ने उसे स्वीकार किया है. जिन लोगों को यहां रहना था उनसे हमने कहा कि कोई बात नहीं, रहिए. हमारी तो यह परंपरा रही है. पारसी यहां जब आए उस समय हमने उन्हें भी संभाल लिया. कोई भी समस्या पैदा नहीं हुई. पारसी जब आए तब द्वारिका के शंकराचार्य ने पांच शर्तें रखी थीं जिसका पालन उन्होंने किया: एक, आप पर्शियन पेशाक नहीं पहनेंगे- आपको साडी आर कुर्ता पायजामा पहनना होगा. दो, विवाह के समय आपको संस्कृत के दो श्लोक पढने होंगे जो मैं (शंकराचार्य) आपको लिख कर दूंगा. तीन, आप पर्शियन भाषा नहीं बोलेंगे, गुजराती बोलेंगे. चार, आप गौमांस भक्षण नहीं करेंगे. तथा एक और कोई शर्त थी. इन पांच शर्तों का पालन करके पारसी भारत की जनता के साथ अच्छी तरह से घुलमिल गए. अंग्रेजों ने पार्टीशन के समय पारसियों से कहा कि आप एक छोटी प्रजा हैं, ये विशाल हिंदू समाज तुम्हें कुचल देगा, हम जाते जाते आपको कई मामलों में कानून बनाकर आरक्षण देना चाहते हैं. तब पारसियों ने कहा कि एक हजार साल से इन हिंदुओं ने हमें संभाला है, हमें आपकी कोई मेहरबानी नहीं चाहिए.

भारत में पारसियों की जनसंख्या केवल ६०,००० है फिर भी कितनी महत्वपूर्ण जगहों पर पारसी हैं. उनकी संख्या से तुलना करेंगे तो पारसियों ने इस देश में बहुत ऊँचे पदों को सुशोभित किया है. इसके बावजूद कोई शिकायत नहीं करता, क्योंकि पारसी इस देश की मुख्य सांस्कृतिक धारा के साथ एकरूप होकर जी रहे हैं.

आप अल्लाह की प्रार्थना कीजिए उसमें हमें कोई आपत्ति नहीं है. हम आपको मस्जिद बनाने देंगे- आपको जहां बनानी है बनाइए, लेकिन दूसरों के धर्म में दखल मत दीजिए. लेकिन आपको अरब देशों के लोगों की तरह कपडे पहनने की यहां पर क्या जरूरत है? किसलिए अपनी स्त्रियों को आपको बुरखे में रखना पड रहा है? और मुस्लिम महिलाएं खुद भी बुरखे में रहना चाहती हैं, ऐसी बात नहीं है. ट्रिपल तलाक के बाद देखा गया है कि बडे पैमाने पर मस्लिम महिलाएं बीजेपी को वोट देने लगी हैं. कांग्रेस अभी तक सोचती आई है कि हिंदुओं को बांटो: यादव, जाट, क्षत्रीय, ब्राह्मण, प्रदेश, भाषा, जाति- हिंदू को विभाजित करो और मुसलमानों को एकत्रित करो. हम ऐसा नहीं करके इसका उलट कर रहे हैं. हिंदुओं को संगठित कर रहे हैं और मुसलमानों को डिवाइड कर रहे हैं. और हम जो काम कर रहे हैं वह सांवैधानिक है- समान नागरिक कानून. हम तो परंपरा से स्त्री – पुरुष समानता में मानते आए हैं.

अंत में दो एक बातें और. २०१९ के चुनाव में यूपीए के बजाय या उनके महागठबंधन के बजाय दूसरा कोई भी सत्ता पर आए तो ये अच्छा होगा. २०१९ के चुनाव से पहले उनके सभी लीडर बाहर नहीं बल्कि अंदर होंगे, क्योंकि उन्होंने भारी भ्रष्टाचार किए हैं. हमारे देश में १० प्रतिशत से अधिक दर पर विकास हो सकता है, क्योंकि हमारे देश की जनता जीडीपी के ३६ प्रतिशत जितना बचत करती है. लेकिन करप्शन के कारण हम अपने संसाधनों का उपयोग विकास कार्यों में नहीं कर सकते.

भारत की मानसिकता बदलने के लिए स्कूल-कॉलेज में टेक्स्ट बुक द्वारा जो बढाया जाता है उसमें बदलाव आना चाहिए और कई लोग इस बदलाव का विरोध कर रहे हैं. वे शोर मचा रहे हैं कि भारत में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं. सच्चाई तो ये है कि भारत की तुलना में अमेरिका में रेप की संख्या दस गुना अधिक है, फिर भी हमारे टीवी चैनल भारत को बदनाम करते रहते हैं. लिंचिंग द्वारा हो रही हत्या की खबरों को चलाया जाता है. दो वर्ष पहले बहादुरगढ के एक दलित की खबर को इसी तरह से उछाला गया था. मैने खुद जांच की तब पता चला कि वह शेड्यूल्ड कास्ट के एक परिवार में प्रॉपर्टी का मसला था. उसके परिणामस्वरूप एक समूह ने दूसरे समूह के व्यक्ति को जला दिया ताकि सारी संपत्ति उसके नाम पर हो जाए. मामला आपस का था. कोर्ट ने अपराधी को सजा भी दी, लेकिन मीडिया शुरू की खबर देकर चलता बना.

आज ट्रोल्स की बातें हो रही हैं. हम असहिष्णु बन गए हैं ऐसा लोग कह रहे हैं, मीडिया का रही है. इमरजेंसी का समय क्या सहिष्णुता का दौर था? १९८४ में एक नवंबर को कांग्रेस के दो कैबिनेट मिस्टर्स के नेतृत्व में ३,००० सिखों का कत्ल कर दिया गया तो क्या वह सहिष्णुता थी? लिंचिंग की सबसे बडी घटना यही थी. जिन लोगों ने इमरजेंसी घोषित की, जिन लोगों ने तीन हजार सिखों को मारा, हाजीपुरा और मेरठ में ४२ युवा मुसलमानों का जिन्होंने कत्ल किया, वे लोग हमें सिखा रहे हैं कि सहिष्णुता किसे कहते हैं?

इन सभी से सावधान. उनकी बातों में न आना. टेक्स्ट बुक्स में बदलाव होना चाहिए जिससे की हमारी नई पीढी की ब्रेन वॉशिंग बंद हो, उनमें हीन भावना न पनपे. मैने सरकार से निवेदन किया ह कि टेक्स्ट बुक्स बदलने का उत्तम मार्ग राजीव मलहोत्रा के नेतृत्व में समिति का गठना किया जाय. और जब तक ऐसे कदम नहीं उठाए जाएंगे तब तक मैं शांति से नहीं बैठूंगा.

आज उन लोगों में घबराहट फैली है, क्योंकि वे देख रहे हैं कि हमारी विजय हो रही है. उनके गलत आरोप प्रत्यारोपों के पहार के कारण हमें डरने की जरूरत नहीं है, हमें खुद के बारे में शंका दूर करने की जरूरत नहीं है. इस समय हम काफी कठिन समय में लडकर हर प्रकार की क्रांति ला रहे हैं. नई जागृति आ रही है. नई मानसिकता का उदय हो रहा है. युवाओं में अपना सच्चा इतिहास जानने की भूख जाग रही है.

श्रृंखला समाप्त हुई.

आज का विचार

पुरुष यदि शादी के बाद भी उसी तरह का बर्ताव जारी रखते हैं जो वे शादी से पहले करते हैं तो डायवोर्स होगा ही नहीं.

स्त्रियां यदि शादी से पहले उस तरह से बर्ताव करती हैं जैसा कि शादी के बाद होता है तो शादी होगी ही नहीं.

– व्हॉट्सएप पर पढा हुआ

एक मिनट!

पका: बका, मैं पॉलिटिक्स में नहीं हूं और मुझे भाजपा या कांग्रेस से कोई लेना देना नहीं है. लेकिन मेरा मानना है कि देश में दो ही पार्टियां होनी चाहिए.

बका: कौन कौन सी?

पका: एक शनिवार रात को, और दूसरी रविवार की रात में.

(मुंबई समाचार, शुक्रवार – २७ जुलाई २०१८)

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