गणिका हमारे समाज के केंद्र में है: मोरारीबापू

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, सोमवार – २४ दिसंबर २०१८)

अयोध्या में दूसरे दिन की `मानस: गणिका’ रामकथा का आरंभ पूज्य मोरारीबापू ने साहिर लुधियानवी की पंक्तियों से किया:

`ये पुरपेच गलियॉं, ये बदनाम बाजार,

ये गुमनाम राही, ये सिक्कों की झनकार

ये अस्मत (स्वाभविमान) के सौदे, ये सौदों पे तकरार

जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहां हैं?’

इन पंक्तियों के प्रस्तावना स्वरूप बापू ने कहा कि`तथाकथित इल्मियों ने जो नहीं किया…’ वाक्य बापू ने अध्याहार रखा है. शायद इल्मियें का प्रास फिल्मियों के साथ जोडना चाहते थे लेकिन औचित्य नहीं लगा होगा. इल्मी यानी जानकार, विद्वान, पंडित या मौलवी. जो बात महान साहित्यकार नहीं कह सके वह सत्य फिल्म के गीतकार ने इन पंक्तियों में कह दिया है.

साहिर साहब के इस सत्य के बारे में बापू ने कहा `…इस सत्य को तो स्वीकारना ही होगा. सत्य हम न बोल सकें तो कोई चिंता नहीं. लेकिन सत्य को अस्वीकार करना एक अपराध है. सत्य को स्वीकार करना चाहिए. और मुझे लगता है कि सत्य बोलने में तो साहस की जरूरत होती ही है, लेकिन सत्य को स्वीकार करने के लिए उससे भी अधिक साहस चाहिए. लोग सत्य को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं. जो कि वास्तविकता है, सच्चाई है इस संसार की…’

साहिर की इन मशहूर पंक्तियों तक पहुंचने से पहले बापू कहते हैं कि,`मेरे पास एक अच्छा समाचार आ रहा है. कलकत्ता के एक बडे हॉल में या ऐसे ही किसी स्थान पर इस कथा को बडे स्क्रीन पर इन बहन बेटियों को लाइव दिखाया जा रहा है और दोपहर के भोजन-प्रसाद का भी प्रबंध किया गया है. मुंबई में भी ऐसा ही काम हो रहा है. भारत के सभी नागरिकों से मेरी अपील है कि जहां भी आपके पास सुविधा हो वहां आप ऐसे मोहल्लों में जाकर बडे स्क्रीन की व्यवस्था कीजिए और निवेदन कीजिए कि बापू का निमंत्रण है, आओ, सुनो और दोपहर में अयोध्या के भंडारी का प्रसाद लो. मुझे बहुत अच्छा लगा ये समाचार सुनकर. सूरत में हो, वडोदरा में, जहां भी संभव हो उन सभी जगहों पर जिन्हें ऐसा करना हो वे करें, स्वत:स्फूर्त रूप से शुरूआत हो चुकी है, साधु संतों का आशीर्वाद है.’

बापू साहिर लुधियानवी की पंक्तियों का उल्लेख करते हुए कहते हैं: `साहिर की यह पुकार है- जिन्हें हिंदुस्तान पर नाज़ है, गर्व है वे लोग कहां हैं? कहां चले गए? मेरा इशारा हर एक की तरफ है. समाज के हर क्षेत्र को मेरा विनम्र संकेत है. कितनी दर्द भरी पंक्तियां हैं, इन माता-बहनों के लिए मैं तो दिल्ली को भी आवाहन करता हूं: सब कहां हैं.’

वो उजले दरीचों में पायल की छन छन

थकी हारी सांसों में तबले की धन धन

ये बेरूह कमरों में खांस की ठन ठन

जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहां हैं?

बापू कहते हैं: `कई लोग प्रारब्ध या परिस्थिति की ठोकर खाए हुए होते हैं जिन्हें आपके पैसे नहीं चाहिए, आप उनसे प्रेम भी न करें तो कोई बात नहीं लेकिन आपकी आंखों में उनके लिए करुणा होनी चाहिए.’

साहिर की पंक्तियों से बापू तुलसी चरित विनयपत्रिका का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि उसमें गणिका के उद्धार के बारे में लिखा है. इतना ही नहीं गुरू ग्रंथसाहब में भी गणिका शब्द का उल्लेख काफी भावपूर्वक हुआ है.

`मानस:गणिका’ रामकथा का आज दूसरा दिन है. आज तो टेक ऑफ लेने के लिए रनवे पर दौडने के बजाय बापू की वाणी रॉकेट की तरह सीधे अंतरिक्ष में गति के साथ गुरुत्वाकर्षण के बाहर निकल जा रही है. अपनी सच्चाई पर जिन्हें विश्वास हो उन्हें लोग क्या कहेंगे, ऐसी परिधि से बाहर निकल कर समाज की भ्रमणकक्षा को लांघते हुए सोचने की जरूरत है. बापू आज पूरी तरह से गुरुत्वाकर्षण से मुक्त होकर रूई सी कोमलता के साथ अपनी मस्ती में बोल रहे हैं: ` आपको धक्का न लगे तो कहूं और धक्का लगे तो भी आप जानो. मैं तु्म्हें धक्का नहीं दे रहा हूं, तुम्हारी पिटी पिटाई सोच तुम्हें धक्का दे रही है. गणिका गुरू है, गणिका गुरू है, गणिका गुरू है श्रीमद् भागवतजी में जो चौबीस गुरुओं की लिस्तट- भगवान दत्तात्रेय गणिका को गुरूपद देते हैं…कैसे मना करोगे? सदियों के बंधन तोडने बहुत मुश्किल होते हैं, सदियों के क्या, ये तो युगों युगों के बंधन हैं…’

दुनिया मे अच्छे लोगों ने कारीगरी अच्छी नहीं की है, गेम बहुत खेली है. कहलानेवाले लोग बहुत गेम खेलते हैं, बहुत गेम खेलते हैं. मैं कल ही शाम को बैठा तो कहता था कि मुझे सबकी गेम का पता लगता है लेकिन मेरी साधुता मुझे रोक रही है. बाकी मेरे अगल बगल वाले क्या समझ रहे हैं कि मुझे गेम पता नहीं? किस रूप में चालाकियां करते हो‍? मैं अनपढ हूं, मूर्ख नहीं..सोचो.

बापू आज सोलह कलाओं के साथ खिल रहे हैं और खिलें भी क्यां नहीं. अयोध्या की भूमि और रामकथा का गान. बापू के लिए तो अयोध्या जैसे मौसियान में दावत है और तुलसीदास जैसी माता परोसनेवाली है. वाणी का खिलना तो स्वाभाविक है.

बापू कहते हैं: कई बातें कागज में लिखे बिना कलेजे में उत्कीर्णित करके रखिएगा- गणिका समाज का शकुन है. जैसे बछडे को दूध पिलानेवाली गाय को देखना हमारे लिए शगुन है, सौभाग्यवती नारी का सामने दिखना शकुन है, हाथ में वेद या किसी भी शास्त्र की पोथी लेकर आ रहा ब्राह्मण दिखे तो शकुन है, ऐसे कई शकुन बताए गए हैं, जिसमें एक शकुन यह भी है कि अगर आप कोई शुभ कार्य करने जा रहे हैं और सामने से गणिका आती हुई दिख जाय तो यह शकुन है. आज भी बंगाल में दुर्गा उस घर की माटी से बनती है जिसके घर को हम बुरी निगाह से देखते हैं. पर्दे के पीछे सोया बालक बीमार हो तब भी उसे…ये सांसों की ठन ठन- साहिर साहब ने क्या इशारा किया है! मेरे पास एक योजना आई है: बापू, दिल्ली – मुंबई जहां भी संभव हो वहां इन बहन बेटियों के लिए, उनके परिवार के लिए एक मेडिकल योजना बनाते हैं. उन्हें जब भी मेडिकल सहायता की जरूरत हो तब अमुक राशि उन्हें मिलती रहे, नि:शुल्क इलाज मिले. बनाओ, यार यही तो मौका है. जुट जाओ ऐसी योजनाओं को अमल में लाने के लिए, करो. जरूर कुछ करो. मैं व्यवस्था का आदमी नहीं हूं. आपको करना है. बहुत काम करने हैं. हिंद पर नाज करनेवाले कहां हैं, कहां है… मेरे इस परमधाम अयोध्या में बाबा के आशीर्वाद लेकर अपने ठाकुर की भूमि से, अपने मानस की भूमि से मुझे कहना है कि उस उमदा उद्देश्य के लिए एक ऐसी सम्मानजनक राशि जुटाई जाए जिससे जहां भी जरूरत हो वहां उचित रूप से सहायता की जा सके. इस राशि के श्रीगणेश के रूप में हनुमानजी के प्रसाद के रूप में ग्यारह लाख रूपए की राशि इस व्यासपीठ ने प्रदान की है. बाकी, हरीशभाई के पास अगले शनिवार तक जिन्हें राशि लिखवानी हो वे लिखा दें. शनिवार के बात पूरी हो जाएगी. जो राशि एकत्रित होगी वह उनके लिए सेवाकार्य करनेवाली संस्थाओं को दे दी जाएगी. कुछ करके ही अयोध्या से वापस लौटूंगा…’

बापू तुलसीदास रचित विनयपत्रिका का उल्लेख करते हुए कहते हैं: गोस्वामी तुलसीदास भगवान राम से पूछते हैं कि आपने साधु संतों का उद्धार किया यह बात तो समझ में आती है लेकिन आपने तो गणिकाओं का भी उद्धार किया! जरा, यह तो बताइए प्रभु कि आपका उनके साथ क्या संबंध है? ऐसी कौन सी सगाई है?

बापू कहते हैं: मैं भी यह पढकर सोचना लगा कि तुलसी ने ऐसा कटाक्ष क्यों किया कि परमात्मा का गणिका के साथ क्या संबंध होगा! कई बातों के प्रमाण लिखित रूप में नहीं मिलते, ये तो सिद्ध पुरूष द्वारा बोले गए होते हैं, और इतना ही काफी है. साधु बोले सो निहाल. इतिहास को सिद्ध करने के लिए तथ्य जुटाने होते हैं, आध्यात्म को सिद्ध करने के लिए केवल सत्य ही होता है, तथ्य की कोई जरूरत नहीं होती. तो मैं सोचने लगा कि राम का गणिका के साथ क्या संबंध होगा? वाल्मीकि रामायण में पाठ है. चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने भी अपनी पुस्तक में उल्लेख किया है कि महाभारत में लोमसजी ने यह किस्सा पांडवों को सुनाया है. अपनी चिकनी चुपडी बातों के कारण, अपनी तथाकथित चिढ के कारण इन सब बातों पर हमने परदा डाल रखा है. गांधीजी ने इन बहन बेटियों के लिए, विधवाओं के लिए बहुत सुंदर विचार रखें है. वाल्मीकि जिन्हें वारांगना कहते हैं उनके उल्लेखों से हमें पता चलता है कि गणिकाएं न होतीं तो भगवान राम का प्राकट्य ही न हुआ होता. बडी लंबी कथा है. रस हो तो उन्हें मूल कथा पढ लेनी चाहिए. हमारे समाज के केंद्र में गणिका है. जिन्हें ऐसी बातों से चिढ है, नफरत है वे लोग इन बातों का कुछ अलग ही अर्थ निकालेंगे. गणिका के कारण हमें राम प्राप्त हुए. यह सगाई है. तुमने मुझे प्रकट किया, मैं तो हर जगह हूं लेकिन तेरे कारण प्रकट हुआ हूं, रामजी कहते हैं. ये सारी कहानी वाल्मीकि रामायण में है. वाल्मीकि रामायण के इस मूल पाठ को तथाकथित लोगों ने काफी विकृत स्वरूप में रख कर उसे प्रचारित करने की कोशिश की है. यह गलत था… गणिका गुरु है, गणिका शकुन है, गणिका दुर्गा की मूर्ति का प्राकट्य करती है और भगवान राम का भी. बहुत बडी महिमा है हमारी परंपरा में गणिका की.’

दूसरे दिन की कथा अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच रही है. बापू कहते हैं: आप ईशू के महिमाशाली दिन का उत्सव अवश्य मनाएं, शांति से सांताक्लॉज को देखिए. लेकिन रामनवमी उससे भी दुगुने जोश से मनाइए. जन्माष्टमी उससे तीन गुना उत्साह से मनाइए और महाशिवरात्रि उससे भी चारी गुना. ईशू महान थे, मासूम थे, उनके जीवन में भी गणिका का योगदान है. ईशू के बाद की परंपरा को मैं मानूं या न मानूं, यह मेरी इच्छा की बात है. लेकिन ईशू की बात ही अलग है. उस जमाने में कितनी क्रूर प्रजा थी. ऐसी महिला को पत्थर फेंककर घायल करके तडपाकर जान से मार दिया जाता था. उस समय के धर्मवाले भी उसमें मानते थे. लेकिन जीसस ने कहा: जिसने कोई पाप न किया हो, वह पहला पत्थर मारे.

दूसरे दिन की कथा को सम पर लाते हुए पू. मोरारीबापू ने फिर एक बार साहिर लुधियानवी को याद करते हुए कहा: औरत ने जनम दिया मर्दों को….

और बापू ने साहिर की जो पंक्तियां कथा कथा में उद्धृत नहीं की हैं वे भी याद आ रही हैं:

ये सदियों से बेखौफ सहमी सी गलियां

ये मसली हुइ अधखिली ज़र्द कलियां

ये बिकती हुई खोखली रंगरलियां

जिन्हें नाज़ है….

ये फूलों के गजरे, ये पीकों के छींटें

ये बेबाक नज़रें, ये गुस्ताख फिकरे

ये ढलके बदन और ये बीमार चेहरे

जिन्हें नाज़ है…

यहां पीर भी आ चुके हैं, जवां भी

तन-ओ-मन्द बेटे भी, अब्बा मियां भी

ये बीवी है, बहन है, मां है

जिन्हें नाज़ है हिंद पे वो कहां हैं,

कहां है, कहां है, कहां है….

अयोध्या में शाम बहुत जल्दी ढल जाती है. पांच बजे के बाद तेजी से अंधकार फैल जाता है. छह बजे तो रात जैसा घना अंधेरा हो जाता है. आज की ढलती शाम को बापू के साथ बैठकर हलकी-गंभीर बातें हो रही थीं, बापू के लिए बनी गंगाजल की चाय से थोडी थोडी गरमागरम प्रसादी हमें मिल रही थी तभी बापू कहते हैं: ये कथा बहुत सारे यंगस्टर्स सुन रहे हैं जिनमें से कइयों ने मेरे सामने कन्फेस किया है कि बापू, हम भी वहां जाकर आए हैं.

मैं बापू से कह रहा हूं कि इस कथा को पढकर अनगिनत पाठक मुझे कमेंट लिख रहे हैं, वॉट्सएप कर रहे हैं कि बापू की `मानस: गणिका’ का क्रांतिकारी कदम बापू को भारत के इतिहास में एक ऊँचे स्तर के समाज सुधारक के रूप में स्थापित करके याद रखेगा.

1 COMMENT

  1. From Yesterday Morari Bapu has started Ramkatha at Ayodhya between #Prostitutes and call girls earlier he has did Ramkatha between Kinnar (Transgender)# This revolutionary step is always welcome this is dharma HINDU Dharma – Sanatan Dharma always Practise humanism it’s not like any religion as I earlier said when we follow only one god and believe that one god is only God then we become a part of Religion Ekeshwarvaad

    But In Hinduism (Sanatan Dhrama) we believe that in each and every thing of World, nature there is god we believe in “Vasudhaiv Kutumbakam” means whole world is one family so we believe in Humanity and this western people who killed so many people now teaching us Humanity we have to introspect within our self

    અયોધ્યામાં આજથી મોરારિબાપુની રામકથા ‘માનસ : ગણિકા’ https://www.newspremi.com/gujarati/manasganika/

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