आयुर्वेद और परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों के आधुनिक गुजराती ऋषि – बापालाल वैद्य से नरेंद्र मोदी तक – हरिद्वार के योगग्राम में २१ वॉं दिन : सौरभ शाह

(गुड मॉर्निंग: चैत्र शुक्ल पंचमी, विक्रम संवत २०७९, गुरुवार, २१ अप्रैल २०२२)

आज सुबह-सुबह स्वामीजी के मार्गदर्शन में योगाभ्यास करते समय उनके मुख से जीवन को बदलनेवाला सूत्र सुना:`जब संकल्प टूटते हैं तब आप कमजोर होते जाते हैं.’ इस सूत्र के संदर्भ में हम सभी को खूब गहरा चिंतन करना चाहिए-अपने अपने जीवन, अपनी अपनी परिस्थिति के संदर्भ में.

आज स्वामीजी ने स्वास्थ्य के संबंध में और एक सुनहरा सुझाव दिया:`नींद और भूख जितनी बढ़ाते जाओगे, उतनी बढ़ती जाएगी और जितनी घटाते जाओगे उतनी घटती जाएगी.’

स्वामीजी ने यह भी कहा कि,`किसी भी रोग को शरीर में मेहमान बनाकर आश्रय मत दीजिए. उसे आते ही तुरंत भगा दीजिए.’

रोग भगाने के लिए भारतीय उपचार पद्धतियॉं प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से विश्व भर में मान्यता प्राप्त करने लगी हैं. हम भारत वाले विश्व स्वास्थ्य संगठन-WHO (`यूनो’ का आरोग्य विषयक संगठन) को अंतर्राष्ट्रीय ड्रग माफिया लॉबी और मल्टीनेशनल फार्मास्यूटिकल कंपनियों के हाथ का खिलौना मानते हैं, तो ये उचित ही है. लेकिन मोदीजी की स्टाइल अनोखी है. किसी भी तरह के सिस्टम्स को अपने पक्ष में कर लेने का उनमें गजब का हुनर है. नए सिस्टम, अपने कार्य-लक्ष्य के अनुकूल सिस्टम्स खड़ी करने में जितना समय-शक्ति-संसाधनों का उपयोग होता है, उसके सौवें भाग की मेहनत डालकर पुरानी सिस्टम्स को ही अपने पक्ष में क्यों न काम करने के लिए लगा दिया जाय? यह उनसे सीखने जैसा है. प्रधान मंत्री बनने के बाद उन्होंने जो भगीरथ कार्य किए, उसमें से एक काफी बड़ा कार्य आरोग्य और स्वास्थ्य के क्षेत्र में उन्होंने किया है. एक तो `यूनो’ से २१ जून का दिन `अंतर्राष्ट्रीय योग दिन’ के रूप में घोषित करवाकर योग को विश्व भर में पहुंचाने की व्यवस्था की. इसके अलावा प्रधान मंत्री का पद संभालने के ६ महीने में ही एक पूरा मंत्रालय ही आयुर्वेद और अन्य पारंपरिक उपचार पद्धतियों के प्रचार-सुविधा-निरीक्षण के लिए स्थापित की-आयुष (आयुर्वेद, योगनेचरोपथी, यूनानी, सिद्ध, होमियोपथी-AYUSH).

वैसे, वामपंथी बंदरों को इस मिनिस्ट्री की स्थापना को लेकर भी आपत्ति है. वे आक्षेप लगाते हैं कि आयुष मिनिस्ट्री स्यूडो-साइंस को प्रमोय करती है. लेकिन नरेंद्र मोदी हाथी का चाल से आगे बढ़ते जाते हैं. कुत्ते उन पर पीछे से भौंकते रहते हैं.

दो दिन पहले; १९ अप्रैल को प्रधान मंत्री ने जामनगर में WHO ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन के वैश्विक हेड क्वार्टर्स की शिलान्यास विधि करने के लिए मॉरिशस के प्रधान मंत्री प्रवीणकुमार जगन्नाथ को लाभ दिया. इस अवसर पर WHO के सर्वोच्च प्रमुख डायरेक्टर-जनरल डॉ. ट्रेडो मुख्य अतिथि थे. कोरोना के समय में ट्रेडो के मत्थे काफी आरोप मढ़े गए, एक तरह से वैश्विक विलन के रूप में और एक बेवकूफ आदमी के रूप में उन्हें चित्रित किया गया. मोदीजी ने गुजरात में आमंत्रित करके ट्रेडो से गुजराती बुलावाई और इतना ही नहीं, उन्हें `तुलसीभाई’ भी बना दिया. हमें मम मम से काम है या टप टप से-यह मोदीजी का मंत्र है.

आयुर्वेद का हजारों वर्ष पुराना ज्ञान हम सभी के घरों में कई पीढियों से प्रचलित है जिसे हम `घर का वैद्य’ के रूप में पहचानते हैं… गुजरात के अत्यंत आदरणीय और चहुंओर प्रसिद्धि प्राप्त वैद्य बापालाल वैद्य का `घरेलू वैद्य’ पुस्तक खूब पढ़ी-बेची गई है.

जामनगर भारत का प्रमुख और काफी पुराना आयुर्वेदिक केंद्र है. पचपन-साठ वर्ष पहले, १९६५ में जामनगर में आयुर्वेद युनिवर्सिटी की स्थापना हुई थी जहां ग्रेजुएट-पोस्ट ग्रेजुएट और पीएचडी के अध्ययन के लिए हर वर्ष देश विदेश से हजारों विद्यार्थी आते हैं. योग और प्राकृतिक चिकित्सा विधि भी यहां सिखाई जाती है. न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर्स, पैरेलिसिस, आर्थराइटिस, स्किन के रोग, ऑटो इम्यून डिसीज़ इत्यादि के उपचार के लिए ३०० बेड का अस्पताल युनिवर्सिटी के पास है और प्रति दिन १५०० मरीज़ों का इलाज करने में सक्षम ओ.पी.डी. भी है. मोदीजी ने उचित रूप से ही जामनगर के इस क्षेत्र को वैश्विक केंद्र बनाने की प्रेरणा WHO को दी है.

आयुर्वेद का हजारों वर्ष पुराना ज्ञान हम सभी के घरों में कई पीढियों से प्रचलित है जिसे हम `घर का वैद्य’ के रूप में पहचानते हैं. खाना बनाते समय जल गए? घी लगा दो. चाकू लग गया? हल्दी दबा दो. पेट खराब है? अजवाइन फांक लो. हमारे रसोई घर में रहनेवाला मसाले का स्टील का डिब्बा वास्तव में औषधियों का डिब्बा है. उसमें एक एक आयटम में औषधीय गुण हैं. देवगढ बारिया में मेरी दादी मसाले रखने के लिए रसोईघर में स्टील का नहीं बल्कि लकड़ी का बारह खानों वाला चौकोन डिब्बा रखती थीं.

गुजरात के अत्यंत आदरणीय और चहुंओर प्रसिद्धि प्राप्त वैद्य बापालाल वैद्य का `घरेलू वैद्य’ पुस्तक खूब पढ़ी-बेची गई है. लोग दवाओं पर पैसे खर्च करने से बचें, रोगी मनोदशा से बाहर आएं, आहारविहार में एकसूत्रता साधें और सामान्य रोगों का उपाय खुद ही कर लें, इस दृष्टि से बापालाल वैद ने `घर का वैद्य’ लिखा था. ५०० पृष्ठों की इस पुस्तक में पाचन तंत्र की बीमारियां, मेद के विकार, वात रोग, मानस रोग, मूत्र-रक्त-कफ-सर्दी-हृदय रोग, बुखार, स्त्रियों के रोग, नाक-आंख-कान-दांत संबंधी शिकायतों और अन्य अनेक छोटे बड़े फुटकर रोगों के बारे में जानकारी देकर उनका घरेलू उपाय बताया गया है.

बापालाल वैद्य की एक अन्य लोकप्रिय पुस्तक है जिसका शीर्षक है `दिनचर्या’: करीब नब्बे वर्ष पहले लिखी गई इस पुस्तक की पहली आवृत्ति १९३४ में प्रकाशित हुई थी. पुस्तक के पहले ही पृष्ठ पर `अष्टांगहृदयम’ का श्लोक उद्धृत करके बापालाल भाई ने उसे समझाया है:`धर्म, अर्थ तथा विविध सुखों के आधारभूत दीर्घजीवन की इच्छा रखनेवालों को आयुर्वेद के उपदेश में परम आदर रखना चाहिए.’

मूल श्लोक संस्कृत में है: आयु: कामयमानेन, धर्मार्थसुखसाधनम, आयुर्वेदोपदेषु विधेय: परमादर:.

हमारे यहॉं `चरकसंहिता’, `सुश्रुतसंहिता’ और `अष्टांगहृदयम्‌’ को बृहत्रयी के रूप में पहचाना जाता है. वाग्भट्ट ने करीब तीन हजार वर्ष पहले `अष्टांगहृदयम्‌’ ग्रंथ की रचना की थी जिसमें आयुर्वेद की दवाओं तथा शल्यचिकित्सा दोनों के बारे में जानकारी का भंडार है.

बापालाल गरबडदास शाह खडायता वैष्णव थे और पंचमहाल जिले में जन्मे थे. (व्हॉट अ कोइंसिडेंस!) समय बीतने पर वैद्य के रूप में विख्यात हुए. १८९६ में उनका जन्म हुआ था. सत्तानबे वर्ष की दीर्घ आयु जीकर १९९३ में वे स्वर्गवासी हुए. कुल पच्चीस पुस्तकें लिखीं. सारा जीवन आयुर्वेद का अध्ययन किया, कराया और इसी विषय में गहन संशोधन किया. वैद्य के नाते हजारों-लाखों लोगों को ठीक किया.

डॉ. प्रकाश कोठारी अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त सेक्सोलॉजिस्ट हैं. १९८५ में दिल्ली में आयोजित ७वीं वर्ल्ड कॉन्ग्रेस ऑफ सेक्सोलॉजी के वे प्रेसिडेंट थे. १९८९ में `द वर्ल्ड असोसिएशन ऑफ सेक्सोलॉजी’ ने उन्हें `मैन ऑफ द इयर’ के खिताब से सम्मानित किया और २००२ में वाजपेयीजी की सरकार ने उनका `पद्मश्री’ देकर सम्मान किया था. डॉ. प्रकाश कोठारी के पास मेडिसिनन की बड़ी बड़ी डिग्रियां हैं और पीएचडी भी है. इसके बावजूद आयुर्वेद के क्षेत्र का अथाह ज्ञान उनके पास है. किसी भी सीनियर आयुर्वेदाचार्य की बराबरी में खड़े रह सकते हैं, इतना ज्ञान है, अनुभव भी है. वे बापालाल वैद्य को इस क्षेत्र का एक आदर्श पुरुष मानते थे. बापालाल वैद्य का नाम मुझे पहली पहली वर्षों पहले डॉ. प्रकाशभाई कोठारी से ही जानने को मिला था.

बापालाल वैद्य ने सवा दो सौ पृष्ठ की `दिनचर्या’ पुस्तक में अनेक काम की बातें लिखी हैं. एक चैप्टर का शीर्षक है:`आयुष्मान होने के उपाय’. बापालालभाई ने महाभारत का रेफरेंस देकर यह पूरा प्रकरण लिखा है.

सात से दस हजार वर्ष पहले लिखी गई ये बातें `महाभारत’ की रचना होने से पहले भी प्रस्तुत रही होंगी, तभी तो वेद व्यास ने यह लिखी होगी. उस जमाने में इन बातों पर अमल भी होता होगा.

बापालालभाई लिखते हैं कि `महाभारत’ के अनुशासनपर्व में युधिष्ठिर भीष्म पितामह से प्रश्न पूछते हैं:`पितामह! वेद में कहा गया है कि पुरुष की (यानी कि मनुष्य का जिसमें स्त्री भी आ जाती है) आयु सौ वर्ष की होती है. क्या करने से मनुष्य संपूर्ण आयुष्मान हो सकता है? क्या करने से वह अल्प आयु वाला होता है?’

इन प्रश्नों का उत्तर भीष्म पितामह विस्तार से देते हैं. भीष्म पितामह कहते हैं:

`आचार से ही पुरुष की आयु बढ़ती है, आचार से ही लक्ष्मीवान होता है और आचार से ही इस लोक और परलोक में कीर्ति प्राप्त होती है. (परलोक से मेरा निहितार्थ ये है कि आपके जाने के बाद भी दशकों-सैकड़ों-हजारों वर्ष तक आपकी कीर्ति का गुणगान होता रहता है-राम, कृष्ण, महावी, बुद्ध, नरसिंह मेहता, गांधीजी, स्वामी विवेकानंद, वीर सावरकर, डॉ. महेरवान भमगरा, डॉ. मनु कोठारी या फिर तुलसी, सूर, कबीर, रैदास, भारतेंदु, निराला, प्रेमचंद, मैथिलीशरण, जयशंकर प्रसाद की तरह) दुराचारी मनुष्यों को इस दुनिया में दीर्घायु प्राप्त नहीं होती. इसीलिए अपने कल्याण की इच्छा करनेवाले प्रत्येक मनुष्य को सदाचारी होना चाहिए.(६-९)

`क्रोध का त्याग करनेवाला, सत्यवादी, प्राणियों की हिंसा नहीं करनेवाला, ईर्ष्या रहित और निष्कपटी पुरुष सौ वर्ष तक जी सकते हैं. (१४)

`सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठ कर धर्म-अर्थ का विचार करना चाहिए. हमेशा नित्य संध्या करनी चाहिए. नित्य संध्या करने के कारण ही ऋषि दीर्घायु होते थे. (१८)

`केश प्रसाधन (बाल में तेल डालना, बाल संवारना, सेट करना इत्यादि), आंख में अंजन करना तथा देवताओं का पूजन आदि कार्य दिन के प्रथम भाग में ही कर लेने चाहिए. (२३)

`दूसरों के मर्मस्थानों को पीड़ा हो, ऐसे वचन नहीं बोलने चाहिए, क्रूर वाक्य नहीं बोलने चाहिए, नीच मनुष्य से कोई पदार्थ नहीं लेना चाहिए, जिस वाणी से दूसरों को उद्वेग होता है ऐसी रूखी और पापी वाणी कभी नहीं बोलनी चाहिए. (३२-३३)

`उत्तर दिशा में और पश्चिम दिशा में सिर रखकर नहीं सोना चाहिए. पूर्व और दक्षिण दिशा में सिर रखकर सोएं (४८)

`कभी सिर के बाल खींचने नहीं चाहिए या किसी के सिर पर मारना नहीं चाहिए. कभी भी दोनों हाथों से सिर नहीं खुजाना चाहिए. बार-बार सिर के ऊपर पानी डालकर स्नान नहीं करना चाहिए’ (यानी बाल्टी –लोटा से स्नान करते हों या फिर शॉवर के नीचे खड़े होकर नहाते हों-लगातार सिर पर जलधारा नहीं डालनी चाहिए.-सौ.शा.) (७०)

`रात में सोते समय दिन में पहने हुए वस्त्र बदलकर नया पहनकर सोना चाहिए. (८६)’

(स्वामी रामदेव ने एक बार योगाभ्यास के दौरान इस बात का उल्लेख किया था. उन्होंने कहा था कि वे खुद अतिनिर्धनता में पले हैं और उसके बाद गुरुकुल में वर्षों बीत गए इसीलिए पता ही नहीं चला कि रात में कपड़े बदलकर सोना चाहिए. `हम तो सारा दिन जो कपड़े पहने होते हैं, वही पहनकर सो जाया करते थे.)

`अपने समाज के जो वृद्ध होते हैं और जो मित्र दरिद्र होता है उसे अपने घर में आश्रय दें. ऐसा करने से धन और आयु की वृद्धि होती है. (११३)’

ऐसी अन्य कई सारी बातें बापालालभाई ने अनुशासन पर्व का उद्धरण देकर कही हैं और लिखा है कि,`हमने (उस पर्व से) कई सारी महत्वपूर्ण बातें ही ली हैं. संपूर्ण प्रकरण देखने की इच्छा रखनेवाले को महाभारत पढ़ना चाहिए.’

भीष्म पितामह ने ये सारी बातें युधिष्ठिर को बताई हैं. बस एक ही बात दादा ने युधिष्ठिर से गुप्त रखी:`सौ वर्ष जीना हो तो पचास दिन के लिए हरिद्वार में स्वामी रामदेव के योगग्राम में जाकर रहना चाहिए!’

1 COMMENT

  1. श्री बापालालभाई वैद्य के नाम और उनके उल्लेखनीय योगदान के बारे में इतने विस्तृत रूप में जानने को मिला। आभार।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here