यहां की दिनचर्या क्या ज़िंदगी भर जारी रखनी है? – हरिद्वार के योगग्राम में ११वां दिन : सौरभ शाह

(गुड मॉर्निंग: चैत्र शुक्ल दशमी, विक्रम संवत, २०७९, सोमवार, ११ अप्रैल २०२२)

योगग्राम आने से पहले यहां जितने दिन का मेरा निवास है, उसके दौरान, और यहां से घर लौटने के बाद, आपको दो सबसे महत्वपूर्ण बातें गांठ बांध लेनी होंगी.

सबसे पहली बात ये कि यहां खाने-पीने की तथा अन्य मामलों में आपकी जो दिनचर्या हो वह कोई अपनी रुटीन जिंदगी में हंड्रेड पर्सेंट फॉलो नहीं करनी, यह संभव भी नहीं है और जरूरी भी नहीं है. स्वयं स्वामी रामदेव कहते हैं कि महीने-दो महीने ऐसी कडी दिनचर्या के बाद आपकी आदतें बदल जाती हैं तथा आपमें आपके अपने स्वास्थ्य के बारे में असली समझ आती है, वह घर लौटने के बाद आपको अपनी प्रतिदिन की जिंदगी में जो अनिवार्य हों उतने बदलाव करके अपना रुटीन फिर एक बार, नए सिरे से सेट करना है.

एक योगाचार्य ने कहा था कि आप समोसा खाएं, इसकी समस्या नहीं है लेकिन सारा जीवन योग-प्राणायाम का निरंतर अभ्यास करते हुए शरीर को ऐसा बनाएं कि समोसा तो क्या पत्थर भी खा लो तो पच जाय.

यह बात विस्तार से समझने लायक है. यहां आप एक उपचार केंद्र में हों, इस तरह का रुटीन जीते हैं. घर लौटने पर यदि यही रुटीन चालू रहेगा तो आपको अपना काम करने के लिए, आजीविका चलाने के लिए, समयशक्ति कैसे मिलेगी?

सुबह ढाई घंटा और शाम को डेढ घंटे का योगाभ्यास यहां इसीलिए जरूरी है कि घर लौटकर आप रोज कम से कम एक घंटा गहनता से योग-प्राणायाम करने लगें और जीवन भर जारी रख सकें. हां, किसी को अधिक पुराना और गंभीर रोग हो या असाध्य माने जानेवाले रोग हों तो एक घंटे के बदले दो-तीन-चार घंटे तक योग-प्राणायाम करना पडेगा. ये सब अपवाद कहा जा सकता है. नॉर्मल लाइफ और नॉर्मल हेल्थ वाले लोगों के लिए‍ घंटे का अभ्यास पर्याप्त होगा, ऐसा मुझे अभी लगता है.

वैसे, मैं घर लौटने के बाद एक घंटे बाद और एक घंटे तक ब्रिस्क वॉकिंग और साइक्लिंग पर खर्च करने की योजना बना रहा हूं. २४ में से कुल दो घंटे शरीर-मन की देखरेख के लिए, छह घंटा नींद के लिए और बाकी के १६ घंटे काम में जिसमें भोजन-नित्यकर्म भी शामिल हो जाता है.

योगाभ्यास के अलावा यहां का जो आहार है वह भी उपचार केंद्र का आहार है. ऐसा भोजन सारा जीवन नहीं खा सकते और ऐसी कोई ज़रूरत भी नहीं है. स्वामीजी के कहे अनुसार एक महीना-दो महीने ऐसा आहार लेकर घर लौटकर आप अपनी पुरानी आदत के अनुसार भोजन आरंभ कर सकते हैं-लेकिन इसमें जो कुछ भी जरूरी हो, वे सभी बदलाव करने की सतर्कता आपको बरतनी पडेगी. उदाहरण के लिए-नमक-शक्कर की मात्रा या गेहूं-चावल पर निर्भरता इत्यादि.

मैं प्लान कर रहा हूं कि नमक और शुगर इन दोनों का संपूर्ण त्याग भले ही संभव न हो तो भी नमक का सेवन पच्चीस प्रतिशत पर ला सकूंगा. दो तरह से. एक तो जहां जहां नमक डाला जाता है, वहां पहले से आधा ही डाला जाय, जिसके लिए आपको बाकी के मसालों की मात्रा आपको घटानी न पड़े. और दूसरी बात, नमक अधिक पड़ता हो, ऐसे पदार्थों को बंद कर दिया जाय या फिर उसकी आवृत्ति घटा दी जाय. पानीपुरी या चाट की सारी आयटम्स या घर के या (बाहर से आनेवाले) नमकीन इत्यादि की आवृत्ति आधी हो जाय और घटी हुई आवृत्ति में भी खाने की मात्रा आधी हो जाय तो संपूर्ण आहार में नमक ७५ प्रतिशत घट जाएगा.

ऐसा ही शक्कर के बारे में है. जैसे भोजन करते समय कभी ऊपर से नमक नहीं लेने की आदत डालनी पडती है, उसी तरह से चाय-कॉफी-दूध जैसी अन्य चीजों में शक्कर या तो बिलकुल बंद कर दी जानी चाहिए या फिर उसकी मात्रा कम करके बिलकुल आधी या एक चौथाई कर देनी चाहिए. (सावधान, शुगरफ्री के नाम पर मिलनेवाली गोलियां, पेय इत्यादि शक्कर से अधिक हानिकारक हैं. किसी को गुड की चाय या गुडवाली मिठाई अच्छी लगती हो तो वह सही मात्रा में ली जा सकती है.) इसके अलावा जलेबी, आइसक्रीम, चॉकलेट, तरह तरह की अन्य मिठाइयां (बाहर से आनेवाली या घर में बननेवाली) खाने की आवृत्ति कम करने से और उसकी मात्रा कम करने से शक्कर का सेवन काफी कम हो जाता है. शरबत या कोल्ड ड्रिंक इत्यादि में खूब शक्कर होती है. ये सब तो साल में कभी कभार लेना ही ठीक है. हम घर में जो सफेद दानेदार चीनी लेकर आते हैं, उसके बजाय रसायन मुक्त गुड रसोई में उपयोग में ला सकते हैं. सफेद नमक के बजाय सैंधव उपयोग में लाया जा सकता है. वैसे इन पर्याय वाले मसालों में भी अतिरेक अच्छी बात नहीं है. सैंधव अच्छा है तो पानी पुरी खाएं या गुड अच्छा है तो गोडपापडी-सुखडी (गुजराती व्यंजन) जम कर खाएं तो कोई परेशानी नहीं होगी, ऐसा नहीं मानिएगा. सफेद नमक या क्रिस्टलाइज्ड शुगर की बराबरी में सैंधव या गुड बेहतर हैं, वर्ना ये भी अधिक मात्रा में आपके शरीर में जाकर नुकसान ही करेंगे.

घर जाकर आहार में जो कुछ भी बदलाव करने हैं, वे करके अपनी पहले वाली आहार की आदतें जारी ही रहेंगी. जैसे कि सप्ताह में एक बार घर में दाल ढोकली तो बनने ही वाली है. लेकिन पहले उसमें जितना गुड पडता था उसका अब पच्चीस प्रतिशत ही (जो कि ट्रायल एंड एरर से ही पता चलेगा) डालना चाहिए और उसे हिसाब से बाकी के मसाले-मिर्च, खटास, नमक इत्यादि भी कम कर देनी चाहिए ताकि स्वाद का संतुलन बना रहे. इसके अलावा भोजन करते समय अच्छे लगनेवाले व्यंजन पर टूट पडने और उसे खूब खाने के बजाय उसकी मात्रा आधी करके, खाने का समय बढाते हुए धीमे धीमे चबाकर, हर निवाले का स्वाद लेना चाहूंगा, और ऐसा सोचकर खाऊंगा कि मैं अभी अपना अतिप्रिय व्यंजन खा रहा हूं, मुझे ऐसा भोजन जीवन के आखिरी दिन तक करना है और इसीलिए मैं अपनी तबीयत संभालने के लि, अभी कम खा रहा हूं, पहले की तरह मसाले डालकर नहीं खा रहा-इतना चिंतन करके खाएंगे तो निश्चित आनंद आएगा, शायद डबल मजा आएगा.

योगग्राम में आने से पहले या यहां रहने पर या घर जाने के बाद, जो दूसरी महत्वपूर्ण बात याद रखनी है, वह ये है कि यहां रहकर आपकी तबीयत में जो सुधार होता है, आपके शरीर के जो विकार दूर होते हैं, उसका असर बरकरार रहे इसके लिए मेहनत आपको आज से ही करनी है. यहां की विभिन्न थेरेपियां, यहां का आहार, दवाएं और योग प्राणायाम के प्रताप से आपका शुगर-बीपी कंट्रोल में आ जाता है और लैब रिपोर्ट्स में सबकुछ नॉर्मल दिखता है, तो इसका मतलब ये नहीं है कि भविष्य में भी ये सब नॉर्मल रहेगा. यहां का आपका आहार नियंत्रित है, सब कुछ नियंत्रित है-कोई अस्पताल या उपचार केंद्र में जो नियंत्रण होते हैं, ऐसे नियंत्रण में आप हैं. घर लौटने पर यदि आप स्वच्छंद हो जाएंगे तो शुगर बढनेवाली ही है, बीपी बढने ही वाला है या फिर जो भी बीमारियां या विकार हैं वे लौटने ही वाले हैं-बशर्ते आप अपनी जीवनशैली में बदलाव नहीं करेंगे तो या पुरानी आदतें छोड नहीं सकेंगे तो. यह खास ध्यान रखना है.

मैं सोच रहा हूं कि घर जाकर सप्ताह या पंद्रह दिन तक रोजाना एक बार भोजन करूंगा, महीने में एक बार पूर्ण उपवास करूंगा और इसके अलावा महीने-पंद्रह दिन में एक बार केवल फ्रूट खाकर या दूध पीकर उपवास करूंगा. मेरे एक अहमदावाद निवासी खास मित्र नियमित रूप से नमक और शक्कर के बिना साप्ताहिक उपवास करते हैं और वे बिलकुल फिट हैं.

उपवास के दो छोर हैं. अतिरेक वाले उपवास और स्वच्छंद उपवास.

बिलकुल सख्त (केवल पानी पर) उपवास खूब लंबे समय तक करने से शरीर क्षीण हो जाता है-सांसारिक लोगों के लिए ऐसा करना कठिन है. जो तपस्वी हैं, योगी हैं, साधक हैं उनका शरीर ही ऐसे कडे उपवास को सह सकता है और उन्हीं को लाभ होता है. स्वच्छंद उपवास यानी एकादशी इत्यादि को फलाहार के नाम पर साबूदाने की खिचडी से लेकर सूरन आलू की सब्जी, राजगीरे की पूरी, सिंघाडे के आटे की कढी, श्रीखंड, तले हुए आलू के चिप्स पेट भर कर खाए जाते हैं. हम वैष्णवों में बहुत ही कम परिवारों में केवल एकाध समय थोडा फल या थोडा दूध लेकर या बिलकुल खाए बिना एकादशी का उपवास किया जाता है. फलाहार के भरपूर व्यंजनों वाले `उपवास’ मन के साथ छल करते हैं.

उपवास का महत्व हमारी भारतीय परंपरा में हजारों वर्षों से है. तरह तरह के उपवास हो सकते हैं. अब तो पश्चिमी देशों के विशेषज्ञ भी उपवास के महत्व को स्वीकारने लगे हैं और मानो इंटरमिटेंट उपवास पश्चिमी दुनिया की खोज हो, इस तरह से उसका प्रचार करने लगे हैं.

उपवास करने और छोडने में शास्त्रीयता रखनी चाहिए. एक दिन का कडा उपवास करने के बाद तुरंत ही आप पानी पुरी खाने लगेंगे या घर में श्रीखंड पुरी का सेवन करेंगे तो पिछले दिन का उपवास आपके लिए आशीर्वाद रूप बनने के बजाय शाप बन जाएगा. कडा उपवास करने के बाद फल का रस, उसके बाद मूंग का पानी इत्यादि एक दो दिन लेकर ही रेगुलर आहार शुरू किया जा सकता है. इस संबंध में मेरा कोई भी अनुभव नहीं है. किसी अनुभवी को या इस विषय के विशेषज्ञ से पूछना ठीक रहेगा.

तो बात ऐसी है. यहां आकर समझ में आता है कि जीवन में कुछ ही मामलों में अतिरेक होना अच्छा होता है-जैसे कि काम करने के पैशन के बारे में-लेकिन अन्य सारे मामलों में मॉडरेशन या मध्यम मार्ग ही ठीक है. मैं अभी तक यह मानता था कि मध्यम मार्ग पर चलनेवालों को, सडक के बीचो बीच चलनेवालों के साथ ही सर्वाधिक दुर्घटना होती है; दोनों में से एक छोर पर चलनेवाले मुझ जैसे अतिवादी के साथ दुर्घटना नहीं होती. मैं गलत था. तर्क का दुरूपयोग करके ऐसे तर्क दिया करता था. भरपूर पैशन या अतिवादिता कुछ मामलों में बहुत ही उपयोगी है और उसका लाभ मुझे मिला है, भविष्य में भी लाभ लेता रहूंगा. लेकिन खाने पीने के मामले में जीवनशैली के संबंध में या कुछ प्रकार की आदतों के संबंध में मध्यम मार्ग या मॉडरेशन ही ठीक है. यह समझने में काफी देर हो गई. वैसे, देखा जाय तो सही समय पर यह सीख मिली है. इस समझ पर अमल करने के लिए और चालीस वर्ष मेरे पास हैं.

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