उन्हें सुधारने नहीं स्वीकारने आया हूं: मोरारीबापू

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, रविवार – २३ दिसंबर २०१८)

अयोध्या नगरी समस्त संत समाज के आदरणीय साधु-संतों को मंच पर सम्मानपूर्वक विराजमान करके पू. मोरारीबापू ने नौ दिन की `मानस: गणिका’ के प्रथम चरण का आरंभ हनुमानजी की शाब्दिक स्थापना के साथ किया. सुज्ञ श्रोताओं में सम्मानजनक स्थान पर गणिकाएँ हैं. सभी को प्रणाम करके बापू आरंभ करते हैं: `बाप!’

सरयू के तट पर रामजन्मभूमि पर का यह पावन अवसर है. बापू पहले भी यहां पर रामकथा का गान कर चुके हैं. अयोध्या कई बार आए हैं, लेकिन इस बार कुछ अलग ही भाव पैदा हो रहे हैं. बापू कथा के दौरान कहते हैं. इस बार अयोध्या की भूमि कुछ अधिक तेजस्वी लग रही है, बापू निष्कपटता से कहते हैं. रामजन्मभूमि शिलान्यास के परमपूज्य महंतश्री की उपस्थिति में हो रही रामकथा का विषय है:`मानस: गणिका’. ऐसा विरल संयोग बापू ही निर्मित कर सकते हैं. गणिका के बारे में कथा अयोध्या में ही क्यों? बापू से कई लोग पूछते थे. बापू जवाब देते कि इस भूमि पर हर किसी का उद्धार होता है तो गणिका का भी होगा.

मजबूरी हो या फिर चाहे जो भी हो, ये नारियां तो गात्र (देह) बेचती हैं लेकिन जो अपना गोत्र बेचते हैं उनका क्या? जो अपना स्वधर्म बेचते हैं उनका क्या? गीता में कृष्ण ने कहा: स्वधर्मे निधनं श्रेय: परधर्मो भयावह: गात्र की बात जाने दीजिए. गोत्र बेचनेवालों की खबर लीजिए.

अयोध्या रामजन्मभूमि है. बापू कहते हैं विवाद के मुद्दे पर मीडियावाले कई बार मुझसे पूछा करते है कि आपको तो अयोध्या में ही पडे रहना चाहिए, अयोध्या छोडकर कहीं जाना नहीं चाहिए. जवाब में बापू कहते हैं: मैं भले ही अयोध्या में नहीं रहता लेकिन अयोध्या चौबीसों घंटे मुझमें रहती है.

अयोध्या उसका नाम है जहां पर युद्ध नहीं है, जहां विवाद नहीं है, जो निर्विवाद भूमि है वह अयोध्या है. संवाद और स्वीकार की यह धरती है. बापू कहते हैं: मेरी भूमिका गणिकाओं को सुधारने की नहीं है, उन्हें स्वीकारने की है.

श्रोताओं को संबोधित करते हुए, मंडप में बैठे और `आस्था’ चैनल द्वारा दुनिया के १७० देशों में लाइव कथा देख रहे श्रोताओं को संबोधित करते हुए बापू कहते हैं: (गणिकाओं के साथ) सौदा बहुत किया, अब उनकी सेवा करने का समय आया है. उनकी सहायता कर रही संस्थाओं को यथाशक्ति मदद किए बिना जाया नहीं जा रहा है. मैं तो दोनो हाथ उठाकर सारी दुनिया को कथा में आने का निमंत्रण देता रहता हूँ तो इन नारियों को क्यों न बुलाऊं कथा में. रोगी इतना बीमार हो कि वैद्य के पास न जा सके तो वैद्य को उसके पास जाना चाहिए और रोगी के पास जाकर कुछ नहीं तो अंत में उनके साथ दो मीठे बोल तो बोले. मैंने उनसे कहा कि आप अयोध्या की कथा में आइए. उद्धार को प्रभु राम करेंगे लेकिन आप कथा सुनने आइए. मैं बहन बेटियों से मिला तब एक भाई साहब फोटो खींच रहे थे. एक बहन ने कहा: बापू, कहिए कि हमारी फोटो कोई न खींचे.

बापू कहते हैं: मैने फोटो डिलीट कराया, तब वह बहन बोली: बापू, हमें आपसे डर नहीं लगता, आपके साथ जो लोग आए हैं, उनसे डर लगता है.

बापू प्रमाण देकर कहते हैं कि गांधारी जब गर्भवती थीं तब धृतराष्ट्र की सेवा गणिका ने की थी. राम जब अयोध्या लौटे तब भरत ने राम के दर्शन करने के लिए आए समाज के जिस जिस वर्ग को बुलावा उसमें गणिकाएं भी शामिल थीं. बापू कहते हैं: तो फिर मैं उन्हें अपनी कथा में क्यों न बुलाऊं?

ये नारियां किसी शाप के वश में हैं, पापवश नहीं हैं. अहिल्या को धोखा दिया गया था. ये इंद्र की कथा है.

यहां बापू सारगर्भित रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण बात करते हैं. सारे जंगल में बारिश करने का विराट कार्य तो मेघ कर सकते हैं, लेकिन अपने आंगन की तुलसी को सींचने का काम तो हम ही कर सकते हैं.

बापू की हर कथा उनमें निहित अपार ऊर्जा के स्रोत का प्रमाण देती रही है, लेकिन अयोध्या में चल रही `मानस: गणिका’ के पहले ही दिन माहौल मानो इस तरह का बन गया कि पहली ही ओवर में छह सिक्सर लगे हों. बापू की आवाज की खनक, उनके गाने का अंदाज़, उनकी बॉडी लैंग्वेज यह सारा कुछ दिव्य तेज से जगमगा रहा था. गणिका कथा की पूर्व भूमिका रखकर बापू पहले दिन की औपचारिकता के रूप में कथा का मंगलाचरण करते हैं और कहते हैं कि मंगल आचरण करने से पहले मंगल उच्चारण करना चाहिए इसीलिए गणिका के महत्व को स्थापित करते हुए बात का आरंभ किया.

रामचरित मानस के आरंभ में पंचदेव को तुलसी ने याद किया है. विवेक के देवता गणेश, प्रकाश के देवता सूर्य, श्रद्‌धा की देवी गौरी-पार्वती, व्यापकता के देवता विष्णु और कल्याण के देवता महादेव.

पांचों देवों को वंदन करके तुलसी ने रामकथा आरंभ करने से पहले ब्राह्मणों, सज्जनों, साधुचरित व्यक्तियों, साधु समाज इत्यादि को सबसे पहले प्रणाम किया और विनयपत्रिका में हनुमानजी की वंदना करते हुए गाया है:

“मंगल मूरति मारूति नंदन,

सकल अमंगल मूल निकंदन.

पवन तनय संतना हितकारी,

हृद्य बिराजत अवध बिहारी.

मातु पिता गुरू गणपति शारद,

शिवा समेत शंभु शुक नारद.

चरण बंदि बिनवौं सब काहू,

देहु राम पद नेह निबाहू.

बंदन राम लखन वैदेही

जे तुलसी के परम सनेही

हे मारूति नंदन हनुमानजी महाराज, आप मंगलकर्ता हैं और सारे अमंगल का नाश करते हैं. आप पवनपुत्र और संतां के हितकारी हैं. आपके हृद्य में प्रभु श्रीराम विराजमान हैं. माता, पिता, गुरू, गणेश, सरस्वती और पार्वती सहित शंकर, शुकदेव और नारद इन सभी के चरणों में प्रणाम करता हूं. ये सभी मुझे आशीर्वाद प्रदान करें कि मैं सदैव प्रभु श्री रामजी के चरणों में प्रेम पाता रहूं. राम, लक्ष्मण और सीताजी की मैं वंदना करता हूँ जो मेरे (तुलसीदास के) अत्यंत निकट के स्नेही हैं.

तुलसी कितनी सुंदर भावना व्यक्त करते हैं. राम, लक्ष्मण और सीताजी को अपना निकट संबंधी बनाने के बाद किसी सगे-संबंधी की भला क्या आवश्यकता है!

पहले दिन की कथा अयोध्या के संतों के चरणों में अर्पित करके पू. मोरारीबापू सभी की मौजूदगी में पूछते हैं कि अयोध्या में ठंड बहुत है तो कल से कथा नित्यक्रम के अनुसार साढे नौ बजे आरंभ करनी है या दस बजे?

सभी एक स्वर में बोल उठते हैं: दस बजे!

तो कल से `आस्था’ पर साढे नौ के बजाय दस बजे!

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