आपकी तिजोरी में ताला लगाने की जिम्मेदारी किसकी है

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, गुरुवार – २४ अक्टूबर २०१८)

चाबी से दरवाजा खोलकर आप अपने घर में प्रवेश करते हैं. शाम को ऑफिस से या बाजार से सब्जियां खरीद कर आप लौट आते हैं. ड्रॉइंग रूम में कदम रखते ही आप क्या देखते हैं? आपका जवान कॉलेजियन बेटा फांसी लगाकर पंखे पर लटका है. आप गश खाकर गिर पडते हैं. आपको पसीना छूटने लगता है. आप भौंचक्के हो जाते हैं. आप आघात से किंकर्तव्यविमूढ हो गए हैं. अवाक रह गए हैं. आपका ब्लड प्रेशर ऊपर नीचे हो रहा है. सिर फटा जा रहा है. चीखने का प्रयास करते हैं पर गले से आवाज ही नहीं निकल रही.

ये हालत कब तक रहेगी? पंद्रह सेकंड? आधा मिनट? एक मिनट? दूसरे ही मिनट में आप आस-पडोस के दरवाजे खटखटाएंगे, पुलिस को फोन करेंगे, रिश्तेदारों को फोन करेंगे.

आपके साथ कोई पुरुष यदि अशोभनीय बर्ताव करता है और आपको अच्छा नहीं लगता है. आप उसी पल उसका प्रतिकार नहीं कर सकते. कोई बात नहीं. लेकिन उस जगह से दूर तो जा ही सकते हैं. चलिए, यह भी संभव नहीं है तो दूसरे दिन? तीसरे दिन? आप फोन करके उसे धमका सकती हैं, डांट सकती हैं, कह सकती हैं कि जो हुआ वह गलत था; ऐसा करनेवाले की मम्मी, पापा, पत्नी, बॉस, मित्रों को या अंत में अपने घरवालों को भी आप बता सकती हैं कि आपके साथ इस आदमी ने ऐसा किया है. लेकिन यदि आप दो दिन बाद, दो महीने बाद या दो वर्ष बाद भी चुप रहती हैं और दस वर्ष, बीस वर्ष, पचीस वर्ष बाद कहें कि इस आदमी ने मेरे साथ ऐसा किया था तो आपका आशय बिलकुल स्पष्ट है, आपका इरादा एकदम स्पष्ट है. आपके इरादे नेक नहीं हैं.

आपके घर में चोरी होती है पर आप बाहर हैं, शायद विदेश में हैं, छह महीने बाद लौटते हैं तब पता चलता है कि घर की तिजोरी में चोरी हुई है और आप पुलिस स्टेशन में शिकायत करने जाते हैं. आपको पुलिस में इतनी देर से शिकायत करने के कारण सबमिट करने होंगे. पासपोर्ट इत्यादि दिखाकर साबित करना होगा कि आप विदेश में थे और साथ ही यह भी साबित करना होगा कि आपनी गैरमौजदगी के दौरान घर बंद था, घर में ताला लगा था, घर में अन्य कोई नहीं रहता था. लेकिन ऐसे केस में भी पुलिस बीस वर्ष पहले चोरी होने की शिकायत तो नहीं ही दर्ज करेगी. चेक बाउंस होने के मामले में ९० दिन की लिमिट में आपको शिकायत दर्ज करानी होती है. अधिकांश अपराधों में शिकायत दर्ज कराने की समय सीमा होती है.

लेकिन विचित्र बात ये है कि आप बुढा जाती हैं, आपके पांव कब्र में लटक रहे होते हैं तो भी आप बिना दांत वाले जबडे हिलाकर कह सकती हैं कि जब मैं छठीं कक्षा में थी तब मेरे साथी ने मुझे नितंब पर चिमटी काटी थी. इस तरह की शिकायत करके किसी को बदनाम करने की कोई समय सीमा नहीं है ऐसा लगता है.

यह तो एक बात हुई. दूसरी बात ये है कि अपनी तिजोरी को आप खुला न रखें, यह आपको देखना है. बाहर निकलते समय अपने घर में ताला लगाने की जिम्मेदारी आपकी है, अन्य किसी की नहीं है. अभी दो दिन पहले मित्रों के साथ स्टारबक्स में कॉफी पीने गए तब एक लंबी लडकी बिना बांह की क्रॉप टीशर्ट और शॉर्ट स्कर्ट और हाई हील्स पहनकर गुजर रही थी जिसकी पीठ पर एक टैटू झांक रहा था और उसकी टीशर्ट पर अंग्रेजी में कुछ लिखा था. लडकी का सारा व्यक्तित्व ही `मुझे देखो, मुझे देखो’ – चिल्ला – चिल्ला कर कह रहा था. अब ऐसी लडकी शिकायत करती है कि ये पुरुष मुझे घूर- घूर कर देखा करते हैं तो ऐसी शिकायत का वजूद क्या होगा? तुम्हारा टीशर्ट, तुम्हारे कपडे, तुम्हारा सब कुछ छज्जे पर चढकर अटेंशन सीक कर रहा है और ऐसी अटेंशन सीकर्स जब कहती है कि आप मुझे आंखें फाडकर क्यों देख रहे हैं तब यह शिकायत बेबुनियाद होती है. कोई फेमिनिस्ट कहेगी कि लडकी को हक है कि वह कैसे कपडे पहने और कैसे टैटू बनवाए तब मुझ जैसे मेल शोविनिस्ट पिग का आर्ग्युमेंट होगा कि इन दैट केस हमें भी कहां घूर घूर कर देखना है, यह हमारा हक है.

अब तीसरी बात. हाथ लगाने की. `अशोभनीय’ स्पर्श करने की. पुरुष जब किसी को `उस तरह’ से छूता है तब अधिकतर (अधिकतर, नॉट ऑलवेज) वह किसी अंतर्निहित आमंत्रण को ही स्वीकार कर रहा होता है. बेशक कभी ऐसा भी हो सकता है कि लडकी या स्त्री ने सोचा भी नहीं होगा और पुरुष ने उसका `लाभ लेने’ की कोशिश की हो. इन आइदर केस, स्त्री को हक है, आजादी है कि वह उसी पल पुरुष को ना कह दे कि भाई रॉन्ग नंबर है. मुझे तुमसे बात करने में कोई रुचि नहीं है. बात खत्म.

यहां न तो किसी ने इज्जत लूटने की कोशिश की है, न नोंच डालने की, न बलात्कार करके किसी को उसकी मर्जी के खिलाफ प्रेग्नेंट करने की कोशिश की है. किसी ने लैंगिक शरारत की और आपको किसी कारणवश वह अच्छा नहीं लगता है तो कह देना चाहिए, बात खतम.

और चौथी बात. ऐसे आक्षेप जिन पर हो रहे हैं उन पुरुषों को नौकरी से निकाल देना, इस्तीफा दिलाना, उनसे काम छीन लेना- ये सब क्या है? जो आरोप अभी तक साबित नहीं हुए हैं, इवन पुलिस में शिकायत भी नहीं हुई, अरे कुछ मामलों में तो शिकायतकर्ता एनॉनिमस है- अनामिका है- ऐसा मामलों में भी पुरुष की इतनी गैरवाजिब बदनामी करना क्या कम था जो उनसे उनका काम भी छीन लिया जाए? पुलिस में शिकायत होने के बाद, कोर्ट में जब केस चलता है तब भी काम नहीं छीना जा सकता. केस पूरा होने पर, अपराध साबित हो तब की बात तब देखी जाएगी. तब तक कानून की दृष्टि से ही नहीं, नैतिकता की दृष्टि से भी वह निर्दोष है. आप कहते हैं न कि बलात्कार के मामलों में बहुत ही कम आरोपियों को सजा मिलती है, तो उसका कारण यही है. अधिकांश शिकायतें झूठी होती हैं.

अभी चल रही फालतू की हैशटैग की लडाई का बैकलेश होगा और तब ट्विटर पर लडकियॉं शिकायत करेंगी कि: मेरे सर्कल में कोई मर्द आदमी ही नहीं है. कोई मुझे हाथ नहीं लगाता.

आज का विचार

मेरे हो तो बस बने रहो,

जताते हो तो गैर से लगते हो.

– वॉट्सएप पर पढा हुआ

एक मिनट!

पका: चाणक्य ने कहा है कि जिस जगह हमारा सम्मान नहीं होता वहां नहीं जाना चाहिए.

बका: ले, यानी क्या रोज शाम को हम अपने घर भी नहीं जाएं?

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