गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह
(मुंबई समाचार, मंगलवार – २३ अक्टूबर २०१८)
आजादी से पहले ट्रेन का स्वामित्व और उसके संचालन की जिम्मेदारी संबंधित राज्यों की हुआ करती थी; केंद्र की नहीं. अभी जिस प्रकार से शिक्षा और पुलिस इत्यादि स्टेट सब्जेक्ट हैं उसी प्रकार से रेलवे भी स्टेट सब्जेक्ट माना जाता था, सेंटर का नहीं.
आजादी के बाद भी वही रस्म जारी रहती तो अमृतसर की रेल दुर्घटना के बाद कांग्रेसी क्या रेल प्रशासन पर चढ बैठते? केंद्र में अभी यदि कांग्रेस का राज होता तो कांग्रेसी और ७० वर्षों के दौरान उनके द्वारा खडा किया गया पेड मीडिया तथा नए शुरू हुए ऑनलाइन मीडिया में रहे कांग्रेस के दलाल अभी जिस प्रकार से मोदी और भाजपा के लिए भद्दी गालियां बक रहे हैं, क्या ऐसा आचरण करते?
राजनीति में सब कुछ जायज है, वाजिब है ऐसा तर्क करना बिलकुल गलत है, बेकार है. देश में कांग्रेसी कल्चर के कारण सात दशक के दौरान ऐसा वातावरण खडा हुआ है, जिसमें आपको लगता है कि सारे राजनीतिक बकवास हैं, नालायक हैं. मुझे स्वयं को राजनेताओं के लिए (या फॉर दैट मैटर अन्य किसी के भी लिए) `बकवास’ या `नालायक’ जैसे हल्के विशेषणों का उपयोग करना पसंद नहीं है, मैं कभी उपयोग भी नहीं करता. यहां केवल डेमोन्स्ट्रेट करने के लिए रखा है जिससे आपको पता चले कि राजनेताओं तथा अन्य लोगों को इस तरह के विशेषणों से डिस्क्राइब करनेवाले अनेक लोगों पर भी असल में ऐसे विशेषण लागू होते हैं. अमृतसर रेल हादसे में यदि किसी की गलती है तो वह पटरी पर जुटे लोगों की, आयोजकों की, पंजाब की पुलिस की तथा अमृतसर के प्रशासन की है, न कि केंद्र सरकार की, रेल मंत्रालय की या इंजिन ड्रायवर की, लेकिन यहां तो कुछ तत्व इस संपूर्ण घटना को इस प्रकार से उछाल रहे हैं मानो खुद मोदी ने `सामूहिक कत्ल’ कराने के लिए खास अपनी देखरेख में ट्रेन सहित इंजिन भेजा हो. सेकुलरों की बदमाशी की भी कोई हद है या नहीं.
केरल का वो पादरी जो जालंधर में बिशप है, उस पर बलात्कार का आरोप होने के बावजूद पुलिस में उसे गिरफ्तार करने का साहस नहीं था. बिशप जैसे बडी जिम्मेदारी संभालनेवाले इस इसाई धर्मगुरु के बारे में किसी मीडियावाले ने शायद ही आलोचना की है. बलात्कार का वह आरोपी देर से पकडाया, पचीस दिन में छूट भी गया. आसाराम बापू यदि इतने साल बाद भी बेल पर छूट जाएं तो पेड मीडिया और सेकुलर प्रजाति न जाने कितना होहल्ला मचाएगी. बिशप के जालंधर के भक्तों ने फूल और हारों से उसका इस प्रकार से स्वागत किया मानो बिशप ने जमानत पर छूटकर बहादुरी का काम किया हो. इस समाचार पर शायद ही किसी ने ध्यान दिया. वन्स अगेन, आसाराम बापू के भक्तों ने ऐसा कुछ किया होता तो पेड मीडिया ने उन्हें धुन दिया होता.
पत्नी की हत्या की हत्या का संदेह जिस पर किया जा रहा है ऐसे कांग्रेस पार्टी के अधार स्तंभ माने जानेवाले बोल बच्चन नेता शशि थरूर ने भारतीय जनता की आंखों में धूल फेंकनेवाला एक ट्वीट कल किया था. मोनी ने ओएनजीसी जैसी भारत सरकार को लाभ कमाकर देनेवाली कंपनी को बैंकरप्ट दिखाकर कर्ज के बोझ तले दबा दिया है.
सेकुलर पब्लिक के लिए तो बस यही चाहिए. मोदी के आने के बाद देश की आर्थिक हालत एकदम खस्ता हो गर्स है ऐसा माननेवाले और मनवाने वाले लोग शशि थरूर के ट्वीट का हवाला देकर मोदी सरकार को लतेडने लगे. कोई भी यह देखने – जानने नहीं जा रहा है कि ओएनजीसी ने कांग्रेस के समय में रू.२४,८८१ करोड का शॉर्ट टर्म लोन लिया था जिसमें से मोदी सरकार ने आधी राशि चुका दी है. इतना ही नहीं, वर्ष २०१८ में ओएनजीसी ने अपने काम का विस्तार करके अभूतपूर्व खर्च करके रू.७२,९०० करोड का उपयोग किया है और रू.२८,३५० करोड का निवेश किया है. ओएनजीसी का कैश रिजर्व कम होने के कारण ये हैं. न कि जो शशि थरूर कहते हैं वह है.
यही राफेल के बारे में हो रहा है. राहुल गांधी से लेकर नुक्कडछाप राजनीतिक विश्लेषण करनेवाले सेकुलर वामपंथी सिर्फ मोदी की छवि पर कीचड उछालने के लिए राफेल के बारे में बेबुनियाद, अनापशनाप बातें करके महीनों से सारे देश को भ्रमित कर रहे हैं.
एक मुद्दे के बारे में स्पष्टीकरण करके तस्वीर को साफ करेंगे तो यह पेड मीडिया कांग्रेस की ओर से कोई नया मुद्दा उछालेगा. उस बारे में डाउट क्लियर करें तो कोई तीसरा मुद्दा उछालेंगे. अमृतसर की रेल दुर्घटना में आपने देखा कि इन लोगों को मोदी सरकार को बदनाम करने के लिए बस किसी घटना का इंतजार रहता है. घटना हुई- कि उसे किस तरह से तोडना मरोडना है और पेड मीडिया द्वारा किस तरह से उन विकृतियों को लोगों के गले उतारने की कोशश करनी है, वह बाद में देखा जाएगा.
किसी जमाने में पेड मीडिया अरविंद केजरीवाल को सरआंखों पर बिठा कर घूम रहा था. केजरीवाल और उनके साथी जो कुछ भी बेलगाम आरोप लगाते, अनापशनाप बोलते उसे यथावत् प्रसारित करता. २०१९ का चुनाव करीब आ रहा है इसीलिए इसमें से कई लोग मोदी की नाक दबाकर उनकी सरकार से अधिक से अधिक लाभ लेने के लिए पैंतरेबाजी करने लगे हैं और जिन्हें पता चल गया है कि मोदी ऐसी पैंतरेबाजी के चक्कर में नहीं आनेवाले, उनकी कोहनी पर कांग्रेस ने गुड लगा दिया है: हमें जिता दीजिए, फिर आपको जो कुछ करना हो वह कीजिएगा. पहले की तरह सरकारी तिजोरी आपके लिए खोलकर रख देंगे. जितना हो सके लूट लेना.
राहुल गांधी समेत कांग्रेस के अधिकांश नेता निठल्ले बैठे हैं. उन्होंने जिंदगी में पसीना टपकने जैसा कोई ठोस काम नहीं किया है. हराम का खानेवाले ऐसे नेताओं को उनके द्वारा खडी की गई हजारों एन.जी.ओ. चलानेवाले घोटालेबाजों की पूरी फौज मदद कर रही है. मोदी ने अपने शासन के पहले ही वषॅ में ऐसे घोटालेबाज एन.जी.ओ. की दुकानों पर ताले लगा दिए. वे सभी अब खाली बैठकर विभाजन की प्रवृत्तियों में लग गए हैं. उनके पास वक्त ही वक्त है. हर दिन नए नए आरोप करने का समय-शक्ति-साधन सभी कुछ है, क्योंकि उन्हें कोई नया सृजन नहीं करना है. मोदी और उनके समर्थक-साथी देश को और भी समृद्ध करने के काम में दिन-रात व्यस्त हैं. वे अपना काम करें या फिर ऐसे सडकछाप लोगों के साथ तू-तू, मैं-मैं करें? जो लोग इस देश की बढती समृद्धि और अपनी तिजोरी की घटती समृद्धि को नहीं देख सकते हैं, वे देश में अंधाधुंध अराजकता का वातावरण पैदा करना चाहते हैं जिससे कि धुंधलके में कुछ भी स्पष्ट रूप से कोई देख न सके. इसी कारण से हमारे चश्मे पर धूल, नमी चढ गई है. कल से जब भी टीवी देखने बैठें, अखबार पढने बैठें, तब आज मिली इस समझ के तौलिए को तैयार रखें. हर दिन चश्मा साफ करके ही जो देखना है उसे देखें, जो पढना हो उसे पढें.
आज का विचार
ऐसे भी हैं सवाली, कुछ बोलते नहीं,
दर पर खडे रहे केवल सब्र बनकर
– राजेंद्र शुक्ल
एक मिनट!
बका और उसकी पत्नी के बीच दो घंटे तक तकरार के बाद बकी ने सिर्फ इतना ही कहा,`जीतना है या फिर शांति से जीना है?’
तात्कालिक झगडे का हमेशा के लिए समाधान हो गया.