“मरते हों तो भले मरें पचास हजार-लाख लोग”: सौरभ शाह

(कोरोना के संकट में देश को अस्थिर करने का चांडालचौकडी का १० सूत्री कार्यक्रम: लेख-१)
(न्यूज़ व्यूज़, गुरुवार, ७ मई २०२०: वैशाख सुद पूर्णिमा, विक्रम संवत २०७६)

आज तिथि के अनुसार बुद्ध पूर्णिमा और नरसिंह मेहता की जयंती तथा तारीख के अनुसार टैगोर तथा पन्नालाल पटेल का जन्मदिन है. तथागत बुद्ध और नरसिंह से गुरुदेव रवींद्रनाथ एवं पन्नालाल तक के चिंतकों-विचारकों-गुरुओं-शिक्षाविदों-साहित्यकारों की ये भारत भूमि अभी अपने अस्तित्व के सबसे विकट संकट से गुजर रही है. तपस्वियों की इस भूमि की पवित्रता हमेशा के लिए नष्ट हो सकती है, ऐसा खतरा देश पर मंडरा रहा है.

संभवामि युगे युगे का वचन जो भगवान ने दिया है उसके दूसरे पहलू का हमें ध्यान ही नहीं रहता. भगवान ने क्या वचन दिया था जरा याद कीजिए: साधुओं की रक्षा हेतु, पापियों के विनाश के लिए और धर्म की स्थापना करने के लिए मैं हर युग प्रकट होता रहूंगा.

भगवान जब जब जरूरत होगी तब प्रकट होंगे ही इस आश्वासन के समांतर जो सच्चाई रखी गई है उसे हम नजरअंदाज करते आए हैं. हर युग में साधु पुरुषों- सज्जनों-भले और निर्दोष लोगों का अस्तित्व खतरे में डालनेवाली परिस्थिति पैदा होगी. हर युग में पापियों का उपद्रव बढेगा. हर युग में धर्म को उखाड फेंकने के प्रयास होंगे. संक्षिप्त में कहें तो हर युग में हवन में हड्डियां डालनेवाले राक्षस जन्म लेंगे और इसीलिए हर युग में भगवान भी प्रकट होंगे.

हवन में हड्डी डालनेवाले राक्षस इस युग में कांग्रेस, साम्यवादियों, सेकुलर्स और मीडिया की चांडाल चौकडी के रूप में पहचाने जाते हैं. राम, कृष्ण, महावीर या बुद्ध जैसे तपस्वी राजाओं को उनके रहने पर अवतारपुरुष नहीं माना गया था. इन सवाए साधुपुरुष जैसे राजाओं ने अपने अपने जीवनकाल के दौरान ऐसे ऐसे महान कार्य अपनी भूमि के लिए, अपनी जनता के लिए, समस्त विश्व के लिए किया है जिसके कारण वे जब अपने अस्तित्व के साथ एकाकार हो गए उसके वर्षों, सदियों, सहस्त्राब्दियों बाद उन्हें इतिहास ने अवतारपुरुष के रूप में पहचाना गया. अपने अस्तित्व के दौरान तो राम राजा थे. समय बीतने पर भगवान राम के रूप मे वे पहचाने गए. श्रीकृष्ण, महावीर, बुद्ध तथा समस्त अवतारी पुरुषों के बारे में भी ऐसा ही रहा है. उन सभी के नेतृत्व में उन पर श्रद्धा रखनेवालों ने उनका मार्गदर्शन हासिल कर जो भगीरथ कार्य किए उसके कारण उस जमाने के राक्षसों को पीछे हटना पडा. पापियों का नाश करने के लिए और अधर्म पर धर्म की विजय स्थापना के लिए अवतार पुरुष अकेले ही सबकुछ नहीं कर सकेंगे. सज्जनों की रक्षा करने के काम में अवतारपुरुषों को हमेशा सज्जनों का साथ मिला है. जिनकी रक्षा करनी है, उन्हें साथ लिए बिना आप उनकी रक्षा भला कैसे कर सकते हैं?

कोरोना वायरस की गंभीरता अभी तक आपके दिमाग में पूरी तरह से नहीं उतर सकी है. देश पर आए अभी तक के तमाम संकटों की तुलना में ये संकट सबसे बडा है. केवल इसीलिए नहीं कि ये संकट विश्वव्यापी है, इसीलिए भी नहीं कि इस संक्रमण को रोकने का हथियार अभी प्रयोगशाला में है, बल्कि इसीलिए कि इस विकट परिस्थिति कालाभ लेकर चांडाल चौकडी आक्रमण करने के लिए तैयार हो चुकी है. हवन में डालने के लिए अस्थियां राक्षसों ने जुटा ली हैं. असल में हड्डियां डालने का आरंभ भी हो चुका है.

ये युद्ध है. हम सभी फूट सोल्जर्स हैं. हर भारतीय नागरिक को सैनिक जैसा सख्त अनुशासन पालने का ये समय है- चाहे उद्योगपति हों, चाहे सीईओ, चाहे दुकानदार, चपरासी हो, किसान हों, मजदूर हों, चाहे डॉक्टर-इंजीनियर-चार्टर्ड अकाउंटेंट हों, चाहे अभिनेता-लेखक-शिक्षक हों. अभी तो हर कोई एकसमान है. सरहद पर डटे सैनिक को सेनापति के आदेश का अक्षरश: पालन करना होता है, अपनी अतिचतुराई दिखानी नहीं होती. सेनापति ने जो रणनीति बनाई है उसका पालन करने के बजाय सेना यदि आपस में टोलियां बनाकर अपनी तरह से दुश्मनों का सामना करने की सोचेगी तो अराजकता फैला जाएगी. इस अराजकता के परिणामस्वरूप सेनापति चाहे कितना ही सशक्त हो लेकिन हथियार रख देने पडेंगे.

अभी इसी तरह की अराजकता फैलाने का प्रयास चांडालचौकडी की रही है.

एक्जिबिट नंबर वन: “लॉकडाउन के फितूर को बंद करो, इकोनॉमी की वाट लग गई है. पचास हजार- लाख या दो पांच लाख लोग मरें तो मरें. फ्लू से लेकर सडक दुर्घटनाओं के कारण हजारों लोग रोज मरते रहते हैं, ये तो कुतरत का नियम है. इन सारी मौतों का सामना हमें लॉकडाउन के बिना ही करना पडता है. सामान्य लोगों का जीवन स्थगित करके कुछ हासिल नहीं होगा. जनजीवन जैसा चल रहा था उसे फिर से चलने दीजिए.”

लॉकडाउन के पहले चरण से चांडालचौकडी ने इस नैरेटिव को धीरे धीरे शुरू किया और लॉकडाउन ३.० में ये तर्क एक स्वर में सुनाई देने लगे हैं. चारों ओर से ये तर्क सुन रही, लॉकडाउन से ऑलरेडी परेशान हो चुकी, आम जनता को भी कुछ पल के लिए ये दलीलें सच लगने लगती हैं.

आम जनता को याद दिलाना चाहिए कि ऐसा नैरेटिव शुरू करनेवाली चांडालचौकडी उन लोगों की बनी है जो यूपी में एकाध मुसलमान की तथाकथित लिंचिंग पर सारे देश को सिर पर उठा लेते हैं. ये वही चांडालचौकडी है जो, दिल्ली दंगों में या गुजरात के दंगों में पांच पचास या दो सौ, पांच सौ के मरने पर प्रोग्रोम, समूल नाश और जेनोसाइड जैसे शब्दों से हायतौबा मचाने लगती है.

कल्पना कीजिए कि चैती नवरात्रि के अगले ही दिन प्रधानमंत्री ने टीवी पर आकर स्वैच्छिक जनता कर्फ्यू की घोषणा करने के बजाय यदि ये बात की होती तो: कोरोना से पचास हजार-लाख भारतीय मरें तो भले मरें. फ्लू से मरते हैं, सडक दुर्घटना में मरते हैं. ये तो प्रकृति का नियम है. इसके कारण हमें घर बैठे रहने की कोई जरूरत नहीं है. अर्थव्यवस्था के पहिए गतिमान रहने चाहिए. आप लोग जनता कर्फ्यू का पालन करने के बजाय नॉर्मल एक्टिविटी करते रहिए. मॉल, मल्टीप्लेक्स, ट्रेन्स-बसों में भीड करते रहें. वर्क फ्रॉम होम के फितूर की कोई जरूरत नहीं है. जनजीवन बाधित नहीं होना चाहिए.

चैती नवरात्रि के अगले दिन प्रधान मंत्री यदि ऐसा कहते तो यही चांडाल चौकडी टूट पडती उन पर: मारो, मारो, इस मौत के सौदागर को पता नहीं है कि कोरोना वायरस कितना भयंकर है. इकोनॉमी गई तेल लेने, एक एक भारतीय का जीवन अनमोल है. अर्थव्यवस्था तो फिर से खडी हो जाएगी लेकिन जो परिवार किसी पुत्र किसी पिता या किसी माता या किसी बेटी को गंवाएंगे, उन परिवारों को होनेवाली हानि हमेशा के लिए होगी, मर चुके व्यक्ति को भगवान भी जीवित नहीं कर सकते.

बल्कि आज भी, इस क्षण में भी प्रधान मंत्री घोषणा कर दें कि कोरोना से पचास हजार- लाख लोग भले मर जाएं, हमें इसी क्षण लॉकडाउन हटा लेना चाहिए, आप लोग सडकों पर आकर मौज करें, जनजीवन फिर से यथावत करो- तो भी चांडालचौकडी अपनी बात पर बडा सा यू-टर्न लेकर प्रधानमंत्री का सिर थाल में मांगनेवाली है. पचास हजार-लाख लोग भले मरें, लॉकडाउन की कोई जरूरत नहीं है जैसी फेक न्यूज घूम रही है, मोदी ने ऐसा कुछ कहा ही न हो तो भी मीडिया ऐसी गलत जानकारी फैलाती है तो इस पर भी चांडालचौकडी सडक पर उतर आएगी और मोदी मस्ट रिजाइन, मोदी मस्ट गो के नारे लगाएगी.

मोदी जिस क्षमता के साथ, जिस सूझबूझ से और कंपैशन से समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर अपनी दीर्घदृष्टि से इस विकट परिस्थिति में भारत का हित संवर्धन करने का नेत्रदीपक कार्य कर रहे हं, उसे हम ध्यान में नहीं लेंगे बल्कि निरुत्साह होकर सोचने लगते हैं कि सरकार कुछ नहीं कर रही है. मोदी को वोट देकर भारी भूल की हमने, कोरोना जैसी साधारण सी त्रासदी को भी ये आदमी संभाल नहीं पा रहा है तो भविष्य में यदि सचमुच कोई बडी आपत्ति आएगी तब ये क्या कर लेंगे? कोरोना में अमेरिका में ७५,००० से अधिक लोग मर चुके हं. ट्रंप के पेट का पानी भी नहीं हिल रहा है? स्पेन में २५,०००, इटली में २९,०००, यूके में ३०,०००, फ्रांस में २५,००० लोग तो मरे ही हैं ना. इसकी तुलना में इतने बडे भारत में तो केवल पौने दो हजार लोग ही मरे हैं. क्यों डरा हैं मोदी जी? लोगों को कोरोना के बहाने से डराकर उन पर राज करना चाहते हैं आप, यू डिक्टेटर! खोल दो लॉकडाउन को और जाने दो लोगों को अपने अपने काम पर. अर्थव्यवस्था को सुधारो, अर्थव्यवस्था को ठीक करो, अर्थव्यवस्था को ठीक करो.

भारत सरकार ने जिस सक्षमता के साथ कोरोना के कारण हो रहे नुकसान को रोकने के लिए कदम उठाए हैं, उसकी सराहना करने के बजाय चांडालचौकडी भारत की जनता की आंखों में धूल झोंककर ऐसा नैरेटिव खडा कर रही है कि हम तो पहले ही कह रहे थे कि मोदी में कोई सूझबूझ नहीं है- संकट को कैसे हैंडल करना चाहिए, इसकी कोई समझ नहीं है, वे तो इस दौर में भी राजनीति खेलने में मशगुल हैं, उन्हें तो केवल अपनी कुर्सी की पडी है, जनता को बेहाल करके मोदी अपनी तानाशाही का प्रदर्शन कर रहे हैं. इसीलिए दूर करो इस आदमी को, हटाओ इसे अगले इलेक्शन में (ताकि हम हवन में हड्डियां डाल सकें). कोष्ठक में लिखे शब्द वे बोलते नहीं हैं लेकिन आपस में सांकेतिक भाषा में इसी आशय को व्यक्त करते हैं. कांग्रेस, साम्यवादी, सेकुलर और मीडिया- इस चांडालचौकडी की सांकेतिक भाषा को समझने में मेरी पी.एच.डी है, ये बाल कोई धूप में नहीं सफेद किए हैं. इसीलिए आज सुबह से इस लेख माला को लिखना आरंभ किया है: कोरोना के संकट में देश को अस्थिर करने का चांडाल चौकडी का १० सूत्री कार्यक्रम.

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