लॉकडाउन ४.० शुरू होने से पहले: सौरभ शाह

(आज का संपादकीय: बुधवार, १३ मई २०२०)
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कोरोना के खिलाफ चल रही ये लड़ाई काफी लंबी है और इसकी समाप्ति कब होगी इसकी कोई दीर्घअवधि भी निश्चित नहीं है. देश में निराशा और हताशा फैलाने, जनता का मनोबल तोडने, लोगों को डेस्परेट करने और परिस्थिति का लाभ लेने के लिए सारे शस्त्रास्त्र जुटा रहे लोग चारों तरफ अराजकता का वातावरण फैलाएं इससे पहले ही प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कल रात आठ बजे १३० करोड जनता के सामने ठोस बातें कीं.

खुद को विशेषज्ञ माननेवाले लोग गिनतियां सामने रखकर कहते हैं कि अगस्त पूरा होने के बाद भारत कोरोना के भय से मुक्त हो जाएगा. ऐसा हो तो अच्छा ही है लेकिन ऐसा होगा या नहीं, इसका आधार कई सारे परिबलों के अधीन है और ये प्रत्येक फैक्टर परिवर्तनशील है. इसीलिए प्रधान मंत्री ने रविवार को लॉकडाउन के तीसरे चरण की समाप्ति के बाद सोमवार से चौथे चरण का लॉकडाउन शुरू होने की घोषणा की. १८ मई के सोमवार के बाद कई मामलों में लॉकडाउन में राहत मिलेगी, कई में अधिक सख्त कदम उठाए जाएंगे- क्या राहत मिलेगी, कैसे कदम उठाए जाएंगे, किन राज्यों के कौन से इलाकों/ शहरों/ क्षेत्रों के हिस्से में क्या आएगा, इसकी घोषणा के लिए अभी इंतजार करना होगा. पर इतना तो तय है कि जहां छूट मिलेगी वहां भी लोगों को विश्व कप जीतने की खुशी मनाने के चलिए सडकों पर नहीं आना है. जहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट शुरू होता है वहां पहले की तरह भीड नहीं करनी है. जहां जनजीवन सामान्य हो सकता है वहां पर संपूर्ण छूट दी भी जाएगी तो वहां पर बाहरी आगंतुकों के कारण संक्रमण प्रवेश कर सकता है, ऐसा भय रहने ही वाला है.

इसीलिए सभी को सतर्कता बरतनी होगी. अभी तक भारत की जनता और भारत की सरकार के व्यवस्था तंत्र ने, तमाम विघ्नों के बावजूद, कोरोना के सामने जो जंग लडी है वह दुनिया में बेमिसाल है. इस लडाई के जो स्वागत योग्य परिणाम मिले हैं उस पर पानी न फिर जाए, इतना धैर्य रखना होगा, कसौटी के इस समय को अभी सहना होगा. कोरोना के खिलाफ लडाई में भारत की आखिरी विजय निश्चित है, इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन जीत के कगार पर पहुंचने की स्थिति में ही सबसे अधिक लापरवाही बरती जाती है. जरा सी लापरवाही जीत को हार में बदल सकती है, ऐसा अनुभव क्रिकेटरों सहित हम सभी ने कभी न कभी लिया होगा. कोरोना के मामले में इसका पुनरावर्तन नहीं होना चाहिए.

नवीनतम आंकडों पर एक सरसरी दृष्टि डालते हैं. २०११ की जनगणना के आधार पर अनुमान लगाएं तो भारत की जनसंख्या १३० के बजाय १३८ करोड गिनी जानी चाहिए. अमेरिका की आबादी हमारी तुलना में करीब एक चौथाई (३३ करोड) है. भारत में कोरोना के पौना लाख केस हुए हैं. अमेरिका में एक चौथाई मामले होने चाहिए थे लेकिन भारत की तुलना में पंद्रह-बीस गुना (१४,०८,६३६) केस हुए हैं. भारत में कोरोना के कारण ढाई हजार (२,४१५) मौतें हुई हैं, अमेरिका में हमारी तुलना में एक चौथाई यानी सात सौ-आठ सौ मामले होने चाहिए थे लेकिन इसके बजाय हमारी तुलना में तीस गुना अधिक (८३,४२५) मौतें हुई हैं.

जर्मनी की जनसंख्या करीब आठ करोड, यूके, फ्रांस, इटली- इन सभी देशों की जनसंख्या ६ से ७ करोड होगी. स्पेन तो साढे चार करोड की आबादी वाला देश है. ये भारत की जनसंख्या का बीसवां-पच्चीसवां हिस्सा है. भारत के एक राज्य जितनी आबादी वाले इन पश्चिमी, शिक्षित, विकसित और धनवान कहलानेवाले देशों की जनता और सरकारें कोरोना का सामना करने में भारत की तुलना में बिलकुल पिछडी हुई, अकार्यक्षम और गंवार साबित हुई हैं.

इन तमाम देशों में कोरोना से हुए मौत के आंकडें देखें तो इन देशों के प्रति करुणा का भाव जागता है आर भारत की जनता तथा सरकार के प्रति आदर कई गुना अधिक हो गया है. स्पेन में कोरोना के करीब पौने तीन लाख (२,६९,५२०) मामले दर्ज हुए और २६,९२० की मृत्यु हुई. यू.के. में २,२६,००० मामले दर्ज हुए, ३२,५०० लोगों की मृत्यु हुई. इटली में २,२१००० मामले हुए, ३१,००० की मौत हुई, फ्रांस में १,७८,००० मामले, २७,००० की मृत्यु हुई.

भारत के आंकडों को फिर एक जान लीजिए: ७५,००० मामले, ढाई हजार की मृत्यु. और भारत की जनसंख्या हर देश से बीस गुना अधिक है.

हमारे देश का औसत स्वास्थ्य, हमारी इम्युनिटी, हमारी रोग प्रतिकारक शक्ति-इस देश के समशीतोष्ण वातावरर के कारण तथा हमारे खान पान की परंपरागत आदतों के कारण दुनिया के अन्य तथाकथित विकसित देशों से भी कहीं आगे है. अभी तक के वामपंथी अपप्रचार ने हमने कभी इस बारे में गौरव का अनुभव नहीं होने दिया है. हम बीमार, कुपोषित, पिछडे हुए देश के रूप में ही अपनी मातृभूमि को देखते रहे हैं, ये हमारी भूल थी. हमें भ्रमित किया गया था.

कल रात आठ बजे प्रधान मंत्री ने एक और महत्व की बात कही.

आर्थिक आत्मनिर्भरता का अर्थ केवल विदेशी वस्तुओं के बजाय भारत में निर्मित उत्पादों का रोज उपयोग करना ही नहीं है बल्कि भारत में बने उत्पाद ऐसी गुणवत्ता के हों कि हम ही नहीं, बल्कि सारी दुनिया उनका उपयोग करने में गर्व का अनुभव करे. उत्पादन के साथ जुडी हमारी सेवाएँ भी विश्व स्तरीय हों.

लोकल आर्थिक निर्भरता का दूसरा अर्थ ये है कि बिहार के श्रमजीवियों को तेलंगाना या केरल जाकर कमाना न पडे. सभी को अपने राज्य में रोजगार मिले, इस प्रकार का इंफ्रास्ट्रक्चर देशभर में खडा हो. भारत के हर राज्य की भूमि की, उसके वातावरण की, वहां की जनता की अपनी खूबियां हैं. इन खूबियों का भरपूर उपयोग करना चाहिए. उदाहरण के लिए सिक्किम जैसे पर्वतीय और दुर्गम प्रदेशों में, पहले की सरकारों के साथ जुडे स्थानीय सत्ताधीश और राजनेता अपनी पहुंच का उपयोग करके शस्त्र बनाने की फैक्टरियों या कार बनाने के कारखानों को लाइसेंस नहीं देंगे. सिक्किम संपूर्ण रूप से जैविक खेती करनेवाला भारत का पहला राज्य है और आज की तारीख में ये एकमात्र राज्य है. यहां पर फूड प्रोसेसिंग और पैकेजिंग इंडस्ट्री की इकाइयां स्थापित हों, कामचलाऊ स्टोरेज के लिए विशाल व्यवस्था खडी हो और तेजी से परिवहन का ढांचा तैयार हो, ऐसा आग्रह रखना चाहिए. प्रधान मंत्री ने आत्मनिर्भरता की और लोकल की जो बात की है, उसका ये अर्थ भी निकलता है.

प्रधान मंत्री ने कहा है कि इस देश की जनसंख्या हमारी सबसे बडी ताकत है. इस ताकत को उचित इंफ्रास्ट्रक्चर दिया गया और उसके लिए एक ऐसी टेक्नोलॉजी प्रेरित सक्षम तंत्र निर्मित किया जाय जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन और बिक्री (मांग और आपूर्ति) की ऐसी सुदृढ श्रृंखला बने कि देश की प्रगति के आंकडे धनात्मक रूप में नहीं, बल्कि गुणकों में हो.

इक्कीसवीं दसी सचमुच भारत की सदी है. भारत फिर एक बोर इस विश्व का नेतृत्व करने जा रहा है. आपदा में अवसर खोज कर पासे पलटने में प्रधान मंत्री निपुण हैं. कच्छ के भूकंप के समय उनके कार्य की सराहना सारे देश में हुई थी.. उस समय वे गुजरात के मुख्य मंत्री भी नहीं थे. २००२ के गोधरा हिंदू हत्याकांड के बाद उनके द्वारा निर्मित वाइब्रेंट गुजरात और सांप्रदायिक एकता का भव्य वातावरण सारी दुनिया ने देखा है. २०१४ के बाद देश का नेतृत्व करने का मौका हमने उन्हें दिया और सभी ने अनुभव किया है कि हमारी पसंद गलत नहीं थी. कल रात कहे गए उनके शब्द हम सभी के हृदय में बस गए हैं:“…थकना, हारना, टूटना-बिखरना, मानव को मंजूर नहीं है. सतर्क रहते हुए, ऐसी जंग के सभी नियमों का पालन करते हुए, अब हमें बचना भी है और आगे भी बढना है. आज जब दुनिया संकट में है, तब हमें अपना संकल्प और मज़बूत करना होगा. हमारा संकल्प इस संकट से भी विराट होगा.”

।।हरि ॐ।।

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