किसी के बेटे का महाराष्ट्र थोडी है: सौरभ शाह

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(आज का संपादकीय, गुरुवार, १० सितंबर २०२०)

सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के मामले में मीडिया कवरेज से आप सहमत हों या न हों; कंगना राणावत सहित सुशांत के समर्थकों को आप समर्थन दे रहे हों या नहीं दे रहे हों; सीबीआई, एनसीबी और र्सडी की जांच की गति/दिशा आपको संतोषजनक लग रही हो या न लग रही हो- ये तीनों मुद्दे कल गौण हो गए जब कंगना की अपनी कमाई से खरीदी गई उसकी करोडो रूपए की ऑफिस उद्धव ठाकरे ने जे.सी.बी. से जमीनदोस्त कर दी और मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री में से किसी ने भी इस अत्याचार के खिलाफ एक शब्द भी नहीं कहा. इतना ही नहीं, उद्धव ठाकरे के कर्जत स्थित फार्महाउस के बारे में इन्वेस्टिगेशन कर रहे `रिपब्लिक टीवी के रिपोर्टर-कैमरामैन की टीम को बिना किसी अपराध के पुलिस हिरासत में ले लिया गया और गाहेबगाहे टुकडे टुकडे गैंग की `अभिव्यक्ति की आजादी’ के लिए मैदान में उतरनेवाले सेकुलर मीडिया ने एक अक्षर तक नहीं कहा.

सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या की थी या उसकी हत्या की गई थी, इसकी जांच होना जरूरी है लेकिन अभी उसकी जगह पर काफी बडे और विकराल रूप धारण कर रहे मामले पर सर्चलाइट डाली जा रही है.

पहला मुद्दा तो ये साबित हो गया कि उद्धव ठाकरे ने शरद पवार की एनसीपी तथा सोनिया मैया की कांग्रेस के साथ नाता जोडकर जो सरकार बनाई है वह केवल भ्रष्ट ही नहीं, बल्कि फासिस्ट भी है.

लोकतंत्र में नहीं बल्कि ठोकतंत्र में मानने वाली ये राज्य सरकार अपनी निष्क्रियता और नाकामी को छिपाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है, इसका प्रतीक कल उद्धव द्वारा भेजी गई जेसीबी है. बॉम्बे हाईकोर्ट ने उद्धव की इस हरकत को `बदइरादतन और खदजनक’ घोषित किया है. अनधिकृत निर्माण तोडना ही चाहिए और इसके लिए वर्षों तक प्रक्रिया चलती है ऐसा मुंबईवासियों ने देखा है. वॉर्डन रोड और पेडर रोड के जंक्शन पर बने `तिरुपति’ अपार्टमेंट पर निर्मित गैरकानूनी अतिरिक्त मंजिलों को तोडने की कानूनी कार्रवाई करने में बरसों बीत गए. महाराष्ट्र के पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री और उद्धव सरकार के सार्वजनिक निर्माण विभाग के मंत्री अशोक शंकरराव चव्हाण को जिस कॉन्ट्रोवर्सी के कारण मुख्यमंत्री का आसन छोडना पडा था, उस कोलाबा की प्राइम लोकेशन पर बनी आदर्श हाउसिंग सोसायटी के घोटाले के मूल में जो मुद्दे थे उसे पेड न्यूज द्वारा मीडिया में दबा दिया गया था, ऐसी शिकायत चव्हाण के चुनाव के दौरान इलेक्शन कमिशन में रखी गई थी. मुंबई की हजारों बहुमंजिला इमारतें, शॉपिंग सेंटर्स और लाखों झोपडियों के सामने अनधिकृत निर्माण के मामले हैं, लेकिन इन सभी में से एक कंगना राणावत पर ही निशाना लगाकर चौबीस घंटे के अंदर नोटिस देकर मालिक की गैरमौजूदगी में दर्जनों हथियारबंद पुलिस वालों को लेकर उद्धव ने महानगरपालिका से जेसीबी द्वारा जो काम करवाया है, उसके बाद मुंबईवासी ही नहीं, बल्कि सभी महाराष्ट्रीय लोग इस आदमी पर पांच पैसे का भी भरोसा नहीं करेंगे. भरोसा है तो एक बात का कि २०२४ या उससे पहले (यदि मध्यावधि चुनाव हों तो) महाराष्ट्र विधानसभा सभा चुनाव से पहले शिवसेना मुंबई-महाराष्ट्र में दंगे करवाकर अराजकता और मिसइन्फॉर्मेशन का दौर चलाएगी और कोशिश ये होगी कि मतदाताओं को उसमें भाजपा की गलती नजर आए. २०२४ से पहले महाराष्ट्र को शिवसेना – कांग्रेस स्पॉन्सर्ड दंगों का सामना करने की तैयारी रखनी पडेगी.

दूसरा मुद्दा ये स्पष्ट हो गया है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कई सुखद अपवादों को छोडकर हर कोई देश का अहित करनेवाले सेकुलरिज्म के अडिग समर्थक हैं. फिल्म इंडस्ट्री के साथ जिन मुद्दों का दूर दूर तक कोई संबंध नहीं है, ऐसे दर्जनों मुद्दे लेकर विरोध करने के लिए जो लोग ट्विटर पर (और फरहान अख्तर जैसे लोग तो कभी कभी सडक पर) उतर आते हैं, वे सभी अपनी ही इंडस्ट्री की एक प्रॉमिनेंट सदस्य कंगना राणावत का उद्धव सरकार द्वारा किए जा रहे चीरहरण के खिलाफ मुंह पर उंगली रखकर तमाशा देख रहे हैं. इनकी तुलना में तो धृतराष्ट्र-भीष्म सहित कौरव अच्छे थे जिनके सिर द्रौपदी के चीरहरण के समय शर्म से झुक तो गए थे. कंगना के पक्ष में खडे न होनेवाले फिल्म इंडस्ट्री के छोटे-बडे किसी ने भी उद्धव की आलोचना करने की बात तो जाने दीजिए, खुद इस घटना के बारे में शर्मिंदगी तक जाहिर नहीं की है.

तीसरा मुद्दा ये स्पष्ट हो गया है कि राजदीप सरदेसाई सहित सेकुलर पत्रकार और वे जिन मीडिया हाउसेस की नौकरी कर रहे हैं, वे कभी इस देश के हुए हैं, न होंगे.

सुशांत – कंगना मामले के दौरान इस मीडिया का जो एडिटोरियल स्टांस रहा है, जिस प्रकार की उनकी रिपोर्टिंग रही है, जिस तरह की चर्चा उन्होंने की है- वह सब ये साबित करता है कि ये सेकुलर मीडिया समाजद्रोही है, देशद्रोही है. मीडिया के नाम पर वे कलंक हैं. मीडिया किसलिए बदनाम है, ऐसा कोई पूछता है तो जो जवाब दिया जाएगा, उसमें सभी के नाम शामिल होंगे.

सुशांत की आत्महत्या वास्तव में हत्या थी या नहीं ये साबित करने का काम अदालत का है. लेकिन इस केस के बहाने उद्धव सरकार, हिंदी फिल्म इंडस्ट्री तथा सेकुलर मीडिया की जनविरोधी-देश विरोधी गतिविधियों के डीएनए के मुंहतोड प्रमाण मिल गए हैं. भविष्य में ये तीनों अमर-अकबर-एंथनी कर अंत्ययात्रा, जनाजा और फ्यूनरल प्रोसेशन जब निकलेगा तब हम सभी सुशांत की आत्मा के लिए एक बार फिर से प्रार्थना करेंगे कि तुम्हारे कारण ये गंदगी साफ हुई और साफ सफाई के काम में अपने हाथ मैले करके भी स्वच्छता अभियान चलानेवाले अर्नब गोस्वामी और कंगना राणावत का हम आभार मानेंगे.

सांप्रदायिक मुस्लिम आफत इंदौरी ने तो हिंदुओं के प्रति द्वेष को प्रकट करते हुए कहा था: सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी में/ किसी के बाप का हिंदुस्तान थोडी है… लेकिन यहां उद्धव को, बॉलिवूड को, मीडिया को संबोधित करते हुए और राष्ट्र के प्रति अपने प्रेम को प्रकट करने के लिए हम सभी को बुलंद आवाज में घोषणा करनी है: किसी के बेटे का महाराष्ट्र थोड़ी है.

 

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