`ऑपइंडिया’ जैसे अधिक से अधिक प्लेटफॉर्म नेशनल लेवल पर होने चाहिए: सौरभ शाह

(कटिंग चाय सिरीज़: चौथी प्याली + जीरा बटर)

(newspremi.com, मंगलवार, १८ अगस्त २०२०)

अयोध्या में पांच अगस्त को राममंदिर के लिए भूमिपूजन करने बाद प्रधानमंत्री ने भाषण देते समय रामचरितमानस का उल्लेख करते हुए कहा था कि जहां भय नहीं होता वहां प्रीति नहीं होती. यह क्रिप्टिक श्लोक है. जो लोग आपको दिल से चाहते हैं वे किसी भय के कारण आपसे प्रेम करते हैं, इसका ऐसा मतलब नहीं है. इसे जरा अलग संदर्भ में कहा गया है कि आप इतने ताकतवर बनिए कि आपकी ताकत के भय से कोई आपका कुछ बिगाड़ने की कोशिश न करे, आपके साथ दुश्मनी रखने के बदले आपकी मित्रता का इच्छुक हो, आपके साथ अच्छे संबंध रखे, आपको खुश रखने के प्रयास में रहे, आपसे प्रेम करे.

श्री वसंतराव नाम के आर.एस.एस. के एक बहुत बडे प्रचारक और संघ के नेता थे. वर्षों नहीं दशकों पुरानी बात है. एक बार विजयादशमी के मौके पर संघ के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था: `कमजोर होना पाप है, अपराध है. वेदों में किसी एक विशेष यज्ञ में सिंह की बलि चढ़ाने की बात आती है. लेकिन सिंह को पकड़ कर लाएगा कौन‍? इसीलिए बाद में सिंह के विकल्प के रूप में बेचारी बकरी की बलि चढ़ाना तय हुआ. क्यों? क्योंकि बकरी शक्तिशाली नहीं होती, बिलकुल निर्बल‍ होती है.’

हिंदू जनता को शक्तिशाली बनाने का कार्य वेदकाल से चलता आया है. कई ऋषि मुनि, संतों ने यह काम किया है. राम और कृष्ण जैसे अवतार पुरुषों से लेकर आरएसएस-वीएचपी जैसे अनेक संगठनों ने यह काम किया है. बौद्धिक, शारीरिक और सामाजिक रूप से इस देश की जनता को शक्तिशाली बनाने के अलावा आर्थिक और शैक्षिक रूप से शक्तिशाली बनाने के लिए नरेंद्र मोदी जैसे राजपुरुष दिन रात एक कर रहे हैं.

हरींद्र दवे का एक गुजराती गीत है जिसका तात्पर्य है: `एक रजकण सूरज बनने का प्रयास करता है’. इन सभी के विशाल प्रयासों की तुलना में एक रजकण के समान `न्यूज़प्रेमी’ भी इस काम में जुड़ा है और `न्यूज़प्रेमी’ के वन पेन आर्मी द्वारा आप सभी पाठक इन प्रयासों के साथ जुड़े हैं.

लेकिन हम ताकतवन नहीं बनें, हमारी शक्तियां बाहर आएं, हम फिर से गुलामी के काल में चले जाएं, कमजोर होकर विदेशी शक्तियों के समक्ष विवश हो जाएं, ऐसे प्रयास मीडिया में हो रहे हैं.

राजदीप सरदेसाई का टीवी चैनल हो या फिर शेखर गुप्ता का डिजिटल प्लेटफॉर्म हो- दर्जनों दिशाओं से आपको अपने संस्कारों के प्रति नफरत पैदा करने के प्रयास हो रहे हैं. उन्हें वामपंथी मानिए, अनार्किस्ट मानिए, सेकुलर मानिए, लिबरल मानिए, कांग्रेसी मानिए- सभी एक दूसरे के मौसेरे भाई हैं, खून के रिश्ते से जुडे हैं.

हिंदू विरोधी लेखनों के कारण बदनाम हो चुके अत्यंत निम्न दर्जे के मौकापरस्त शेखर गुप्ता और उनके गिरोह का `द प्रिंट’ देश के जानेमाने धनपतियों से करोडों रूपए का निवेश प्राप्त करके बैठा है. इसके बावजूद पिछले सप्ताह शेखर ने अपील की है कि : अच्छा जर्नलिज्म करना हो तो पैसे चाहिए.

बात सच है, लेकिन क्या `द प्रिंट’ अच्छा जर्नलिज्म कर रहा है? जवाब है: स्पष्ट रूप से नहीं. क्या `द प्रिंट’ को पैसे की जरूरत है? करोडो रूपए दबाकर बैठने के बाद `द प्रिंट’ को पब्लिक के सामने हाथ फैलाने की जरूरत क्या है? जवाब है: पब्लिक से सिंपथी हासिल करने के लिए. खुद गरीब है और इसीलिए प्रामाणिक है और इसीलिए समाज का कर्तव्य है कि हमारे डिजिटल प्लेटफॉर्म को आप टिकाए रखिए- ऐसी हवा बनाने के लिए ऐसी अपीलें की जाती हैं. `द प्रिंट’, `द क्विंट’, `द स्क्रोल’ जैसे अनेक डिजिटल प्लेटफॉर्म्स फूट निकले हैं जिनमें भारत के कई धनपतियों ने खूब पैसे लगाए हैं. लेकिन ये सभी हिंदू विरोधी हैं. हिंदुओं की ताकत को कम करने के लिए, इस देश की जनता को कमजोर बनाकर उसके कंधे पर रखे बकरे को कुत्ता बताकर भ्रमित करेंगे और फिर से सत्ता कांग्रेसियों और कांग्रेसियों के दलाल साम्यवादियों – सेकुलरों के हाथ में आ जाय, ये इन लोगों का एजेंडा है. ऐसे लोगों को पैसे देने के बजाय मद्यपान और गणिकागमन पर खर्च कर देने से कम नुकसान होगा, ऐसा मेरा प्रामाणिक रूप से मानना है.

भारतीय मीडिया में मौजूद देशद्रोही लिबरल्स जिनकी प्रशंसा करते नहीं थकते ऐसा एक ब्रिटिश अखबार है `द गार्डियन’. बिलकुल लेफ्टिस्ट-अनार्किस्ट स्तर के गांव के गुंडे जैसे इस अखबार के पास अरबों रूपए की संपत्ति है और मोटी कमाई है. ये अखबार तो प्रिंट मीडिया में सब्सक्रिप्शन मांगता है और फिर भी बेशर्म होकर डिजिटल मीडिया में भगवान के नाम से `कुछ दे दो’ की अपील करता रहता है. `द गार्डियन’ को भी एक पाउंड तक नहीं देना चाहिए.

`द गार्डियन’ की तरह `विकीपीडिया’ को भी एक पैसा नहीं देना चाहिए. हम सभी उपयोग करते हैं. ऐसा कहा जाता है कि वह एक नॉन प्रॉफिट ऑर्गनाइजेशन है. वोलंटरी कॉन्ट्रिब्यूशन पर चलता है. लेकिन वेस्टेड इंटरेस्ट रखनेवाले धनपति इसमें भारी भरकम पैसे लगाते हैं. विकीपीडिया में लिखनेवाले लोग तो सारी मुफ्तवाले होते हैं. ये मुफ्तबैठे लोग बडे पैमाने पर लिब्रांडु होते हैं. वे हिंदूवादी विचारधारा और भारत के संस्कारों के कट्टर विरोधी होते हैं. आप गुजरात के दंगों, दिल्ली के हाल में हुए दंगों, ईवन हाल के बैंगलोर दंगों के बारे में एंट्रियां पढें. `निष्पक्ष’ के नाम पर मुसलमानों को तुष्ट करने का धंधा चल रहा है. बैंगलोर में मुसलमानों ने करोडो रूपए की सरकारी संपत्ति नष्ट कर दी, हिंसा की, पुलिस स्टेशन जला दिया सबके सामने है. लेकिन विकीपीडिया में बने हुए एडिटर कहते हैं कि हम मुसलमानों का नाम नहीं लेंगे क्यों? तो कहते हैं कि मीडिया ने कहीं उनका नाम नहीं लिया है. अरे भले मानस, मीडिया तो सेकुलर है. वह उपद्रव करनेवाले हिंसक मुस्लिमों को `भीड़’ या `झुंड’ के रूप में पहचानते हैं औार फोटो अपॉच्युनिटी के लिए मानव श्रृंखला बनाकर हिंदू मंदिर की `रक्षा’ करनेवाले झूठे लोगों को तुरंत मुस्लिम के रूप में पहचान लेंगे. `ऑपइंडिया’ ने लिखा कि मुसलमानों ने दंगा किया लेकिन विकीपीडिया ने तो `ऑप इंडिया’ को ही बैन कर दिया है.

इस विकीपीडिया पर अनेक जेनुइन हिंदूवादी एडिटर्स-कॉन्ट्रिब्यूटर्स भी हैं जिनमें से कई लोग में रे संपर्क में हैं. लेकिन उन सभी को अपनी बात रखने से डरना पडता है, कई बार संभाल कर चलना पडता है तो कई बार भारी सेकुलर दबाव में झुकना पडता है.

ये विकीपीडिया भी आज कल आपका गला पकड कर आपसे योगदान लेने की कोशिश करने लगा है. अपील में मव्वालीगिरी करके आप जब तक परेशान न हो जाएं तब तक आपकी स्क्रीन पर चिपका रहता है. `गार्डिनल’ या विकीपीडिया को पैसे देकर प्रोत्साहन देने के बजाय उस पैसे को जैसा कि पहले बता चुका हूं उस तरह से खर्च कर देना अधिक अच्छा.

इसके विपरीत `स्वराज एक आदरणीय हिंदूवादी प्रिंट मैगजीन-कम-डिजिटल पोर्टल है. दोनों के लिए वह सब्सक्रिप्श तो लेता ही है पर इसके अलावा कॉन्ट्रिब्यूशन की अपील भी करता है. `स्वराज’ के पास टी.वी. मोहनदास पै और नारायण मूर्ति जैसे अत्यंत दमदार इनवेस्टर्स होने के बावजूद, और सब्सक्रिप्शन लेने वालों के लिए ही अपनी सारी पठन सामग्री उपलब्ध कराने के बावजूद कॉन्ट्रिब्यूशन की अपील करता है. पंद्रह अगस्त के अगले ही दिन एक मोटी राशि का लक्ष्य पूर्ण करने की अपील आई थी.

`ऑप इंडिया’ (@OpIndia_in)गजब का काम कर रहा है. राहुल रोशन (@rahulroushan) संचालित बिलकुल राष्ट्रनिष्ठ और हिंदू परंपरा का पूरा आदर करनेवाले `ऑपइंडिया’ के हिन्दी संपादक अजीत भारती (@ajeetbahrti) है और अंग्रेजी की संपादिका नुपूर शर्मा (@UnSubtleDesi) हैं जिन्होंने दिल्ली दंगों के बारे में लगातार की दी गई रिपोर्ट को ईबुक के रूप में अमेजॉन पर रखा है ,कीमत है केवल रू.१०१.

`ऑपइंडिया'(OpIndia_com) को आपको ट्विटर पर फॉलो करना चाहिए. उसकी साइट पर आनेवाली प्रतिदिन की रिपोर्ट्स देखनी चाहिए और जितना हो सके उतनी सहायता इस हिंदूवादी प्लेटफॉर्म को टिकाने के लिए, समृद्ध करने के लिए भेजनी चाहिए. स्वैच्छिक अनुदान लेकर वे जबरदस्त काम कर रहे हैं. राष्ट्रनिर्माण के लिए जो विशाल काम वे कर रहे हैं उसे देखकर मैं गंभीरता के साथ आपसे कहना चाहता हूं कि आपके पास अगर एक ही विकल्प हो कि `मैं अपना १०० रूपया किसे भेजूं- न्यूज प्रेमी को या ऑपइंडिया को?’ तो मैं तुरंत कहूंगा कि `ऑपइंडिया’ को. मैं खुद उन लोगों के लिए अपनी क्षमता और सुविधा के अनुसार कॉन्ट्रिब्यूशन करता रहता हूं. `ऑपइंडिया’ जैसे अधिक से अधिक प्लेटफॉर्म नेशनल लेवल पर अंग्रेजी-हिंदी में होने चाहिए और गुजराती तथा तमाम भारतीय भाषाओं में होने चाहिए.

`ऑपइंडिया’ सभी भाषाओं की जरूरत पूरी नहीं कर सकता है तो हर भाषा के समविचारी पत्रकारों को साथ आकर ऐसे प्लेटफॉर्म खडे करने चाहिए. ये सामूहिक कार्य है जिसका प्रबंधन तथा प्रचार प्रसार करने के लिए काफी शक्ति और संसाधनों की जरूरत होती है.

`न्यूजप्रेमी’ की राह अलग है. `न्यूजप्रेमी’ वन पेन आर्मी है और उसी तरह से रहना चाहता है. यही उसकी पहचान है और इसी तरह से वह अपना सर्वश्रेष्ठ पाठकों तक पहुंचा सकता है. बाकी `ऑपइंडिया’ तो `ऑपइंडिया’ ही है, नो डाउट अबाउट इट.

मैने जब `न्यूज़प्रेमी’ के लिए पहली बार कॉन्ट्रिब्यूशन की अपील अपने पाठकों से की थी तक मेरे निजी वॉट्सऐप ग्रुप में एक मित्र ने मुझे पर्सनल मैसेज में कुछ इस अर्थ में लिखा कि:`मुझे बहुत दुख हो रहा है कि आप जैसे तेजस्वी, अनुभवी इत्यादि इत्यादि पत्रकार को इस तरह से लोगों से पैसे मांगने के लिए जाना पड़ रहा है.’

मुझ पर कोई दया दिखाता है तो मुझे क्रोध आता है. इस मित्र पर गुस्सा करने का कोर्स कारण नहीं है क्योंकि उन्हें मेरे लिए सदभावना है, ये मैं जानता हूं, इसमें कोई शंका, दो राय नहीं है.

लेकिन उन्हें जानकारी नहीं थी कि `गार्डियन’ या `द प्रिंट’ या `विकीपीडिया’ जैसे एंटी हिंदू, एंटी मोदी और एंटीइंडिया मीडिया के पास बडे बडे निवेश होने के बाद भी वे काफी आक्रामकता से पाठकों से योगदान मांगते हैं. इवन `स्वराज’ और `ऑपइंडिया’ जैसे आदरणीय, निष्ठावान और अत्यंत राष्ट्रनिष्ठ मीडिया भी अपने पास निवेशक होने के बाद भी योगदान की अपील करते हैं. उनके साथ भी `तेजस्वी’, `अनुभवी’ इत्यादि इत्यादि पत्रकार काम करते ही हैं.

`न्यूजप्रेमी’ पर या वन पेन आर्मी पर दया दिखाने की जरूरत नहीं है. डिजिटल प्लेटफॉर्म पर कॉन्ट्रिब्यूशन की अपील करनेवाले गुजराती में हम शायद पहले हैं लेकिन अंग्रेजी-हिंदी में ये कोई नई बात नहीं है. कई प्रतिष्ठित, इज्जतदार और राष्ट्रीय स्तर के मीडिया द्वारा वोलंटरी कॉन्ट्रिब्यूशन की अपील नियमित रूप से प्रतिदिन की जाती है. राष्ट्रीय ही क्यों `द गार्डियन’ जैसे अन्य कई सारे अंतर्राष्ट्रीय मीडिया पाठकों से योगदान राशि की आशा करते हैं- धनवान इनवेस्टर होने के बावजूद पाठकों से सब्सक्रिप्शन की अपील करते हैं.

`न्यूज़प्रेमी’ के पास कोई इनवेस्टर नहीं है और चाहिए भी नहीं. `न्यूजप्रेमी’ के पास कोई विज्ञापनदाता-स्पॉन्सर्स नहीं हैं और चाहिए भी नहीं. `न्यूज़प्रेमी’ ने कोई मिनी वॉल खडी नहीं की है कि आप अमुक राशि भरेंगे तो ही आप वेबसाइट पर जाकर लेख और पठन सामग्री पढ सकते हैं. ऐसा कुछ करने का इरादा भी नहीं है.

`न्यूज़प्रेमी’ पर कोई भी पाठक एक पैसा दिए बिना विजिट कर सकता है, रोजाना के लेख पढ सकता है, पुराने लेख पढ सकता है, सारा का सारा आर्काइव खंगाल कर दिन रात कभी कम नहीं होनेवाली अतिसमृद्ध और मूल्यवान तथा जीवन में कदम कदम पर उपयोग में आनेवाली सामग्री नि:शुल्क पढ सकता है और जो भी लेख अच्छा लगता है उसका लिंक व्हॉट्सऐप इत्यादि द्वारा शेयर कर सकता है. ये सारी सुविधाएँ नि:शुल्क हैं.

ये सब इसी तरह से चलता रहे इसीलिए मैने आपको विस्तार से बताने के लिए `कटिंग चाय सिरीज़’ लिखना शुरू किया है. स्मार्ट फोन का उपयोग करनेवाले कोई भी पाठक हो- चाहे वह विद्यार्थी हो या गृहिणी हो; चाहे नौकरी व्यवसाय करनेवाला हो या कोरोना के समय एकांत में हो- हर कोई पांच-सात रुपए की कटिंग चाय जितना कॉन्ट्रिब्यूशन तो भेज ही सकता है, इसमें कोई शंका नहीं है. महीने में सौ रूपए यानी हर दिन की एक नहीं बल्कि आधा कटिंग चाय हुई- दो घूंट जितनी. आपसे मिलनेवाला छोटा सा योगदान भी मुझे संकेत देगा कि यहां आपको जो कुछ भी पढने को मिल रहा है वह पठन सामग्री आपके लिए मूल्यवान है और आपको इस सामग्री के रचनाकार की कद्र है. जैसा कि पहले मैं कह चुका हूं कि ये मेरे लिए कोई टाइमपास या शौकिया प्रवृत्ति नहीं है.

बिलकुल गंभीरतापूर्वक, निष्ठापूर्वक किया जानेवाला कम है. कई विषयों पर हर दिन लिखा जाता है. आरडी बर्मन के संगीत से लेकर कोरोना और विदुरनीति से लेकर मिच्छामि दुक्कडम में निहित भाव तक की नई नई बातों पर घंटों खर्च करके एक एक लेख लिखा जाता है. इस बारे में हम कल बात करेंगे.

आज की बात पूरी करने से पहले फिर एक बार याद दिलाना चाहता हूं कि हर महीने नियमित रूप से मिलनेवाले आपके सौ-सौ रूपए के योगदान की कीमत उतनी ही है जितनी सधन पाठकों से मिलनेवाली मोटी राशि की होती है. आप अपनी अनुकूलता के अनुसार, अपनी परिस्थिति के अनुसार और `न्यूजप्रेमी’ के काम की ओर देखने की आपकी दृष्टि के आधार पर कोई भी एक शुभ राशि तय कीजिए और हर महीने वह राशि भेजते रहिए, ऐसी मेरी प्रार्थना है क्योंकि ये काम आज किया और कल नहीं भी किया तो चलेगा, ऐसा नहीं है. ये कार्य निरंतर ३६५ दिन चलता रहता है. (कभी कभार छुट्टी लेने की बात अपवाद है. थके बिना, एक भी दिन बिना छुट्टी के जो काम किया है उसे किस नाम से पहचाना जाता है यह अब आपको पता है).

इस लेख के साथ दिए गए लिंक में बैंक ट्रांसफर के विवरण और पेटीएम, गूगल पे इत्यादि द्वारा राशि भेजने की सुविधा के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई हैं.

आपकी प्रतीक्षा में.

आप कल के लेख का इंतजार कीजिए.

आज का विचार

उम्र बढने के साथ हम अधिक साहसिक-अधिक हिम्मतवाले बनते जाते हैं. अब हमें अंधेरे से डर नहीं लगता.

-अज्ञात-

www.newspremi.com/gujarati/support-appeal

1 COMMENT

  1. सर, पाठक आपसे कंटेंट लेता है और इससे आनंद या ज्ञान के स्वरूप मे लाभान्वित होता है। हरेक सक्षम पाठक ने वास्तवमे तो इस कंटेंट की कीमत अदा करनी चाहिए। यह तो आपकी उदारता है जो आप पाठकों को अपने अनुकूल योगदान देने का अवसर प्रदान करते है। सारे सक्षम पाठक इस प्लेटफार्म को चलाने के लिये क्षमता अनुसार योगदान दें और विद्यार्थी व जिनके पास आय का कोई स्त्रोत नही वे अवश्य इसका बिना योगदान दिए लाभ उठाएं।पर योगदान करने वाला कतई ये न समझे कि वह कोई उपकार कर रहा है।

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