आप आदरणीय हैं या आपका व्यवसाय

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, सोमवार – १७ सितंबर २०१८)

यदि मैं किसान हूं और किसान दुनिया का अन्नदाता है ऐसा मानते हुए मैं इस तरह का बर्ताव करने लगूं कि ये दुनिया मेरे बाप की है या मैं इस दुनिया का बाप हूँ तो?

इस दुनिया के लिए व्यक्ति नहीं, व्यक्ति के समूह का- एक वर्ग का महत्व है. इस दुनिया के लिए किसान महत्वपूर्ण हैं. कोई एक किसान नहीं. इस बात को जरा विस्तार से समझते हैं.

लोकतंत्र के चार स्तंभों में मीडिया को चौथा स्तंभ माना जाता है. अब कोई पत्रकार ऐसा मान बैठे कि मैं ही चौथा स्तंभ हूं और मेरे कारण ही इस देश का लोकतंत्र टिका हुआ है तो यह उसका भ्रम है. उसके बिना तो लोकतंत्र ही नहीं, मीडिया ही नहीं, उसका परिवार भी टिका रहेगा. लेकिन मीडिया यदि नहीं होगा तो लोकतंत्र जरूर खतरे में पड जाएगा.

माता का महत्व हम सभी ने स्वीकारा है. हजारों दुखडे सहती है मां, फिर भी कुछ ना कहती है मां इत्यादि गाना अच्छा लगता है. लेकिन किसी मां ने अगर त्याग की मूर्ति बनकर खुद गीले में सोकर अपनी संतान को सूखे में सुलाया हो तो इसके कारण दुनिया की सारी माताएं त्याग की मूर्ति नहीं बन जातीं. जैसे कोई माता लूज कैरेक्टर हो और अपनी भूख संतुष्ट करने के लिए हरजाईपना करती है तो उसके कारण सारी दुनिया की माताएं चरित्रहीन नहीं बन जातीं.

शिक्षक पूजनीय हैं क्योंकि वे अपने विद्यार्थियों को नई नई बातें सिखाते हैं, लेकिन ऐसा व्यक्ति भी हो सकता है जो स्कूल में पढाता हो या कॉलेज में अध्यापन करता हो और परीक्षा के समय पेपर बेचकर रिजल्ट के समय गलत अंक देकर पैसे कमाता हो तो वह व्यक्ति शिक्षक होने के बावजूद हरामखोर, बदमाश और अपराधी है.

कोई व्यक्ति किसी प्रोफेशन में होने के कारण ही आदरणीय नहीं बन जाता. डॉक्टरी का व्यवसाय उत्कृष्ट है. अनगिनत लोगों की सेहत का ख्याल डॉक्टर रखते हैं, लेकिन उसके कारण सभी डॉक्टर आदरणीय नहीं बन जाते. बच्चे भगवान की देन हैं. लेकिन कई बच्चों का बर्ताव ऐसा होता है मानो वे शैतान की औलाद हों ऐसा लगता है. सीनियर सिटिजन्स की देखभाल करने की जिम्मेदारी सरकार-समाज की है. लेकिन जो सीनियर सिटिजन सनकी स्वभाव के होते हैं और चित्र विचित्र सी मांगें करते रहते हैं वे तनिक भी आदर के पात्र नहीं होते.

उसी प्रकार आप भी किसी विशिष्ट प्रोफेशन में होने के कारण उस प्रोफेशन के साथ जुडी मान्यता जैसे नहीं हो जाते हैं. आपके फिल्म लाइन में होने के बावजूद आपका चरित्र शुद्ध हो सकता है. राजनीति में होने के बावजूद आप प्रामाणिक और वचन का पालन करनेवाले हो सकते हैं. आप सरकारी कर्मचारी होने के बावजूद कार्यक्षम, मेहनती और जिम्मेदार व्यक्ति हो सकते हैं.

लेकिन हमें शॉर्टकट की जरूरत होती है. लेबलिंग करना अच्छा लगता है. सोच-विचार किए बिना अंधाधुंध राय देना अच्छा लगता है. जनरलाइजेशन करने से हम नॉलेजेबल लगेंगे ऐसा हम मान लेते हैं. समाज के किसी वर्ग के लिए कोई विशिष्ट काम करनेवालों के लिए एक विशेष राय बनाकर कूपमंडुक बन कर आजीवन उसी विचार को सहेजकर जीते हैं.

हमें व्यक्ति को व्यक्ति के रूप मे देखना अच्छा नहीं लगता. मैं तो यहां तक कहता हूं कि व्यक्ति के खुद के, आपके साथ के विचारों में या आपके प्रति आचरण में भी चढाव उतार आ सकता है और हर विवेकशील मनुष्य को इस ज्वार-भाटे को समझना- स्वीकार करना चाहिए. कल उसने मेरा साथ ऐसा बर्ताव किया था, लेकिन आज उसने बिलकुल अलग आचरण किया. उसने भला ऐसा क्यों किया होगा, इस बदलाव के लिए आप भी जिम्मेदार हैं या नहीं, यह समझने का प्रयास आपको करना चाहिए. ऐसा भी होता है कि आपके साथ एक तरह से बर्ताव करनेवाला व्यक्ति दूसरे के साथ बिलकुल अलग तरह से बर्ताव करे. इसमें भी आप कितने जिम्मेदार हैं, यह समझना चाहिए.

लेकिन हम दूर का सोचना नहीं चाहते. कभी आलस के कारण तो कभी हमारे अंदर इतना सोचने की क्षमता भी नहीं होती.

भविष्य में कोई आपके व्यवसाय के बारे में जानने के बाद आपको सम्मान दे तो समझ लेना चाहिए कि यह कोई व्यक्तिगत आदर नहीं है. आप जिस क्षेत्र में हैं, उस क्षेत्र के लिए यह उच्च भाव है. कोई व्यक्ति भारतीय सेना में है, इस बात की सामनेवाले को जानकारी होते ही वह उसे सलामी दे तो समझना चाहिए कि वह सलामी युनिफॉर्म को है, व्यक्ति का नहीं. इसके विपरीत, आप मंडली में बैठे हों और कोई मीडिया के लिए अपशब्द कहकर अपने विचार प्रकट कर रहा हो तो इसका मतलब ऐसा नहीं है कि वह आपको टार्गेट बना रहा है, यह तो मीडिया के दुष्कर्मों के प्रति नाराजगी होती है, आपके लिए नहीं.

तो आगे से किसानों के बारे में, डॉक्टरों, शिक्षकों या अन्य कई प्रोफेशन्स में किसी भी व्यवसाय के बारे में जब टीका टिप्पणी की जा रही हो तो उन कमेंट्स की पगडी ऐसे लोगों को ही अपने सिर पर पहननी चाहिए जिनके सिर पर वह दुरुस्त बैठती है, हर किसी को उसे तोड मरोडकर अपनी साइज में फिट करने की जरूरत नहीं है.

आज का विचार

जल्दबाजी होती है जहां जहां वही वो अटकाएगा आपको,

और होंगे थके हुए जब, समय दौडाएगा आपको.

– डॉ. मनोज जोशी `मन’

(जामनगर)

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