गुड मॉर्निंग
सौरभ शाह
क्रोध पर नियंत्रण कैसे रखा जाय? मानसशास्त्रियों ने दस अलग अलग उपाय सुझाए हैं. इनमें से किसी भी एक उपाय या अनेक उपायों का कॉम्बिनेशन उपयोगी साबित हो सकता है. संभव है कि इन सभी उपायों को भूलकर आप अपने अनोखे अंदाज में क्रोध का निवारण करने की युक्ति खोज निकालेंगे:
१. जब क्रोध आता है तब तुरंत उस स्थान, वातावरण या व्यक्ति से दूर होकर किसी मनचाहे या न्यूट्रल वातावरण में या किसी पसंद के या न्यूट्रल व्यक्ति के पास चले जाना चाहिए.
२. खुराक, आराम, यात्रा, नींद, संगीत, मनपसंद शौक, शांति, प्राकृतिक स्थल की सैर इत्यादि करने से क्रोध शांत हो सकता है.
३. क्रोध पैदा करनेवाली घटनाओं की विस्तृत जानकारी पर्सनल डायरी में लिखनी चाहिए.
४. खुद पर ऐसा बंधन डालना चाहिए कि मैं अपने क्रोध को रोकने में सफल हो गया तो मैं अमुक मनपसंद वस्तु खुद को दूंगा और गुस्सा नहीं रोक सका तो उससे वंचित रहूंगा.
५. किसी की: खासकर किसी मनपसंद व्यक्ति के आचरण के प्रतिक्रिया स्वरूप आनेवाले क्रोध से निकलने वाले शब्द उस व्यक्ति को कहने के बजाय गुस्सा शांत होने पर वही बात उससे हंसते हंसते कही जा सकती है.
६. यह जीवन, यह दुनिया और आस-पास के सभी लोग आपकी इच्छा के अनुसार चलें, यह असंभव है. इस सत्य को स्वीकार करके मन खूब स्वस्थ हो सकता है.
७. क्रोध आने पर उसका मोटे तौर पर कहां कहां प्रभाव पडेगा इस बारे में जानकारी रखनी चाहिए.
८. व्यायाम, योगासन, ध्यान, स्नायुओं को शिथिल करने वाले रिलैक्सेशन के व्यायाम इत्यादि करके मन को नियंत्रण में रखने का प्रयास करना चाहिए.
९. निकट के व्यक्तियों को क्रोध नियंत्रित करने के लिए साथ में लिया जा सकता है. उनसे कह देना चाहिए कि फलां व्यक्ति की फलां बात से मैं खूब क्रोधित हूं. और आपका साथ लेकर गुस्से को नियंत्रित करने के लिए प्रयासरत हूं. अति गंभीर समय पर मन को हल्का करने से लाभ मिलता है.
१०. कभी कभी मनुष्य अपनी असमर्थता दूसरे के समक्ष तथा अपने सामने खुल जाने पर क्रोधित हो जाता है. इच्छित वस्तु नहीं मिलने पर क्रोधित हो जाता है. ऐसे समय में कुछ देर रुककर विचार करें. क्या इच्छित वस्तु पाने के लिए आप योग्यता रखते हैं? और यदि ऐसा लगता है कि हां पात्रता है तो सोचना चाहिए कि किस कौन सी परिस्थिति उस चीज को आपके पास आने से रोक रही है? क्या उस परिस्थिति पर आपका नियंत्रण है? असमर्थता सामने आ जाने पर हताशा घेर लेती है तो वह क्रोध के रूप में व्यक्त होती है. ऐसे समय में अपनी असमर्थता की स्थिति किन कारणों से उत्पन्न हुई है यह समझ कर उसे स्वीकार करना चाहिए.
आवेश के कारण व्यक्त होनेवाला क्रोध खुद व्यक्ति के लिए ही हानिकारक साबित होता है. उस समय संयम रखकर बाद में व्यक्त होनेवाला क्रोध व्यक्ति को उस नुकसान से बचा तो लेता ही है, बल्कि सामनेवाले व्यक्ति को भी अपने भीतर मौजूद कमियों को सुधारने का मौका देता है. किन्हीं परिस्थितियों में पैदा हुई गांठ को आवेशवाले क्रोध से खो नहीं जा सकता बल्कि वह अधिक सख्त हो जाती है. भविष्य में वह गांठ खुल भी जाती है तो भी उस विकट परिस्थिति का सामना करने में कई गुना शक्ति खर्च हो जाती है. आवेश को संयम में रखने का काम इससे कहीं कम शक्ति लगा कर किया जा सकता है और यह काम जितना दिखता है उतना कठिन नहीं है.
आवेश को मोड देने का सबसे अच्छा उपाय ये नहीं है कि जिन बातों से क्रोध आता है उनके बारे में सोचना ही बंद कर दिया जाय. विचार निरंतर जारी रखना चाहिए, लेकिन उस विचार प्रक्रिया को भावना की राह पर ले जाने के बजाय तर्क या बुद्धि के मार्ग पर ले जाना चाहिए. किसी का बर्ताव आपको अनुचित लगता है तब क्रोध करने का आपको अधिकार है, लेकिन ऐसा संभव है कि ऐसे बर्ताव के पीछे निहित कारणों की संपूर्ण जानकारी या सच्चाई आपको पता न हो. और यह संभावना भी रहती है कि चिल्लाकर, डांट डपट करके आप जब कारण जानने की कोशिश करते हैं तब आपकी धाक के कारण वह व्यक्ति आपको पर्याप्त जानकारी देने या उचित संदर्भों के बारे में समझाने में असमर्थ हो जाता है.
क्रोध भी दबाना नहीं चाहिए, बल्कि उसे सहेज कर किसी अन्य राह पर मोड देना चाहिए. दबाया गया क्रोध संभव है कि किसी अन्य प्रकार से फूट निकलेगा. मन ही मन कुढने के बजाय उस धुएं का बाहर निकल जाना ही अच्छा है. लेकिन अधिक अच्छा यह होगा कि बाहर निकलनेवाला यह धुआं चारों तरफ फैलने के बजाय चिमनी के जरिए बाहर फेंक दिया जाय. जिनके पास ऐसी चिमनी नहीं होती उनके व्यक्तित्व की दीवारें उस फैल रहे धुएं कि कालिख से काली हो जाती हैं. हर घर में जिस प्रकार से एक नाबदान या नाली होना जरूरी है उसी तरह से ही मनुष्य में ऐसी चिमनी का होने भी अनिवार्य है. भगवाने ने गलती यह कर दी है कि मनुष्य की रचना करते समय स्टैंडर्ड फिटिंग्स में चिमनी का समावेश नहीं किया. ऐसी एक्स्ट्रा एक्सेसरीज व्यक्ति को खुद लगानी होती है, क्योंकि गुस्सा बत्तीस लक्षणोंवाले मनुष्य का तैंतीसवां लक्षण है.
आज का विचार
सभी को दौडने के लिए दिए सपने और आशाएं;
हम अभागे कि बिना कुछ दिए हमें दौडाया
गर होता पता कि इतना मनमोहक है तो भागता नहीं
व्यर्थ की पीडा देकर हमें निरंतर दौडाया
– मनोज खंडेरिया
एक मिनट!
बका की पत्नी: तुम रोज सुबह-दोपहर-शाम अपने पति को फोन करती रहती हो. तुम माथेरान घूमने आई हो या फोन करने.
पका की पत्नी: घूमने आई हूं लेकिन उन्हें ये ध्यान में रहना चाहिए कि टाइगर अभी जिंदा है, सिर्फ वैकेशन पर गया है!
No