आज फिर जीने की तमन्ना है

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, शुक्रवार – २८ सितंबर २०१८)

मार्को ने दबे पांव बरामदे में आकर पूछा: कोई प्राणी शिकार करता दिखा?

राजू ने कहा: `एक जानवी आया था लेकिन चला गया. आइए, यहां बैठिए’ राजू ने मार्को को अपनी कुर्सी दे दी. मार्को अंधेरे जंगल में निहारते हुए बैठा था. बगल में राजी थी.

दूसरे दिन सुबह राजू ने देखा कि पति-पत्नी के बीच फिर से तनाव पैदा हो गया है. उनके कमरे का दरवाजा खुला तो मार्को अकेले ही तैयार होकर बाहर निकला. रोजी को फॉरेस्ट बंगलो में छोडकर नाश्ता वाश्ता किए बिना ही मार्को राजू को लेकर गुफा देखने तलहटी की ओर चल पडा. राजू ने सोचा कि ये आदमी सचमुच राक्षस है. मार्को के पास कितना बडा खजाना है लेकिन उसके लिए उसकी कोई कीमत ही नहीं है. बंदर के गले में भगवान ने गुलाब के फूलों का हार पहना दिया है.

पथरीले रास्ते पर चलते चलते राजू के मन में एक विचार घूम गया: ये राक्षस यहां से फिसल कर नीचे खाई में गिर जाए तो अच्छा हो.

लेकिन फिर तुरंत ही उसने अपने मन में खुद को थपकी देकर कहा: ऐसे बुरे विचार नहीं आने चाहिए. बीच बीच में गुफा में चमगादड उड रहे थे. मार्को गुफा के चित्रों का अध्ययन करने में मग्न था. घंटों बीत गए. राजू को ऊबन हो रही थी. राजू बहाना बनाकर वहां से निकल गया और दौडते हुए फॉरेस्ट बंगलो की चढाई चढ गया. वही पर एक वृक्ष की छाया में बडे पत्थर पर रोजी बैठी हुई दिखी.

`आप अकेले ही लौट आए? वो नहीं आए? गुफा का अध्ययन करने में खो गए होंगे, है ना?

`हां. ऐसा लग रहा था कि उन्हें बडा मजा आ रहा है.’

`पर मेरी मजा का क्या?’

`आपको किसने आनंद आता है?’

`गुफा के अलावा बाकी सभी में’

राजू रोजी की ओर देखकर सोचता रहा फिर साहस करके बोला,`आप दोनों रोज रात में झगडा करते हैं?’

`हम दोनों जब अकेले में बातें करने लगते हैं तब हमारे बीच कहा सुनी होने लगती है. हम किसी भी बात को लेकर एक दूसरे से सहमत नहीं होते. फिर वे मुझे अकेले छोडकर चले जाते हैं. लौटकर आते हैं. सब शांत हो जाता है.’

`लेकिन कल के बाद सब शांत हो गया हो ऐसा लगता नहीं है.’

`हां. कुछ ऐसा ही है.’

`न जाने क्यों आप जैसी औरत के साथ कोई झगडा भला कैसे कर सकता है जिसे भगवान ने फुर्सत में बनाया हो?’

`मतलब‍?’

`मतलब ये कि…’ राजू ने अपने मन की सारी बात रोजी को बताने का निश्चय किया, लेकिन प्रेम की बातें रोजी तक पहुंचाने के लिए वह रोजी की प्रतिभा का बखान करता. `आप तो गजब का नागिन नृत्य करती हैं. मैं सारी रात सोचता रहता हूं. आप दुनिया की सबसे श्रेष्ठ कलाकार हैं. देखिए ना, हर घडी, हर पल आपके साथ ही रहना चाहता हूं.’

राजू एक वाक्य में रोजी के नृत्य की सराहना करता तो दूसरे वाक्य में अपनी निजी भावना उंडेल देता और फिर से रोजी के कलाकार की तारीफ करता.

रोजी राजू के करीब आ गई. उसने कहा:`आप तो मेरे भाई जैसे हैं. आपसे क्या छिपाऊं?’

`भाई’ सुनकर राजू को फूटफूट कर रोने का मन हुआ लेकिन वह रोजी को सुनता रहा. रोजी ने राजू को पति-पत्नी के बीच हुए अभी तक के झगडों को विस्तार से बताया.

सारा कुछ सुनकर राजू ने पूछा,`तो फिर आपने उनके साथ शादी ही क्यों की?’ राजू अपनी हदें लांघ रहा था, लेकिन इसमें रोजी को कोई आपत्ति नहीं थी.

`पता नहीं. बस, कर ली.’

`आपने उनकी दौलत देखकर शादी की? क्या आपके चाचा-मामा- परिवार के लोगों ने उस अमीर के साथ आपको ब्याह दिया?’

`आप जानते हैं,’ रोजी ने राजू की बांह खींचकर पूछा,`कि मैं समाज के किस वर्ग से हूं.’

रोजी मासूमियत से अपनी जिंदगी की परतें एक एक करके खोलती गई. रोजी देवदासी थी. नगरवधू कही जाती थी. उसकी मां, उसकी दादी, परदादी- सभी वही थीं. उनके पिता कौन हैं, इसका किसी को पता न था. कभी तो उन्हें खुद को भी नहीं. गांव में कोई भी उन्हें सम्मान की नजर से नहीं देखता था. रोजी ने इकोनॉमिक्स में एम.ए. किया, लेकिन पढ लेने के बाद सवाल ये पैदा हुआ कि वह भी देवदासी बनकर, नगरवधू बनकर सारा जीवन बिता दे या फिर जीवन में और कुछ करे. एक दिन अखबार में विवाह के बारे में एक छोटा सा विज्ञापन देखकर रोजी ने अपना फोटो भेज दिया. रोजी और मार्को की शादी हो गई. मार्को के पास गाडी-बंगला सब कुछ था. रोजी की बातों से वातावरण भारी हो गया.

राजू ने रोजी के कंधे पर हाथ रखकर दबाया. रोजी ने उससे हाथ हटाने के लिए नहीं कहा. राजू ने हाथ आगे बढाया. रोजी के कान, उसके बालों को छुआ.

देर शाम मार्को गुफा से लौटकर फॉरेस्ट बंगलो आ गया. वह कुछ दिनों के लिए यहीं ठहर जाना चाहता था. गफूर की टैक्सी आई तो मार्को ने उसे मालगुडी जाकर होटल के रूम में से ब्लैक ट्रंक लेकर आने के लिए कहा जिसमें उसके कागज और अन्य सामान थे. मार्को ने राजू से भी वहीं पर रुक जाने के लिए कहा. `तुम्हें तुम्हारी हर दिन की फीस मिल जाएगी,’ मार्को ने कहा. जो रोगी चाहे, वही वैध बताए वाला हाल राजू का हुआ. राजू ने कहा कि उसे भी अपने कपडे लाने के लिए मालगुडी जाना पडेगा. रोजी भी होटल से अपना सामान लाने के लिए गफूर की गाडी में बैठ गई. राजू ने जाते जाते कहा,`मालगुडी पहुंचते पहुंचते रात हो जाएगी. हम लोग सुबह लौटेंगे.’

मार्को ने रोजी से पूछा,`तुम होटल के रूम में अकेले सारी रात रह सकोगी?’

`हां’, रोजी ने जवाब दिया.

उस रात राजू ने रोजी को गफूर की टैक्सी में सारा मालगुडी दिखाया. इतने उत्साह से राजू ने किसी भी टूरिस्ट को मालगुडी नहीं घुमाया था. रोजी एक गंभीर औरत से एक चंचला लडकी में रूपांतरित हो गई थी.

निर्देशक-पटकथा- संवाद लेखक विजय आनंद ने यहां पर आकर सोचा होगा कि यहां पर गाना लगेगा. फिर संवाद लिखा होगा: `कुछ बोलोगे भी, कैसे गाइड हो?’ `मेरी समझ में नहीं आया. कल तक आप लगती थीं चालीस साल की औरत जो जिंदगी की हर खुशी, हर उमंग, हर उम्मीद पीछे कहीं रास्ते में खो आई है, और आज लगती है सोलह साल की बच्ची-भोली, नादान, बचपन की शरारत से भरपूर…’ जानते हो क्यों?’ `क्यों?’

और इस सिचुएशन पर एस. डी. बर्मन ने एक खूबसूरत धुन पर शैलेंद्र ने एक जबरदस्त प्रेरक गीत खिा जिसे एक ऐसी महान गायिका ने गाया है जिनका आज जन्मदिन है. जीवन के नवासी वर्ष पूर्ण करके वे आज ९०वें वर्ष में कदम रख रही हैं. लता मंगेशकर को प्रभु सवा सौ वर्ष का स्वस्थ जीवन प्रदान करें ऐसी प्रार्थना है क्योंकि उनकी आवाज में इन शब्दों को सुनकर जीवन में नई शक्ति का संचार होता है:

आज फिर जीने की तमन्ना है

आज फिर मरने का इरादा है

कांटों से खींच के ये आंचल

तोड के बंधन बांधी पायल

कोई न रोको दिल की उडान को

दिल वो चला…

अपने ही बस में नहीं मैं

दिल है कहीं तो हूं कहीं मैं

जाने क्या पा के मेरी जिंदगी ने

हंसकर कहा….

मैं हूं गूबार या तूफां हूं

कोई बताए मैं कहां हूं

डर है सफर में कहीं खो न जाएं

रस्ता नया…

कल के अंधेरों से निकल के

देखा है आंखें मलते मलते

फूल ही फूल जिंदगी बहार है

तय कर लिया…

आज फिर जीने की तमन्ना है,

आज फिर मरने का इरादा है.

आज का विचार

पति की तारीफ करने का नया तरीका: `मेरे इनको तो भजन का भी शौक नहीं है…’

– वॉट्सएप पर पढा हुआ.

एक मिनट!

बका: अरे पका, ये सुप्रीम कोर्ट ने तो कह दिया कि तुम अपने उल्टे रिश्ते रखो, कोई प्रॉब्लम नहीं है…

पका: बस अब तो शादी को असंवैधानिक घोषित कर दे तो फिर सुकून आ जाए!

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