सर्जिकल स्ट्राइक: इसे कहते हैं छप्पन की छाती

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, बुधवार – ६ फरवरी २०१९)

मणिकर्णिका में डेढ सौ-पौने दो सौ साल पहले की युद्ध कथा है तो `उडी:द सर्जिकल स्ट्राइक’ में दो-ढाई वर्ष पहले की युद्ध कथा है.

भारत पर पाकिस्तानी आतंकवादियों ने खूब हमले किए. १२ मार्च १९९३ को मुंबई में हुए सीरियल बम धमाकों में प्राइम एक्युज्ड भले ही दाउद इब्राहिम हो और टाइगर मेमन जैसे स्थानीय लोग उसमें भले लिप्त हों, लेकिन पाकिस्तान की देखरेख और सक्रिय सहायता से वे हमले हुए. बम धमाके की ट्रेनिंग पाकिस्तानी आतंकवादियों ने दी थी.

उसके बाद, १९९३ से २०१४ तक भारत भर में पाकिस्तानी आतंकियों ने घुस कर कई बम ब्लास्ट किए जिसमें मुंबई की लोकल ट्रेनों में सीरियल ब्लास्ट (११ जुलाई २००६) भी हुए थे. बारह मार्च के हमले में २५७ भारतीय नागरिकों की मृत्यु हुई थी, ट्रेन ब्लास्ट में २०९ भारतीय नागरिकों की मौत हुई. उसके पश्चात २६ नवंबर २००८ को ताज, ओबेरॉय, सी.एस.टी., लियोपोल्ड कैफे पर जो हमले हुए उसमें १७४ लोगों की जान चली गई.

इन तीन बडे हमलों में करीब साढे छह सौ लोग मरे. इसके अलावा, छोटे-मोटे कई हमले हुए (जैसे कि अहमदाबाद में टिफिन बम ब्लास्ट, (२००८), गांधीनगर के स्वामी नारायण मंदिर पर हमला (२००२) जिसमें क्रमश: ५६ और ३० निर्दोष नागरिकों की जान गई). इन सात सौ से अधिक असामयिक मौतों में ऐसी ही घटनाओं में गई जानों को भी जोड दिया जाय तो ये नुकसान इतना बडा है कि जो दो देशों के बीच होने वाले युद्ध में होने वाली जानहानि जितना बडा आंकडा है.

ऐसे हर हमले के समय सरकार ने क्या किया? पाकिस्तान के सामने बांह चढाई? नहीं. पाकिस्तान को ललकारा? नहीं. पाकिस्तान के साथ चर्चा की. लोग चाय-पानी करके अपनी अपनी-अपनी राह निकल लिए. फाइलें बनाईं, क्योंकि इस प्रत्येक हमले में पाकिस्तानी सरकार के भेजे आतंकवादियों को भारत सरकार में बैठे उनके कई परिचितों का आशीर्वाद प्राप्त था (ये बात साबित हो चुकी है और थोडे ही समय में प्रमाणों के साथ सामने आएगी. तब इस कॉलम द्वारा उसकी जानकारी भी आप तक पहुंचेगी). इसके अलावा, इनमें से बडे पैमाने पर हुए बम धमाकों में स्थानीय ऑपरेटर्स का भी हाथ होता है, जिनके सामने तत्कालीन सरकार नरमी दिखाती थी. उन्हें परेशानी न हो इसीलिए `टाडा’ जैसा मजबूत कानून भी सरकार ने रद्द कर दिया.

कई सेकुलरिस्ट छप्पन की छाती वाली कहावत का ताना मारते हैं. उन्होंने ५६ की छाती कभी देखी ही नहीं थी. नपुंसक पिता की औलादों की तरह इन जोकरों से कहना है कि `उडी’ देख आइए तब पता चलेगा कि ५६ की छाती किसे कहते हैं. १८ सितंबर २०१६. भोर में साढे पांच बजे चार पाकिस्तानी आतंकवादियों ने उडी सेक्टर की भारतीय सैन्य छावनी में चार एके-४७ राइफल, चार अंडर बैरल ग्रेनेड लॉन्चर्स और कई हैंड ग्रेनेड के साथ घुसकर सोते हुए भारतीय जवानों पर हमला किया. १९ सैनिक शहीद हो गए. चारों आतंकवादियों को मार दिया जाता है.

भारत के लिए ये घटना अत्यंत धक्कादायक थी. कश्मीर में भारतीय सैनिकों द्वारा आतंकवादियों का सामना करते हुए शहीद होने की कई घटनाएं हुई हैं. साम्यवादियों का समर्थन पानेवाले माओवादी-नक्सलवादियों ने भी आसाम-मणिपुर से लेकर गढचिरोली तक अनेक क्षेत्रों में अपने सैन्य – अर्धसैन्यबलों के जवानों की हत्या की है.

अभी तक किसी सरकार ने आतंकवादियों को ईंट का जवाब पत्थर से नहीं दिया. इजराइल की महिला प्रधानमंत्री गोल्डा मायर जैसी मर्दानगी भारत के किसी भी प्रधान मंत्री ने अभी तक नहीं दिखाई जो नरेंद्र मोदी ने दिखाई है. १६ सितंबर को हुए हमले के बाद दो सप्ताह का भी इंतजार किए बिना २८ सितंबर को मोदी ने अपने में, अपनी पूरी जिम्मेदारी पर दुश्मनों के आतंकियों के आठ अड्डों पर बीस बीस भारतीय जवानों की टुकडी भेजकर कुल ३८ आतंकवादियों को ठिकाने लगा दिया और अस्सी के अस्सी जवान सही सलामत लौट आएँ ऐसी दमदार व्यवस्था भारतीय सैन्य दलों से करवाई थी. हमारी सेना, वायु सेना (और नौसेना भी) सक्षम है, हमारी इंटेलिजेंस व्यवस्था बेमिसाल है, हमारा पुलिस तंत्र भी कार्यशील है. लेकिन हमारे शासकों में साहस नहीं था, अभी तक साहस तो क्या, नीयत भी कभी नहीं रही. नीयत ही नहीं कभी कभी तो देशद्रोहियों के साथ उनकी साझेदारी भी थी.

आपके प्राइम मिनिस्टर ने आपको दिखा दिया कि इच्छा हो तो लडा जा सकता है. इजराइल की मर्दानी गोल्डा बहन जैसी जवांमर्दी भारतियों भी हो सकती है, ये साहब ने साबित कर दिखाया है. ऐसा साहस सोनिया के इशारे पर नर्तन करनेवाले मनमोहन सिंह क्या दिखा सकते थे? मुंबई के ट्रेन ब्लास्ट तथा ताज-ओबेरॉय पर हुए हमलों में सैकडों निर्दोष नागरिकों को जान से हाथ धोना पडा लेकिन उस समय की सरकार के पेट का पानी भी नहीं हिला. इसके उलट उस समय तो सच्चत कमिटी की रिपोर्ट को स्वीकारनेवाले सोनिया सरकार की कठपुतली पीएम ने कहा: `इस देश के संसाधनों पर सबसे पहला अधिकार मुस्लिमों का है’. भूल गए न ये सारी हेडलाइनें. इसके विपरीत, जिसकी ५६ की छाती होती है वही कह सकता है कि सबका साथ, सबका विकास और सबका विकास करके साबित भी करता है कि वे खुद केवल वादे नहीं करते, हर वादे का पालन भी करते हैं. देश की सुरक्षा करने का वादा मोदी सर्जिकल स्ट्राइक करके निभाया. ऐसा गट्स दिखाया कि अमेरिका या यूनो इसका विरोध करेंगे तो भी परवाह नहीं. चमत्कार तो देखिए कि अमेरिका-यूनो ही नहीं, सारी दुनिया ने सर्जिकल स्ट्राइक की सराहना की. इजराइल से मोदी ने काफी कुछ सीखा है. इस्लामिक देश जिसे अपना नंबर एक दुश्मन मानते हैं, उस इजराइल को कांग्रेस की सरकारें छूने से भी झिझकती थीं, कि कहीं मुसलमान नाराज न हो जाएं. मोदी ने पीएम बनने के बाद अपनी रक्षा संबंधी शक्ति बढाने में (तथा आंतरिक सुरक्षा के संबंध में भी) छोटी-मोटी रणनीतियां गढने में इजराइल की कुशलता का लाभ लिया है. वह भी केवल सैद्धांतिक रूप में नहीं, बल्कि व्यावहारिक तौर पर. १९७२ के म्यूनिख ओलिम्पिक्स के समय फिलिस्तीन के मुसलमानों के `ब्लैक सेप्टेंबर’ नामक आतंकवादी समूह ने ११ इजराइली खिलाडियों की हत्या कर दी थी. सारा इजराइल रोष से जल उठा. इजराइल की प्रधान मंत्री गोल्डा मायर चाहतीं तो अपनी जनता के रोष को शांत करने के लिए फिलिस्तीन पर सैनिक हमला करने के लिए दो-चार बॉम्बर प्लेन भेज दिया होता और कुछ बम फोडकर इजराइल की ताकत दिखा दी होती. लेकिन नहीं. खुन का बदला खुन. कोई एक गाल पर थप्पड मारे तो दूसरा गाल आगे करने के बजाय उसे उसके दो पैरों के बीच की जगह में जोर से लात मारनी चाहिए ताकि उसके परिवार में ऐसी औलादें भविष्य में पैदा ही न हों. प्रधान मंत्री गोल्डा मायर ने अपनी अति कार्यक्षम जासूसी संस्था `मोसाद’ के एजेंटों को काम सौंपा. ऑपरेशन ब्लैक सेप्टेंबर में लिप्त एक एक फिलिस्तीनी आतंकवादी को खोज खोज कर जहां हों वही पर, उनके घर में जाकर मारा. धरमपाजी के शब्दों में `चुन चुन के मारो’. ये सारी घटना पर स्टीवन स्पिलबर्ग ने `म्यूनिख’ नामक जबरदस्त फिल्म २००५ में बनाई जिसे ऑस्कर में पांच नॉमिनेशन्स मिले: बेस्ट फिल्म, बेस्ट डायरेक्टर, बेस्ट आडिटेड स्क्रीन-प्ले (मूल पुस्तक: `वेन्जन्स’ बाय जॉर्ज जोनास), बेस्ट एडिटिंग और बेस्ट म्यूजिक. आपने करीब करीब ये फिल्म देखी ही होगी. नहीं देखी हो तो जरूर देखिएगा. आज का जेम्स बॉण्ड डेनियल क्रेग आपको एक महत्वपूर्ण रोल में दिखाई देंगे. २१वीं शताब्दि की श्रेष्ठ (अंग्रेजी) फिल्मों की सूची `न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने जब २०१७ में बनाई तब `म्यूनिख’ उसमें १६वें नंबर पर थी. दुर्भाग्य से इस फिल्म ने स्पिलबर्ग की अन्य फिल्मों की तुलना में अमेरिका में सबसे कम बिजनेस किया है. अमेरिकी दर्शकों का भाग्य. इसके विपरीत `उडी’ चौथे सप्ताह में भी जबरदस्त बिजनेस कर रही है. रिपोर्ट्स के अनुसार रिलीज के तेईसवें-चौबीसवें दिन `बाहुबली’ ने जो बिजनेस किया था उसकी तुलना में `उडी’ का कलेक्शन अधिक है. हम तीन दिन पहले, रविवार की शाम को फिर एक बार `उडी’ देखने गए थे तब थिएटर की आगेवाली दो कतारों को छोडकर पूरा भरा था और लोग पिन ड्रॉप साइलेंस में फिल्म का आनंद ले रहे थे. आखिरी क्रेडिट्स शुरू हुए तब भी पांच-सात जल्दबाजी करनेवालों को छोडकर सभी दर्शक अपनी कुर्सी पर जम कर बैठे थे.

आज का विचार

ठंडी में स्वेटर, बारिश में रेनकोट और गर्मी में टोपी जिस तरह से आलमारी से बाहर निकलती है, उसी तरह चुनाव के समय अण्णा हजारे बाहर निकलते हैं.

– वाट्सएप पर पढा हुआ

एक मिनट!

बकी: हैलो, डॉक्टर! मेरे पति गलती से सेरिडॉन की दो गोलियां निगल गए हैं, क्या करूं?

डॉक्टर: अब बका को आप सिर दर्द दे दीजिए. गोलियां काम आ जाएंगी.

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