`नमस्ते और कोरोना वायरस’

एक छोटी सी बात: सौरभ शाह

(newspremi.com, गुरुवार, ५ मार्च २०२०)

कोरोना वायरस आज है, कल नहीं रहेगा. इस संक्रमण के कारण हाथ मिलाने के बजाय नमस्ते करने का चलन जो दुनिया में शुरू हुआ है वह भारत की हजारों साल पुरानी संस्कृति की देन है.

ऋग्वेद में (१०-८५-२२ और ८-७५-१००), अथर्ववेद में (६-१३-२) तथा तैतेरिय संहिता में (२-६-११-२) में `नमस्ते’ का उल्लेख है. महाभारत में तो है ही.

कोरोना वायरस से बचने के लिए दुनिया की विभिन्न प्रजाओं ने शेक हैंड करना छोड दिया है. जर्मनी की चांसलर (राष्ट्र प्रमुख) एंजेला मर्केल अभी किसी बैठक में गर्ई थीं तब उनके डिप्टी ने अभिवादन करने के लिए हाथ बढ़ाया तो एंजेला ने भी आदतन हाथ आगे बढा दिया लेकिन बाद में तुरंत पीछे खींच लिया आर हंसते हंसते ऐसी मुद्रा में दोनों हाथ हिलाकर `ठीक है ना?’ के साथ दूर से ही अभिवादन स्वीकार किया. फ्रांस में आधिकारिक रूप से घोषणा की गई है कि अभिवादन करने के लिए एक दूसरे के साथ गाल चिपका कर मुवा मुवा करना बंद करो. ये सुनकर कई चतुर लोगों ने एक दूसरे के साथ कोहनी टकराना शुरू कर दिया तो चीन में दो लोग अपनी टांग उठाकर आमने सामने शुज़ टकराकर अभिवादन करने लगे हैं. इजराइल के प्रमुख बेंजामिन नेतन्याहू ने एक प्रेस कॉन्फरेंस में कहा कि अब शेक हैंड के बजाय भारत की तरह नमस्ते करना शुरू कीजिए.

दोनों हाथों को छाती के नजदीक लाकर जोडते समय सिर झुकाने पर नमस्ते होता है. पहली कक्षा की पुस्तक में जोडाक्षर के बिना जब वाक्य सिखाए जाते हं तब पहला वाक्य होता है: मनन नमन कर.

नमस्ते, नमन, वंदन और प्रणाम की हमारी संस्कृति में जैसे जैसे आदर देने की तीव्रता में बढोतरी होती जाती है वैसे वैसे सिर झुकाने से कमर से झुककर चरण स्पर्श करने तक के पहलू उसमें जुड़ते जाते हं. सबसे शीर्ष चरण है साष्टांग दंडवत करना जो कि भगवान के लिए तथा भगवान समान गुरूजनों के लिए होता है. स्वामी रामदेव का पूज्य मोरारी बापू को सार्वजनिक मंच पर साष्टांग दंडवत करते हुए वीडियो यूट्यूब पर सर्च करेंगे तो मिलेगा.

पहले दो घुटनों पर बैठकर नीचे झुकर दोनों हाथ जमीन पर टिकाएं, बाद में दोनों पैरों के सहारे छाती तथा माथे को जमीन के लगाकर आदर व्यक्त करना- सो हाथ, दो पैर, दो घुटने और छाती तथा माथा- आठों अंगों के साथ प्रणाम किया जाता है तब वह साष्टांग दंडवत होता है. इस मुद्रा में सामने वाले व्यक्ति पूजनीय व्यक्ति को हम अपने मन, वचन, दृष्टि, मति, हृदय, कर्म, शरीर तथा अभी तक जिए जा चुके समस्त अस्तित्व का समर्पण कर देने का भाव व्यक्त करते हैं.

चीन और ईरान में कोरोना वायरस से मर चुके लोगों को दफन करने के बजाय अग्निदाह दिया जा रहा है. हमारी संस्कृति ने बिलकुल जटायु को भगवान राम द्वारा अग्नि संस्कार दिया गया तभी से इस प्रकार की अंतिम विधि अपनाई है.

भारत विश्व गुरू था, है और रहेगा.

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