जीवन के दिन छोटे सही हम भी बडे दिलवाले…

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, सोमवार – १४ जनवरी २०१९)

दंबर बहादुर बुधप्रीति नामक किसी नेपाली म्यूजीशियन का नाम क्या आपने सुना है? लुई बैंक्स का यह मूल नाम है. ७७ वर्ष के लुई बैंक्स भारतीय नेपाली (गोरखा) हैं, दार्जीलिंग में उनका जन्म हुआ. माता का नाम सरस्वती, पिता पुष्कर बहादुर थे. पिता ट्रम्पेट बजाते थे. १९४० के दशक में कलकत्ता में यूरोपियन बैंड में बजाया करते थे और नाम बदलकर रख लिया जॉज बैंक्स. पुष्कर बहादुर उर्फ जॉर्ज बैंक्स के पिता (यानी कि लुई बैंक्स के दाद) ने नेपाल का राष्ट्रगीत (श्रीमान गंभीरा नेपाली) को संगीतबद्ध किया था. १९६२ से २००३ तक नेपाल का यह राष्ट्रगीत था. आगे चलकर राजनीतिक कारणों से बदल दिया गया.

लुई बैंक्स दार्जीलिंग में पढे. १३ वर्ष की उम्र से गिटार और ट्रम्पेट बजाने लगे. अमेरिका में उस जमाने के मशहूर ट्रम्पेटियर लुई आर्मस्ट्रांग हुआ करते थे. पिता ने बेटे को लुई नाम दिया और पीछे खुद का अपनाया हुआ बैंक्स लगा दिया. पिता ने खुद उन्हें पियानो बजाना सिखाया था. अपने बैंड में शामिल किया.

कॉलेज की पढाई पूरी करने के बाद लुई बैंक्स पिता और उनके बैंड के साथ काठमांडू जाकर बस गए. फुल टाइम म्यूजीशियन बनने का निश्चय किया.

चार जनवरी को आर.डी. बर्मन की पचीसवीं पुण्यतिथि पर पुणे के तिलक स्मारक मंदिर में आयोजित अभूतपूर्व कार्यक्रम `रोमांसिंग विद आर.डी. बर्मन’ के स्टेज पर इंटरवल के बाद अंकुश चिंचकर के साथ की गई बातचीत में लुई बैंक्स कहते हैं: दार्जीलिंग की स्कूल में ५०० रूपए के वेतन पर जब मैं पढाता था तब नेपाल की एक होटल के जनरल मैनेजर ने मुझे डबल वेतन और रहने के लिए मुफ्त जगह का ऑफर दिया. मैं काठमांडू के होटल के बैंड में बजाने लगा. उसके बाद कलकत्ता की एक होटल के मालिक जायसवाल ने मुझे अपने यहां बैंड शुरू करने को कहा. एक दिन कलकत्ता की इस होटल के रेस्तरॉं में मैं बजा रहा था तभी वेटर ने मुझे आकर कहा कि कोई मिलना चाहता है. कौन है? बॉम्बे की फिल्म इंडस्ट्री का कोई मशहूर संगीत निर्देशक है. नाम क्या है? आर.डी. बर्मन. उस समय मुझे पता भी नहीं था कि इस नाम का क्या महत्व है. मैं अपनी ही दुनिया में रहता था. मैने यह नाम सुना भी नहीं था. खैर, मैं उनसे मिला. उन्होंने कहा कि मेरी एक फिल्म में हीरो पियानो बजा रहा है. आप मेरी रेकॉर्डिंग में आकर पियानो बजाइए.

लुई बैंक्स ने १९७७ में रिलीज हुई फिल्म `मुक्ति’ के लिए पहली बार पंचमदा के लिए पियानो बजाया. हीरो शशि कपूर बडी दाढी में पियानो बजाते हुए गा रहे हैं:

सुहानी चांदनी रातें हमें सोने नहीं देतीं, तुम्हारे प्यार की बातें हमें सोने नहीं देतीं.

रेकॉर्डिंग खत्म होने के बाद आर.डी. बर्मन ने लुई बैंक्स से कहा: यही रह जाइए. खूब काम मिलेगा. लुई बैंक्स ने कहा: नहीं रुक सकता. कलकत्ता में मेरा बैंड है, सबकी जिम्मेदारी मुझ पर है.

लुई बैंक्स फिर कलकत्ता आ जाते हैं. १९७७ से १९७९ तक दो सालों में कलकत्ता में बहुत कुछ बदल गया. लुई बैंक्स बोरिया-बिस्तर और पियानो लेकर मुंबई आ गए. अगले ही दिन आर.डी. बर्मन से मिलकर पूछा: वो ऑफर अब भी ऑन है? और लुई बैंक्स पंचमदा के ग्रुप में शामिल हो गए. मुंबई में अन्य कई संगीतकारों के साथ उन्होंने काम किया, विज्ञापनों के अनेक मशहूर जिंगल्स कंपोज किए.

लुई बैंक्स `मुक्ति’ में बजाए पियानो का लाइव डेमो करते हुए कहते हैं कि अभी पियानो अलग पिच में ट्यून किया गया है इसीलिए आपको एक्जैक्टली `मुक्ति’ में बजाए गए पियानो जैसा साउंड नहीं सुनाई देगा क्योंकि मैं कुछ अलग तरह से बजाऊंगा लेकिन मजा जरूर आएगा.

और साहब आया. खूब मजा आया. भारत के अग्रणी पियानो वादक की उंगलियां कॉन्सर्ट ग्रैंड पियानो पर सहजता से नर्तन कर रही हों और सारे सभागृह में गूंज रहे सुरों की बारिश में नहाते हुए किस श्रोता को भला मजा नहीं आएगा. `मुक्ति’ के साथ ही `बडे दिलवाला’ (१९८३) फिल्म का ऋषि कपूर – टीना मुनीम पर फिल्माया गया गीत भी बैंक्स ने सुनाया: जीवन के दिन छोटे सही हम भी बडे दिलवाले, कल की हमें फुर्सत कहां सोचें जो हम मतवाले….

इस गीत के बोल किशोर कुमार की आवाज में शुरू होने से पहले पियानो की जो धुन सुनाई देती है उसका उपयोग ब्रह्मानंद सिंह ने `पंचम अनमिक्स्ड’ नामक पौने दो घंटे की डॉक्युमेंटरी के आरंभ में तथा अंत में इतने प्रभावी रूप से किया है कि आप यदि आर.डी. बर्मन पर बनी उस जबरदस्त दस्तावेजी फिल्म को देखा हो गा तो पियानो का यह सुर सुनकर जरूरत भावुक हो जाएंगे.

लुई बैंक्स कहते हैं कि पियानो वादन में उनकी प्रेरणा ऑस्कर पीटर्सन हैं. इस जानेमाने कनाडाई पियानोवादक को ८ बार ग्रैमी अवॉर्ड्स से सम्मानित किया गया है. २००७ में ८७ वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ. ६० वर्ष के लंबे कार्यकाल के दौरान उन्होंने दुनिया भर की कॉन्सर्ट्स में बजाया. जैज़ पियानिस्ट के रूप में दुनिया में उनका कोई सानी नहीं था.

`झूठा कहीं का’ फिल्म का जीवन के हर मोड पे गीत की रेकॉर्डिंग बजाई जाती है. लुई बैंक्स के वादन में पंचमदा की तरह अल्हडता भी है और सादगी भी. ऐसा दुर्लभ मेल हर कलाकार में नहीं होता. लेकिन संगीत, फिल्म, नाटक, लेखन के क्षेत्र में जिन सर्जकों में ऐसा विरोधाभासी संयोजन होगा, वैसा सर्जन हमेशा अमर हो जाता है.

लुई बैंक्स कहते हैं कि मुंबई में फुर्सत के पलों में वे खुद फ्रैंको, केसी लॉर्ड, जेम्स डायस इत्यादि के साथ जामिंग करते थे. आर.डी. बर्मन के बारे में पहले आशा भोसले ने जो उपमा दी थी वही उपमा लुई बैंक्स भी देते हैं: वे मोत्जार्ट थे.

आर.डी. की विशेषताओं के बारे में लुई बैंक्स कहते हैं: स्टूडियो में बैकग्राउंड म्यूजिक पर काम जब चल रहा होता है तब कई बार मुझे बुलाकर चेस खेलने बैठ जाते. कभी चालू रिहर्सल में अपने परकशनिस्ट, तबलावादक मारुति कीर के साथ कुश्ती लडते. (गायक भुपिंदर ने कहा है कि बडे रिहर्सल रूम में लुंगी पहनकर घूमते हुए भरत नाट्यम भी करते थे). और यह सब करते हुए भी उन्हें याद रहता था कि गीत शुरू होने के बाद ४०वें बार पर बांसुरी बजनेवाली है. पंचमदा की रेकॉर्डिंग सुबह शुरू होती थी और दोपहर में एक बजे लंच से पहले खत्म हो जाती. वे इतनी परफेक्ट प्लानिंग करते थे. इसके विपरीत कई संगीतकार तो शाम के छह-आठ बजे तक गीत की रेकॉर्डिंग किया करते थे. और कई लोग तो तीन-तीन दिन तक रेकॉर्डिंग करते हैं तब जाकर गीत पूरा होता है.

इसके बावजूद, आज भी आप आर.डी. के गीत सुनें तो पुरानी टेक्नोलॉजी में रेकॉर्ड होने के बावजूद आधुनिक साधनों पर भी आप एक – एक वाद्य को अलग अलग सुन सकते हैं इस प्रकार से फ्रिक्वेंसी की व्यवस्था करके आर.डी. खुद रेकॉर्डिंग करवाते थे. वे सिर्फ क्रिएटिव आर्टिस्ट हीं नहीं थे, क्राफ्ट्समैन भी थे. मौलिक कलाकार होने के अलावा वे अत्यंत लगनशील भी थे.

बांसुरी वादक अश्विन श्रीनिवासन के साथ लुई बैंक्स पियानो पर तुम से मिलकर तथा गलाबी आंखें तथा चुरा लिया की धुन पर जुगलबंदी करते हैं.

७७ वर्ष की उम्र में भी लुई बैंक्स में इतना सारा संगीत भरा है कि वे घोषणा करते हैं कि मुझे आर.डी. बर्मन के गीतों को जाज़ के साथ रिक्रिएट करके एक अलबम बनाना है.

ठीक साढे सात बजे शुरू हुआ यह कार्यक्रम केवल दस मिनट के इंटरवल के बाद रात के साढे ग्यारह बजे तक चलता है. कार्यक्रम संपन्न होने के बाद निवास पर पहुंचकर हम डेढ बजे तक, मुंबई से जिन मित्रों के साथ आए हैं उनके साथ, आर.डी. बर्मन की बातों को और आज के कार्यक्रम की अनेक खूबियों की चर्चा करते हैं. काश, अंकुश चिचंकर, राज नागुल, आशुतोष सोमण और महेश केतकर पंचमदा से जुडे ऐसे कार्यक्रम मुंबई में भी आयोजित करते. लेकिन यदि यह मुंबई में आयोजित होगा तो हम कार्यक्रम के अगले दिन पुणे की वन ऑफ द बेस्ट मिसल परोसनेवाले रेस्तरॉं बेडेकर टी स्टॉल पर नहीं जा सकेंगे या विक्टरी टॉकिज के सामने वाली मशहूर कयानी बेकरी से श्रुबेरी बिस्किट तथा बटर, खारी इत्यादि का खजाना यहां के मित्रों के लिए नहीं ला सकेंगे. अगले दिन दोपहर को देर से लेकर शाम तक लौटने की यात्रा के दौरान पुणे-मुंबई एक्सप्रेस वे पर हमने फिर से `सत्ते पे सत्ता’ की वही धुन गुनगुनाई: प्यार हमें किस मोड पे ले आया….

आज का विचार

घबरा जाते हो आप रजकणों के भार से,

रेगिस्तान को उठाना तो रोज की बात है.

तेरा कुछ देना त्यौहार जैसा है,

मेरा सबकुछ मांग लेना तो रोज की बात है.

– भावेश भट्ट

एक मिनट!

बका: सुना पका? अमेजॉन के मालिक जेफ बेजोस ने तलाक ले लिया.

पका: उसे छोटे व्यापारियों की हाय लगी है…

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