जब मान मिले और जब अपमान हो

लाउड माउथ- सौरभ शाह

(बुधवार, २ जनवरी २०१९, अर्धसाप्ताहिक पूर्ति, `संदेश’)

स्थितप्रज्ञ किसे कहते हैं इसका अनुभव पिछले महीने प्रत्यक्ष लिया. एक हिंदी भाषी विश्वविख्यात सेलिब्रिटी के साथ इंटरएक्शन के दौरान एक ही दिन में दो अनुभवों का साक्षी बनने का अवसर मिला. एक जगह पर उनका कोई स्वागत नहीं हुआ क्योंकि कोई पहचानता नहीं था और दूसरी तरफ कोई गर्मजोशी भरी विदाई नहीं हुई क्योंकि हर कोई अपने अपने कार्य में व्यस्त था.

उसी दिन का दूसरा अनुभव. लोगों को उनके साथ बात करने के लिए धक्कामुक्की करनी पडी. बात न भी हो सके तो कम से कम एक निगाह देखना था, सेल्फी लेनी थी, यह भी संभव न हो तो दूर रहकर अपने फोन में उनकी तस्वीर खींचने का लाभ लेना था. अभिभूत करनेवाला नजारा था जो उनके लिए कॉमन बात होगी, जगह जगह पर उन्हें ऐसा ही आदर-सत्कार और ऐसा ही भाव व प्रेम मिलता होगा. लेकिन पहला अनुभव- यानी स्वागत नहीं, गर्मजोशी भरी विदाई नहीं वाला अनुभव- शॉकिंग था. उनके लिए नहीं, मेरे लिए. वे तो स्थितप्रज्ञ की तरह मंद मंद मुसकान के साथ नए माहौल का आनंद ले रहे थे.

जिस जगह हमें ऐसी आशा होती है कि लोग हमारा भव्य स्वागत करेंगे, वाह वाह कहकर सिर चढाएंगे, ऐसी अपेक्षा होती है और वहां हमारे आगमन पर फीकी प्रतिक्रिया मिलती है तो हमें लगता है कि हमारा सम्मान नहीं किया जा रहा, हमारा सरासर अपमान हो रहा है.

कई तथाकथित स्वाभिमानी लोग ऐसे समय पर चतुराइयॉं करके-गुस्सा होकर, रूठ कर, क्रोधित होकर अन्य जगह पर सम्मान जबरन पाने की स्थितियां उत्पन्न करते हैं. दीपिका-रणवीर की इटली में हुई शादी में सिर्फ ३० मित्र- परिवारजन ही मौजूद थे, यह खबर फैलने के बाद वॉट्सएप पर एक चुटकुला घूम रहा था: हमारे यहां तो शादी में इतने लोग रूठ कर कोने में जाकर बैठे रहते हैं.

किसी जगह हमें अपेक्षित मान-सम्मान नहीं मिलता है या हमारी समुचित आवभगत नहीं होती है तब तीन बातें ध्यान में रखनी चाहिए.

एक: सामनेवाले व्यक्ति को पता ही नहीं है कि आप कौन हैं. डोनाल्ड टंप यदि बिलकुल अकेले अफ्रीका के जंगल में जाते हैं तो कोई उनकी आवभगत नहीं करेगा. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री अपने लावलश्कर के बिना गुजरात के दौरे पर आएंगे तो लोग उनके साथ एक नार्मल साउथ इंडियन जैसा ही व्यवहार करेंगे. गुलजार साहब या ऐसे किसी भी बडे साहित्यकार-कवि को हम यहां पर पालखी में उठा लेने के लिए आतुर होते हैं लेकिन वेस्टइंडीज के किसी गांव में महान लेखक-शायर अकेले घूम रहे होंगे तो कोई भी उनकी सुविधाओं पर ध्यान देने के लिए सेवा में हाजिर नहीं रहेगा.

जहां मान-सम्मान न मिले या आवभगत न हो वहां पर ऐसी संभावना हो सकती है कि हमें कोई पहचानता हीं नहीं है, जिसमें न तो उनकी कोई गलती है, न ही हमारा कोई दोष होता है.

दो: कभी कभी ऐसा होता है कि यजमान की मजबूरी होती है. वे आपको उचित मान देना चाहते हैं, आपकी सुविधाओं का ख्याल रखना चाहते हैं लेकिन काम के बोझ के कारण, पर्याप्त व्यवस्था के अभाव के चलते, अपनी खुद की प्राथमिकताओं के कारण या वह बात उनके ध्यान में नहीं आने के कारण वे लाख चाहने के बाद भी आपको पर्याप्त मान-सम्मान देकर आपका स्वागत नहीं कर सकें, ऐसा हो सकता है. आपके यहां विवाह हो और आपके निवासस्थान के परिसर में मंडप बनाकर आप सभी का स्वागत कर रहे हों तब ऐसा संभव है कि सभी मेहमानों की सेवा सत्कार के लिए आप सुविधा खडी न कर सके हों. ऐसा भी हो सकता है कि अपने बॉस या अपने फैमिली गुरू की आवभगत करने में आप अपने पडोसी की उपेक्षा कर बैठें. ऐसा भी हो सकता है कि समधी का स्वागत सम्मान करते समय आपके शुभ प्रसंग में विदेश से आए अपने वर्षों पुराने लंगोटिया दोस्त की समुचित आवभगत न कर सकें. ऐसा होना नहीं चाहिए, लेकिन होता है. आदमी की मजबूरी होती है. अकेले ही कितनों का ध्यान रखा जा सकता है. मजबूरी के कारण कोई कोई हमारी इच्छा के अनुरूप मान-सम्मान न दे सके या हमारी सुविधाओं का ध्यान न रख सके तब यह बात क्षम्य होती है. कभी हम खुद भी ऐसी स्थिति में होते हैं कि जब चाहते हुए भी हम किसी पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे सकते, किसी का पर्याप्त आदरातिथ्य नहीं कर सकते. यहां हमारी नीयत खराब नहीं होती है लेकिन परिस्थिति ही ऐसी होती है, हमारी मजबूरी होती है. इसीलिए हमें समझना चाहिए कि दूसरों की भी ऐसी मजबूरी हो सकती है.

तीसरी बात: किसी जगह हमें अपनी अपेक्षानुरूप सम्मान नहीं मिलता है, हमारी धारणा के अनुसार स्वागत नहीं होता है तो इस एक विकल्प पर भी विचार करना चाहिए कि वह मान-सम्मान पाने की हमारी हैसियत ही नहीं है. हमारी औकात झोपडी में रहने की होती है और हम अपेक्षा रखते हैं कि हमें फाइव स्टार सुविधाएं मिलें और यदि तब हमारी अपेक्षाएं भंग होती हैं तो यह स्वाभाविक है. मनुष्य को दूसरों से अपेक्षा रखने से पहले अपनी हैसियत को माप लेना चाहिए. हमें अपने बारे में दृष्टिकोण बनाते समय खुद को उचित तराजू और बटखरे का उपयोग करके माप जोख लेना चाहिए.

कभी हमारी हैसियत होने के बावजूद सम्मान नहीं मिलता है तब मुद्दा नंबर एक और दो वाली बात की संभावनाओं पर विचार करके उस विश्व वंदनीय महानुभाव की तरह स्थितप्रज्ञ हो जाना चाहिए. किसी के मान-सम्मान देने से हमारा वास्तविक दर्जा बढ नहीं जानेवाला. हमारा स्तर वही होता है जितना वह है. कोई अपमान करे या सम्मान न दे तो हमारी वर्तमान कक्षा घटती नहीं है. उस समय भी हमारा दर्जा वही रहता है जो है.

सायलेंस प्लीज

प्रेम की जगह खाली होने पर उसे भरने के लिए आदर की खोज शुरू हुई (अर्थात प्रेम और आदर एक ही हैं, प्रेम प्रकट न होने पर वह भावना आदर के माध्यम से व्यक्त हो सकती है).

– लियो टॉलस्टॉय

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