स्वामी रामदेव के साथ अप्रत्याशित मुलाकात – योगग्राम में तीसरा दिन : सौरभ शाह

(गुड मॉर्निंग – चैत्र, शुक्ल द्वितीया, विक्रम संवत २०७८. रविवार, ३ अप्रैल २०२२)

हरिद्वार में परसों सुबह गंगा किनारे बैठे बैठे एक विचार आया था जिसका विस्तार आज सबेरे स्वामी रामदेव ने गार्डन में योग सिखाते समय जो बात की, उस बात के साथ जुड़ गया.

गंगाजी का अस्खलित प्रवाह निहारते हुए मैं याद कर रहा था कि हजारों वर्षों से भारत की संस्कृति नदी संस्कृति मानी गई है. नदी के आसपास गांव बसते थे. नदी के पानी से ग्रामवासियों का जीवन आगे बढ़ता था. कछार वाली भूमि पर उत्तम खेती होती है. देश की अनेक पवित्र नदियों में गंगा का नाम सबसे ऊपर है. गंगा के दोनों किनारों पर भारत के हजारों गांव-शहर बसे हैं. गंगा सभी का पोषण करती है, सभी का जीवन निर्वाह करती है.

किस तरह जीवन निर्वाह करती है? क्या गंगा में डुबकी लगाने पर सोना-चांदी के सिक्के मिलते हैं? क्या गंगा के प्रवाह में गांधीजी के चित्रवाली नोटें तैर रही होती हैं जिन्हें लेकर हम किरानावाले से अनाज खरीदते हैं या जीवन के लिए जरुरी कपडे-घर-वस्तुएं खरीदते हैं?

नहीं. गंगा तो केवल आपको जल देती है. यह जल भगवान की सबसे बड़ी कृपा है. आपको इस जल का उपयोग करके जीवन को आगे बढाना है. इस जल से खेती करनी है. इस जल के कारण बसे हुए गांवों में रहकर वहां के लोगों के लिए मिट्टी के घड़े बनाने हैं, गहने बनवाने हैं, थोक कपड़े मंगाकर उन्हें फुटकर बेचना है, उनके लिए घर बनाने हैं और इस तरह से अपना जीवन निर्वाह करना है. यह सारा प्रताप गंगाजी के (या किसी भी नदी के) जल का है. प्रकृति कभी हमारे हाथों में नकद रुपए नहीं रखती लेकिन कमाने लायक वातावरण सभी को उपलब्ध कराती है.

आज सबेरे पांच बजे स्वामी रामदेव ने योगासन सिखाने से पहले वॉर्मिंग अप कसरत के दौरान कहा:`हम पुरुषार्थ करने में कहीं न कहीं कसर बाकी रखते हैं. और बाद में कहते हैं कि `मेरी प्रार्थना भगवान ने सुनी ही नहीं.’ भगवान यदि ऐसे आलसी लोगों की प्रार्थना सुनते रहेंगे तो भगवान के कर्मफल की व्यवस्था और न्याय व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी. कोई खेत में बीज न डाले, खेती बारी न करे और प्रार्थना करता रहे कि `भगवान, मेरी खेती बढिया हो जाए. फसल बढिया दे दो… कोई एक दाना उठाकर यहां से वहां न रखे और भगवान से कहे कि मेरा बिजनेस-कारोबार अच्छा हो जाय, राजनीति में मुझे एमएलए, एमपी, सीएम, पीएम बना दो. कई लोग इसी चक्कर में रहते हैं. भगवान अत्यंत दयालु हैं, कृपालु हैं. लेकिन साथ ही न्यायकारी भी हैं. ये दोनों बातें ऊपरी तौर पर विरोधाभासी लगेंगी लेकिन ऐसा है नहीं. पुरुषार्थ यानी स्वयं पर विश्वास रखो. अपने कर्म पर विश्वास रखो और प्रार्थना यानी भगवान से याचना भी करो, भगवान की शरणागति स्वीकारो. ये दोनों बिलकुल विरोधाभास बातें लगती होंगी-भगवान यदि न्याय करते हैं तो फिर क्या मांगना और क्या प्राप्त करना, ऐसा किसी को लग सकता है. लेकिन भगवान भिखारियों को देते ही नहीं हैं, अधिकारियों को ही देते हैं. अधिकार प्राप्त होता है तप से, पुरुषार्थ से, कर्म से, मेहनत से. आपको लग रहा होगा कि जब न्याय करना ही है तो दया के लिए कोई जगह ही कहां बची? लेकिन दया की जगह है….आपको अपने पुरुषार्थ में कोई कसर बाकी नहीं रखनी है. पुरुषार्थ की अनेक दिशाएं हैं. वैयक्तिक पुरुषार्थ. अपने लिए जो करते हैं वह वैयक्तिक पुरुषार्थ है. फिर आता है पारिवारिक पुरुषार्थ. घर संसार में रहते हैं तो सारा परिवार उसी दिशा में काम करता है. उसे पारिवारिक पुरुषार्थ कहा जाता है. आपके आस-पास के लोगों को, सारे समाज को लेकर आगे बढते हैं तो सामाजिक पुरुषार्थ, उसमें धन की जरूरत होती है तो धन भी निवेश करते हैं-पैसे का काम तो पैसे से ही होगा. यह है आर्थिक पुरुषार्थ. उदाहरण के लिए आपको हवन करने के लिए घी और सामग्री की जरूरत पडेगी. उसे लाने के लिए आप किसी को लूट कर या चोरी करके पैसे लाने वाले हैं? उसके लिए आपको पुरुषार्थ से पैसे कमाने पडेंगे. अपना पुरुषार्थ पूर्णरूपेण करो. वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक…और राजनैतिक स्तर पर भी आपनी स्थिति इतनी मजबूत बनाइए कि राजनेता या तो आपका साथ दें और साथ न दें तो कोई बात नहीं, आपके सामने बाधा न बनें-इतनी शक्ति जुटानी चाहिए. और यह शक्ति खडी होती है आपके पुरुषार्थ से. धार्मिक पुरुषार्थ भी होता है. जप कीजिए, तप कीजिए, अपने शरीर, इंद्रिय, मन पर संयम रखिए…प्रार्थना के साथ पुरुषार्थ जरूरी है. इसका अर्थ ये हुआ कि आपको अपना काम तो करना ही पडेगा. काम करने के बाद भी बहुत बाकी रह जाता है जो आपके वश में नहीं होता. जिस पर हमारा वश नहीं होता उसे क्या कहते हैं?‍ उसे दैव कहते हैं, उसे प्रारब्ध कहा जाता है, डेस्टिनी कहा जाता है, उसी को भगवान कहते हैं. इसीलिए पुरुषार्थ करने के बाद भी भगवान की शरण में जाना पडता है. भक्ति भी बहुत बडी शक्ति है. लेकिन यह भक्ति उन्हीं लोगों में शक्ति के रूप में रूपांतरित होती है जो अपने कर्म से, अपनी मर्यादा से, अपने स्वधर्म से, अपनी जिम्मेदारी से नहीं भागते.’

सबेरे पांच बजे स्वामीजी से ढाई घंटे तक योग सीखने के लिए गार्डन में आने से पहले जलनेति और चक्षु प्रक्षालन कर लिया था. जलनेति यानी अब आप जानते हैं-केटली जैसी गरदन वाले प्लास्टिक के छोटे पात्र में सैंधव युक्त पानी भरकर दिया जाता है. आपको सिर एक विशिष्ट स्थिति में रखकर उस गरदन जैसी नलिका से धीरे धीरे पानी एक नासिका में डालना होता है और वह पानी अपने आप दूसरी नासिका से बाहर निकलता है. उसके बाद दूसरी नासिका से पानी डालकर पहली नासिका से बाहर निकाला जाता है. ऐसा तकरीबन पाचं बार करते हैं. बीच बीच में जरूरत पडती है तो नाक साफ करने के लिए टिशू पेपर लेकर सहायक तैयार ही खड़े रहते हैं. उससे पहले दो छोटे आई कप में त्रिफलावाला पानी छलाछल भरकी नीचे झुककर दोनों आंखें उसमें डुबा देनी होती हैं. फिर आंखें खोलकर पुतली को पानी में ऊपर-नीचे, दाएं-बाएं घुमानी होती हैं. आंखों को शीतलता मिलती है. उसके बाद एक क्वाथ पीकर स्वामीजी के योग वर्ग में.

साढ़े सात बजे योगाभ्यास से लौटकर डाइनिंग हॉल में सर्वकल्प क्वाथ पिया जाता है और ब्रेकफास्ट से पहले ट्रीटमेंट सेंटर में जाकर छाती पर और आंखों पर मिट्टी की पट्टी रखवानी होती है. आज सबेरे नाश्ते में ‘A5, WT2, BT4’ मिलनेवाला था. A5 यानी पांच बादाम (आमंड) का कोड है. WT2 दो अखरोट (वॉलनट) के लिए कोड है. बादम और अखरोट दोनों रात भर भिगोए होते हैं. मुंबई में कई वर्षों से हम रात भर भिगोए बादाम-पिस्ता-अखरोट-जरदालू-काली किशमिश सबेरे उठकर खाते ही थे, इसीलिए ये नाश्ता परिचित था. बस ये BT4 नया था यानी चार भाप में पके टमाटर. एक बाउल में दिए गए थे. उसमें और कुछ भी डाला नहीं गया था. चुपचाप चबाकर खाना था. पहला ही अनुभव था. लेकिन मजा आ गया. इसके बाद लहसुन की दो कलियां और दो बडे चम्मच अंकुरित मेथी तथर दो बड़े चम्मच मिक्स्ड स्प्राउट सलाद जिसमें अंकुरित मूंग, चना, मसूर और गाजर तथा ककडी के बिलकुल बारीक टुकड़े थे. तत्पश्चात KKTSG यानी ककडी, करेले, टमाटर, सदाबहार (बारहमासी फूल) और गिलोय का जूस जो वर्षों से मुंबई में पीते ही हैं-स्लो जूसर से निकालकर. शुरू के वर्षों में बारहमासी के फूल चुनकर ले आते. फिर एक फूलवाले से रोज उसकी पुडिया मंगाने लगे. लेकिन पता नहीं क्यों यह काम रुक गया. अब उस फूल के बिना ही चला लेते हैं.

आज मेरे लिए FBMB का दिन था. फुल बॉडी मड बाथ. गांव के घरों में जैसे छोटी खुली जगह होती है, वैसा ही लेकिन काफी बडी जगह. सारे कपड़े उतरकर डिस्पोजेबल लंगोट (कौपीन) पहना दी जाती है. उसके बाद पैर से सिर के बाल तक मिट्टी का लेपन किया जाता है. गीली चिकनी मिट्टी में नीम का रस, गौमूत्र इत्यादि होता है. सारे शरीर पर मिट्टी की मोटी परत लगाने के बाद सबेरे हल्की धूप में बैठकर या चलकर लेप सुखाया जाता है. घंटे भर उसे शरीर पर रहने दिया जाता है. फिर स्विमिंग पूल में जैसे होता है, वैसे ही खुले शॉवर के नीचे खडे होकर बिना साबुन या शैम्पू का उपयोग किए, घिस घिस कर मिट्टी को पानी से साफ कर दिया जाता है. फ्रेश तौलिए से शरीर का स्नेहन किया जाता है अर्थात नारियल का तेल लगाया जाता है. उसके बाद GHT-ग्रीन हाउस थर्मोलियम. धूप में सीमेंट की बेंच पर लिटाकर सारे शरीर को प्लास्टिक की बड़ी पारदर्शी शीट में लपेट दिया जाता है. केवल मुँह ही खुला रहता है. सिर-आंखों पर गीला तौलिया रख दिया जाता है. हाथ भी अंदर ही रहता है. आप हिलडुल नहीं सकते. थोडी ही देर में असह्य गर्मी होने लगती है. आपको इससे बाहर निकलने की इच्छा होती है लेकिन आपको विनम्रता से कहा जाता है, `सर, बस दो ही मिनट!’ पांच-सात मिनट बाद प्लास्टिक खोल दिया जाता है तब आप पसीने से लथपथ होते हैं. शरीर का कचरा पसीने के मार्ग से बाहर निकल जाता है. नए तौलिए से शरीर पोंछकर आप जब कमरे में लौटते हैं तब तक भोजन का समय हो चुका होता है.

पांच मिनट आराम करके, बिना नहाए (शरीर पर तेल जितनी देर तक रहे बेहतर है).डायनिंग हॉल में भोजन करने से पहले एपिटाइजर-करेले का रस! भोजन में सूप, भाप दी गई सब्जियॉं, सलाद होता है. आज रागी इत्यादि की रोटी नहीं थी. भोजन करने के कुछ समय बाद मुट्ठी भरकर सरसो-मेथी का चूर्ण लेना होताहै.

भोजन के बाद कमरे में स्टोरेज हीटर के गर्म पानी से नहा लेते हैं. पतंजलि का हल्दी-चंदन साबुन दिया ही गया है. हमने तो इसके अलावा कॉम्प्लेक्स के मेगा स्टोर में जाकर अन्य दो प्रकार के साबुन और अरीठा शैम्पू की बोतल खरीद लाए हैं. बाथरूम में एलोवेरा शैम्पू की पुडिया तो है ही.

दोपहर दो बजे डाइनिंग हॉल में जाकर क्वाथ पीकर पिछले दिन की तरह चारेक ट्रीटमेंट करवाकर शाम को कमरे पर लौटे और कपडे बदलने के बारे में सोच ही रहे थे कि रिसेप्शन से फोन,`आपने स्वामीजी से मुलाकात की?’

`नहीं’

`तो फिर पांचेक मिनट में यहां आ जाइए. स्वामीजी आ रहे हैं!’

यहां आकर स्वामीजी से मिलने का प्रयास ही अभी तक नहीं किया था. मन में था कि पांच सात दिन बाद सेटल होकर कोशिश करेंगे. लेकिन हमें तो अप्रत्याशित लाभ मिल गया.

रिसेप्शन के बाहर लॉबी में हम जैसे दो दर्जन `हेल्थ सीकर्स’ थे. हमें रिसेप्शन में ले जाकर एक सोफा-कुर्सी पर बिठाया गया और सूचना दी गई कि,`अपने पासवाली सोफा-कुर्सी खाली रखिएगा स्वामीजी वहां बैठते हैं.’

धन्य धन्य.

बाहर बैठे लोगों से व्यक्तिगत लिमकर, उनकी उपचार पद्धति क्या है, अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्या क्या है, इस बारे में जानकर, सभी से धैर्य से, भाव से बात करके उन्हे आश्वस्त करके स्वामीजी रिसेप्शनवाले कमरे में पधारे. दो बुजुर्ग गुजरात से आए थे. स्वामीजी के पुराने सहयोगी लग रहे थे. उनकी शिबिरों के आयोजक भी थे. स्नेह से मिलने के बाद. एक वयोवृद्ध कपल से तबीयत के बारे में जानकारी प्राप्त कर प्रिस्क्रिप्शन में छोटे मोटे बदलाव करवाए. अब रिसेप्शन में स्वामीजी, उनके अंगरक्षक तथा उनके सहायक डॉक्टर अनुराग और हम थे.

स्वामीजी ने हमारे सामने देखा. हम खड़े ही थे. दो कदम आगे बढकर भावविभोर होकर उनके चरणों में साष्टांग नमस्कार किया. स्वामीजी को अपना नाम बताया. नाम सुनते ही उनके चेहरे पर ऊष्मा, स्मित और आत्मीयता छलक आई. गुजराती में बोल पडे:`अरे, हूं तमनेज गोततो तो!’ (मैं आपको ही ढूंढ रहा था!) फिर मुझे बिठाकर खुद पास ही बैठे और कहा,`बापू ने विशेष रूप से मुझे आपके बारे में बताया था. उनका बडा प्रेम है आप पर. कल मैं उनसे मिला तब बापू ने आपकी बात निकाली और फिर पंद्रह-बीस मिनट तक आप ही के बारे में बोलते रहे…’

मेरी तो बोलती ही बंद हो गई. बडी कठिनाई से मेरे मुख से शब्द निकले:`बापू के आशीर्वाद हैं’

स्वामीजी मुझे ध्यान से देखकर दोनों हाथों को फैलाकर बोले,`आप यहां पचास दिन यहां रहनेवाले हैं! लेकिन आपका स्वास्थ्य तो बहुत अच्छा है!’

मैने कहा,`स्वामीजी, डायबिटीज़ और बीपी जैसी छोटी मोटी तकलीफें हैं लेकिन वह तो मुंबई में रहकर आपकी सूचनाओं के अनुसार आहार-विहार से कंट्रोल में आ जाती है. पांच वर्ष पहले मैने इसी तरह से अपनी शुगर पर टोटल कंट्रोल किया था लेकिन जैसे ही खाने पीने का पुराना रुटीन शुरू किया, सब अस्तव्यस्त हो गया.’

स्वामीजी ने प्रसन्नता व्यक्त की कि दूर रहकर भी उनकी सूचनाओं का पालन करके हम डायबिटीज़ को दूर रख पाए थे.

मैने उनसे कहा,`स्वामीजी मैं यहां पचास दिन की बुकिंग करवाकर इसीलिए आया हूं कि मुझे अपने क्षेत्र में ४० वर्ष तक काम करना है और अन्य ४० वर्ष तक इसी तरह से मुझे काम करना है….सॉर्ट ऑफ आपके सान्निध्य में कायाकल्प करवाने आया हूं.’

`कर देंगे आपका कायाकल्प!’ स्वामीजी ने खुश होकर मेरे सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया तो मैने दोनों हाथ जोडकर धीमे से कहा,`और स्वामीजी संभव हो तो कायाकल्प के साथ ही साथ मेरा मायाकल्प भी कर दीजिएगा.’

स्वामीजी ठहाका लगाकर हंस पडे. मेरे माथे पर अपनी हथेली रखी और बोले,`वह भी हो जाएगा! आप तो अभी और पचास दिन हैं ना, मैं आपको बुलाऊंगा.’

उसके बाद कुछ अन्य बातें की और मुझे अगले दिन दोपहर दो बजे अपने निवास स्थान पर आने का निमंत्रण देकर कहा,`बापू की कथा में जाकर लौटूंगा तो आधा घंटे के लिए मिलेंगे.’

उसके बाद फोटो खिंचवाते समय मैं उनसे थोड़ा अंतर रखकर खड़ा था जिससे कि उन्हें भूलचूक से भी स्पर्श न हो. लेकिन उन्होंने तो मेरा टीशर्ट खींचकर मुझे बिलकुल नजदीक लेकर आए और मेरी कमर पर हाथ रखकर कहा,`अब फोटो खिंचवाते हैं? मेरा मुंह ऑलमोस्ट लड्डू जैसा हो गया. अपने आराध्य देवों में स्थान रखनेवाले एक से मैं प्रत्यक्ष मिल रहा था. फोटो खिंचवाने के बाद स्वामीजी से विदा लेने से पहले मुझसे गले मिले-मानो एक पिता अपने पुत्र से वात्सल्य से मिल रहा हो. मेरे लिए यह बिलकुल अप्रत्याशित था. एक संन्यासी संसारी जीव से गले मिलकर इस तरह अपना प्रेम प्रकट करता है!

उसके बाद में हवा में उडते उडते अपने कमरे में लौटा. रात को क्या खाना है इसकी सुधबुध भी नहीं थी. पपीता का बाउल था और सोने से पहले त्रिफला का चूर्ण लेना था, बस इतना ही याद था-अगले दिन की कठोर ट्रीटमेंट के लिए यह जरूरी था.

सोते समय एक ही विचार मन में घूम रहा था. कैसा सौभाग्य मिला है. पू. बापू का आशीर्वाद है-पिछले चारेक दशकों से. फरवरी १९८३ में मुंबई की चौपाटी पर उनकी नौ दिन की कथा सुनी थी, इस बात को अडतीस साल बीत चुके हैं. पू. बापू के कारण ही स्वामीजी के स्नेह का पात्र बना, जीवन में इससे अधिक और क्या चाहिए.

3 COMMENTS

  1. मुझे ईस विस्तार की माहिती पढ़कर शिविर में जाने का मन करता है

  2. सौरभ जी,
    संतों का इसी प्रकार सान्निध्य मिलता रहे, उत्तम है।

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