स्वामी रामदेव के पहली बार प्रत्यक्ष दर्शन हुए – योगग्राम में दूसरा दिन : सौरभ शाह

(गुड मॉर्निंग, चैत्र, प्रतिपदा, गुढ़ी पाडवा, शनिवार, २ अप्रैल २०२२)

`परिवर्तन के लिए लंबे चौड़े समय की आवश्यकता नहीं है. एक क्षण पर्याप्त है. आज, अभी, इसी क्षण में आप अपने को रूपांतरित कर सकते हैं.’

स्वामी रामदेव के इन शब्दों को प्रत्यक्ष सुनने के लिए ही मानो मैं योगग्राम मे आया था, ऐसा लगा. कल रात पहले दिन का लेख पूरा करके सोते सोते साढ़े बारह बज गए. तय किया था कि यहां सबेरे चार बजे जागने का नियम है लेकिन मैं साढ़े तीन बजे ही उठ जाऊंगा. साढ़े तीन का अलार्म बजते ही बिस्तर से उठ गया. योगग्राम में इस महीने में दोपहर को भीषण गर्मी होती है लेकिन ब्रह्ममुहूर्त में बिलकुल शीतल वातावरण-मुंबई की ठंडी से भी अधिक शीतल. आधा टहलकर जब लौटा तभी रूम के इंटरकॉम पर योगग्राम के कार्यालय से फोन आया. जाग जाइए. चार बज गए.

सुबह का नित्यक्रम में सबसे पहले तो आंख प्रक्षालन करना था. चिकित्सा कक्ष में आई कप में त्रिफला के पानी में आंखें डुबोकर घुमाईं. उसके बाद जलनेति-सैंधव वाला पानी एक नासिका में डालकर दूसरी नासिका से बाहर निकाला जाता है. यह क्रिया करते समय सांस मुँह से लेना होता है. चूक हो गई तो तकलीफ होती है. नया नया है. सीख जाएंगे. नासिका में जुटा कचरा साफ हो जाता है.

उसके बाद कुंजल. झटपट पांच गिलास के आसपास पानी पीकर पेट दबाकर मुँह में दो उंगलियॉं डालकर उल्टी करना होता है. नही कर पाया. दो-तीन बार प्रयास किया लेकिन बिलकुल नाकाम. कल फिर ट्राय करेंगे. मुझे लगता है कि पहले सप्ताह में अभ्यास हो जाएगा, करना तो है ही.

उसके बाद बस्ती लेनी थी. वात-पित्त-कफ. इन तीनों में से अधिकतर रोग वातजन्य होते हैं और वात कला शमन करने के लिए बस्ती की जाती है, जिसे अंग्रेजी में एनीमा कहते हैं, ये एक अचूक इलाज है. लेकिन सवा पांच बजने जा रहे थे और गार्डन में स्वामी रामदेव का आगमन होने वाला था.

पैदल दूरी को इलेक्ट्रिक रिक्श में बैठकर तय किया और गार्डन में पहुंच गए. स्वामी जी आ गए थे और योगासन सिखाते सिखाते उनकी प्रज्ञामय वाणी का प्रवाह स्पीकर्स पर सुनाई दे रहा था. `आस्था’ चैनल की आउटडोर ब्रॉडकास्टिंग (ओ.बी.) वैन को पार कर गार्डन में प्रवेश किया और जो जगह खाली दिखी, वहीं बैठ गया. मैं तो स्वामीजी की सूचना के अनुसार योगासन करने का प्रयास किए बिना उन्हीं को देख रहा था. पिछले दो दशकों से क्रमश: मेरे जीवन का हिस्सा बन चुके उनके भगीरथ कार्यों से मैं प्रभावित हूँ. प्रत्यक्ष दर्शन करने का यह पहला प्रसंग था. मेरे लिए आज के गुढ़ी पाडवा के दिन की पवित्रता दुगुनी हो गई. मन ही मन वंदन करके उनकी अस्खलित वाणी को सुनता रहा. स्वामीजी बोलते बोलते तनिक भी रुके बिना एक के बाद एक आसन सिखाते जा रहे थे. हम उन्हें देखने और सुनने में ओतप्रोत हो गए थे.

कल हम यहां सुबह ग्यारह बजे आए थे. उससे पहले स्वामीजी प्रतिदिन की तरह पांच से साढ़े सात तक योगग्राम वासियों को संबोधित कर, आसन का अभ्यास करा कर, एक महत्वपूर्ण बैठक के लिए दिल्ली गए, दिल्ली से मुंबई और मुंबई से फिर दिल्ली. फ्लाइट में देर हुई इसीलिए रात बारह बजे दिल्ली उतरे. वहां से आज भोर में चार बजे योगग्राम स्थित अपने निवास पर पहुंचे. स्नान ध्यान करके पांच बजे हम सभी के सामने हाजिर. सभी महापुरुष इसी एनर्जी से काम करते हैं. न थकान, न उबन. कर्मयोगी हैं ये सभी.

भारत में गुढ़ी पाडवा के दिन से विक्रम संवत का आरंभ होता है. गुढ़ी पाडवा के निमित्त नए वर्ष का संकल्प लेने के लिए स्वामी रामदेव ने कहा: `चरैवेती, चरैवेती’.

ऐतरेय ब्राह्मण का ग्रंथ ऋग्वेद की ऋचाओं पर आधारित है. उसमें इक्ष्वाकुवंश के राजा हरिश्चंद्र पुत्र रोहित को पांच श्लोक कहते हैं जिनके अंतिम चरण में `चरैवेती’ आता है. तीसरे अध्याय का यह तीसरा श्लोक प्रसिद्ध है: जो मनुष्य बैठा रहता है, उसका भाग्य भी बैठा रहता है…जो चलता रहता है, उसका भाग्य चलता रहता है इसीलिए आप चलते रहिए…चरैवेति….`ग्रंथ’ में संपादक यशवंत दोशी हर महीने `चरैवेतति चरैवेति’ शीर्षक से कॉलम लिखते थे. स्वामी रामदेव ने व्याख्या करते हुए कहा कि जीवन में नए आरोहण करने तथा सोपानों को सर करने के लिए चरैवेति, चरैवेति…सम्यक मति से, सम्यक भक्ति से, सम्यक कृति से, सम्यक प्रकृति से आगे बढ़ना चाहिए, यही हमारी सनातन संस्कृति है और यही प्रगति है’.

सुबह के पौने छह बजने जा रहे हैं. यहां जब आए तब अंधकार था. अब पूर्वाकाश में प्रकाश फैल रहा है. मुंबई से आते समय वरिष्ठ पत्रकार मित्र ने जो बात कही थी, उसके अनुसार ही मानो स्वामीजी ने कहा:`९९.९९ प्रतिशत शक्ति, समय-सबकुछ अपने लिए उपयोग में लाइए, दूसरों की पंचायत करने के लिए नहीं. पॉइंट जीरो वन पर्सेंट जमाने के साथ अपडेट रहने के लिए पर्याप्त है, दुनियादारी की जानकारी रखनी चाहिए, अपडेट रहना चाहिए लेकिन इतनी ही उसके पीछे खर्च करनी चाहिए, बाकी सारी शक्ति का उपयोग अपने लिए.’

स्वामीजी ने वाणी के प्रभाव के बारे में बात की और वाणी के चार दोष भी गिनाए. कठोर भाषण, मिथ्य भाषण, निंदा और अनर्गल प्रलाप.

छह बजते ही चारों तरफ उजाला ही उजाला फैल गया. वात दोषों के कारण अल्जाइमर, डिमेंशिया, पार्किंसन जैसे रोग होने की संभावना है, इसका उल्लेख भी स्वामीजी ने किया. खुश रहने से, जल्दी उठने से बुद्धि खिलती है, यह भी कहा. नए वर्ष के स्वागत में कहा:`जमाना बदल रहा है. एक जमाने में जो लखनऊ के नवाब थे, उनके परिवारजन आज रिक्शा चला रहे हैं, उनकी बेटियां फटेहाल हैं. और एक फकीर देश का वजीर है. जमाना बदल रहा है!’

साढ़े सात बजे स्वामी रामदेव ने आज के सत्र को पूरा करते हुए कहा कि,`पिछले कुछ दिनों में खूब दौडभाग की है लेकिन इन नौ दिनों में मैं यहीं पर हूँ. रोज आपको मिलता रहूंगा.’

स्वामीजी ने चैती नवरात्रि के नौ दिनों के लिए सभी को उपवास करने की प्रेरणा दी. हमने तय किया कि कम से कम आज के दिन तो हम उपवास करेंगे ही. भोजनालय में सूचना देने गए तो पूछा गया कि रात्रि भोजन तो करेंगे कि नहीं? हमने विनम्रतापूर्वक मना किया. तो कुछ फल ले लीजिए. हमने उसके लिए भी विनम्रता से मना कर दिया.

स्वामी ने आज कहा था कि कोई भी व्यक्ति यदि तय कर ले तो ४० दिन तक केवल पानी पर जी सकता है. उसके शरीर की चर्बी गलकर उसे शक्ति देती रहती है…’ हमें तो एक ही दिन पानी पर जीना है. जोश में उपवास हुआ.

जीवन में केवल एक बार संपूर्ण नवरात्रि के दौरान उपवास किया था. २००७ की शारदीय नवरात्रि के उपवास शुरू करने से पहले आशिर्वाद के लिए एक बुजुर्ग को फोन किया था. उन्होंने सलाह दी थी कि `नौ दिन कडा उपवास करने के बजाय प्रति दिन एक गिलास लौकी का जूस पीना, शक्ति रहेगी और बाबा रामदेव कहते हैं कि ऐसे कोलेस्ट्रॉल की तकलीफ होगी तो दूर हो जाएगी.’

मैने उनका सम्मान करते हुए पहले दिन दोपहर को आधा छोटा कप लौकी का जूस पिया. बाकी के सारे दिन कुछ भी नहीं, सिवाय उबले पानी के.

आज सुबह आठ बजे मिट्टी की चिकित्सा लेनी थी. मिट्टी पट्टी. छाती पर और आंख पर गीली मिट्टी की ठंडी पतली पट्टी रखी जाती है. जमीन के चार-पांच फुट अंदर से खोदी गई मिट्टी को साफ करके उसमें एलोविरा, नीम का अर्क, गौमूत्र, कपूर इत्यादि मिलाकर तैयार किया जाता है. मिट्टी की चिकित्सा पद्धति के बारे में तनिक भी जानकारी नहीं फैली है लेकिन ये बहुत ही पुरानी नेचरोपथी है. मेरे पास १९६० में प्रकाशित भूपतराय मो. दवे नामक निसर्गोपचारशास्त्री (जिन्होंने माटुंगा में `आरोग्यधाम’ संस्था की स्थापना की थी) लिखित परिचय पुस्तिका (नं.४१) है, जिसका शीर्षक है `मिट्टी द्वारा तंदुरुस्ती’. इस ३२ पृष्ठों की पुस्तिका में लिखा है: `रोग का मुख्य स्थान पेट है. पाचन तंत्र बिगडने से गर्मी पैदा होती है जिसके कारण रोग होते हैं. इस गर्मी को दूर करने के कई इलाज हैं लेकिन मिट्टी के उपचार रोगों को जड से दूर करने में अद्भुत काम करते हैं.’

मिट्टी की चिकित्सा लेने के एक घंटे बाद फुल बॉडी मसाज हुआ. स्वामीजी के पतंजलि प्रोडक्ट्स में एक जाने-माने तेल का नाम शायद आपने सुना होगा-दिव्य महानारायण तेल. उस तेल से मसाज किया गया. शरीर का एक एक जोड फ्लैक्सिबल हो गया, ऐसा लगा. सिर पर वर्जिन कोकोनट ऑयल का मसाज हुआ. उसके बाद स्टीम बाथ. भाप के कारण खूब पसीना होता है. त्वचा के मार्ग से शरीर का कचरा बाहर निकलने लगता है. दोपहर का भोजन स्किप करना था. दोपहर के बाद कल की तरह ही प्याज-लहसुन के पेस्ट का लेप लगवाना था. उसके बाद कल की तरह ही हवन थेरेपी और योग वर्ग.

बीती रात की नींद अधूरी है और आज कुछ खाया पिया नहीं है (सादे पानी के अलावा). फिर भी थकना नहीं है, स्फूर्ति है.

कल रविवार है. आज से पुज्य मोरारीबापू की नौ दिवसीय रामकथा स्वामी रामदेव की योगपीठ के ऑडिटोरियम में शुरू हो गई है. मुंबई से निकलने से पहले बापू के साथ फोन पर बात हुई थी और उनसे मिलना तय किया. योगग्राम से योगपीठ का कॉम्प्लेक्स काफी दूर है और योगग्राम में प्रवेश करने के बाद आपकी निवास अवधि जब तक पूर्ण न हो, तब तक आप मुख्य द्वार से बाहर पैर नहीं रख सकते, इतना कडा अनुशासन रखा गया है. स्वामीजी मजाक में कहते हैं कि यदि आने जाने की छूट दें तो लोग पानी पूरी खाकर लौटते हैं!

स्वामीजी ने सुबह परिवर्तन के क्षण की जो बात कही उसी की प्रतीक्षा कर रहा हूं. जीवन में परिवर्तन लाने के लिए पूरी उम्र की आवश्यकता नहीं होती-उन्होंने कहा था. बिजली की चमक में मोती में धागा पिरो लें, बस इतना ही समय चाहिए जीवन में परिवर्तन लाने के लिए. लेट्स सी, हमारे जीवन में इन पचास दिनों में कोई एक ऐसा पल आता है या नहीं.

2 COMMENTS

  1. Aap ki Dincharya padhte huye hame Aisa laga ki hum bhi aap ki sath Haridwar me hey….bahut hi achha laga….
    Aap ka experience jarur share karna..
    Aap ko bahut saari subhechha…

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