स्वामी रामदेव के योगग्राम में पहले दिन का अनुभव कैसा रहा : सौरभ शाह

(गुड मॉर्निंग, फाल्गुन,अमावस्या, विक्रम संवत २०७८, शुक्रवार, १ अप्रैल २०२२)

अंतत: वह दिन आ गया. आज सुबह ग्यारह बजे हरिद्वार के निरामय-योगग्राम में पहुंच गया. मुख्य दरवाजे के बाहर सिक्योरिटी गेट पर डबल वैक्सिनेशन का सर्टिफिकेट दिखाया और आधा काम हो गया. मैने देखा कि अन्य किसी ग्रुप में एक के पास वैक्सिनेशन सर्टिफिकेट था लेकिन फोन में मिल नहीं रहा था इसीलिए उन्हें तीन किलोमीटर दूर हरिद्वार जाकर अस्पताल से RTPCT टेस्ट करवाने के लिए कहा गया. रैपिड एंटीजेन टेस्ट तभी किया जाता है जब वैक्सिनेशन सर्टिफिकेट हो. हमारा रैपिड एंटीजेन टेस्ट निगेटिव आने के बाद हमारे लिए दरवाजे खुल गए. टैक्सी में रखा सामान रूम तक पहुंचाने के लिए इलेक्ट्रिक रिक्शा आ गई. यह सेवा यहॉं आनेवालों के लिए नि:शुल्क है. सामान लेकर रिसेप्शन पर आने के बाद कुछ पंद्रह मिनट लंबी प्रवेश की औपचारिकता पूर्ण करके तुरंत हमें यहां के मुख्य डॉक्टर के पास भेजा गया. (अभी रात के साढ़े नौ बजे हैं. दस बजे सो जाना अनिवार्य है. लेकिन आज की दिनचर्या के बारे में उन्होंने बताया कि ग्यारह तो बज ही जाएंगे).

आज की बात करने से पहले कल और परसों हुई दो-एक बातें करना चाहता हूं. परसों ताला, जिपलॉक वगैरह की अंतिम दौर की खरीदारियां करके एक तरफ बैग्स पैक हो रही थीं तो दूसरी तरफ पचास दिन के लिए घर बंद करने की तैयारियां चल रही थीं. खासकर किचन-फ्रिज के सामानों की व्यवस्था की. कपडों के दो-तीन लॉट धोकर सुखा दिए ताकि लौटकर आने तक वह लॉन्ड्री बैग में न पडे रहें. सामान में सबसे आसान काम कपड़े पैक करने का था क्योंकि करीब एक महीना पहले ही कौन से और कितने कपडे लेने हैं, यह तय हो गया था. बाकी की छोटी मोटी वस्तुएं पैक करने के बाद मेरा लिखने का सामान बांधना था जिसकी चिंता सबसे बडी थी. क्या ले जाऊं, कितना ले जाऊं, इसी की दुविधा थी. सब सजाते रखते रात का एक बज गया. सुबह तो निकल जाना था. सामान का वजन किया. चेक इन और हैंड बैगेज में ले जाने हेतु अपेक्षित वजन से कहीं अधिक सामान था. सामान रखने के घंटो पहले तक एक बार, दो बार, तीन बार सामान कम करते करते सिर्फ जरूरत का सामान ही रखा था फिर भी ये हाल हो गया. एक घंटे तक नर्वस था. परेशान हो जाने की नौबत थी लेकिन तभी एक आयडिया आया कि एक्स्ट्रा लगेज के पैसे देने से बेहतर है कि टिकट अपग्रेड करा ली जाती तो काफी किफायत हो जाती. दो बार गिनती करके देख लिया. दो बजे ऑनलाइन अपग्रेडेशन कराया. उसमें काफी ज्यादा सामान की अनुमति थी. छंटनी करते समय निकाल दी गई पुस्तकें इत्यादि भी रख पाया. सुकून मिला. एक घूमता फिरता मिनी स्टडी रूम अभी हरिद्वार में मेरे साथ है.

पिछले कुछ दिनों से अपनी एक नई प्रकाशित होने जा रही पुस्तक की फाइनल एडिटिंग कर रहा था जिसका थोडा सा ही काम बाकी था. अगर पूरा न करता तो और पचास दिन का विलंब हो जाता और प्रिंटिंग का शेड्यूल बिगड जाता. ब्रह्ममुहूर्त में वह काम हाथ मे लिया. पूरा करके कुरियर का पैकेट तैयार किया. सुबह हो गई. अब सोने का तो कोई सवाल ही नहीं था. सारी रात जागरण करके काम करने की आदत छूट गई है. वर्षों बाद रात को जागने के बावजूद बिलकुल ताज़गी महसूस हो रही थी.

भगवान का नाम लेकर घर से निकले और निर्विघ्न रुप से देहरादून होकर शाम से पहले हरिद्वार पहुंच गए. निरामय-योगग्राम हरिद्वार शहर से एक घंटे की दूरी पर है. पूर्व जानकारी के अनुसार दस-बारह किलोमीटर का अंतर है, ऐसा अंदाज था. लेकिन दूरी अधिक है. शाम को हरिद्वार में हर की पौडी पर जाकर गंगाजी का दर्शन करके मोहनजी की वर्ल्ड फेमस दुकान पर जाकर पूरी भाजी का नाश्ता किया. वेरी वेरी टेस्टी. अच्छा तकिया और ओढने-बिछाने के लिए तथा योगासन करते समय गद्दे पर बिछाने के लिए घर की चादर होनी चाहिए ऐसा मुझे काफी समय से लग रहा था. उसी समय तय कर लिया था कि ये सब मुंबई से ढोकर नहीं ले जाना है. हरिद्वार से खरीद लिया जाएगा. हरिद्वार में पूछते पूछते एक अच्छी दुकान मिल गई. वाजिब दाम पर बेहतरीन क्वालिटी का सारा कुछ मिल गया. रात को होटल के रूम में लौटकर ऐसी धुंआधार नींद आ गई कि सुबह चार बजे आंख खुली. रूम से ही गंगाजी के दर्शन हो रहे थे. मुंबई में देर रात तक ट्रैफिक इत्यादि की आवाज सुषुप्त रूप से भी आपको परेशान करती है. वर्षों बाद बिना किसी खलल के नींद मिली.सुबह साढ़े छह बजे गंगा किनारे टहलने निकले. चलते चलते इतना आनंद आया कि आठ बजे निकलकर नौ बजे योग्राम पहुंचने के कार्यक्रम में दो घंटे का विलंब होगा तो भी कोई बात नहीं लेकिन यह जो लाभ मिल रहा है उसे छोडना नहीं है, ऐसा तय कर लिया.

होटल से हर की पौडी तक चलकर जा रहे थे-बाईं तरफ गंगाजी और दाईं तरफ रिवरफ्रंट की सुविधाजनक सडक. अचानक एक जगह खुले में कुर्सी और आईना लगी `मोबाइल हेयरकटिंग सलून’ दिखाई दिया. पहले कभी भी इस तरह से न तो बाल कटवाए हैं, न ही दाढी बनवाई है. बिना ज्यादा सोचे बैठ गया. बाल कटाने की तो जरूरत नहीं थी. उन्हें कटवाकर पहले जैसा कर दिया था. फिर हरिद्वार जाना तय हुआ तो हेयर ड्रेसर के पास जाकर कहा कि लंबे समय के लिए मुंबई से बाहर जाना है तो बाल इस तरह से काटना कि तीनेक महीने तक बढ़े तो भी परेशानी प हो. दाढ़ी ट्रिम करना छूट जाया करता था. गंगा किनारे गंगाजल मुंह पर लगाकर दाढ़ी ट्रिम करवाने के बाद हर की पौडी जाकर फिर से मोहनजी की दुकान पर सुबह के नाश्ते में खस्ता कचौरी का स्वाद लिया. सुपर्ब.

हर की पौडी पर इतनी सुबह पर्यटकों की भीड़ देखकर मजा आ जाता है. लोग श्रद्धापूर्वक, शांति से, बिना किसी धमाचौकडी के गंगा स्नान करते दिखाई देते हैं. कुछ लोग अस्थि विसर्जन के लिए आए हैं. कुछ पिंडदान के लिए तो कुछ मुंडन करवाने के लिए छोटे बच्चों को साथ लाए हैं. हरि का द्वार है यह. यहां से आगे जाने पर यानी उत्तर भारत के चारधाम सहित कई तीर्थ स्थल आते हैं. भविष्य में हरिद्वार के निकट स्थित ऋषिकेश जाकर गंगा किनारे बैठक काफी समय से प्लान किया गया एक थ्रिलर उपन्यास लिखने की इच्छा है. देखते हैं कब पूरी होती है.

योग ग्राम के कार्यालय से फोन आया कि `आज से आपके नाम की बुकिंग है, कब तक आ रहे हैं?’ मैने कहा, `नौ के बदले ग्यारह बजे पहुंच रहा हूं’. `जल्दी आइएगा, डॉक्टर साढ़े बारह तक ही मिलेंगे, देर से आएंगे तो कल ही मिल पाएंगे.’

डॉ. आकाश यहां के मुख्य डॉक्टर हैं. युवा हैं. खूब पढ़े और अनुभवी हैं. मैं यहां पूरे पचास दिन रहने के लिए आया हूं, यह जानकर उनके मन में मेरे प्रति रुचि जागृत हुई. नॉर्मली लोग सप्ताह दस दिन का प्रोग्राम करके आते हैं. अधिक से अधिक तीन सप्ताह. किसी को बहुत पुरानी बीमारी हो तो डेढ़ महीने के लिए आते हैं. मुझे तो ऐसी कोई गंभीर या क्रॉनिक बीमारी नहीं थी फिर भी यहां पचास दिन ठहरने का निर्णय क्यों किया? डॉक्टर ने पूछा. मैने अगले चालीस वर्ष तक काम करते रहने के अपने कार्यक्रम के बारे में समझाया. उन्होंने मेरा व्यवसाय पूछा. वे खुश हुए. मेरी यह लेखमाल हिंदी में भी आएगी यह जानकर वे अधिक प्रसन्न हुए. मेरे हिंदी व्हॉट्सऐप ग्रुप पर उन्हें मुझे जोडना है और रिसेप्शन में जो संजय भाई मिले, वे तो बारह वर्ष गुजरात में रह चुके हैं. गुजराती सीखने के लिए `संदेश’ भी पढ़ते थे. उन्हें तो गुजराती और हिंदी दोनो व्हॉट्सऐप ग्रुप में जुड़ना है.

डॉक्टर साहब ने धैर्य से मेरी सारी बात सुनी. सात वर्ष पहले स्मोकिंग और तीन-चार वर्ष पहले पीना छोड़ दिया है, यह जानकर उन्हें विश्वास हुआ कि यहां के आहार-योग इत्यादि के तमान नियमों का मैं कड़ाई से पालन कर सकूंगा. मैने उनसे कहा था कि आप मुझसे जितनी भी सख्त परहेजी करवाना चाहते हैं उतनी करवाइए, जो भी कठोर योगासन-व्यायाम करवाने हों वे करवाइए, मुझे यहां कायाकल्प (और साथ ही मायाकल्प) करके ही लौटना है. डॉक्टर ने हंसकर कहा,`आप बिलकुल स्ट्रेसफ्री हो जाइए. यहां आपको कोई तकलीफ नहीं सहनी है. आप रिलैक्स्ड मूड में रहिएगा, बस. बाकी सारी जिम्मेदारी हमारे लोगों पर छोड़ दीजिए.’

डॉक्टर से मिलने के बाद उनके दिए चार्ट के अनुसार रोज क्या खाना है, कब खाना है, कितना खाना है इसका प्लान अगले चार दिन के लिए तय हो गया. बाद में प्रोग्रेस देखकर उसमें जरूरी बदलाव होंगे. ट्रीटमेंट इत्यादि की सूची में मेरे लिए कौन कौन सी जरूरी है, उसे भी कंप्यूटराइज्ड चार्ट में शामिल किया गया. यह चार्ट हमेशा जहां भी जाएं, साथ रखना होगा ताकि आपको क्या खिलाना है और कब कौन सा उपचार देना है, इसकी जानकारी सामनेवाले को हो.

दोपहर के भोजन का समय यहां पर साढ़े ग्यारह से साढ़े बारह के बीच है. भोजनालय में जब पहुंचे तब एक बज चुका था. वहां पहुंचने पर हमारा चार्ट देखकर हमें उसके अनुसार वेलकम ड्रिंक दिया गया-करेले का जूस! स्ट्रॉबेरी मिल्कशेक विथ आइसक्रीम और पूरा फालूदा (आधा नहीं) के शौकीन जीव के लिए इससे सुखद वेलकम ड्रिंक और कुछ नहीं हो सकता.

खाने में टमाटर का सूप.अति सात्त्विक तरीके से बनाया गया, उसमें जीरा डाला गया था. अत्यंत स्वादिष्ट था. फिर दो छोटी छोटी पतली रोटियां (रागी, जौ और विभिन्न आटों से बनी) के साथ कोफ्ता करी और मिक्स वेज (पनीर, गाजर, कद्दू, मशरूम) के साथ टमाटर की चटनी और स्वामी रामदेव द्वारा खोजी गई एलोविरा, मेथी और कच्ची हल्दी से बनी अन्य चटनी. नो राइस, नो अचार, नो पापडवापड. लेकिन सारा खाना अति स्वादिष्ट. कम नमक और नाम का मसाला, तेल तो बिलकुल ही नहीं. फिर भी सुबह और अगली शाम को हर की पौडी पर मोहनजी की दुकान पर जाकर जैसा चटपटा नाश्ता किया था, वैसा ही टेस्टी यह भी था. लोग सात्विक भोजन को बेकार में कोसते हैं.

भोजन करने के पंद्रह मिनट बाद गर्म पानी के साथ लेने के लिए एक पुडिया बांध कर दी गई और भोजन के घंटे भर बाद पीने के लिए एक गिलास क्वाथ भी दिया गया. थर्मस में विजयसार का पानी भर कर दिया गया-दिन में प्यास लगने पर यही पानी पीना है.

भोजन के दो घंटे बाद शुगर चेक करना था और उससे पहले रूम पर आकर एयरटेल का राउटर सभी फोन के साथ जोडकर पक्का कर लेना था. परफेक्ट. इमरजेंसी के अलावा फोन देखना ही नहीं है, ऐसा तय किया था. मुंबई से निकलने से पूर्व की शाम को एक बहुत ही निजी आदरणीय पत्रकार मित्र ने सूचना दी थी कि,“सौरभ, तुम वहां जाकर छोटे छोटे समाचारों को फॉलो करना छोडकर विशाल दृष्टि से देश-दुनिया की स्थिति को देखने की आदत लगाना. भूल जाना कि केजरीवाल क्या कर रहा है, ममताबानो क्या कर रही है!’

मेरे लिए यह स्वर्णिम सलाह थी और मैं इस बहुमूल्य सलाह को अमल में लाने का प्रयास करूंगा.

दोपहर साढे तीन बजे ट्रीटमेंट के लिए जहां सुविधाएं थीं उस मकान में पहुंचना था. सबसे पहले तो उल्टे लिटाकर पीठ पर लेप किया गया. किसका? प्याज-लहसुन-अदरक की पेस्ट का. कफ-सर्दी का यही इलाज है. ऊपर गर्मागर्म पानी से भीगा हुआ नैपकिन ढंक दिया गया और उस नैपकिन पर गर्म पानी से भरी रबर की थैली रखकर उसे ढंक दिया गया. दो मिनट बाद उसे हटाकर बर्फ के टुकडों से भरे पानी में डुबोया गया तौलिया पीठ पर रखा गया. फिर गर्म. फिर ठंडा. ऐसा पांच बार किया गया. उसके बाद पैर की पिंडली (काफ) पर तेल से मालिश की गर्स. पता चला कि ऐसा करने से पाचन क्रिया में सुधार होता है. पेट की नसें पिंडली के साथ जुडी होती हैं. फिर तेलवाले पैर पर सफेद पट्टी लपेट दी गई और उस पर गहरे गेरुए रंग की पट्टी लपेटी गई. उसी तरह से पीठ पर लेप था, वैसा ही लेप छाती पर लगाकर उस पर भी सफेद रंगीन पट्टी बांधी गई. घंटे दो घंटे बाद उन्हें खोल देने की सूचना मिली. डॉक्टर ने मुझे दांत के लिए रोज ऑयल पुलिंग करने की सूचना लिख कर दी. आधा गिलास भर सरसों का तेल दिया गया. बेसिन के पास जाकर ऑयल पुलिंग करना था. पहले सरसों के तेल का एक घूंट मुंह में भरना और फिर उंगली से दांत, दाढ़, मसूडे पर आगे पीछे घिसकर तेल मुंह में रखकर, गले में न उतरे इसका ध्यान रखते हुए. अंदर एक गाल से दूसरे गाल तक ले जाकर फिर लाना. इस तरह से बारी बारी से कुल्ला कर देना था. नया तेल लेकर पांचेक बार करने पर आधा गिलास तेल खत्म हो जाता है. सरसों का तेल मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता. बिलकुल भी नहीं. अचार में डाला हो तो अचार अच्छा लगने के बावजूद मैं नहीं लेता, इतनी एलर्जी है मुझे उसकी गंध से. घर में सभी को पसंद है. कइयों को सरसों के तेल में तले व्यंजन बडे अच्छे लगते हैं. सींग तेल इत्यादि की तुलना में यह स्वास्थ्य के मामले में काफी अच्छा है. ये सारी जानकारी होने के बावजूद इस बारे में मेरा नजरिया दुर्योधन जैसा है- जानामि धर्मम्‌ न च मे प्रवृत्ति..धर्म क्या है यह जानता हूं फिर भी मैं उसका आचरण नहीं कर सकता.

तभी एक गिलास भर अमरूद के पत्तों और हरी हल्दी को उबालकर बनाए गए पानी का गिलास हाजिर हो गया. पीने के लिए नहीं, गरारा करने केलिए-मुख में रखकर सिर ऊंचा करके गर्‍र् आवाज के साथ गरारे पूर्ण करने के बाद अन्य एक डॉक्टर अनुराग से मिलने जाना था. लेकिन उससे पहले एक्युप्रेशर की सीटिंग थी. दोनों हथेलियों पर विभिन्न पॉइंट्स को दबाकर समझाया गया कि किस जगह पर दाब देने से शरीर के किस अंग के साथ जुडी नसें अधिक ऐक्टिव हो जाती हैं.

डॉ. अनुराग का नाम स्वामी रामदेव के प्रवचनों में काफी सुना था. उनसे प्रत्यक्ष मिलकर खुशी हुई. सुबह डॉ. आकाश ने जो चार्ट दिया था उसे देखकर डॉ. अनुराग ने आयुर्वेद की कई दवाओं की खुराकें लिख कर दीं. आराम से बात की.

अब यज्ञशाला में जाना था. धूम्र चिकित्सा. होम, हवन, यज्ञ ये सब सनातन परंपरा का एक भव्य और अभिन्न हिस्सा है. कुछ कारणों से कई लोग उसे कर्मकांड मानकर निरर्थक प्रवृत्ति में खपा दिया करते हैं. यहां आने से दो एक महीना पहले तांबे का हवनकुंड लेकर मैं मुंबई के अपने घर में अधिकतर स्टडी रूम में, तकरीबन प्रतिदिन हवन करता था- स्वामी रामदेव की ही प्रेरणा से.

हवन चिकित्सा के बाद योग क्लास के लिए जाना था. देर हो गई. सूर्यनमस्कार और मंडुकासन सहित कई योगासन सीखने के बाद नियमित प्रक्टिस के अभाव में भूल गया था. रोज शाम को यहां के योग वर्ग में पचास दिनों तक गहन प्रशिक्षण मिलने वाला है.

रात में पतंजलि का मेगास्टोर बंद होने से पहले वहां पहुंचकर डॉ. अनुराग की लिखी दवाएं तथा रूम में उपयोग में लाई जानेवाली कुछ वस्तुएं खरीदी. इसी बहाने योगग्राम में घूम आया. अत्यंत रमणीय स्थल है. वैसे तो सारा कॉम्प्लेक्स साढ़े छह सौ एकड़ में है, जिसमें विशाल खेत, बगीचे भी हैं. इसी बहाने थोडा चलना भी हो गया. सुबह तो गंगाजी के किनारे चले ही थे. शाम को थोडा और चल लिया. मुंबई लौटकर गंगाजी या योगग्राम का वातावरण तो मिलने वाला नहीं है लेकिन सुबह शाम चलने की आदत इन पचास दिनों में पड जाएगी तो वॉक के साथ साथ ये सारी स्मृतियां भी ताजा होंगी.

रात के भोजन में सबसे पहले फिर से मेरा प्यारा करेले का जूस! फिर भोपले-पाइनएप्पल का जूस, एक छोटी रोटी (सुबह जैसी ही). साथ ही झुकिनी (विदेशी ककडी) की रसदार सब्जी और गोभी-गाजर का भाप से बना सलाद. सुबह की तरह ही स्वादिष्ट तो नहीं था लेकिन खा लिया. भूख लगी होती तो खाने में मजा आता.

और हां, एक बात तो रह गई. शाम पांच बजे मेरे चार्ट में लिखा के.के.टी.एस.जी जूस पीने भोजनालय में गया था. मैने पूछा कि ये किसका शॉर्ट फॉम है? तो बताया गया `करेला, ककडी, टमाटर, एस पर से समथिंग था-याद नहीं है और गिलोय का जूस!’

अरे, यह तो मैं वर्षों से मुंबई में रोज सुबह अपने डिटॉक्स के हिस्से के रूप में पीता ही हूँ. रामदेवजी से ही सीखा है. एक करेला, एक टमाटर और एक ककडी स्लो जूसर में डालकर एक गलास जूस बनाकर उसमें एक चम्मच गिलोय मिलाकर पी जाओ. पहले दिन से ही घर जैसा ही लगने लगा है अब तो.

अभी बैग्स व्यवस्थित नहीं रखी है. किताबें इत्यादि भी नहीं सजाई हैं. सामान कल अनपैक करेंगे. अभी तो रात के साढ़े ग्यारह बजने जा रहे हैं. मेरा टाइपसेटिंग का काम करनेवाले भाई साहब भी अहमदाबाद में जाग रहे हैं. हाथ से लिखा यह मैटर उन्हें भेजूंगा फिर टाइपसेटिंग होगा, आवश्यक सुधार होगा, और फिर सुसंस्कारित होकर कल आप तक पहुंचेगा.

कल सुबह सवा पांच बजे स्वामी रामदेव योगासन-प्राणायाम का दो-ढाई घंटे का सत्र लेंगे. `आस्था’ टीवी पर प्रतिदिन लाइव आता है. रिपीट टेलीकास्ट भी होता है. यूट्यूब पर तो डाला ही जाता है. बीते वर्षों में बारंबार स्वामीजी को इस तरह से टीवी पर देखा है. प्रत्यक्ष दर्शन का लाभ कल पहली बार मिलनेवाला है.

हमें दिए गए `चिकित्सा कार्यक्रम’ की समयसारणी के अनुसार सुबह ४ बजे जागना है और सवा चार बजे से षट्कर्म इत्यादि शुरू हो जाएगा, ऐसा लिखा है. मैने तय किया है कि वे भले लिखें पर हम तो अपने हिसाब से साढ़े तीन बजे ही उठकर नीरव शांति में टहलने निकल जाएंगे.

2 COMMENTS

  1. હું પણ હરદ્વાર જવાનો છું તો તમારો અનુભવ મને ઘણો કામ લાગશે…
    આભાર…
    કિરીટ પટેલ.

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