गुड मॉर्निंग एक्सक्लुसिव – सौरभ शाह
(बुधवार – १० अक्टूबर २०१८)
हम हमेशा शिकायत करते हैं कि जिंदगी में बहुत कष्ट है. हर कदम पर रुकावटें हैं, मुसीबतें हैं, कोई काम हाथ में लेते हैं तो उसे पूरा करने में कई बाधाएं, खूब सारे विघ्न आडे आते हैं.
क्या बिना समस्याओं के जीवन हो सकता है? जिस तरह मां की प्रसव पीडा के बिना किसी जीव का जन्म नहीं होता उसी प्रकार जिंदगी में कोई भी काम पीडा सहन किए बिना पूरा नहीं होगा. `कष्ट से बचकर मूल्यवान चीज कैसे पाई जा सकती है?’ ऐसे प्रश्न के उत्तर में आचार्य विजय रत्नसुंदरसूरि महाराज साहेब `वन मिनट, प्लीज’ पुस्तक में कहते हैं:`किसी भी गोताखोर ने मोती पाने के लिए कुएं में डुबकी नहीं लगाई.’
आसानी से कुछ नहीं मिलनेवाला. साहस के बिना कुछ प्राप्त नहीं होनेवाला. कष्ट सहे बिना कोई सिद्धि नहीं मिलती. जो लोग आपको सफल दिख रहे हैं उनकी सफलता की चमक दमक से मोहित हुए बिना खुली आंखों से देखेंगे तो पता चलेगा कि यह सफलता पाने के लिए उन्होंने कितनी तपस्या की है. क्षेत्र चाहे जो भी हो. कडी मेहनत करनी ही पडती है. गुरुदेव एक प्रश्न लिखते हैं:`जीवन में पग पग पर समस्याओं का सामना होता है, क्या करें?’ वे जवाब में कहते हैं:`कोल्हू के बैल को कभी ट्रैफिक की समस्या परेशान नहीं करती.’
रेस का घोडा बननेवाले को तालीम के दौरान कष्ट सहना पडता है. कंपाउंड या मैदान में गाडी चलानेवाले को ट्रैफिक की समस्या आडे नहीं आती लेकिन वह कहीं पहुंचता भी नहीं है. जिसे कहीं पहुंचना है उसे सफर में शामिल होकर मार्ग में आनेवाले कंकड-पत्थर सहने होंगे. रास्ते में रुकावटें आएंगी, ठहरना पडेगा, धैर्य की कसौटी लेने वाले विलंब को भी सहना होगा.
आपके पास खूब धन हो, जीवन के किसी भी आनंद को भोगने की भरपूर संभावनाएं और सुविधाएं हों, पसंदीदा भोजन की कमी न हो- ऐसे समय में क्या ध्यान में रखना चाहिए? गुरुदेव का यह मार्गदर्शन याद रखना चाहिए. प्र: `स्वच्छंदतता यानी क्या?’ उ.:`बिना बाड के फसल वाले खेत का नाम ही स्वच्छंदता है.’
स्वच्छंद नहीं बनना है तो खुद पर काबू रखना सीखना होगा. स्वच्छंदता के परिणाम के बारे में चिंतन करना सीखना पडेगा. बाड रहित खेत की फसल को नुकसान होगा तो नहीं चलनेवाला. किसी भी खेत में बाड होना जरूरी है, खासकर के जब उसमें फसल लहरा रही हो. जिनके पास धन नहीं है उन्हें तिजोरी रखने की झंझट में पडने की जरूरत नहीं है. जिनके पास सुरक्षित करने के लिए कुछ भी नहीं है वे स्वच्छंद कैसे बन सकते हैं? पर जिनके पास इतना सारा है कि दुनिया को ईर्ष्या हो, उसे अपनी फसल को सुरक्षित रखने के लिए बाड लगानी ही होगी.
हम जो कुछ भी मांग रहे हैं वह मिले या शायद न भी मिले लेकिन हम जो देते हैं वह जरूरत हमें वापस मिलता है. महाराज साहब इन दो प्रश्नों के उत्तर में यह बात सरलता से समझाते हैं.
प्र: `दुख नहीं चाहिए तो क्या करना चाहिए?’
उ.: `दूसरे को दुख देना बंद कर देना चाहिए.’
प्र.: `सुख चाहिए तो क्या करना चाहिए?’
उ.: `दूसरे को सुख देना शुरू कर देना चाहिए.’
हम समाज में रहते हैं इसीलिए निरंतर अन्य लोगों के संपर्क में आते रहते हैं. कई बार भ्रमित हो जाते हैं कि इनमें से कइयों या काफी लोगों के साथ हमारा मेल क्यों नहीं होता. अकेले रहने की सोचते हैं तो भी कांप जाते हैं. यह भावना, ये विचार बिलकुल नॉर्मल हैं ऐसी सांत्वना साहेबजी देते हैं. अनुराग होना स्वाभाविक है, उसे स्वीकार करके चलना चाहिए, उसमें से मुक्त होने के लिए छटपटाना नहीं चाहिए. क्योंकि यह तडप कुदरती नहीं है, सहज नहीं है. ऐसी परिस्थिति को स्वीकार करके, ऐसी दुविधा को नजरअंदाज करके हमें अपना काम करते रहना चाहिए, रुकना नहीं चाहिए. प्रश्न है:`आदमी की सबसे बडी तकलीफ?’ उत्तर है:`अकेले रहा नहीं जाता और सबके साथ जमती नहीं.’
यदि ऐसी परिस्थिति हो तो उसे स्वीकार लेना चाहिए ऐसा इशारा इस जवाब में है.
हमें दिखावा करने की आदत पड गई है. दूसरों के सामने अच्छा दिखने के लिए हम कितनी जद्दोजहद करते हैं. ऐसा कहा जाता है कि हम जैसे हैं वैसे ही दिखना चाहिए. लेकिन हम खराब हैं तो क्या हमें खराब दिखना चाहिए? नहीं. महाराज साहेब सारी बात को मौलिक ट्विस्ट देकर कहते हैं कि दूसरों के सामने हम जैसे दिखते हैं वैसा बनने की कोशिश करनी चाहिए. हम अंदर से भले स्वार्थी, कपटी या अन्य दुर्गुणों से भरे हों लेकिन दूसरों के सामने कैसे उदार, शांत, भले और सद्गुणी दिखने की कोशिश करते हैं? तो फिर जैसे हैं वैसा दिखने का प्रयास करने के बजाय जैसा दिख रहे हैं वैसा ही बनने का प्रयास क्यों न करें? अपने आप वह क्रोध, स्वार्थ, कपट इत्यादि दुर्गुण दूर हो जाएंगे और ऐसा होने पर हम जैसे हैं वैसा दिखने में कोई परेशानी नहीं होगी. प्रश्न था:`जीवन की बहुत बडी चुनौती कौन सी है?’ और उत्तर है:`दूसरों के सामने हम जैसे दिखते हैं, वैसा बन जाना.’
मित्र बिना, संबंधों बिना का जीवन संभव नहीं है. मित्र जुडते रहते हैं, घटते रहते हैं. संबंध भी नए नए निर्मित होते रहते हैं, कई खत्म हो जाते हैं. `किसके साथ दोस्ती करने से पहले सोचना चाहिए?’ महाराज साहेब कहते हैं कि:`बात बात में जिसे बुरा लग जाता हो उसके साथ.’
लोग कई बार आपसे हां बुलवा कर जाते हैं. `दुर्जन के सामने श्रेष्ठ हिंमत क्या है?’ साहबजी कहते हैं:`उसे `ना’ सुनानेवाली छप्पन की छाती.’
गुरुदेव के पास दुख की तीव्रता को कम करने का इलाज है. `आज का दुख अधिक भयंकर कब बन जाता है?’ जवाब है:`जब उसमें भविष्य की कल्पना जुड जाती है तब.’
आज की बात को आज तक ही सीमित रखें तो खूब सारे दुख – दर्द कम हो जाते हैं. भविष्य की कल्पना कभी कभी आज की तकलीफों को मैग्नीफाई करके (बडा करके) दिखाती है या कभी हमारी पलायन की प्रवृत्ति उसे पालने लगती है. हमारे पास जो भी है वह आज का क्षण है. उसमी में रहें, उसी का उपयोग करें. भविष्य के समय को आज उधार में लेकर जीना बंद कर दीजिए. आचार्य विजय रत्नसुंदरसूरि ने `वन मिनट, प्लीज’ में ऐसे कई सारे मौलिक विचारों का प्रसाद दिया है. अन्य बातें कल.
आज का विचार
प्र.: जीवन की सार्थकता किसमें है?
उ.: आशय की पवित्रता और प्रयासों की पूर्णता में.
– आचार्य विजय रत्नसुंदरसूरि
(`वन मिनिट, प्लीज’ में)