तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का मोदी का फैसला : सौरभ शाह

(गुड मॉर्निंग एक्सक्लुसिव: कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा, विक्रम संवत २०७८, शनिवार, २० नवंबर २०२१)

जिन तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा प्रधान मंत्री ने की, वे कानून जब नहीं थे तब नुकसान देश के तमाम (आंदोलन कर रहे किसान सहित सभी) किसानों का हो रहा था , नरेंद्र मोदी का नहीं.

इन कृषि कानूनों में किसानों के हित की बातें हैं. उसके बारे में पहले बता चुका हूं, यूट्यूब पर एक ऑडियो आर्टिकल भी डाला था और वीडियो भी है. ये कानून उपयोगी हैं, मैं पहले से उनका समर्थक हूं. प्रधानमंत्री ने ये कानून इसीलिए वापस नहीं खींचा है कि वे निरूपयोगी हैं, या उनमें किसानों का हित नहीं है. लेकिन कानूनों के विरोध की आड में देशविरोधी तत्वों द्वारा जनता का जो नुकसान होने की संभावना थी उसे रोकने के लिए रिपील ( repeal ) करने का, ताक पर रखने का स्वागतयोग्य फैसला साहसपूर्वक लिया है.

प्रधान मंत्री को पीछे हटने का इतना बड़ा निर्णय लेना पड़ा, इसका कारण क्या हो सकता है? राष्ट्र को किए संबोधन में उन्होंने कोई स्पष्ट कारण नहीं दिया.

२६ जनवरी को संसद पर कब्जा करने या परेड स्थल पर पहुंचने की कोशिश हो जिसमें सिक्योरिटी के तमाम प्रोटोकॉल भंग करने का आयोजन आंदोलनकारी करें तो पुलिस-अर्ध सैनिक बल उन्हें रोकने और वीआईपी लोगों को तथा जनता को सुरक्षित रखने के लिए गोलीबारी करने पर मजबूर हों तो पांच-पचीस उपद्रवी मरेंगे ही. इस घटना को देश भर का मीडिया उछालेगा और इंटरनेशनल मीडिया भी इस चिता पर रोटी सेंक लेगा

हो सकता है कि इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) की ओर से जानकारी मिली हो कि किसानों के नाम पर चल रहे कृषि कानून विरोधी आंदोलन को भयानक रूप से हिंसक बनाने का षड्यंत्र रचा जा रहा है. दो महीने बाद, छब्बीस जनवरी के मौके पर विकृत आंदोलनकारी इस हद तक विरोध प्रदर्शन करने वाले होंगे जिसमें `न खेलब न खेलै देब, खेलवै बिगाडब’ वाली रणनीति रचने का षड्यंत्र बनाया हो सकता है. पुलिस को गोलीबारी के लिए मजबूर होना पडे, ऐसी परिस्थिति पैदा हो सकती है. जान और माल दोनों का बडे पैमाने पर नुकसान करने का षड्यंत्र रचा गया हो. हो सकता है.

बिलकुल गलत कारणों से आंदोलन में जुडे कई तत्वों को फिदायीन बनने की प्रेरणा देने का काम कई तथाकथित किसान नेता और राष्ट्रविरोधी तत्वों के लिए आसान है. फिदायीन बनने की चाह रखनेवाले दर्जन-दो दर्जन देश विरोधी तत्वों के परिवारों को हवाला द्वारा करोडो रूपए मिल जाएंगे ऐसा आश्वासन भी कनाडा-यूके के कई भारत विरोधी संगठन से मिल सकते हैं. २६ जनवरी को संसद पर कब्जा करने या परेड स्थल पर पहुंचने की कोशिश हो जिसमें सिक्योरिटी के तमाम प्रोटोकॉल भंग करने का आयोजन आंदोलनकारी करें तो पुलिस-अर्ध सैनिक बल उन्हें रोकने और वीआईपी लोगों को तथा जनता को सुरक्षित रखने के लिए गोलीबारी करने पर मजबूर हों तो पांच-पचीस उपद्रवी मरेंगे ही. इस घटना को देश भर का मीडिया उछालेगा और इंटरनेशनल मीडिया भी इस चिता पर रोटी सेंक लेगा.

पुलिस की गोलीबारी में मरनेवाले आंदोलकारियों को यदि रोका न जाता तो वे कितना बडा नुकसान करने जा रहे होते, यह कोई नहीं देखनेवाला. हर कोई नरेंद्र मोदी का नाम लेकर उन्हें मारकूट कर मसाला बनाने पर उतारू हो जाता.

अमेरिका में आम चुनाव के समय वहां के वामपंथियों ने दक्षिणपंथी डोनाल्ड ट्रंप को बदनाम करके सत्ता से हटाने के लिए बीएलएम (BLM ब्लैक लाइफ मैटर्स) के नाम पर तकरीबन सिविल वॉर के कगार पर पहुंचाते हुए, अमेरिका के लिए क्षोभजनक और सारी दुनिया मे शर्मनाक साबित हुई हिंसा आपको याद ही होगी.

बच्चा जब लगातार जिद्द करता है तब उसकी एकाध अनुचित मांग को मानने वाले माता-पिता को पता होता है कि मेहमानों के सामने या बीच बाजार कोई तमाशा न हो इसीलिए वे खुद झुक जाते हैं. इसका अर्थ ये नहीं है कि भविष्य में बच्चों की सारी अनुचित मांगों को माता पिता मानते जाएंगे. बच्चे को थप्पड़ लगा कर उसके होश ठिकाने लाना भी पैरेंट्स को आता ही है.

पंजाब और यूपी विधानसभा के आगामी चुनावों को ध्यान में रखकर, चार कदम आगे बढना हो तो दो कदम पीछे हटाना पडेगा, ऐसी पुरानी और विख्यात रणनीति हो सकती है ऐसा कई लोगों का मानना है . पर याद रहे, मोदी ने चुनाव को ध्यान में रखकर इस प्रकार के निर्णय कभी नहीं किए हैं, बल्कि चुनाव पर विपरीत असर डालनेवाले और खुद को नुकसान पहुंचाने सकने वाले अनेक निर्णय लिए हैं. मोदी में और दूसरे राजनेताओं में यह एक बडा अंतर है.

बच्चा जब लगातार जिद्द करता है तब उसकी एकाध अनुचित मांग को मानने वाले माता-पिता को पता होता है कि मेहमानों के सामने या बीच बाजार कोई तमाशा न हो इसीलिए वे खुद झुक जाते हैं. इसका अर्थ ये नहीं है कि भविष्य में बच्चों की सारी अनुचित मांगों को माता पिता मानते जाएंगे. बच्चे को थप्पड़ लगा कर उसके होश ठिकाने लाना भी पैरेंट्स को आता ही है. मैं क्या कहना चाह रहा हूं, आप समझ सकते हैं.

दो प्रकार के लोग अब मोदी से टकराने में लग जाएंगे. एक तो मोदी के विरोधी. हम तो पहले से ही कहते थे –ऐसे कानून नहीं लाने चाहिए, देखा आखिरकार हमारी बात माननी ही पडी ना.

इन लोगों को सुनने की ज़रूरत नहीं है. इन लोगों ने तो मोदी द्वारा बालाकोट एयरस्ट्राइक किए जाने पर भी मोदी का विरोध किया था.

मोदी के वर्तमान निर्णय की आलोचना करनेवालों से एक प्रश्न पूछना है. मोदी ने इन तीनों कृषि कानूनों को बनाया और उसका महीनों तक विरोध होता रहा तब आप मोदी के समर्थन में सडक पर क्यों नहीं उतरे? इन तीन कानूनों के समर्थन में ईंट का जवाब पत्थर से दिया जा सके, ऐसा आंदोलन क्यों नहीं किया?

दूसरे प्रकार के लोग रायता विंगवाले हाइपर हिंदू हैं जो आज कल मोदी, भाजपा, मोहन भागवत, आरएसएस के पीछे हाथ धोकर पड़े हैं. ये अतिउत्साह, अंडे में से बाहर निकले नए नवेले नियो-हिंदू अब कहने लगेंगे कि अरे! अब तो मोदी के किसी भी निर्णय का सडक पर आंदोलन करके विरोध किया जाएगा तो मोदी उस निर्णय को वापस ले लेंगे, मोदी कमजोर साबित हुए हैं, मोदी हार गए हैं. मोदी विरोधियों की ब्लैकमेलिंग के आगे नतमस्तक हो जाते हैं, मोदी अब गांधीजी जैसी अपनी छवि बनाकर शांति का नोबल पुरस्कार प्राप्त करने की रेस में लगे हैं, इत्यादि.

मोदी के वर्तमान निर्णय की आलोचना करनेवालों से एक प्रश्न पूछना है. मोदी ने इन तीनों कृषि कानूनों को बनाया और उसका महीनों तक विरोध होता रहा तब आप मोदी के समर्थन में सडक पर क्यों नहीं उतरे? इन तीन कानूनों के समर्थन में ईंट का जवाब पत्थर से दिया जा सके, ऐसा आंदोलन क्यों नहीं किया? अरे, ईंट का जवाब कंकड़ से देने के लिए भी क्या आप सडक पर उतरे? या फिर अपने घर के नर्म नर्म सोफे पर बैठकर खाली बडी बडी बातें करते रहे?

कृषि कानूनों को वापस लेने का निर्णय जिन्हें स्वीकार नहीं है, वे तमाम लोगों ने यदि इस कानून के समर्थन में बाहर आकर उन लोगों की तरह उग्र प्लांनिंग के साथ आंदोलन किया होता तो मोदी को यह घोषणा नहीं करनी पड़ती.

देशहित में कब क्या कदम उठाना है, इसकी जानकारी मोदी को है. मोरारजी देसाई भी मोदी की तरह पवित्र और निष्ठावान थे. लगन और अनुभव भी उनके पास था. लेकिन मोदी की जगह मोरारजी देसाई होते तो वे अपनी जिद्द नहीं छोडते: ‘मैं तीनों कृषि कानून वापस नहीं लूंगा, फिर चाहे जो हो जाय. मैं सह लूंगा, लेकिन देश हित में जो निर्णय लिया है उसे वापस नहीं लूंगा (तुमसे जो बन पड़े कर लो)’ —ऐसा ऐटीट्यूड मोरारजी भाई ने रखा होता जिसके कारण उन्हें और देश को दीर्घ कालिक नुकसान हुआ होता.

मोदी दीर्घ कालिक लाभ के लिए तात्कालिक नुकसान सहने के लिए तैयार हैं. मोदी दृढ़ हैं, जिद्दी नहीं. मोदी अपनी इमेजको बनाने में नहीं लगे हैं जिसका सबसे बड़ा प्रमाण उनके फैसले से मिल गया है. विरोधी और कुछ समर्थक भी उनके इस निर्णय के कारण उनके बारे में क्या सोचेंगे इसकी परवाह मोदी ने नहीं की, कभी करते भी नहीं.

देश में सिविल वॉर कराने की चाहत रखनेवाले देशद्रोही हाथों में खेलने के बदले अपनी शक्ति को अन्यत्र डायवर्ट करके देशहित में अन्य कार्यों में संलग्न हो जाने की मोदी की स्ट्रैटेजी किसी के गले अगर नहीं उतरती है तो वे जानें

लोगों को खुश करने के निर्णयों के विज्ञापन करके तालियां हासिल करने, वोट प्राप्त करने का काम आसान है. लोगों को झूठे वादे करके सरकार की तिजोरी साफ करके फिर चुनकर आने का काम भी आसान है. साउथ में एम.जी.आर., करुणानिधि, जयललिता और नॉर्थ में केजरीवाल, मुलायम-अखिलेश या लालू, ईस्ट में ममता- इन सभी ने सारी जिंदगी यही किया है.

अपने समर्थकों को भी नाराज करके देश हित में निर्णय लेना का काम काफी कठिन है. भाजपा का वोट बैंक माने जानेवाला व्यापारी वर्ग जी.एस.टी. के खिलाफ होगा ही, यह जानने के बावजूद मोदी उसे ले कर आए. अपने ही कई कैबिनेट मिनिस्टरों के पैसे डूबने वाले हैं यह जानने के बावजूद डिमोनेटाइजेशन किया. मोदी को न तो अपनी इमेज की फिक्र है, न अपने आस-पास के लोगों के फायदे-नुकसान की चिंता है; उन्हें पूरे देश की पड़ी है, सारे देश की चिंता है. यह स्पष्टता, ऐसी पारदर्शिता जिनमें होगी वही सामने से टीवी पर आकर सारे देश से कह सकता है: `जो किया वह किसानो के लिए किया, जो कर रहा हूं देश के लिए कर रहा हूं’.

कृषि कानूनों का विरोध करके अपना महत्व बढाने की चाह रखनेवाले लोग मोदी के इस फैसले से फ्रस्ट्रेट होकर आगे क्या चाल चलेंगे और मोदी अब हमारी मुट्ठी में हैं, ऐसी गलतफहमी पैदा करके देश का नुकसान करने के लिए तरह तरह के पैंतरे रचेंगे, इसका विचार भी मोदी जैसे बाहोश और विलक्षण राजनेता ने किया होगा.

कृषि कानून को वापस लेने के मोदी के निर्णय के समय मोदी के पक्ष में खडे रहना सभी देश प्रेमियों का कर्तव्य है. मोदी ने उसमें अपनी कमजोरी नहीं बल्कि शक्ति दिखाई है-गुरुर में खत्म हो जाने के बजाय, देश में सिविल वॉर कराने की चाहत रखनेवाले देशद्रोही हाथों में खेलने के बदले अपनी शक्ति को अन्यत्र डायवर्ट करके देशहित में अन्य कार्यों में संलग्न हो जाने की मोदी की स्ट्रैटेजी किसी के गले अगर नहीं उतरती है तो वे जानें.

२०२४ के चुनाव में मोदी अब अधिक ताकतवर बनेंगे इसका हायपर लोगों को विश्वास रखना चाहिए. मोदी के समर्थकों के वोट तो उन्हें मिलेंगे ही, अब तो कृषि कानून का विरोध करनेवाले-मोदी विरोधियों के वोट भी उन्हीं को मिलेंगे!

मोदी का शतप्रतिशत समर्थन करके उनके पक्ष में रहने में कुछ हिंदूवादियों को शर्म आती है. खुद में ज्यादा चालाकी, अधिक समझदारी, खूब सारी अक्ल है, ऐसा जताने का एक मौका भी ये लोग नहीं छोड़ते. २०१४ से पहले दब्बू बनकर, दोनों टांगों के बीच पूंछ डालकर जो खुसुरफुसुर किया करते थे वे अब मोदी के राज में छाती चौडी करके घूमने लगे हैं. वे इस तरह से घूमफिर सकते हैं, ऐसा वातावरण बनाने में मूलभूत भूमिका निभाने वाली मोदी का आभार मानने के बजाय आज वे खुद को मोदी से अधिक हिंदूवादी, अधिक राष्ट्रवादी मानने लगे हैं; और कहने लगे हैं कि,`मोदी को ये तीन कृषि कानून वापस नहीं लेने चाहिए थे; ये तो ऐसा हो गया मानो दस हजार लोग सडक पर आंदोलन करके मोदी का हाथ मरोड सकते हैं.’

चलिए एक पल को मान भी लिया कि दस हजार लोगों ने सडक पर उतर कर संसद में पारित कानून वापस लेने को मजबूर किया. तो भई, आप ग्यारह हजार लोगों को जुटाकर सडक पर उतरिए और मोदी को ब्लैकमेल कीजिए कि खबरदार, यदि कृषिकानून वापस लेने की कार्रवाई अगर शुरू की तो. आप तो बहुमत में हैं. ग्यारह हजार क्या, ग्यारह लाख लोगों को सडक पर ला सकते हैं. करो ना. सडक पर उतरकर ताकत दिखाओ!

जिनके पास अपनी कोई सिद्धि नहीं है, जो खुद देश के लिए किया गया कोई ठोस काम गिनाने की स्थिति में नहीं हैं, ऐसे विपक्षी राजनेता कहने लगे हैं कि मोदी में कोई ताकत नहीं है, मोदी कमजोर साबित हुए हैं.

उनके पास हर प्रश्न के बारे में ३६० डिग्री व्यू देनेवाला सिस्टम है- आपके पास नहीं है

नोटबंदी, बालाकोट स्ट्राइक से लेकर धारा ३७० को रद्द करने तक के कठिन, दुर्गम और क्रियान्वयन में असंभव लगनेवाले फैसले मोदी सफलतापूर्वक ले चुके हैं. तीनों कृषि कानूनों की वापसी का निर्णय भी ऐसा ही एक स्वीकार्य और उपयोगी फैसला है. जो मोदी, पहले वर्णित विशालकाय निर्णय ले सकते हैं, वही मोदी कृषि कानूनों को वापस लेने का निर्णय करते हैं तो उसके पीछे कोई न कोई कारण तो होगा. आप कहते हैं कि अब हमेशा लोग सडक पर उतरेंगे. तो क्या मोदी ने उसके बारे में सोचा नहीं होगा? आप कहते हैं कि धारा ३७० को रद्द करने के निर्णय के खिलाफ भी प्रदर्शन होगा और मोदी को वह निर्णय वापस लेना होगा; सीएए और एनआरसी भी ताक पर रखना होगा, जीएसटी रद्द करना पडेगा, नोटबंदी को रिवर्स करना होगा. तो क्या मोदीने यह सब नहीं सोचा होगा. क्या मोदी को आपका ट्वीट पढ़कर ब्रह्मज्ञान होगा, ऐसा आप मानते हैं?

आप जिसका डर दिखाकर लोगों को मोदी के खिलाफ सोचने की प्रेरणा दे रहे हैं, ऐसा कुछ होनेवाला नहीं है. मोदी बिलकुल २००१-०२ से लगातार साबित करते आए हैं कि कब, क्या, किस तरह से करना है और कब क्या नहीं करना है. मोदी के पास पूरा सिस्टम है-सच्चे फैसलों का अनुचित विरोध करनेवाले उपद्रवियों को काबू में रखने का सिस्टम. पुलिस, अर्ध सैनिक बल और पूरी सेना उनके हवाले है. वे चाहें तो पुलिस पर ट्रैक्टर चढाने की चाहत रखनेवाले मव्वालियों पर टैंक और बख्तरबंद गाडियां चलाकर विरोध का दमन कर सकते हैं या फिर ममता के बंगाल में होनेवाली सैकडों हिंदू कार्यकर्ताओं की हत्या का कारण आगे रखकर बंगाल में कानून और व्यवस्था की परिस्थिति राज्य सरकार के नियंत्रण से बाहर निकल गई है, ऐसा ठोस कारण देकर वहां पर राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं. लेकिन मोदी जो कुछ भी करते हैं, उसके पीछे जिस प्रकार से एक निश्चित सोच होती है, उसी प्रकार वे जो कुछ नहीं करते या नहीं करना चाहते (कर सकने की क्षमता होने के बावजूद नहीं करना चाहते) उसके पीछे भी ठोस विचार होगा, शुद्ध-पवित्र इरादा होगा और कुल मिलाकर राष्ट्र का और सारी जनता के दीर्घकालिक हित को ध्यान में रखकर सर्वांगीण आयोजन होगा.

उनके पास हर प्रश्न के बारे में ३६० डिग्री व्यू देनेवाला सिस्टम है- आपके पास नहीं है माय डियर, ट्विटरियों और फुटकर लोगों. यह इत्यादि इत्यादि वाले ऐसे लोग हैं जो अपने को हिंदूवादी बताकर लोकप्रिय हो जाने के बाद मोदी के लिए ट्वीट करते हैं:`५६ की छाती या५.६ की छाती?’ जी हां, मेरा इशारा किसी जमाने में `ऑपइंडिया’ के लिए और अब वहां से निकाल दिए गए `डीओ’ (डु पॉलिटिक्स) के डिजिटल मीडिया के लिए काम करनेवाले अजित भारती की ओर है. जयपुर डायलॉग्स वाले संजय दीक्षित की पंगत में बैठे अजित भारती जैसे दर्जनों हिंदी-गैर हिंदी ट्विटरवीर मोदी से अधिक राष्ट्रप्रेम खुद में है, ऐसा जताने के लिए उछलकूद कर रहे हैं.

जून १९८४ में इंदिरा गांधी ने भिंडरावाले को काबू में लेने के लिए अमृतसर के पवित्र स्वर्ण मंदिर पर सेना भेजने की जो गलती की थी, वैसी भूल मोदी दोहराना नहीं चाहते

आतंकवादियों के खिलाफ खुलकर लडनेवाले मोदी किसानों के विरुद्ध उस तरह का कदम नहीं उठा सकते, इसकी जानकारी विपक्षियों को है. आपको याद हो तो किसी जमाने में कश्मीर के आतंकवादी महिलाओं को और बच्चों को आगे कर दिया करते थे. भारतीय सेना के बहादुर जवानों पर उनके द्वारा पत्थरबाजी करवाते थे. शाहीनबाग के समय भी देशद्रोहियों ने महिलाओं और उनके बच्चों को ढाल बनाकर उपद्रव किए जिसके खिलाफ मोदी-शाह ने अभूतपूर्व संयम दिखाया. क्या इन जवानों के पास बंदूकें-रायफल्स-मशीनगन्स नहीं थीं? बम और रॉकेट लॉन्चर्स भी थे. घडी के छठें भाग में इन पत्थरबाजों को नेस्तोनाबूद कर सकते थे. लेकिन आतंकवादियों को पता था कि महिलाओं-बच्चों के खिलाफ सेना ऐसा कदम नहीं उठाएगी और अगर उठाती है तो सारे देश का और सारी दुनिया का मीडिया उन पर टूट पडेगा. आतंकवादियों को बचाने के लिए पत्थरबाजी करनेवाली महिलाएं और बच्चे भी आतंकवादियों का साथ देने का अपराध कर रहे हैं, ये सच्चाई दिखाकर सेना के बलप्रयोग को उचित बताने के बजाय एक ऐसा हौव्वा खडा किया जाएगा कि भारतीय सेना में राक्षस और दानव भरे हैं. सेना के नीतिनिर्धारक इस परिणाम को भलीभांति समझते हैं. इस तरह से भाग जानेवाले आतंकवादी अगर मारे नहीं जाते हैं तो उस पर सेना के बहादुर जवानों को नपुंसक कहकर हमें अपनी बुद्धि का प्रदर्शन करने की जरूरत नहीं है. लेकिन सेना के संयम और समझदारी को समझे बिना कई लोग भारतीय सेना के जवानों की आलोचना करने लगे. ५६ के बदले ५.६ इंच की छातीवाला ट्विट करनेवाले, मोदी को स्पाइनलेस गिनानेवाले अभी यही कर रहे हैं- अपनी बुद्धि का प्रदर्शन.

जून १९८४ में इंदिरा गांधी ने भिंडरावाले को काबू में लेने के लिए अमृतसर के पवित्र स्वर्ण मंदिर पर सेना भेजने की जो गलती की थी, वैसी भूल मोदी दोहराना नहीं चाहते. भिंडरावाले कोई संत नहीं था, खालिस्तानी आतंकवादी था. ऑपरेशन ब्ल्यूस्टार में उसकी मौत हुई थी इसीलिए उसे शहीद का दर्जा मिल गया. सारी सिख जनता इंदिरा गांधी की दुश्मन बन गई, देशभर में सिखों और गैर सिखों के बीच दरार पैदा हो गई. आतंकवादियों ने एक पवित्र मंदिर के सारे परिसर को कब्जे में लेकर घोर अपराध किया था, यह सच्चाई होने के बावजूद, इस पावन भूमि को अपवित्र लोगों के हाथों से छुडाने के लिए बहादुरी भरा कदम उठानेवाली इंदिरा गांधी के लिए वह दुस्साहस साबित हुआ. सिर्फ उनके लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए.

देश में अराजकता फैलाकर मोदी की सरकार को अस्थिर करके संपूर्ण विश्व का नेता बनने की राह पर तेजी से आगे बढ रहे भारत को पछाडने की चाह रखने वाले परिबलों की योजना को मोदी ने फुस्स कर दिया

कृषि कानून विरोधी आंदोलन एक निश्चित दिशा में जा रहा था. इस आंदोलन की आड में रहकर अपने सूत्र संचालित करनेवाले (टिकैत तो एक मोहरा है) भारत में और विदेश में रहनेवाले, आतंकवादियों की तरह ही षड्यंत्र कर रहे थे. पहले वाले महिलाओं और बच्चों को फ्रंट बनाते थे. इन लोगों ने किसानों को फ्रंट बनाया. देश में अराजकता फैलाकर मोदी की सरकार को अस्थिर करके संपूर्ण विश्व का नेता बनने की राह पर तेजी से आगे बढ रहे भारत को पछाडने की चाह रखने वाले परिबलों की योजना को मोदी ने फुस्स कर दिया, उनके गब्बारे से हवा निकाल दी है. इतनी सीधी सादी बात समझने के बजाय हममें से कई लोग आज मोदी के विरुद्ध बेलगाम बातें करने लगे हैं. सचमुच इन हाइपरवादी लोगों का यह बर्ताव बहुत ही दुखद और शोचनीय है.

पिछले दो वर्ष में किसानों का ढाल बनाकर आंदोलनकारियों ने जो खतरनाक खेल किया है-पुलिस पर ट्रैक्टर चढा देना, लाल किले पर चढ़ाई कर देना इत्यादि, इसे देखकर साबित हो रहा था कि खालिस्तानवादियों को और आंदोलनकारियों को देश के टुकडे कराने के मंसूबे रखनेवाली अत्यंत रिसोर्सफुल ताकतों के समूह का समर्थन हासिल है. अराजकतावादी और विभाजनकारी बेचैन हो गए थे. मोदी को सत्ता से उतारने के लिए, देश का विभाजन करने,जनता में असंतोष और समाज में अराजकता फैलाने के लिए विदेशी धन की मदद से आंदोलन की आड में कर्ताधर्ता लोग किसी भी स्तर तक जाने को तैयार रहे होंगे. मोदी ने एक झटके में उन लोगों की योजनाओं पर पानी फेर दिया.

मोदी की फ्लेक्सिबिलिटी, उनकी उदारता, विशालता और दूरदर्शिता का प्रमाण है; न कि कायरता का.

मोदी का सलाह देने का गृह उद्योग खोलकर बैठनेवालों को तो सिर्फ बोलना है, लिखना है. फील्ड पर जाकर काम करना हो तो पता चलेगा कि कितने बीसहम सौ होता है. आपके पास चाहे जितनी ताकत हो, चाहे जितने संसाधन हों और व्यवस्था शक्ति हो, चाहे जितनी शुद्ध नीयत हो, उसके बावजूद आपसे अमुक काम पूरे नहीं होते हैं तो नहीं होते हैं. तीन कृषि कानून ऐसा ही एक काम है.

किसी को ऐसा लग रहा हो कि अब कश्मीर में धारा ३७० को वापस लेने के लिए जबरदस्त आंदोलन शुरू होगा तो भई, आप पहुंच जाना अपने साथियों को लेकर कश्मीर में. वहां जाकर मोदी के निर्णय के समर्थन में आंदोलन कीजिएगा. साहस दिखाना-जैसा साहस प्रधानमंत्री ने एक कार्यकर्ता के रूप में १९९२ में दिखाया था. ये वह दौर था जब कश्मीर में आतंकवादी पूरे उफान पर नापाक गतिविधियां कर रहे थे. सारे कश्मीर को अपने शिकंजे में कस लिया था. ऐसे वातावरण में मोदी ने १५ अगस्त १९९२ को श्रीनगर के भर चौराहे पर जाकर, लालचौक पर तिरंगा फहराया था. मुंह में खैनी दबाकर पान की गुमटी पर खडे होकर मोदी की फजीहत करनेवाले जोक्स फॉरवर्ड करने के बदले ऐसा कोई हिम्मत भरा कदम उठाओ-यदि आपकी छाती५.६ के बदले ५६ इंच की हो तो.

मोदी की फ्लेक्सिबिलिटी, उनकी उदारता, विशालता और दूरदर्शिता का प्रमाण है; न कि कायरता का.

मोदी के १७ मिनट ३५ सेकंड के लाइव टीवी प्रसारण का वीडियो एक बार यू ट्यूब पर सुनिएगा. उन्होंने जिस धैर्य और संयम से इस निर्णय की घोषणा की, उसी धैर्य और संयम और समझदारी की अपेक्षा आपसे की जाती है-यदि आप राष्ट्रभक्त हों तो, यदि आप हिंदुत्व की परंपरा का आदर करते हों तो.

अंत में एक बात पूछनी है. मोदी के इस निर्णय के खिलाफ बेबाक होकर शिकायत करनेवालों से एक बात पूछनी है: आपमें से कितने लोग अपने ऊपर के, अपने बॉस (या फिर अपने क्लाइंट-सप्लायर या अपने बेनिफैक्टर) से कृषि कानूनों को लेकर असहमत हों और तब खुलेआम सख्त विरोध करके उनकी आलोचना करने का साहस करेंगे? नहीं करेंगे, क्योंकि आपको डर होता है कि ऐसा करेंगे तो आपका बॉस, आपके बेनिफैक्टर, आपके अन्नदाता आपका नुकसान कर देंगे, आपको उनसे मिलनेवाला लाभ अटक सकता है. मोदी आपके बॉस के भी बॉस है. उनकी इतनी तो इज्जत करो कि उन्होंने यह घोषणा करते समय जो संयम दिखाया वही आप भी दिखाएं. जिस टेप से आपकी छाती मापी जाती है, उसमें उतने आंकडे भी नहीं हैं जो मोदी की छाती का पूरा राउंड भी मार सकें.

आज का विचार

`साथियों, मैं आज देशवासियों से क्षमा मांगते हुए, सच्चे मन से और पवित्र हृदय से कहना चाहता हूं कि शायद हमारी तपस्या में ही कोई कमी रही होगी जिसके कारण दिये के प्रकाश जैसा सत्य कुछ किसान भाइयों को हम समझा नहीं पाए हैं. आज गुरुनानक देवजी का पवित्र प्रकाशपर्व है. ये समय किसी को भी दोष देने का नहीं है. आज मैं आपको, पूरे देश को ये बताने आया हूं कि हमने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का, रिपील करने का निर्णय लिया है. इस महीने में शुरू होने जा रहे संसद सत्र में-इसी महीने में, हम तीनों कृषि कानूनों को रिपील करने की संवैधानिक प्रक्रिया को पूरा कर देंगे. साथियों मैं आज अपने सभी आंदोलनरत किसान साथियों से आग्रह कर रहा हूं-आज गुरुपर्व का पवित्र दिन है, अब आप अपने अपने घर लौटें, अपने खेत में लौटें, अपने परिवार के बीच लौटें. आइए, एक नई शुरुआत करते हैं, नए सिरे से आगे बढते हैं…’

—प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी
(देव दिवाली और गुरुनानक जयंती के अवसर पर राष्ट्र के नाम लाइव टीवी प्रसारण में शुक्रवार, १९ नवंबर २०२१)

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1 COMMENT

  1. बहुत सटीक विश्लेषण है। कानून वापस लेने के पीछे के ये विरोधियों के काले मंसूबे ही हो सकते हैं। और अब ये आम लोग भी चर्चा कर रहे हैं। कुछ न कुछ Intel इनपुट सरकार को मिले हैं, और देश को भीषण त्रासदी से बचाने के लिए ही यह कानून वापस लिए हैं। दूसरी तरफ कानून वापस लेने के बाद भी आंदोलन की जिद पकड़कर बैठे आंदोलनजिवी अब रोज नन्हे हो रहे हैं।

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