उस समय आर.डी. की जगह आप होते तो क्या करते?

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, शुक्रवार – ११ जनवरी २०१९)

हुआ यूं कि विनोद शाह ने `अब इंसाफ होगा’ शुरू की. मिथुन चक्रवर्ती और रेखा उसमें थे. संगीत तो बेशक आर.डी. बर्मन का ही था. फिल्म का बजट भी अच्छा था. `होटल’ जैसी छोटी फिल्म ये नहीं थी.. १९९० के दशक के आरंभिक वर्षों में दो करोड रूपए का बजट कोई छोटा बजट नहीं कहा जाता था. संगीत के लिए आर.डी. को ही साइन किया जाता था. उस समय रेकॉर्ड कंपनियों का राज इंडस्ट्री में चलता था. वीनस, टी सिरीज इत्यादि. ऐसी ही एक कंपनी थी `टिप्स’ जिसकी शुरुआत तौरानी ब्रदर्स ने १९७५ में मुंबई के लैमिंग्टन रोड की एक छोटी सी दुकान से की थी. उस समय कुमार एस. तौरानी और रमेश एस. तौरानी एच.एम.वी, म्युजिक इंडिया और सीबीएस जैसी रेकॉर्ड कंपनियों द्वारा बने एल.पी. (लॉन्ग प्लेइंग) रेकॉर्ड्स बेचते थे. विनाइल के बने एलपी और उसके बाद कैसेट्स बेच बेचकर तौरानी बंधुओं ने खुद अपनी रेकॉर्ड कंपनी शुरू करके हिंदी फिल्मों के संगीत के राइट्स खरीदने लगे. एच.एम.वी. बाद में गोयन्का ग्रुप ने खरीद ली जो `सारेगामा’ बन गई, म्यूजिक इंडिया बिककर युनिवर्सल बनी और सीबीएस को अभी सोनी म्यूजिक के रूप में पहचाना जाता है. `टिप्स’ के तौरानी बंधु आगे चलकर फिल्म प्रोडक्शन और डिस्ट्रिब्यूशन के काम में भी लग गए.

१९९० का दशक और १९८० के दशक के आखिरी वर्ष हिंदी फिल्म उद्योग के लिए हर तरह से भारी था. एक तरफ अंडरवर्ल्ड के फायनांस का जोर बढता जा रहा था, तो दूसरी ओर ये सारी रेकॉर्ड कंपनियॉं दादागिरी और मनमानी करने लगी थीं. ऐसे समय में इंडस्ट्री के क्रिएटिव लोगों का शोषण होने लगा. यश चोपडा जैसे निर्माता-निर्देशक इस अवधि में कितने हताश थे यह बयान आप २००२ में प्रकाशित रेचल ड्वायर की लिखी और ब्रिटिश फिल्म इंस्टीट्यूट द्वारा प्रकाशित पुस्तक `यश चोपडा ‘ में मिल जाएगा. यह दौर गुलजार के लिए भी कष्टदायक था. आर.डी. बर्मन भी स्वाभाविक रूप से इस दौर में अपनी संगीत कला के ढलान पर होने का अनुभव कर रहे थे. आरडी के डाउन पीरियड को देखकर रेकॉर्ड कंपनियां उनकी म्यूजिक वाली फिल्मों को हाथ नहीं लगाती थीं. विनोद चोपडा ने `पंचम अनमिक्स्ड’ नामक ब्रह्मानंद सिंह की डॉक्युमेंट्री में कहते हैं कि नाइनटीन फोर्टी टू ए लवस्टोरी के समय उन्होंने आरडी को जब साइन किया तब रेकॉर्ड कंपनियों ने इस फिल्म के म्यूजिक राइट्स लेने से इनकार कर दिया. आरपी पर बनी इस डॉक्युमेंट्री के बारे में हम पहले भी इसी कॉलम में कई बार पढ चुके हैं.

`मेरे जीवनसाथी’ और `काला सोना’ जैसी फिल्मों के निर्माता विनोद शाह पहले हिट म्यूजिक दे चुके आर.डी. बर्मन को ही `अब इंसाफ होगा’ में लेना चाहते थे लेकिन म्यूजिक के राइट्स जिसे बेचे गए थे, उस `टिप्स’ कंपनी के रमेश तौरानी ने स्पष्ट रूप से कह दिया कि आर.डी. बर्मन का संगीत होगा तो हमें इस फिल्म के राइट्स नहीं चाहिए. या तो आनंद – मिलिंद को साइन कीजिए या फिर….. हर तरफ यही माहौल था. कोई भी रेकॉर्ड कंपनी आर.डी. का संगीत खरीदने के लिए तैयार नहीं थी. यह बात बताते हुए पुणे के तिलक स्मारक मंदिर में आर.डी. बर्मन की २५वीं पुण्यतिथि के मौके पर चार जनवरी को आयोजित रोमांसिंग विथ आर.डी. बर्मन कार्यक्रम में प्रोड्यूसर विनोद शाह १,१०० श्रोताओं के सामने सार्वजनिक रूप से स्वीकार करते हैं कि हमने आनंद मिलिंद को साइन किया और हम पंचमदा से आंख मिलाने के लायक भी नहीं रहे.

पंचमदा ने बिना किसी खीझ के `मेरे जीवनसाथी’ के लिए डायरेक्टर द्वारा अप्रूव्ड धुन को प्रोड्यूसर-हीरो द्वारा रिजेक्ट होने के बाद भी नई ट्यून सुनाने के लिए तबला-हार्मोनियम लेकर राजेश खन्ना के बंगले पर पहुंचने की तत्परता दिखाई थी. जिन्होंने `काला सोना’ का बैकग्राउंड म्यूजिक अपने खर्च पर पूरा किया था, क्योंकि `मेरी फिल्म है, खराब नहीं होनी चाहिए’ ऐसा मानते थे. जो `होटल’ जैसी लो बजट फिल्म दूसरे को देने पर झगडा करने के लिए प्रोड्यूसर की ऑफिस में पहुंच जाते हैं, क्योंकि `ये तो मेरा बैनर है’ जैसी आत्मीयता से हक जतानेवाले व्यक्ति को प्रोड्यूसर जब मजबूरी में समझौता करके, इंडस्ट्री में टिके रहने के लिए रेकॉर्ड कंपनियों की दादागिरी के सामने झुकना पडता है तब प्रोड्यूसर को कितना दुख होता होगा इसकी कल्पना आप कर सकते हैं और उस समय आरडी बर्मन को कितनी पीडा हुई होगी इसका अंदाजा भी आप लगा सकते हैं. ऐसी स्थितियों में आप यदि आर.डी. बर्मन हों तो आपकी कैसी प्रतिक्रिया होगी? आर.डी. बर्मन ने क्या किया ये विनोद शाह के शब्दों में सुनिए: एक दिन पंचमदा का फोन आया. कहा कि `कल मैं आनंद बक्षी साहब के घर गया था. फिकर थी कि इस नई फिल्म के गाने अच्छे बने हैं या नहीं. उनके पास जो चार गाने आपने रेकॉर्ड किए हैं उसकी कैसेट थी. सुन. दोनों लडकों ने अच्छा काम किया है. गाने बहुत ही अच्छे हैं. कोई प्रॉब्लम नहीं होगा. पिक्चर चलेगी.

और पिक्चर रिलीज होने के बाद बॉक्स ऑफिस पर चली और इतना ही नहीं महाराष्ट्र में उसे टैक्स फ्री कर दिया गया. वैसे इस फिल्म की सफलता का आनंद मनाने के लिए पंचम दुनिया में नहीं थे. उनके निधन के ठीक एक साल, दो दिन बाद ६ जनवरी १९९५ को आनंद – मिलिंद के संगीत वाली `अब इंसाफ होगा’ प्रोड्यूसर विनोद शाह ने थिएटर्स में रिलीज की जिसके निर्देशक उन्हीं के भाई हरीश मेहता थे.

आर.डी. बर्मन के बारे में आप जहां भी सुनें, जिनसे भी सुनें, आपको संगीत के क्षेत्र के इस जीनियस की उदारता, मानवता, बडप्पन, दरियादिली, इनवॉल्वमेंट, विनम्रता, शालीनता का परिचय हुए बिना नहीं रहेगा. विनोद शाह ने आर.डी. बर्मन की बातों से श्रोताओं को सराबोर किया तो उसके बाद मध्यांतर के पश्चात लुई बैंक्स पंचमदा के लिए बजाए यादगार पियानो के पीसेस सुनानेवाले थे. लेकिन इंटरवल से पहले एक और सरप्राइज था. करण शाह और उनकी पत्नी भावना बलसावर. करण शाह को आपने `जवानी’ के हीरो के रूप में आरडी बर्मन के इस गीत को नीलम कोठारी के साथ गातेहुए सुना है:

तू रुठा तो मैं रो दूंगी

सनम, आ जा मेरी बाहों में

आ…आ…आ…

इस गीत की ट्यून इतनी मधुर थी कि उस पर यदि गीतकार कोई आलूचालू शब्द जड देता तो ट्यून का मजा बिगड जाता. गुलशन बावरा को इस ट्यून पर गीत लिखना था. दस दिन तक कुछ सूझा नहीं. जो सूझता वह सब साधारण होता. इन जुल्फो पे

लेकिन ऐसे शब्द ट्यून के साथ न्याय नहीं कर सकेंगे इसका गीतकार को पता था. अंत में दो इनोसेंट-प्रेमी का किरदार निभा रहे दो नवोदित कलाकारों को ध्यान में रखकर गुलशन बावरा ने लिखा: तू रूठा तो मैं रो दूंगी…

इस गीत में जो तालियॉं बजती हैं वह केर्सी लॉर्ड ने बजाई हैं. सिंथेसाइजर पर. गीत के आखिरी अंतरे में एक बार इन तालियों की बीट चूक जाती है, एक बीट कम बजाई जाती है. ऐसा किसी खास कारण से किया गया था क्या? `जवानी’ के हीरो करण शाह कहते हैं कि फिल्म सेंटर के स्टूडियो में रेकॉर्डिंग करते समय मैं मौजूद था. ऐसा गलती से हुआ है. लेकिन पंचमदा ने रेकॉर्डिंग सुनकर कहा कि इसे ऐसे ही रहने देते हैं, अच्छा लगता है. करण शाह की पत्नी भावना बलसावर को आप `देख भाई देख’ सीरियल में देख चुके हैं. अन्य कई फिल्मों में सीरियल्स में देख चुके हैं. आर.डी. बर्मन जिस मराठी फिल्म के म्यूजिक के लिए अपने मित्र (और `नमकहराम’ के निर्माता) सतीष वागले से मिलने के लिए ३ जनवरी १९९४ को सेल्फ ड्राइव करके मुंबई से पुणे आए थे और शाम को ही मुंबई लौट गए थे, उस फिल्म `सुखी संसाराचे बारा सूत्र’ की हिरोइन भावना बलसावर हैं. उनका एक और परिचय दूँ. अभिनेत्री दुर्गा खोटे जिसकी मौसी लगती थीं वह विजू खोटे भावना के मामा और शोभा खोटे भावना की मां हैं.

इंटरवल के बाद जब परदा खुलता तब अश्विन श्रीनिवासन फ्लूट पर हमें तुमसे प्यार कितना और मैं शायर बदनाम सुनाकर लुई बैंक्स के आगमन की प्रतीक्षा को बढाते हैं. अश्विन के साथ संगत में केवल तबला है. प्योर और सिंपल म्यूजिक. कोई मिलावट नहीं.

अश्विन श्रीनिवासन का बांसुरी वादन पूरा होते ही लुई बैंक्स स्टेज पर प्रवेश करते हैं. उनके नाम की घोषणा होते ही तालियों की गडगडाहट होती है. लुई बैंक्स ने पहली बार फिल्म `मुक्ति’ (१९७७) के लिए आर.डी. बर्मन की रेकॉर्डिंग में पियानो बजाया था: सुहानी चांदनी रातें हमें सोने नहीं देतीं, तुम्हारे प्यार की बातें हमें सोने नहीं देतीं…मुकेशजी का गाया यह गीत मुझ जैसे पंचम भक्त के दिमाग पर उसी तरह से छा गया जैसे कल्याणजी-आनंदजी का है. लुई बैंक्स की आर.डी. से जुडी बातें कल साझा करें उससे पहले यह गीत आप यूट्यूब पर सुन लीजिएगा. आर.डी. बर्मन के इस संगीत में कल्याणजी-आनंदजी की छाया आपको नजर आएगी?

आज का विचार

सारे विश्व में ३.५२ बिलियन महिलाएं हैं और फेसबुक पर ५.७७ बिलियन महिलाएं हैं!

-वॉट्सएप पर पढा हुआ

एक मिनट!

बका: पका, तुझे पता है कि मोदी और राहुल दोनों ही साफ इंसान हैं?

पका: सचमुच?

बका: हां, मोदी दिल से साफ हैं, राहुल दिमाग से साफ हैं.

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