पहला सुख है स्वस्थ रहना, दूसरा सुख है मौज करना

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, मंगलवार – १ जनवरी २०१९)

ईशू के नए वर्ष की शुरुआत हो रही है तो ऐसे में इस वर्ष के लिए नया सूत्र है: पहला सुख है स्वस्थ रहना, दूसरा सुख है मौज करना.

सूत्र का यह पूर्वार्ध है. उत्तरार्ध है: तीसरा सुख है किसी से न डरना और चौथा सुख है देर से मरना.

जिंदगी में चाहे जितने पैसे हों, सारी बातों को लेकर निश्चिंत रहें लेकिन तबीयत अगर साथ नहीं देती है तो सबकुछ बेकार है. भोगी बनने के लिए (यानी सुख- सुविधाओं-वैभव- ऐश्वर्य- संबंधों का उपभोग करने के लिए) आपको योगी बनना होगा ऐसा स्वामी रामदेव बारंबार कहा करते हैं. योगी बनने का अर्थ है शरीर और मन का समन्वय करना. पश्चिमी मेडिकल साइंस ने सायको सोमेटिक रोगों की बात की है लेकिन इसका हजारों वर्ष पहले भारतीय परंपरा में आयुर्वेद तथा पतंजलि योगसूत्र में यह बात कही गई है.

निरोगी मन और निरोगी तन दोनों का समन्वय होना चाहिए. मन यदि दुरुस्त नहीं होगा तो तन की दुरुस्ती पर उसका असर पडेगा और तन यदि दूरुस्त न हो तो उसका असर मन की दुरुस्ती पर पडेगा. योग यही है. भोगी बनने के लिए योगी बनना होता है.

कच्ची उम्र में देखादेखी करके जो गलत आदतें पडीं, वे स्थायी आदतों में रूपांतरित हो गईं. व्यसन बन गईं. छूटना असंभव लगता है. प्रयास विफल रहते हैं. लेकिन यदि स्वस्थ दीर्घ जीवन जीना हो तो अन्य कई सारी सात्विक लतें हैं, कई सात्विक आदतें हैं जिनके कारण वे व्यसन मामूली लगते हैं. तीन वर्ष पहले सिगरेट छोडी थी जिसकी घोषणा छोडने के १०० दिन बीत जाने पर की थी. पिछले साल शराब छोडी जिसकी घोषणा उसे छोडने के २०० दिन बाद यानी आज आप सभी के समक्ष कर रहा हूँ. मित्रों और निजी दायरों को यह पता है. शराब छोडी है लेकिन शराबी मित्रों की संगत नहीं छोडी. उनके साथ बार, पब में बैठकर अब नींबू पानी, काली चाय, छास (यदि उपलब्ध हो तो) और भांति-भांति के मॉकटेल्स (जो केवल रंगीन शरबत होते हैं, शराब की एक बूंद भी नहीं होती उसमें) का आनंद लेते हैं. घर का बार भी प्रिय पियक्कड मित्रों के लिए खुला ही है और इतना ही नहीं उसकी रसद आपूर्ति भी होती रहती है. उनके साथ बैठकर घर में नारियल पानी, ताजा ओरेंज या मोसंबी जूस, कोकम शरबत तथा कई सारे नए नए मंचिंग्स, बाइटिंग्स, चकणों का मजा भी लेता हूं. बस, हमें पीना नहीं है. थोडा भी नहीं. कोई छूट नहीं. बीयर-वाइन भी नहीं. नो मीन्स नो.

अच्छा लग रहा है. एक दिन गिनती की थी कि जिंदगी में कुल मिलाकर तकरीबन छह ड्रम- बैरल जितनी शराब पी ली है. काफी हो गया है. उसका सात्विक हैंगओवर अब शेष ४२ वर्षों तक चलेगा.

पहला सुख है स्वस्थ रहना, यह बात तो समझ ली है लेकिन ये तंदुरुस्ती सुरक्षित क्यों रखनी है? दूसरा है मौज करना. तंदुरुस्ती को सुरक्षित रखकर यदि मौज करने के बजाय लाइफ के रुटीन में पड गए तो दूसरा सूत्र है: तो ऐसी जिंदगी भला किस काम की? इन फैक्ट, जिंदगी के जो रुटीन काम हैं उन्हें करने में ही आनंद लेना है, मौज करना है. हमारे जीवन का पहला और परम काम है- लिखना. हम लिख कर मौज करते हैं. जिंदगी बनी ही है मौज करने के लिए. बच्चनजी के पहले बंगले का नाम `प्रतीक्षा’ उनके कवि पिता ने रखा था, दूसरे बंगले का नाम `जलसा’ मुझे विश्वास है बच्चनजी ने ही रखा होगा. धूप – छांव से भरी जिंदगी में गर रास्ते चढाव-उतार भरे होते हैं तो भी जलसा किया जा सकता है. रोना नहीं रोना चाहिए. मन रुआंसा होगा तो चेहरा भी रुआंसा रहेगा. अंदर निरंतर नृत्य चलता रहेगा तो चेहरे पर चिंतन के तेज के साथ प्रसन्नता छाई रहेगी. दूसरा सुख है जलसा करना.

तीसरा सुख है किसी से न डरना. मन में पाप हो तो जलसा करते समय लोगों से डरना पडता है. मन साफ हो तो लोग क्या कहेंगे इसकी परवाह नहीं होती. मनुष्य के नैतिक साहस का उसके मन की सफाई के साथ सीधा संबंध है. मन जितना साफ होगा, नैतिक साहस उतना ही अधिक होगा. मन जितना मैला होगा नैतिक साहस उतना ही कम होगा. डरे बिना जीने के लिए मन की स्वच्छता का अभियान चलाना पडता है.

मन को साफ रखने के लिए विचारों का साफ रखना पडता है और विचारों को साफ रखने के लिए आस-पास के वातावरण से मैले लोगों को दूर करना पडता है. तभी चारों ओर से शुभ विचार प्राप्त होने वाली प्रार्थना सार्थक होगी. डरे बिना जीना.

और चौथा सुख है देर से मरना. जिंदगी बडी भी होनी चाहिए और लंबी भी. छोटी जिंदगी यानी सिर्फ रियाज़ और रिहर्सल. जो सीखा है, जिसकी तालीम ली है, गिर पडकर जिसका अनुभव किया है उस पाठ को अमल में लाने के लिए जिंदगी लंबी होनी चाहिए. रियाज़ के बाद कॉन्सर्ट न हो और रिहर्सल के बाद शो न हो तो सबकुछ अधूरा लगेगा. डकार आने तक जीना चाहिए. पेट भरकर जीना चाहिए. २०१९ में बस, यही इच्छाएँ हैं. आपकी भी ऐसी ही इच्छाएं हों तो आपको भी शुभकामनाएँ. ईश्वर आम चुनावों के इस वर्ष में आप सभी का कल्याण करें, ऐसी प्रार्थना है.

आज का विचार

एक कदम चलने में लो, बरस बीत गया;

राह कठिन काटने में लो, बरस बीत गया.

ग्रंथ का सारा सागर पार करना था पर;

दो-एक पन्ने पढने में लो, बरस बीत गया.

यूं तो बत्तीस व्यंजन परोसे थे प्रेम से;

स्वाद थोडा चखने में लो, बरस बीत गया.

न पूछ सका सारी दुनिया का हाल;

खुद ही को संभालने में लो, बरस बीत गया.

-नितीन वडगामा

एक मिनट!

बका: दुनिया का ऐसा कौन सा एकमात्र शहर है जिसके नाम पर कोर्ट है, बैंक है, सूट है, सलवार है, जूती है और पेग भी?

पका: पटियाला!

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