गलती सुषमाजी की तो है, पर क्या उस बहन की कोई गलती नहीं?

गुड मॉर्निंग

सौरभ शाह

सुषमा स्वराज की गलती तो है ही. लेकिन सबसे बडी गलती हम सभी की है. ट्विटर पर या फेसबुक पर कुछ देखा नहीं कि हम आगे पीछे कुछ सोचे बिना तुरंत रिएक्ट करते हैं.

एक हिंदू स्त्री जिसने मुस्लिम पुरुष से शादी की है, उसने ट्विटर पर खूब शोर मचाया कि मेरे साथ पासपोर्ट ऑफिसर ने बदतमीजी की, मुझे सही-गलत सवाल पूछकर मेरे धर्म को बदनाम किया, मुझे परेशान कर दिया, मेरी तो बस इतनी ही गलती है कि मैने हिंदू होकर एक मुस्लिम से शादी की है?

ऐसा लिख लिख कर पांच – पांच बार ट्वीट करते हुए सारे देश को उकसा दिया और सारे देश के साथ उकसावे में आनेवाली सुषमा स्वराज भी थीं और सुषमाजी ने इस शिकायतकर्ता की ट्वीट को ही जॉंच अधिकारियों की रिपोर्ट मानकर उस बहन का पासपोर्ट बनाने का हुक्म दे दिया और यूपी के उस पासपोर्ट अधिकारी का तबादला लखनऊ से सीधे गोरखपुर कर दिया.

मान लीजिए कि वो बहन बिलकुल सच होती तो भी सुषमाजी का यह कदम उतावलेपन और बिना सोचविचार के लिया गया कदम कहा जाता. एक विदेश मंत्री अपनी एफिशिएंसी साबित करने के जोश में ऐसी जल्दबाजी करती है तो यह देश के लिए उचित नहीं है.

वो बहन उस समय गलत साबित हुई जब पासपोर्ट ऑफिसर ने स्पष्टीकरण दिया कि असली भूल ये थी कि उस बहन के पास अधूरे कागजात थे और अपनी उस कमजोरी को छिपाने के लिए उसने विक्टिम कार्ड खेलकर ट्विटर पर शोरगुल मचाया.

२४ घंटे बाद दूध का दूध और पानी का पानी साबित हुआ. उस बहन ने मुस्लिम के साथ शादी करने के कारण भारत में मुझे अन्याय सहना पड रहा है, इस तरह का विक्टिम कार्ड तो खेला ही पर एक ही दिन में उसकी सारी चालबाजी सामने आ गई. लेकिन वह पासपोर्ट अधिकारी नाहक ही बदनाम हो गया. यह किस्सा तो लोग भूल जाएंगे. भविष्य में और नए किस्से बनेंगे. पहले प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सहानुभूति हासिल करने के लिए लोग निकल पडते थे, और अब ट्विटर और फेसबुक का जमाना आ गया है.

किसी के खिलाफ शिकायती सुर निकाल कर, खुद पर अन्याय होने का शोर मचाना आसान बात है. कोई भी व्यक्ति सहानुभूति जताने के लिए तुरंत दौड कर आ जाएगा. हम भी दौड जाएंगे- यह देखे बिना कि असल में शिकायतकर्ता की बात में सच्चाई है या नहीं.

मीडिया के कारण ही हमारा मानस इस तरह का हो गया है कि किसी के भी खिलाफ लगाए गए आरोपों को हम तुरंत सच मान लेते हैं: अरे भाई, अखबार में छपा है! और अब: अरे भाई, मैने फेसबुक पर पढा है, ट्विटर पर पढा है, व्हॉट्सएप पर पढा है. मानो अखबार, टीवी या सोशल मीडिया भगवद्गीता है और हम उसके जरिए मिली जानकारी को ब्रह्म वाक्य मान लेते हैं. वास्तव में तो गीता में भी कुछ समझ में नहीं आने पर, या कोई बात गले नहीं उतरने पर हम उसे स्वीकार नहीं करते हैं. हिंदू धर्म में तो यहॉं तक उदारता है.

सोशल मीडिया में फोटोशॉप करके लगाई जानेवाली तस्वीरें तो सबसे बडा दूषण बन गई हैं. कई बार तो ऐसी ब्ल्यू टिक भी देखने को मिलती है जिससे लगता है ट्विटर अकाउंट ओरिजनल अकाउंट है और नीचे लिखा संदेश पढकर आश्चर्य होता है कि अरे बाप रे, `इसने’ ऐसा कह दिया. सज्जन लोग ट्विटर एप खोलकर चेक कर लेते हैं कि उस व्यक्ति ने सचमुच ऐसा कोई ट्वीट किया भी है या नहीं या फिर किसी ने फोटोशॉप करके फेक इमेज दिखाकर बदतमीजी की है.

कई बार तो रेल यात्री खाने में कीडा निकलने का फोटो ट्वीट करते हैं या फिर कभी विमान यात्री एयर लाइन्स के स्टाफ के गलत आचरण के बारे में ट्वीट करते हैं और हम तुरंत मान लेते हैं कि ये सच ही होगा. हम कभी भी रेलवे या एयरलाइन के बयान का इंतजार नहीं करते और मान लीजिए कि स्पष्टीकरण आ भी जाता है तो ऐसा मान लेते हैं कि अपनी इज्जत बचाने के लिए वे झूठ बोल रहे हैं.

ट्विटर या फेसबुक पर किसी को बदनाम करने के खिलाफ कडी कार्रवाई के लिए ऑलरेडी कानून है. उस कानून को कडाई से लागू किया जाए तब तक धैर्यपूर्वक, आगे-पीछे के संदर्भों को देख-समझकर, अपनी बेवकूफी का प्रदर्शन करने के बजाय मैच्योरिटी दिखाने लगें तो आई एम श्योर कि सुषमा स्वराज जैसी नेताओं पर पब्लिक के प्रेशर काडर नहीं रहेगा और वे धैर्यपूर्वक सही जॉंच पडताल करने के बाद जैसा उचित हो वैसा निर्णय लेंगी.

बहरहाल उस हिंदू बहन जिनका पति मुस्लिम है, को झूठा होहल्ला मचाने और विदेश मंत्रालय को भ्रमित करने के लिए क्या सजा मिलनी चाहिए?

आज का विचार

२१ जून को योग दिन के मौके पर इतने सारे योग के संदेश आए कि फोन ही टेढा हो गया है, सीधा हो ही नहीं रहा.

– व्हॉट्सएप पर पढा गया

एक मिनट

बका: मर्डर से ज्यादा खतरनाक है शादी.

पका: कैसे?

बका: मर्डर साबित करने के लिए एक गवाह काफी है. जब कि शादी रजिस्टर करने के लिए दो गवाहों की जरूरत होती है!

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