अयोध्या में सरयू नदी, कनकभवन, हनुमानगढी और रामजन्मभूमि की यात्रा

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, बुधवार – २ जनवरी २०१९)

थर्टी फर्स्ट का जश्न सभी ने अपने अपने तरीके से मनाया. हमने अपने तरीके से मनाया- अयोध्या की रामजन्मभूमि पर विराजित रामलला की मूर्ति के दर्शन करके.

लेकिन परंपरा ऐसी है कि राम के दर्शन करने से पहले हनुमानगढी में दर्शन करना चाहिए. हमने हनुमानगढी जाने से पहले सबेरे नागेश्वर मंदिर में शिवजी के दर्शन किए. उसके बाद सरयू नदी के किनारे गए. अयाध्या सरयू नदी के तट पर बसी नगरी है. आप जानते हैं कि रामचरित मानस में सरयू का उल्लेख कई बार हुआ है. अवधी में सरयू के `य’ का उच्चारण `ज’ हो जाता है. सरजू. ऋग्वेद में ३ बार सरयू नदी का उल्लेख हुआ है.

सरयू के साथ कई कथाएँ जुडी हैं. सरयू का पाट बहुत ही चौडा है. अब तो उसके ऊपर पुल बन चुका है. सरयू में नौकायन करते करते हम सोच रहे थे कि इसी नदी में घडा डुबोकर अपनी कांवड में बिठाकर तीर्थयात्रा कराने निकला श्रवण कुमार अपने प्यासे माता-पिता के लिए पानी भर रहा था. बुडबुड की आवाज सुनकर आखेट पर निकले राजा दशरथ ने दूर से ही कल्पना कर ली कि कोई प्राणी वहां होगा. और बाण चला दिया तथा अनर्थ हो गया, जब यह ध्यान में आया तब दशरथ राजा स्वयं पानी भरा घडा लेकर श्रवण के माता पिता के पास गए. लेकिन नेत्रहीन माता पिता समझ गए यह उनका पुत्र नहीं है. राजा ने सारी बात बताई, माफी मांगी. माता पिता ने शाप दिया. हमारी तरह तुम भी अपने पुत्र के विरह में प्राण त्याग दोगे.

एक ये कथा भी है कि राम ने राज्याभिषेक के बाद रामराज्य की स्थापना करके उचित प्रकार से शासन किया और अपनी अंतिम बेला में इसी नदी में उन्होंने समाधि ली थी. उनके साथ शत्रुघ्न तथा भरत और कई निकट के अयोध्यावासी भी थे. एक ऐसी कथा है.

गंगाजी से कई उपनदियां निकली हैं. इन उपनदियों में से कई सहायक नदियों का निर्माण हुआ है. सरयू उन्हीं में से एक है. पवित्र है. (बाय दे वे, `गाइड’ तथा `मालगुडी डेज’ की कहानियों में आर.के. नारायण ने मालगुडी गांव जिस नदी के किनारे बसाया है उस नदी को सरयू नाम दिया गया है.)

सरयू का जल माथे चढाकर हम कनकभवन में दर्शन करने गए. भव्य राजमहल जैसा भवन है. राजमहल ही था. राम के विवाह के समय कैकेयी ने राजा दशरथ से यह महल बनवाया था- ताकि सीताजी जब विवाह करके आएं तब उन्हें मुंहदिखाई के रूप में इसे भेंट में दें. राजा दशरथ ने श्रेष्ठतम स्थापत्यकला के निष्णातों और विश्वकर्माओं को यह जिम्मेदार सौंपी थी. विवाह के बाद राम-सीता कनकभवन में ही रहते थे. विधि का विधान देखिए कि जिस कैकेयी ने बडे उत्साह से यह कनकमहल बनवा कर भेंट में दिया था, उसी कैकेयी के कारण राम-सीता को यह महल छोडकर वनवास पर जाना पडा. उस समय अयोध्यानगरी का यह सबसे भव्य-दिव्य महल था, आज के अयोध्या की सबसे सुंदर इमारत यह कनकभवन ही है.

माता पिता की स्मृति में उनके पुत्र कुश ने सीताराम की मूर्ति इस भवन में स्थापित की. आज की तारीख में यहां पर छोटे सीताराम और बडे सीताराम की मूर्तियां पास पास हैं. दर्शन करते समय बाईं तरफ आपको छोटे सीताराम की मूर्ति दिखाई देती है. उन्हीं से लगकर आपके दाएं हाथ पर बडे सीताराम का स्वरूप नजर आता है.

कनकभवन का इतिहास काफी लंबा है. त्रेतायुग से लेकर आज के कलयुग तक अनेक बार जीर्णोद्धार किए जा चुके इस कनकभवन की विशालता और भव्यता का दर्शन नहीं किया तो अयोध्या की यात्रा अधूरी मानी जाएगी. वर्तमान कनकभवन का निर्माण ओरछा राज्य के राजा सवाई महेंद्र प्रताप सिंह की पत्नी महारानी वृषभानु कुंवरी की देखरेख में १८९१ में (यानी जब गांधी जी करीब बाईस वर्ष के रहे होंगे तब) हुआ. इस मंदिर के गर्भगृह के पास ही शयनस्थान है जो भगवान राम का शयनकक्ष था. इस कुंज की चारों दिशाओं में आठ सखियों के कुंज हैं जिन पर उनके चित्र भी हैं. हर सखी अलग अलग सेवाएं देती थीं. जैसे कि चारुशिला भगवान के मनोरंजन तथा क्रीडा के लिए प्रबंध करती थी. इसी प्रकार से क्षेमा, हेमा, वरारोहा, लक्ष्मणा, सुलोचना, पद्मगंधा और सुभगा भगवान को विभिन्न सेवाएं देती थीं. इन आठों सखियों को भगवान राम की सखियों के रूप में पहचाना जाता है. इसके अलावा सीताजी की सेवा के लिए अन्य आठ सखियां थीं. सीताजी की अष्ट सखियों में चंद्रकला, प्रसाद, विमला, मदनकला, विश्वमोहिनी, उर्मिला, चंपाकला तथा रूपकला हैं. जानकीजी के साथ रामजी प्रतिदिन चौपड खेलते थे इसीलिए यहां चौपाट भी रखा गया है. ऐसी सारी कथाएं कनकभवन के इतिहास के साथ जुडी हैं.

कनकभवन के दर्शन करके हनुमानजी से मिलने हनुमानगढी गए. कनकभवन में जिस तरह से निरंतर रामचरित मानस का गान होता है उसी प्रकार यहां पर हनुमान चालीसा का पाठ गाया जाता है: श्री गुरू चरन सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि/ बरनऊ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि…

७६ सीढियां चढकर हनुमानजी के दर्शन के लिए आप उनके निवास स्थान पर पहुंचते हैं. लंका विजय के बाद अयोध्या आकर हनुमानजी ने उनके साथ रहने की आज्ञा मांगी. रामजी ने उन्हें हनुमानगढी के ऊंचे टीले पर भव्य महल जैसी विशाल जगह दी और इतना ही नहीं जो लोग मुझसे मिलना चाहते हैं उन्हें सबसे पहले हनुमानजी से मिलना होगा ऐसा आदेश भी रामजी ने दिया.

रामजी का आदेश माथे चढाकर हम रामजन्मभूमि जाने से पहले हनुमानजी से मिलने गए. हनुमानजी की सबसे छोटी प्रतिमा केवल छह इंच की है, जो यहां है. हनुमानजी की आज्ञा मिल गई है इसके प्रमाणस्वरूप माथे पर सिंदूर का तिलक लगाकर हम रामजन्मभूमि का दर्शन करने चले. तब हमारे समग्र अस्तित्व में इन शब्दों का गुंजन हो रहा था.

राम दुआरे तुम रखवारे,

होत न आज्ञा बिनु पैसारे.

सब सुख लहे तुम्हारी सरना,

तुम रक्षक काहू को डरना.

आपन तेज सम्हारो आपै,

तीनों लोक हांक ते कांपै.

भूत पिसाच निकट नहीं आवै,

महाबीर जब नाम सुनावै.

नासै रोग हरै सब पीरा,

जपत निरंतर हनुमत बीरा.

गोस्वामी तुलसीदास ने जिस जमाने में रामचरित मानस की रचना की और हनुमानचालीसा का सृजन किया उस जमाने में सेकुलर और लेफ्टिस्ट क्रमश: भूत और पिशाच के रूप में जाने जाते थे, ऐसी कथा है.

आज का विचार

विचारों में यह मन कभी डूब जाता है, साहब.

जीती बाजी लोग क्यों हार जाते हैं, साहब!

अधिक लगनशील लोग नीचे रह जाते हैं, साहब.

औ’ अज्ञानी लगनेवाले ऊँचाई पर पहुंच जाते हैं, साहब!

– डॉ. मुकुल चोक्सी

एक मिनट!

थर्टी फर्स्ट की रात को प्रधानमंत्री की योजना का सच में अमल हुआ.

शाम हुई,

रात ढली,

ढक्कन खुले

और

जगह जगह हुई

मन की बात

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