मक्का विवादास्पद नहीं है, येरुशलम विवादास्पद नहीं है, रामजन्मभूमि विवादास्पद है

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, गुरूवार – ३ जनवरी २०१९)

ईशू या मोहम्मद पैगंबर के जन्म का प्रमाण नहीं मांगनेवाले भारत के वामपंथियों, सेकुलरों और देशद्रोहियों को भगवान राम का बर्थ सर्टिफिकेट चाहिए. रामजन्मभूमि को `विवादास्पद मुद्दा’ बतानेवालों को जंगली और जाहिल कहा जाना चाहिए. ये आस्था का विषय तो है ही, ऐतिहासिक प्रमाणों का भी विषय है.

आप मुझे थप्पड मारकर मेरा पैसों का पाकिट छीन लें और पुलिस चुपचाप देखती रहे, और मैं आपका कॉलर पकड कर आप द्वारा छीना गया पाकिट वापस ले लूं तो पुलिस मुझे ही डंडे मारे, ये भला कहां का न्याय है?

ई.स. १५२८-२९ के दौरान यहां का राम मंदिर तोडकर मीर बाकी ने मुगल आक्रमणकारी बाबर के हुक्म से मस्जिद बनाई. मूलत: ताशकंद का निवासी बाकी ताश्कंदी मीर बाकी के रूप में जाना जाता था. बाबर ने उसे अवध (अयोध्या) का शासन सौंपा था. मेरे पास बाबर की जीवनी पर आधारित एक रोचक किताब (`बाबरनामा’) है जिसमें बाकी ताशकंदी का उल्लेख का उल्लेख बाकी बेग तथा साथ ही बाकी मिंगबाशी के रूप में है, लेकिन कहीं भी उसे मीर बाकी के रूप में नहीं पहचाना गया है. `मीर’ का बनावटी ओहदा १८१३ के दौरान बाबरी मस्जिद पर लगाई गई तख्ती पर टांका गया.

असल में बाबरी मस्जिद बनाने का सारा इतिहास ही गडबड घोटाले वाला है. १५२८-२९ में बाबरी नामक मस्जिद नहीं बनी होगी लेकिन उसके कई दशकों बाद एकाध-दो सदी के बाद बनी होगी. क्योंकि रामचरित मानस के रचयिता का जन्म १५३२ में हुआ था और उनका देहावसान १६२३ में हुआ, उन्होंने कहीं भी रामजन्मभूमि पर मस्जिद बनाए जाने का कोई संकेत या उल्लेख भी अपने किसी ग्रंथ में नहीं किया है.

बाबरी मस्जिद जितनी गिनाई जा रही है उतनी प्राचीन नहीं है यह एक बात. दूसरी बात ये कि यह मस्जिद मंदिर को तोडकर बनाई गई है इसके पुरातात्विक साक्ष्य इलाहाबाद (अब प्रयागराज) उच्च न्यायालय ने स्वीकार किए हैं. पुरातत्व विभाग ने बाबरी ढांचा जहां था, उस जगह पर उत्खनन करके इन प्रमाणों का जुटाकर अदालत को सौंपा था.

बाबरी मस्जिद १९४० से पहले मस्जिदे जन्मस्थान के रूप में पहचानी जाती थी, जिसकी जानकारी बहुत कम लोगों को है, क्योंकि ये सारी बात ही वामपंथी इतिहासकारों ने मिटा दी है. मस्जिदे जन्मस्थान के रूप में बाबरी मस्जिद का उल्लेख एक नहीं तीन पुस्तकों में हुआ है. तीनों पुस्तकें विदेशी संशोधकों ने लिखी हैं, विदेशी प्रकाशन संस्थानों ने प्रकाशित की हैं. १९४० से पहले के रेवेन्यू रेकॉर्ड्स जैसे तमाम सरकारी दस्तावेजों में बाबरी मस्जिद के रूप में पहचाने जानेवाले स्थान को `मस्जिदे जन्मस्थान’ के नाम से वर्णित किया गया है. वामपंथी इतिहासकारों ने किस हद तक भारत के इतिहास से छेडछाड की है इसका सबसे बडा प्रमाण ये है. क्योंकि मस्जिदे जन्मस्थान उसे कोई कब कह सकता है? क्या यह मोहम्मद पैगंबर का जन्मस्थान था इसीलिए? ईशू का जन्मस्थान था इसीलिए? यह भगवान राम का जन्मस्थान है, यह रामजन्मभूमि है ऐसी स्वीकारोक्ति यहां मंदिर तोडकर मस्जिद तोडनेवालों ने खुद दी है. संभव है कि ऐसा नाम देकर वे अपनी शक्ति कितनी है इसका आभास यहां की बहुसंख्यक हिंदू जनता को कराना चाहते होंगे. आज की तरीख में भी अयोध्या जिले में ९२ प्रतिशत से अधिक हिंदू जनता बसती है फिर भी वर्तमान सी.एम. योगी आदित्यनाथ के पूर्ववर्ती मौकापरस्त-मु्स्लिमवादी शासकों ने सारे जिले को फैजाबाद नाम दिया था. योगीजी ने फिर से अयोध्या कर दिया.

किसी जमाने में बाबरी मस्जिदवाले ढांचे की जगह पर कोई भी तर्क, प्रमाण तथा ऐतिहासिक संदर्भ रखकर देखें तो ये हिंदुओं की ही है. आजादी से पहले यह मामला जब कोर्ट में गया था तब अंग्रेज जजों ने इसे लंबित रखकर हिंदुओं को मुसलमानों के साथ लडाने की नीति को जारी रखा. आजाद भारत में अदालतों ने नेहरू को खुश करने के लिए इस विवाद को ज्वलंत ही रहने दिया. कानूनन ये जगह निर्मोही अखाडे की है. सुन्नी मुसलमानों ने इस जगह पर अपना दावा किया है जो बिलकुल गलत है. क्योंकि शिया मुसलमानों ने इस जगह पर बनी मस्जिद अपनी होने का प्रमाण देकर साबित किया है कि सुन्नियों का कोई हक नहीं है. आज की स्थिति में शियाओं ने समझबूझ दिखाते हुए सुप्रीम कोर्ट को लिखकर दिया है कि इस जगह पर अपने दावे का वे त्याग करते हैं, यहां राम मंदिर बनाने पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है. सरकार यहां पर भव्य राममंदिर बनाने के लिए प्रतिबद्ध है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या आता है इस पर निर्भर है कि सरकार को ऑर्डिनेंस द्वारा, अध्यादेश लाकर राम मंदिर बनाना पडता है या नहीं. सुप्रीम कोर्ट का फैसला हिंदुओं की ओर से आता है या जलेबी की तरह गोल होकर आता है, अस्ष्ट या संदिग्ध रूप में आता है तो सेकुलर होहल्ला मचाएंगे ही. स्पष्ट रूप से हिंदुओं के पक्ष में फैसला नहीं आने पर सरकार यदि अध्यादेश लाती है तो भी ये भगौडे वामपंथी लोग अपने भ्रष्ट मीडिया द्वारा ६ दिसंबर १९९२ के बाद जैसा शोरगुल किया था वैसा ही हाहाकार मचाकर मुसलमानों को उकसाने की कोशिश करेंगे. इस कारण हिंदू भी प्रत्युत्तर देंगे.

मक्का या येरूशलम को पवित्र स्थल माननेवाले लोगों को अयोध्या की रामजन्मभूमि क्यों आंख में चुभ रही है, ये समझ में नहीं आ रहा. हम कभी अन्य धर्मों के आराध्य स्थानों, आराध्य देवों या उनकी आस्था के बारे में विवाद नहीं करते. इतना ही नहीं, उन सभी का आदर करते हैं. और यहां भारत में ही जन्मी सेकुलर, वामपंथी जनता अनेक मुसलमानों को उकसा कर लाभ लेने की इच्छा से राजनेताओं का मोहरा बनकर भगवान राम की जन्मभूमि के बारे में क्या लिखते हैं आपको पता है? १९९२ में बाबरी ढांचा गिरने के बाद आनंदोत्सव मनाने के बजाय हिंदू पाठकों तथा विज्ञापन दाताओं के धन से करोडपति बने हिंदू मालिकों के मीडिया हाउस ने छापा था कि इस जगह पर अब मंदिर तो बिलकुल नहीं बनना चाहिए, सार्वजनिक शौचालय बनाना चाहिए. ऐसे प्रकाशन की सार्वजनिक रूप से होली की जानी चाहिए, जब ऐसा सुझाव दिया गया तब मैने कहा था कि नहीं उसे जलाना नहीं चाहिए, दफनाना चाहिए जिससे कि उनकी धार्मिक भावनाएँ आहत न हों!

अयोध्या की रामजन्मभूमि का दर्शन करने निकले तब आंखों में आंसुओं के साथ इस पवित्र स्थल के साथ जुडी ऐसी अनेक यादें ताजा हो गईं. शेष कल.

आज का विचार

विश्वास ऐसी मौत की राह पर था,

`बेफाम’ आंख बंद करके चलते रहे.

– बरकत वीरानी `बेफाम’

एक मिनट!

बका: बोल तो पका, शादी की तरह दो अनजान लोगों को कब एक दूसरे का साथ मजबूरी में निभाना पडता है.

पका: ट्रेन में जब आर.ए.सी. का टिकट मिलता है तब….

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here