शहीदों की चिताओं पर रोटियां सेकनेवाले

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, बुधवार – २० फरवरी २०१९)

पुलवामा शहीदों की चिताओं पर अपनी रोटियां सेंकने की लालच ममता बैनर्जी रोक नहीं पा रही हैं. ममता सार्वजनिक रूप से कहती हैं कि इलेक्शन करीब होने पर ही ये हमला हुआ है, इसमें सरकार की कोई चाल है. यानी ये हमला मोदी कराया है ऐसा ममता कहना चाहती हैं. शारदा चिट फंड के हजारों करोड रूपए में सिर से पांव तक डूब चुकी ममता बैनर्जी नीली पट्टीवाली सस्ती स्लिपर पहनकर सादगी का दिखावा मात्र करती हैं, दंभ करती हैं. राजनीतिक रूप से मोदी के सामने कण के समान और देशद्रोहियों से दोस्ती करने में अव्वल नंबर रखनेवाली ममता बैनर्जी की सोच कितने निम्नस्तर की है, यह तो आपको पता ही था. बस ये मामला इसकी का एक और प्रमाण है.

कैग की राफेल संबंधी रिपोर्ट की कीमत रद्दी जितनी भी नहीं है, ऐसा किसने कहा? उस राहुल गांधी ने, जो ममता दीदी का लाडला बनने का एक भी मौका नहीं छोडते. सुप्रीम कोर्ट ने जब जब देश की प्रगति के संदर्भ में फैसले दिए हैं तब सुप्रीम कोर्ट की आलोचना कौन करता है? साम्यवादी.

इलेक्शन कमीशन की निष्पक्षता पर कीचड उछालने के लिए खुद की हार पर ईवीएम से होनेवाले मतदान की आलोचना कौन करता है? मायावती और उनका भतीजा अखिलेश.

कैग, सुप्रीम कोर्ट या चुनाव आयोग, ये सभी भारत के लोकतंत्र की नींव को मजबूत करनेवाली संविधान द्वारा अस्तित्व में आई संस्थाएँ हैं. २०१४ के बाद ये संस्थाएँ निष्पण रूप से काम कर रही हैं, इससे पहले सभी जानते हैं कि कांग्रेस ने किस तरह से उन पर दबाव डाला करती थी. सुप्रीम कोर्ट के पास २००२ के गौधारा हिंदू हत्याकांड के बाद हुए दंगों के समय सुप्रीम कोर्ट ने तीस्ता सेटलवाड को कैसे कैसे फैसले देकर खुश किया, ये हम जानते हैं. सीबीआई नामक एक और सांवैधानिक संस्थान को कांग्रेस ने अपना बगलबच्चा बनाकर रखा था. वंजारा और अमित शाह को सीबीआई द्वारा झूठे मामलों में फंसाकर जेल में डालने के बाद कांग्रेस ने सीबीआई के गले में पट्टा बांधकर सीएम मोदी के सामने खडा कर दिया था. सीबीआई भी अब धीरे धीरे स्वतंत्र होती जा रही है.

वर्तमान सरकार सांवैधानिक संस्थाओं के अधिकारों के आडे नहीं आ रही ह. उनकी मर्यादा को उसने बचा रखा है. उनका सम्मान करती है. इसके बावजूद वामपंथियों के हीरो और साम्यवादी पार्टी के गैंग लीडर सीताराम येचुरी सोमवार को कहते हैं कि मोदी यदि फिर से जीत कर आए तो देश की सारी सांवैधानिक संस्थाएँ टूट जाएंगी.

साम्यवादी और सेकुलर आराजकतावादी होते हैं, यह बात आपको पहले विस्तार से बता चुका हूं कि किस तरह से वे किसी भी तरह के ठोस कार्य के बिना दूसरों को केवल गाली देकर, जनता की आंखों में धूल झोंककर, आराजकता फैलाकर, लोगों को कंफ्यूज करके सत्ता हासिल करना चाहते हैं.

ऐसी ही एक साम्यवादी छिपकली का नाम है द क्विंट जिसके मालिक राघव बहल पर हाल ही में आयकर के छापे पडे थे. द क्विंट जैसे जीव जंतु आज-कल इंटरनेट पर खूब फल फूल रहे हैं. सोमवार को इस न्यूज पोर्टल ने एक निबंध स्पर्धा की घोषणा की है. इनाम दस हजार रूपए रखा है. विषय क्या है? देश के लिए पूर्ण बहुमत वाली सरकार अच्छी है या महागठबंधन वाली कोएलिशन सरकार अच्छी है?

वामपंथियों को पूर्ण बहुमत वाली सरकार नहीं चाहिए. एक तो, वे खुद बाप जनम में कभी पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने की स्थिति में ही नहीं रहे हैं. दूसरे, अन्य किसी दल का बहुमत हो तो उनका महत्व खत्म हो जाएगा. भाजपा फिर एक बार पूर्ण बहुमत से सरकार बनाती है तो इस देश से साम्यवाद के लाल रंग को सदा के लिए तिलांजलि दे दी जाएगी, इसका आभास सीताराम येचुरी और उसके विघटनवादी साथियों को है. गठबंधन या कोएलिशन सरकार बनने में ही साम्यवादियों का लाभ है. वे गठबंधन सरकार में शामिल हुए बिना (ताकि किसी प्रकार की जिम्मेदारी उनके सिर पर न आए) बाहर से समर्थन करने में विश्वास रखते हैं, ताकि सरकार में बैठकर कोई भी काम किए बिना बाहर रहकर ही अपने मनमुताबिक सरकार को नचा सकें और अपने भ्रष्ट इरादों को पूरा कर सकें. साम्यवादी पहले से ही ये करते आए हैं, सोनिया के नेतृत्व में गूंगे मनमोहन सिंह की सरकार के समय भी उन्होंने यही किया था और भविष्य के लिए भी वे ऐसी ही बदनीयती रखते हैं. इसीलिए ऐसी विचित्र निबंध स्पर्धा रखी गई है.

बार बार कह रहे हैं कि मीडिया लगातार भ्रम फैलाकर बडे बडे बुद्धिमानों को भी मोदी के प्रति संदेह हो, इस प्रकार का वातावरण बनाने में सफल हो रहा है. ऐसी स्थिति में अपनी विवेकबुद्धि पर विश्वास रखकर, दूध का दूध और पानी का पानी करते हुए, मीडिया में दिख और छप रही हर सामग्री को जॉंच लेना चाहिए. किसी भी संदेहजनक जानकारी को जांचने की सुविधा न हो तो थम्ब रूप एक ही रखें: जो जानकारी सच है या झूठ, ऐसी शंका हो तो उसे झूठ ही मानना चाहिए. जो जानकारी अकल्पनीय लगती है-विचित्र लगती है उसे भी झूठ ही मानना चाहिए. जिस जानकारी में स्रोत का उल्लेख किया गया हो, उस सोर्स तक गुगल द्वारा पहुंचे बिना उस पर भरोसा नहीं करना चाहिए. आपको जिसकी विश्वसनीयता पर विश्वास है और अभी तक आपकी कसौटी पर जो सौ टंच का सोना साबित हुए होंगे, ऐसे लोगों के नाम को भुनाकर खानेवाले सोशल मीडिया के शरारती तत्वों की कलई खोलकर आपको अपनी ही हित सुरक्षित करना है और रोज एक बार गाना चाहिए कि हे प्रभु मुझे असत्य से परम सत्य की ओर ले चलो.

मीडिया द्वारा फैलाए जा रहे इस गहरे अंधकार में यदि कोई दीप प्रज्ज्वलित कर रहा हो तो उसे दोनों हाथों से आड करके देशद्रोहियों की फूंक से बचाना चाहिए.

आज का विचार

जिस डर का हम सामना नहीं करते, वह बाद में हमारी मर्यादा बन जाता है.

– व्हॉट्सएप पर पढा हुआ.

एक मिनट!

पका: बका, क्यों इतना उदास है?

बका: ये देखो ना, व्हॉट्सएप पर आजकल सिर्फ स्यूडो देशभक्ति के ही संदेश घूम रहे हैं. कोई भी निर्दोष जोक्स नहीं भेज रहा है.

पका: अच्छा‍?

बका: हां, इसीलिए अब लग रहा है कि कुछ दिनों के लिए `एक मिनट’ में हमें गैरहाजिर रहना होगा.

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