गुड मॉर्निंग
सौरभ शाह
श्रेयस अय्यर भारतीय क्रिकेट टीम के सदस्य हैं. श्रेयस जब नए नए टीम में दाखिल हुए तब महेंद्र सिंह धोनी ने उन्हें सलाह दी थी. धोनी की ये सलाह केवल क्रिकेटर के लिए ही नहीं है, बल्कि सभी के लिए हो सकती है.
धोनी ने श्रेयस अय्यर से कहा था: `अखबार मत पढना और सोशल मीडिया से दूर रहना.’ २३ साल के श्रेयस ने सीनियर क्रिकेटर की इस सलाह को गांठ में बांध लिया. धोनी ने उससे न्यूजपेपर नहीं पढने के लिए कहा था. हम उसमें न्यूज चैनल्स को भी शामिल करते हैं.
जो भी व्यक्ति जीवन में ठोस काम करना चाहता है उसे मीडिया और सोशल मीडिया से दूर रहना चाहिए और उसमें अखबार-टीवी चैनल्स के प्रत्रकारों का भी समावेश होता है.
चौंकने की जरूरत नहीं है. हर दिन के न्यूज से बाहर भी बहुत बडी दुनिया है. मीडिया-सोशल मीडिया से दूर रहना यानी उससे बिलकुल अलग हो जाना नहीं है. आपके आसपास क्या हो रहा है उससे आपको अवगत होना चाहिए. आपके व्यवसाय और कार्यक्षेत्र को ध्यान में रखकर मीडिया एक्सपोजर रखना चाहिए. टीवी या न्यूज चैनल्स या अखबारों में काम करनेवाले पत्रकार को दूसरे व्यवसाय के लोगों की तुलना में थोडी अधिक जानकारी रखनी पडती है, लेकिन प्रत्रकारों को भी सारे गांव की फिकर दुबले काजी होने की जरूरत नहीं होती.
न्यूज के महत्व के बारे में या यूं कहें कि न्यूज की अति और इर्रिलेवेंस के बारे में पिछले कुछ समय से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी चर्चा हो रही है. अपने यहां भी कुछ कुछ लिखा जा रहा है लेकिन गहन चर्चा का मुहूर्त अभी तक नहीं निकला है. इस लेख के लिए हम मीडिया में ही सोशल मीडिया को भी शामिल कर लेते हैं, अपनी सुविधा के लिए.
मेरा मानना है कि प्रतिदिन मीडिंया द्वारा हमारे ऊपर समाचारों का आक्रमण होता रहता है जिसमें से ९९ प्रतिशत खबरें हमारे लिए बिलकुल काम की नहीं होतीं, हमारे कामकाज के लिए हमारी जिंदगी के लिए बिलकुल निरूपयोगी होती है. बाकी एक प्रतिशत न्यूज में मान लीजिए १०० आयटम्स हैं तो उनमें से ९० आयटम्स हम न देखें या न पढें तो भी आराम से काम चल जाएगा- हमें भले ऐसा लगे कि वे ९० न्यूज आयटम्स हमारे जीवन के साथ या हमारे कामकाम के साथ जुडी हैं तो भी उस पर हम ध्यान न दें तो हमारा काम चल जाएगा. बाकी रही दस खबरें हमारे लिए काम की कही जा सकती हैं. हर दिन अखबार-टीवी की न्यूज चैनल्स द्वारा हम तक पहुंचाई जा रही खबरों में एक प्रतिशत से भी कम (उस एक प्रतिशत के दसवें भाग जितना) खबरे सचमुच हमारे काम की होती हैं ऐसा मैं ईमानदारी से मानता हूं, मीडिया में चालीस साल तक काम करने के अनुभव के कारण मानता हूं, आनेवाले ४० साल भी इसी क्षेत्र में बितानेवाला हूं यह तय है, फिर भी मानता हूं.
मीडिया का हस्तक्षेप हमारे जीवन में बढता जा रहा है और उसका एक बडा कारण है टेक्नोलॉजी. मराठा आरक्षण आंदोलन के कारण मुंबई बंद हो तो उससे लुधियाना या गुवाहाटी में रहनेवाले नागरिकों पर क्या आपत्ति आनेवाली है? देश में किसी कोने में चोरी, लूटपाट या खून – बलात्कार हो रहे हों तो उसमें क्या कर सकते हैं? डोनाल्ड ट्रम्प रूस या चीन या नॉर्थ कोरिया के साथ कैसा बर्ताव करते हैं यह जानकर हममें से कितने लोगों के जीवन पर असर पडेगा? ऐसे अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं.
अखबार और न्यूज चैनल्स अमीर घरानों के विवाह समारोहों के बुफे की तरह हैं. बडे लोगों के यहां बुफे में दस अलग अलग प्रकार के विभाग होते हैं. एक विभाग में चाइनीज व्यंजननों के काउंटर्स होंगे. दूसरे में मेक्सिकन, तीसरे में कॉन्टिनेंटल, चौथे में पंजाबी, पांचवें में चाट आयटम्स, छठे में देशी गुजराती, सातवें – आठवें – नवें- दसवें में आप खुद कल्पना कर लें. अब तो डेजर्ट के लिए भी एकाध दो काउंटर के बदले एक पूरा विभाग होता है जिसमें नहीं नहीं तो भी ठंडी गरम कुल दो तीन दर्जन मीठे व्यंजन परोसे होते हैं.
ऐसे बुफे में जाकर हम गलती करते हैं यही गलती अखबार पढते समय होती है. टीवी न्यूज चैनल देखते समय होती है. मुझे यदि साउथ इंडियन फूड अच्छा लगता है तो मुझे उसी विभाग में जाकर रसम, मिनी डोसा, कांचीपुरम इडली इ. ट्राय करके पेट भर लेना चाहिए. मेरी रुचि गुजराती भोजन की है तो मुझे उंधियुं, पूरी, कढी- भात, खांडवी, हलवा इ. से पेट भर लेना चाहिए.
पर हम क्या करते हैं? तितली या भॅंवरे की तरह या मधुमक्खी की तरह हर फूल पर बैठकर उसका रस चखने की लालच रखते हैं. थोडा यहां से थोडा वहां से, वो काउंटर तो रह गया, वहां भीड है तो जरूर कुछ बढिया होगा, ऐसी कल्पना करके पेट भरते जाते हैं और फिर तीन दिन तक पेट खराब कर लेते हैं. शादी समारोहों के बुफे में जाकर की गई हरकत तीन दिन के लिए हमारा पेट बिगाड देती है. अखबार- न्यूज चैनल्स के साथ भी ऐसा ही नजरिया रखने से हर दिन हमारा दिमाग खराब होता है- जिंदगी भर.
अन्य बातें कल.
आज का विचार
जीवन की पहेली को बूझने मत जाना,
नहीं तो कुछ उल्टा सीधा हो जाएगा.
जीवन को जियो,
समग्रता से जियो,
पूर्णता से जियो,
साक्षीभाव से जियो,
होश से जियो,
और तल्लीनता से.
– ओशो रजनीश
एक मिनट!
बका: कल मैने एक पुस्तक देखी: ‘जीवन की ५० प्रतिशत समस्याएं दूर करने की कला’.
पका: अच्छा! तो फिर?
बका: फिर क्या? मैने दो कॉपीज खरीद ली!
(मुंबई समाचार, सोमवार – ३० जुलाई २०१८)