चाणक्य नीति कहती है कि शत्रु अगर सामने से मदद करने आए तो भी उसे स्वीकार नहीं करना चाहिए

गुड मॉर्निंग क्लासिक्स : सौरभ शाह

(newspremi.com, सोमवार, ६ अप्रैल २०२०)

दुनिया बहुत क्रूर है और जैसे को तैसा किए बिना छुटकारा नहीं है, ऐसा जब आपको लगने लगे तब आपको बारंबार एक ही व्यक्ति से सलाह लेनी चाहिए: चाणक्य की सलाह.

चाणक्य के कई सूत्र लोगों की जबान पर हैं. इनका प्रति दिन उपयोग करनेवालों को पता भी नहीं होगा कि करीब दो हजार साल पहले चाणक्य ने इन सूत्रों की रचना की थी. शेर भूखा रह जाएगा पर घास नहीं खाएगा या लोहा ही लोहे को काटता है या शत्रु का शत्रु अपना मित्र या प्रशंसा तो देवताओं को भी अच्छी लगती है या फिर मूर्ख मित्र के बजाय समझदार शत्रु ज्यादा अच्छा जैसे सदाबहार सुविचारों पर यदि कॉपीराइट लागू होता तो आज चाणक्य के उत्तराधिकारी भारत के सबसे धनवान नागरिक होते.

पत्नी को पति के वश में रहना चाहिए या स्त्री पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए जैसे चाणक्य के कई सूत्र आज के समय में अप्रासंगिक बन गए हैं. ऐसे अनेक सूत्रों को नजरअंदाज कर दें तो और काफी बडा खजाना चाणक्य से आपको प्राप्त होता है. चाणक्य आज की तारीख में जीवित होते तो मल्टीनेशनल कंपनियों के मैनजमेंट कंसल्टेंट्स से लेकर प्रधान मंत्री के राजनीतिक सलाहकार तक के काम उनके लिए खुले होते. इसके अलावा चिंतक-विचारक के रूप में उनके व्याख्यानों का आयोजन करने के लिए लॉयन्स-जायंट्स -रोटरी और गुजराती समाज के समूह उनकी कुटिया के बाहर लाइन लगाकर खडे होते.

चाणक्य ने कौटिल्य के नाम से अर्थशास्त्र का ग्रंथ लिखा जिसका अंग्रेजी अनुवाद पेंग्विन जैसी अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशन संस्था की बेस्ट सेलर्स लिस्ट में काफी समय से है. चाणक्य को कई लोग अनैतिक और स्वार्थी बातों के प्रचारक के रूप में पहचानते हैं. चाणक्य के सूत्रों को देखने का यह एक दृष्टिकोण है. दुनिया में आप जैसे के साथ तैसा रहना चाहते हों तब चाणक्य आपको अनेथिकल या इम्मॉरल के बजाय प्रैक्टिकल अधिक लगेंगे. अपना या अपने राष्ट्र का हित साधने की सलाह को स्वार्थी बनने की सलाह अगर कोई मानता है तो भले माने. चाणक्य के दो हजार वर्ष बाद हुई अमेरिकी विदूषी एटन रैंड (`द फाउंटनहेड’ और `एटलस श्रग्ड’ नॉवल फेम) ने `द वर्चू ऑफ सेल्फिशनेस’ पुस्तक नहीं लिखी?

बहुत सारे काम सिर पर आ जायं तो प्रायोरिटी किस काम को दी जाय, यह नहीं सूझता. चाणक्य इस उलझन का सिंपल सोल्यूशन देते हैं: जिस काम से सबसे ज्यादा लाभ होनेवाला है उसे सबसे पहले करना चाहिए.

कभी लगता है कि सारे काम बेकार हैं, किसी से फायदा नहीं होनेवाला तो क्या करें? इसके लिए चाणक्य को पूछने जाने की जरूरत नहीं है. अपना लाभ जिसमें न हो उस काम को करने की कोई जरूरत नहीं है, ऐसा कोई व्यक्ति आपको कह सकता है. ऑन अ सीरियस नोट जो काम करने से सबसे अधिक नुकसान हो सकता है, उसे पहले कर लेना चाहिए.

कई बार तो आपको नया लगता होगा कि आपके शत्रु या अपरिचित लोग कितना प्यारा बर्ताव करते हैं. उनकी इस स्वार्थी घनिष्ठता के बारे में चाणक्य ने बार-बार लालबत्ती दिखाई है. कई सूत्र बार बार घुमाकर वे इस बात को हमारे दिमाग में डालना चाहते हैं कि शराबी के हाथ से दूध का प्याला नहीं पीना चाहिए, उसमें शराब होने की संभावना से कभी इनकार नहीं किया जा सकता. दुष्ट चालाक होते हैं, आपको मदद करने के लिए आगे बढा हुआ उनका हाथ कब आपका गला पकड लेगा, ये नहीं कहा जा सकता. कोई व्यक्ति आपका अधिक सम्मान करने लगे या अचानक लाड दुलार से बात करने लगे तो आपको सचेत हो जाना चाहिए. इस दिखावटी नम्रता के पीछे निश्चित ही उनका कोई स्वार्थ होगा.

कोई भी काम करते समय पहले कभी किसी के साथ दुश्मनी हो चुकी हो तो उस व्यक्ति से मदद नहीं लेनी चाहिए, ऐसा चाणक्य बलपूर्वक कहते हैं. सामने से सहायता देने आएं तो भी नो, थैंक यू कहकर उससे पीछा छुडा लेना चाहिए. क्योंकि वह आपको इसीलिए सहायता देना चाहता है कि कल उठकर आप उसके आसरे होंगे तब वह अपना आधार हटाकर आपको गिराने का मौका तलाश सकता है और पुराना हिसाब चुकता कर सकता है.

चाणक्य की दूसरी बात खास याद रखनी चाहिए कि कोई मनुष्य आपसे कुछ लेने आता है तो उसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए. वह वक्त का मारा होगा तो ही आपके सामने हाथ फैलाकर खडा है. जब भाग्य ने उसे आघात दिया हो तब उसकी सहायता करने के बजाय उसका अपमान करके उसकी परेशानी को बढाने की गलती कभी नहीं करनी चाहिए. लेकिन चाणक्य के इस सूत्र के साथ अन्य सूत्रों को रखना भी जरूरी है. कानून में जिस तरह से किसी धारा को अन्य धारा के साथ जोडकर पढा जाता है, वैसा ही कुछ यहां भी है. मदद मांगने वाले का तिरस्कार नही करना चाहिए, इस सलाह के सामने चाणक्य ने पहले भी ऐसा कहा है कि नीच या दुष्ट मनुष्य पर कभी उपकार नहीं करना चाहिए. सांप को दूध पिलाने से उसके जहर में वृद्धि होती है. (वैसे तो सांप दूध पीता ही नहीं है ऐसा स्व. विजयगुप्त मौर्य पचास बार लिख गए हैं, फिर भी हमारे अंदर से यह अंधविश्वास नहीं गया है). दुष्ट पर उपकार करने का विरोध करते हुए चाणक्य कहते हैं कि ऐसे लोगों को सारे उपकार कम लगते हैं और इसीलिए वे हमारे उपकार को अपना अपना अपमान समझ लेते हैं. इसीलिए ऐसे लोगों की सहायता करने से दूर ही रहना चाहिए. संक्षिप्त में याचक की अपेक्षा पूर्ण करने से पहले अपनी विवेकबुद्धि और पूर्वानुभव से जानना-परखना चाहिए कि आपका दान, आपकी मदद सुपात्र को जा रही है या कुपात्र को.

चाणक्य कहते हैं कि शत्रु के साथ चाहे कितनी ही दुश्मनी क्यों न हो, उसकी आजीविका को नष्ट नहीं करना चाहिए. किसी भी व्यक्ति को दीवार पर टिका देने से, उससे तमाम दिशाएं छीन लेने से, वह जान पर आ जाता है, मरने को तैयार होकर आप पर हमला करता है. अपनी सारी ताकत निचोड कर हमला करता है. बम्बइया हिंदी में उसे मरता क्या न करता फेनोमेनन कहा जाता है. आप शत्रु की रोजी रोटी भी छीन लेंगे तो आज नहीं तो दस साल बाद आपसे बदला जरूर लेगा. ऐसा कई सारे उदाहरण हमारे आस पास हैं. तो आगे से ध्यान रखें.

दूसरी बात, एरंडी जैसे अवसरवादी वृक्षों का सहरा लेकर हाथी को क्रोधित नहीं करना चाहिए. महाशक्तिशाली के सामने बाहें चढानी हों तो पहले जांच लेना चाहिए कि आपके पास भी उतना ही शक्तिशाली आधार है या नहीं? हाथी को क्रोधित करने के बाद छिपना हो तो एरंडी के बजाय वटवृक्ष की आड में छिपना उपयोगी होता है. सच है ना? बिलकुल सच बात.

कोई कुछ पूछता है तो उसका फटाक से जवाब नहीं देना चाहिए. प्रश्न के पीछे का हेतु क्या है, ये सोचना चाहिए. प्रश्नकर्ता के इरादे को जानने के लिए आपको प्रतिप्रश्न करना चाहिए. शठ लोगों की आदत होती है कि मासूम लगनेवाले सवाल पूछकर अपनी मनचाही बातें निकलवा लेते हैं. इसीलिए चतुर लोगों को सीधे जवाब देने के बजाय मोटी मोटा उत्तर देकर चुप रहना चाहिए. ये सलाह चाणक्य ने राजनीति के संदर्भ में दी है. हर दिन के व्यवहार में भी कई लोग इस पर अमल करते हैं.

चाणक्य के किन विचारों को जीवन में उतारना चाहिए और किन्हें छोड देना चाहिए, इसका निर्णय पाठक स्वयं करें. चाणक्य की चतुराई भरी बातों में और रुचि जाग रही है? तो कल कुछ और भी बात करेंगे.

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