(आज का संपादकीय: #2MinuteEdit, गुरुवार, २३ अप्रैल २०२०)
पालघर में साधुओं की हत्या से संतोष नहीं हुआ तो निडर और स्वतंत्र पत्रकारिता के प्रहरी अर्नब गोस्वामी तथा उनकी पत्नी पर बुधवार की रात बारह बजे के बाद हमला किया गया. अर्नब गोस्वामी की गलती क्या है? उन्होंने अपने `रिपब्लिक’ चैनल पर सोनिया गांधी की चुप्पी को चुनौती देते हुए कहा कि पालघर में साधुओं की जगह पादरियों या मौलवियों की हत्या हुई होती तो वे अभी तक चुप रहतीं? कांग्रेसी भडक गए. छाती पीटने लगे: हाय, हाय, हमारी सोनिया मैया की आलोचना की, बाप रे! कांग्रेसियों की ये गुलाम मानसिकता उन्हें भविष्य में कभी भी विश्वासपात्र राजनीतिज्ञ नहीं बनने देगी.
राजस्थान के कांग्रेसी मुख्य मंत्री अशोक गहलोत ने तो सार्वजनिक रूप से मांग कर दी कि सांसद राजीव चंद्रशेखर को चाहिए कि वे अर्नब गोस्वामी को `रिपब्लिक’ से निकाल दें. इंदिरा गांधी के जमाने से कांग्रेसी इस मानसिकता से पीडित हैं. कोई पत्रकार असहजता से भरी बात करता है तो उसके अखबार के मालिक से कहकर उसे नौकरी निकलवा दो. इंदिरा – राजीव – सोनिया ऐसा ही करते आए हैं. फ्रीडम ऑफ प्रेस का गुणगान करने वाली और मोदी की असहिष्णुता के नाम पर अवॉर्ड वापसी करती गैंग को कांग्रेस की इन नीतियों से कोई आपत्ति नहीं है. आज भी वे गहलोत के ऐसे गैरजिम्मेदाराना वक्तव्य के खिलाफ कुछ नहीं बोलेंगे.
मजे की बात ये है कि `रिपब्लिक’ से यदि अर्नब को काई निकाल सकता है तो वह खुद अर्नब ही है. राजीव चंद्रशेखर से अर्नब ने मेजॉरिटी शेयर्स वापस खरीद लिए हैं. हर पत्रकार पर इसकी उसकी नौकरी करते समय अखबार-टीवी इत्यादि के मालिक की तलवार हमेशा लटकती रहती है. इसी कारण उन्हें मालिक की जीहुजूरी करनी पडती है. अर्नब गोस्वामी जैसे बहुत ही कम पत्रकार होंगे जो खुद ही अपने मालिक हों.
सोनिया गांधी मोदी को `मौत का सौदागर’ जैसे बुरे शब्द कहती है तो उससे बिकाऊ पत्रकारों के पेट का पानी तक नहीं हिलता, और ऐसे लोग आज अर्नब गोस्वामी के सामने बंदूक तानकर बैठ गए हैं. `एडिटर्स गिल्ड’ के स्वामी शेखर गुप्ता के पालघर मामले को लेकर लिए गए स्टांस पर अर्नब गोस्वामी ने धारविहीन संपादकों-पूर्व संपादकों के इस अचेतन संगठन से इस्तीफा दे दिया है.
यदि आपकी याददाश्त अच्छी हो तो आपको १९९९ में ओडिशा के आदिवासी इलाकों में स्थानीय जनता को बहलाफुसला कर धर्मांतरण का बडे पैमाने पर काम करनेवाले ऑस्ट्रेलियन पादरी ग्राहम स्टेंस की हत्या का मामला याद होगा. सोनिया गांधी सहित कांग्रेसी, साम्यवादी तथा सेकुलर – लिबरल नेता तथा उनके तलवे चाटनेवाले प्रिंट मीडिया के संपादकों ने उस समय सारा देश सिर पर उठा लिया था. इस बार साधु नहीं, साधुओं की हत्या हुई है. ये सभी चुप हैं. उनकी चुप्पी को अर्नब गोस्वामी ने खुलेआम चुनौती दी. सोनिया मैया को ये अच्छा नहीं लगा. कल मध्यरात्रि के बाद अर्नब और उनकी पत्नी मुंबई में लोअर परेल स्थित `रिपब्लिक’ स्टूडियो से निकलकर अपने घर जा रहे थे कि तभी कांग्रेसी गुंडों ने उन पर हमला किया. किसके इशारे पर? उन्हें किसने उकसाया? स्पष्ट है.
मुंबई के पुलिस कमिश्नर रहे और अभी मोदी के मंत्रिमंडल में राज्य स्तर के जलमंत्री के रूप में गंगा के शुद्धिकरण की जिम्मेदार संभालनेवाले सत्यपाल सिंह किसी जमाने में पालघर इलाके के इनचार्ज थे. उन्होंने कहा है कि इस आदिवासी इलाके में अपराध ना के बराबर है लेकिन धर्मांतरण करवाने वाले मिशनरियों की गतिविधियां जोरशोर से चलती हैं. पालघर पुलिस द्वारा पकडे गए १०१ आरोपियों में से कोई मुस्लिम नहीं है, ऐसी शेखी बघारनेवाले ये नहीं कह रहे हैं कि १०१ में से कितने इसाई हैं.
हिंदू-मुस्लिम की समस्या कम थी कि कांग्रेसियों की राजमाता हिंदू-इसाई समस्या को भडका रही हैं? अर्नब गोस्वामी की तर्ज पर कहना हो तो: इंडिया वॉन्ट्स टू नो.