उपवास शस्त्र है या शास्त्र: थोडा वैयक्तिक, थोडा अवैयक्तिक

न्यूजव्यूज: सौरभ शाह

(newspremi.com, गुरुवार, २६ मार्च २०२०)

आम जीवन में उपवास शब्द सुनाई देने पर तुरंत ही गांधीजी याद आते हैं, ऐसा इस देश का माहौल था किसी जमाने में. गांधीजी कुदरती उपचार में विश्वास करते थे. उपवास का महत्व वे बखूबी समझते थे. आत्मशुद्धि के लिए भी उपवास करते थे. तब तक तो ठीक था. लेकिन एक तरफ लोकतंत्र में विश्वास रखने की बातें करना और दूसरी तरफ अपने आग्रहों के लिए सर्वसम्मति (या बहुमत) न होने पर उपवास पर उतर जाने की उनकी रणनीति निंदनीय थी. अहिंसा के आदरणीय पुजारी की वह परोक्ष हिंसा ही थी. मेरी अमुक मांग को नहीं माना गया तो मैं आमरण अनशन पर उतर जाऊंगा तो सामनेवालों को झुकना पडेगा, इसका विश्वास गांधीजी को विश्वास था. भगवान न करे अगर गांधीजी का अनशन लंबा चला, उनकी तबीयत उन्हें मरणासन्न होने की तरफ ले जाय तो जनता में असंतोष पनपेगा और नाराज जनता दंगे करेगी, हिंसा करेगी- ऐसा भय सामनेवाले के मन में घुमडता रहता. गांधीजी ने जिन आंदोलनों के लिए आह्वान किया वे सभी अहिंसक नहीं रहे. गांधीजी के कहने से शुरू हुए कई आंदोलन हिंसक रूप धारण कर लेते. इतने हिंसक की गांधीजी के अनुयायियों ने पुलिस को उनकी पुलिस चौकी में जिंदा जला दिया था. गांधीजी ने ऐसे आंदोलनों से दुखी होकर उन्हें किसी तरह से वापस लिया. तकनीकी रूप से गांधीजी के `उकसावे’ पर ही ऐसा परिणाम आए, ऐसा कहना चाहिए. यदि आपके अनुयायी आपकी बात न मानें तो आपको अपनी नेतागिरी पर अंकुश रखना चाहिए.

गांधीजी के जो उपवास स्वास्थ्य के कारणों से होते थे उन्हें पूरा समर्थन है. लेकिन जो उपवास ब्लैकमेल करने के इरादे से होते उसे कोई भी कभी समर्थन नहीं दे सकता.

गांधीजी के कारण उपवास (अनशन) प्रचलित हुए, बदनाम भी हुए. अण्णा हजारे जैसे अनेक भगोडे और स्वयंभू नेताओं ने भी गांधीजी के ब्लैकमेल वाले उपवास के तथाकथित `अहिंसक’ शस्त्र का उपयोग किया. जैसा बीज वैसा वृक्ष की तर्ज पर अण्णा हजारे को केजरीवाल जैसे चालू नेता मिले जो गुरू से भी सवाए साबित हुए.

बात अलग दिशा में जा रही है. हमने तो उपवास का शास्त्र खोा है. प्राकृतिक चिकित्सा यानी नेचरोपथी के शास्त्र का सार यदि एक शब्द में देना हो तो यह शब्द बिलकुल उचित होगा: आहारविहार.

आप क्या खाते हैं, क्या नहीं खाते, कब खाते हैं, कितना खाते हैं और आप कैसे वातावरण में रहते हैं- आपका आहार और आपका विहार ये तय करता है कि आपका स्वास्थ्य कैसा रहेगा. कब क्या खाना और कब क्या नहीं खाना चाहिए- ये सिर्फ दिन की बात ही नहीं है, आपके शरीर में होने वाले बदलावों के अनुसार कब क्या खाना और क्या नहीं खाना चाहिए, ये तय करना होता है. कफ का प्रकोप होने की संभावना वाले मौसम के शुरू होने पर ज्वार खाना चाहिए, गुढी पाडवा के दिन नीम का कडवा रस पिया जाता है, वर्षा में साग-सब्जियों में जीवजंतु छिप जाते हैं इसीलिए हरी सब्जी का त्याग करना चाहिए, समय की कसौटी पर परखी गई इन प्रणालियों को हमने अपनाया है.

किसी अनुपयुक्त भोजन के बाद पाचन ठीक से नहीं हुआ हो तो एक समय का भोजन नहीं करना चाहिए. कुछ शारीरिक स्थितियों में केवल मूंग का पानी पीकर रहना चाहिए. सप्ताह में एक दिन पूरी तरह से या एक समय उपवास करने से धर्म का पालन हो या न हो, पर शरीर का भला जरूर होता है. आठ सोमवार, सोलह शनिवार या पूरे साल शुक्रवार करने से मनोकामनाएं सिद्ध होती हैं, ये अंधविश्वास की बात नहीं है. ऐसे संकल्पों से मनोबल बढता है और इस बढे हुए मनोबल से आपको अपना सपना साकार करने में मदद मिलती है. – चाहे वह अच्छा पति मिलने का सपना हो या बिजनेस शुरू करने का, नौकरी पाने का हो या विदेश जाने का.

जैन धर्म के अनुसार अट्ठाई ने मुझे हमेशा आकर्षिक किया है, आठ-आठ दिन तक भूखे रहने का अनुभव कैसा हो सकता है, ये मुझ जैसे वैष्णव परिवार में पले बढे गुजराती के लिए कल्पना का विषय था. वैष्णव घरों में मोटेतौर पर (सभी घरों में नहीं) एकादशी के दिन या जन्माष्टमी जैसे दिनों पर फलाहार के नाम पर खाने पीने की मौज होती है. साबुदाने की खिचडी से लेकर…. अब वह सब याद नहीं करना है क्योंकि चैती नवरात्रि के दूसरे दिन का उपवास चल रहा है. वैष्णव लोग खुद पर हंस भी सकते हैं. गुजराती में `आज मारे अगियारस….’ नामक भजन भी है जिसमें हर अंतरे में दर्जनों उपवास के आहारों का उल्लेख किया गया है और ध्रुपद है: (इनके अलावा) मैने और कुछ नहीं खाया.’

वैष्णव परिवार में पलने के बावजूद जैन मित्रों-परिचितों-पाठकों के साथ खूब मजे रहा हूं. इसीलिए, अट्ठाई का आकर्षण. अट्ठाई तप करने की इच्छा तो मन में ही रह गई लेकिन जब से पता चला है कि नरेंद्र मोदी शारदीय नवरात्रि के नौ के नौ दिन केवल पानी पर उपवास करते हैं तब से मन करता था कि देखें तो भला कैसा अनुभव होता है. (मोदीजी का अश्विन मास का उपवास निराजल होता है, चैत्र में कोई एक छूट तय करते हैं और नौ दिन उसके आधार पर शरीर में शक्ति रहती है).

उस समय वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे. २००४ -०५ के आसपास अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के चुनाव का प्रचार नवरात्रि के समय हो रहा था. मोदी ने उस समय भाजपा के किसी भी वर्तमान कॉर्पोरेटर को टिकट नहीं देने का निर्णय पार्टी से करवाया था. लोग कहते थे कि दिसंबर २००२ में मोदी विधानसभा चुनाव में १८२ में से १२७ सीट जीते थे लेकिन अब महानगरपालिका के चुनाव में औंधे मुंह गिरनेवाले हैं. मोदी के लिए २००२ के बाद का सारा समय काफी कठिन था. बडी बडी बाधाओं को चुनौती के रूप में लेते थे. वे अहमदाबाद कॉर्पोरेशन के चुनाव प्रचार में खुद जुड गए. भूखे पेट आम सभाओं को संबोधित करते थे. रात दस बजे प्रचार का समय खत्म होने के बाद वे कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन करने के लिए हर वॉर्ड में जाकर मीटिंग लेते थे. परिणाम अपेक्षानुरूप ही आए. मोदी का निर्णय सही साबित हुआ. जिनकी पाटी कोरी थी, जिस पर कोई निशान नहीं था, उन सभी उम्मीदवारों को लोंगो ने भारी मतों से जिताया. मोदी की मेहनत सफल हुई.

मैं दूर रहकर उनकी इस शारीरिक -मानसिक शक्ति को चकित होकर देखता रहता. २००७ की नवरात्रि के समय मैने तय किया कि मुझे भी केवल पानी पीकर नौ दिन का उपवास करना है. एक बुजुर्ग की सलाह थी कि कम से कम लौकी का रस तो हर दिन पीना ही चाहिए क्योंकि आपके लिए ये जीवन का पहला दीर्घ उपवास है. पहले दिन दोपहर में दो घूंट लौकी का रस पीकर बुजुर्ग की आज्ञा का मान रखा लेकिन बाकी के दिन पानी पीकर ही गुजारे. उस दौरान मैने तय किया था कि जो भी सामान्य कार्य है उसे रोकना नहीं है. स्थितियां ऐसी बनी कि उस दौरान काम के लिए यात्राएं बढ गईं. बडे उत्साह से काम पूरा किया और बडे ही उत्साह से उपवास भी पूरा किया. हर घंटे शारीरिक और मानसिक भूख लगने लगती है. चौथे दिन से आदत पड जाती है. बाद के दिन सामान्य हो जाते हैं. आखिरी दिन कमजोरी महसूस होती है लेकिन कामकाज चालू रहता है. अंतिम दिन धैर्य समाप्त होने को आता है शायद इसीलिए भी कमजोरी महसूस होने लगती है. लेकिन कुल मिलाकर जीवन का ये अविस्मरणीय अनुभव था.

जीवन में उपवास का ये सिलसिला वैसे तो २७ फरवरी २००२ के कारण शुरू हुआ था. करोडों भारतीयों की तरह गोधरा हिंदू हत्याकांड की विभीषिका मन को कचोटती रहती थी. २६ फरवरी २००३ को एसएमएस पर सभी को संदेश भेजा कि: `कल काला दिन है. गोधरा हिंदू हत्याकांड की पहली बरसी है. ५९ हिंदुओं को जिंदा जला देने की उस घटना को कभी भूला नहीं जा सकता. क्या आपने दो उंगलियों के बीच जलती हुई माचिस की तीली पकडी है? कहां तक पकड कर रख सकते हैं? उंगली के किनारे जल न जायं तब तक ही. अब कल्पना कीजिए कि केवल उंगली के पोर को ही नहीं, बल्कि पैर से लेकर सिर तक आपके सारे शरीर को जलाने वाली आग को आप कब तक सह सकेंगे, जब तक कि आपके शरीर से प्राण निकल नहीं जाते तब तक. क्या सह सकेंगे? ५९ हिंदुओं ने जो सहा उसे श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए २६ की रात को भोजन करने के बाद २८ तारीख की सुबह तक पेट में पानी के अलावा कुछ भी नहीं डालेंगे.’

इस आशय का संदेश प्रसारित किया और हर साल २७ फरवरी के अगले दिन यही मैसेज मैं सभी को भेजता था. उसके बाद ये मैसेज गुजरात में इतना फैला कि लाखों की संख्या में लोगों ने काला दिन पर ३६ घंटे का उपवास करना शुरू किया. आखिरी उपवास मैने २७ फरवरी २०१४ को किया. मई २०१४ को मोदी के प्रधान मंत्री बनने के बाद मैने तय किया कि अब २७ फरवरी को उपवास करने की जरूरत नहीं है. अब इस देश के हिंदुओं के सिर पर छत्र आ गया है.

शारदीय नवरात्रि को किए उपवास के तेरह साल बाद चैत्र नवरात्रि का उपवास शुरू किया है. आज दूसरा दिन है. इस बार चौबीस घंटे में दोपहर को एक समय का भोजन करने संकल्प लिया है. आज सोने से पहले एक फल या सादा दूध लेना है. इतना संकल्प लेने से मानसिक रूप से अच्छा लगता है और अमल में लाने के बाद शारीरिक रूप से भी. वर्ना मेरी सामान्य दिनचर्या में तो मुझे सुबह उठने के बाद भारी ब्रेकफास्ट चाहिए ही होता है. उसके बाद दोपहर और रात्रि के दो फुल मील के अलावा बीच बीच में हर दो घंटे पर कुछ न कुछ छोटा-बडा खाने को चाहिए. संयम का आनंद लेने का आरंभ कल से हो चुका है. दोपहर को भोजन करते समय पता होता है कि अगला भोजन चौबीस घंटे बाद मिलनेवाला है, तो निवाला धीरे धीरे मुंह में रखा जाता है जिसके दो लाभ होते हैं: हर व्यंजन अधिक स्वादिष्ट लगता है और कम पसंद आनेवाला पदार्थ भी अच्छा लगने लगता है. दूसरा फायदा ये है कि कम मात्रा में ही तृप्ति मिल जाती है, खाने की संतुष्टि बढ जाती है. ट्राय करके देखिएगा. इसके अलावा अभी देश में जो परिस्थिति है वह भी भोजन करते समय आपके सुप्तमन में होती है, इसीलिए जरूरत से अधिक खाना न बने इस प्रकार से संभालकर उपयोग करने की आदत पड जाती है.

रामनवमी तक ही नहीं १४ अप्रैल तक हमारा ये उपवास का आनंद चलनेवाला है. लॉकडाउन हो या नो-लॉकडाउन- इसके बाद भी ये नई आदत जारी रहे तो अच्छा होगा, ऐसी ईश्वर से प्रार्थना है.

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