`कम से कम इस्तीफे का ऑफर तो करते’

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, सोमवार – ३ सितंबर २०१८)

वाजपेयी के साथ दूसरे महत्वपूर्ण मतभेद के बारे में उल्लेख करते हुए आडवाणी आत्मकथा में लिखते हैं कि नरेंद्र मोदी को मुख्य मंत्री बने एक वर्ष से भी कम समय में जटिल सांप्रदायिक स्थिति का शिकार बनना पडे तो यह अन्यायपूर्ण कहा जाएगा, आडवाणी ने स्पष्ट रूप से कह दिया कि दंगों के कारण मोदी को हटाया जाएगा तो गुजरात के सामाजिक तानेबाने पर उसका दीर्घकालिक प्रभाव पडेगा. आडवाणी जानते थे कि गुजरात की घटनाओं ने वाजपेयी को गहरा दु:ख पहुँचाया है. १९९८ में एन.डी.ए. की सरकार बनने के बाद सारे देश में सांप्रदायिक दंगों के मामलों में काफी कमी आई थी, जिस पर भाजपा को गर्व था. २००२ में जब तक दंगे नहीं हुए थे तब तक भाजपा ने विरोधियों के इस डर को खत्म कर दिया था कि भाजपा सत्ता पर आएगी तो देश में मुस्लिमों और इसाइयों के खिलाफ बडे पैमाने पर सांप्रदायिक हमले होने लगेंगे. असलियत ये थी कि वाजपेयी सरकार ने भारत के ही मुस्लिम नहीं, बल्कि विश्व के इस्लामिक देशों के मुस्लिमों का विश्वास जीतने में भी सफलता हासिल की थी. ऐसी स्थिति में गुजरात के सांप्रदायिक दंगों के कारण सरकार तथा भाजपा के वैचारिक विरोधियों ने तीखी आलोचनाओं का जो प्रहार शुरू किया उसके कारण काफी नुकसान हो रहा था, ऐसा लिखकर आडवाणी कहते हैं कि ऐसी परिस्थिति के कारण अटलजी के मन पर काफी बडा बोझ था. अटलजी को लगता था कि, इसका कोई इलाज किया जाना चाहिए, कोई ठोस निर्णय लेना चाहिए. उस कालावधि में मोदी के इस्तीफे की मांग की जा रही थी, मोदी पर दबाव बढता जा रहा था. इस बारे में वाजपेयी ने अपने विचार स्पष्ट रूप से व्यक्त नहीं किए थे लेकिन आडवाणी जानते थे कि वाजपेयी ऐसा ही कहेंगे कि मोदी को इस्तीफा देना चाहिए. वाजपेयी को पता था कि आडवाणी ऐसे किसी भी निर्णय के पक्ष में नहीं थे.

अप्रैल २००२ के दूसरे सप्ताह में गोवा में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक थी. मीडिया और मीडिया के राजनीतिक सूत्र ऐसी अटकलें लगा रहे थे कि इस बैठक में भाजपा गुजरात के बारे में किस दिशा में विचार विमर्श करेगी और मोदी के बारे में क्या फैसला लिया जाएगा.

(एक विषयांतर: गोवा की उस बैठक में जाने से पहले दस अप्रैल को मोदी मुंबई के दौरे पर आए थे और मलाबार हिल स्थित महाराष्ट्र सरकार के गेस्ट हाउस `सह्याद्रि’ में वे मुंबई के कई सीनियर गुजराती पत्रकारों के साथ लंच पर मिले थे.)

आडवाणी लिखते हैं: `अटलजी ने कहा कि मैं नई दिल्ली से गोवा तक की यात्रा के समय उनके साथ रहूँ.’

विशेष विमान में प्रधान मंत्री के लिए निर्धारित जगह में वाजपेयी. आडवाणी, विदेश मंत्री जसवंत सिंह तथा सूचना एवं प्रसारण मंत्री अरुण शौरी भी थे. दो घंटे की यात्रा के दौरान शुरु में चर्चा के केंद्र में गुजरात की घटनाएँ ही थीं. अटलजी ध्यान मग्न थे. कुछ देर तक शांति छाई रही. तभी जसवंत सिंह के पूछे प्रश्न से मौन का वातारण टूटा: `अटलजी, आप क्या सोचते हैं? अटलजी ने कहा: `कम से कम इस्तीफे का ऑफर तो करते.’ तब आडवाणी ने कहा: `यदि नरेंद्र मोदी के पद छोडने से गुजरात की स्थिति में सुधार आता है तो मैं चाहूंगा कि उन्हें इस्तीफे के लिए कहा जाए. लेकिन मैं नहीं मानता कि इससे कोई मदद मिल पाएगी. मुझे विश्वास नहीं है कि पार्टी की राष्ट्रीय परिषद या कार्यकारिणी इस प्रस्ताव को स्वीकार करेगी.’

प्लेन जैसे ही गोवा पहुंचा कि आडवाणी ने पहला काम नरेंद्र मोदी से मिलने का किया. आडवाणी ने मोदी से कहा कि आपको त्यागपत्र देने का प्रस्ताव करना चाहिए. मोदी ने तुरंत आडवाणी को हां कह दिया. राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में गुजरात के बारे में चर्चा जब शुरू हुई तब कई सदस्यों ने अपने अपने विचार प्रकट किए. सभी को सुन लेने के बाद मोदी सबको संबोधित करने के लिए खडे हुए. उन्होंने गोधरा में हुई घटना और गोधरा के बाद गुजरात में हुई घटनाओं के बारे में विस्तृत जानकारी दी. साथ ही गुजरात में भूतकाल में हुए सांप्रदायिक दंगों की पृष्ठभूमि भी रखी और स्पष्ट किया कि पिछले दशकों में किस तरह से बार-बार सांप्रदायिक दंगे होते रहे हैं. इतना कहकर उन्होंने अपने भाषण के अंत में कहा:

`फिर भी, सरकार का अध्यक्ष होने के नाते मैं अपने राज्य में घटित होनेवाले इस कांड की जिम्मेदारी लेता हूं. मैं त्यागपत्र देने के लिए तैयार हूं.’

इसके बाद क्या हुआ उसका विवरण कल होगा. इस दौरान आडवाणी `माय कंट्री माय लाइफ’ में लिखी घटनाओं के साक्षी स्वयं हैं. उनके वर्णन के विपरीत हजार बातें किसी ने सुनी हो सकती हैं. लेकिन उन बातों पर भरोसा नहीं किया जा सकता. आडवाणी जब सार्वजनिक रूप से अपनी जिम्मेदारी से, अपनी शतप्रतिशत विश्वसनीयता के साथ कुछ कहते हैं तो उसमें असत्य का एक छींटा तक नहीं हो सकता. आडवाणी के इस वर्जन को यदि कोई चुनौती दे सकता है तो वह व्यक्ति हैं, स्वयं मोदी. वे जब अपना संस्मरण या आत्मकथा लिखेंगे, तब की बात तब करेंगे. तब तक तो आडवाणी के इस वर्जन को ही फाइनल माना जाएगा. और हमें विश्वास है कि मोदी के वर्जन में भी कण भर भी अंतर नहीं होगा.

आज का विचार

स्मृति एक ऐसी डायरी है जो चौबीसों घंटे हमारी जेब में रहती है.

– ऑस्कर वाइल्ड

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