दिन ढल जाए हाए रात न जाय

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, शुक्रवार – ५ अक्टूबर २०१८)

राजू ने मान लिया था कि उसकी और रोजी की जिंदगी में अब मार्को नाम के आदमी का कोई अस्तित्व नहीं है. रोजी खुद मार्को के साथ बीते पीडादायी भूतकाल को भूल गई होगी और रोजी के डांस शोज के लिए रखा गया नाम भी नलिनी था इसीलिए मार्को को भी रोजी की प्रसिद्धि तथा रोजी की सार्वजनिक जिंदगी के बारे में उस तक खबर नहीं पहुंचती होगी.

लेकिन राजू गलत था. एक बार मालगुडी में ही रोजी के कार्यक्रम लगातार सात दिन तक चल रहे थे. जनरली रोजी के नाम पर रोजाना ढेरों पत्र आते थे. निमंत्रण पत्र, कैटलॉग, कविता, पत्रिकाएं, प्रशंसकों के पत्र. न जाने क्या क्या आया करता था. राजू का सेक्रेटरी इन सारे पत्रों को खोल कर प्रत्येक का फैसला किया करता. रोजी के लिए कई तमिल और अंग्रेजी मैगजीन्स आती थीं तो उन्हें ऊपर उसके कमरे में भेज दिया जाता था. राजू को ऐसी पत्रिकाओं और पुस्तक-पुस्तिकाओं में कोई रुचि नहीं थी, वह उन्हें देखता भी नहीं था. उसे सिर्फ निमंत्रण पत्रिकाओं में रुचि थी, कौन कब रोजी का प्रोग्राम करवाना चाहता है, जैसे पत्र राजू के लिए काम के थे. राजू ने मणि को सख्त हिदायत दे रखी थी कि ऐसे पत्रों के अलावा बाकी कोई भी फालतू के पत्र मुझे देकर मेरा समय बर्बाद मत करना.

इसके बावजूद मणि एक दिन एक पैकेट लेकर आया,`सर, ये आपके काम का लगता है.’ कहकर पैकेट खोला. अंदर से एक बुक निकली जिस पर लेखक का नाम पढते ही राजू ने लपक कर मणि के हाथ से ले लिया. द कल्चरल हिस्ट्री ऑफ साउथ इंडिया. पुस्तक के शीर्षक के नीचे लेखक का नाम था: मार्को.

पुस्तक पर पेंसिल से लिखा था:`देखिए पृष्ठ १५८.’ उस पृष्ठ पर गुफाओं के चित्र के नीचे लेखक ने प्रकरण शुरू करने से पहले उल्लेख किया था:`इस प्रकरण में उल्लिखित गुफाओं के अध्ययन के लिए मालगुडी रेलवे स्टेशन के श्री राजू द्वारा की गई सहायता के लिए हृदयपूर्वक कतज्ञ है.’

हर पन्ने पर तस्वीरों से युक्त यह उत्कृष्ट पुस्तक काफी महंगी थी. बीस रूपए की.

राजू ने सेक्रेटरी मणि से कहा,`ठीक है, इसे मैं रख लेता हूँ.’ राजू को आश्चर्य लग रहा था कि मणि ने यह पैकेट क्यों दिया. क्या मणि को पता था कि इस पुस्तक के लेखक का मेरे साथ संबंध था? `थैंक यू, मैं बाद पढूंगा’, कहकर राजू ने मणि को चलता किया.

राजू ने सोचा: यह किताब रोजी को दिखानी चाहिए? रोजी को तो गुफाओं और उससे जुडे अध्ययनों से ऊबन होती थी. उसने कई बार कहा था कि मार्को के इस शौक से वह परेशान हो गई है. बेचारी को फिर से क्यों तकलीफ देना. राजू ने छानबीन कर देखा कि पुस्तक के साथ कोई पत्र तो नहीं था. बिलकुल इम्पर्सनल तरीके से इसे भेजा गया था- जैसे बिजली का बिल. राजू ने १५८वां पन्ना फिर से खोला. अपना छपा हुआ नाम पढकर उसे फिर से रोमांच महसूस हुआ. लेकिन मार्को ने उसका नाम क्यों लिखा. नाम लिखने के पीछे उसका क्या इरादा था? उसने वादा किया था इसीलिए या फिर उसकी औकात याद दिलाने के लिए‍? यह जताने के लिए कि वह केवल एक मामूली गाइड था? जो भी हो. राजू ने निश्चय किया कि रोजी को इस किताब से दूर रखना होगा. शराब की बोतलों के खाने में उसने उसे छिपा दिया. रोजी की नजर उस पर कभी नहीं पडेगी. वैसे भी रोजी का उस किताब के साथ भला क्या लेना देना? वैसे भी मार्को ने उसके नाम पर पैकेट भेजा था- गाइड के रूप में उसके द्वारा दी गई सेवाओं के प्रति आभार प्रकट करने के लिए भेजा था.

किताब छिपाने के बाद राजू को ऐसा लगा जैसे उसने किसी लाश को ठिकाने लगा दिया हो. राजू को बाद में ऐसा लगने लगा कि इस दुनिया में किसी बात को छिपाया या दबाया नहीं जा सकता. ऐसी तमाम कोशिशें सूर्य को छाते से ढंकने जैसी साबित होती हैं. आपके ऊपर धूप नहीं पडती है तो आप सूर्य का अस्तित्व ही भूल जाते हैं. लेकिन आपके अलावा सभी को सूर्य का अस्तित्व अच्छा लगता है.

तीन दिन बाद मार्को की फोटो `इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ बॉम्बे’ नामक पत्रिका में छपी. रोजी हमेशा यह मैगजीन पढा करती थी. उसे उसमें छपनेवाली कहानियां, निबंध पढना और शादी की तस्वीरें देखना अच्छा लगता था. मार्को की फोटो उसकी पुस्तक की समीक्षा के साथ छपी थी:`भारतीय संस्कृति के इतिहास को एक कदम आगे ले जाता अध्ययन.’ रोजी ऊपर से दौडती हुई आई और राजू को इस मैगजीन का पन्ना दिखाकर उत्साह से कहा,`ये देखा तुमने?’

राजू ने पृष्ठ पर छपा विवरण पढकर उचित मात्रा में आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा,`शांत रहो, जरा धैर्य रखो. बैठो तो सही.’

`गजब है ना. उन्होंने सारा जीवन इसी क्षेत्र में काम किया है. अब जाकर उन्हें मान्यता मिली है. मुझे तो उनकी किताब देखने का मन हो रहा है….’

`किताब में भला क्या देखना होता है. हमें समझ में न आनेवाली बातें होंगी उसमें. हां, जिन्हें इस फील्ड की जानकारी हो उन्हें जरूर इसमें रुचि होगी.’

`मुझे वह किताब देखनी है. कहां मिलेगी.’ रोजी ने तुरंत मणि को बुलाया. पहले उसने कभी राजू के सेक्रेटरी से सीधे बात नहीं की थी. `मणि, ये किताब जहां भी मिले तुम मुझे लाकर दो.’

मणि ने करीब आकर पन्ना पढा. फिर थोडी देर सोचने लगा. उसने राजू के सामने देखा और कहा,`ठीक है मैडम.’

राजू ने जल्दबाजी में मणि से कहा,`वो खत जल्दी से पूरा करके खुद पोस्ट ऑफिस में दे आना. देर नहीं होनी चाहिए!’

मणि के जाने के बाद रोजी भी ऊपर जा रही थी. बाद में राजू का पता चला कि रोजी ने मैगजीन से मार्को की फोटो काटकर अपने ड्रेसिंग टेबल के आईने में लगा रखी है. राजू को धक्का लगा.

इस घटना के तीसरे दिन रात को बिस्तर पर जाने के बाद रोजी ने पहला सवाल यह पूछा कि:

`तुमने ये बुक कहां छिपाई है?’

`तुमसे किसने कहा?’

`वो जाने दो, मुझे पता है कि बुक इस पते पर आई है. मुझे देखनी है.’

`ठीक है, कल दिखाऊंगा.’

राजू ने मन ही मन मणि के बच्चे को मन भर सुनाया. उस हरामखोर का अब कुछ करना होगा.

`तुमने बुक मुझसे क्यों छिपाई?’

`अभी माथापच्ची रहने दो मुझे बडी जोर की नींद आ रही है?’

`मुझे जवाब दे दो फिर तुरंत सो जाना.’

`मुझे पता नहीं था कि तुम्हें इस किताब में रुचि होगी.’

`क्या नहीं होगी? आखिरकार….’

`तुमने तो मुझसे कहा था कि तुम्हें उसके काम में कोई इंटरेस्ट नहीं है.’

`आज की तारीख में भी मुझे वह बोरिंग लगता है लेकिन उसके जीवन में जो कुछ भी हो रहा हो, उसमें मुझे जरूर इंटरेस्ट है. मुझे खुशी है कि उसकी किताब प्रकाशित हुई, उसका नाम, उसका काम कई सारे लोगों तक पहुंचा.’

`तुम्हें रातोंरात उसमें बडी दिलचस्पी होने लगी है. लेकिन वह किताब मेरे नाम पर आई थी, तुम्हारे नाम पर नहीं.’

`क्या सिर्फ इसी कारण से तुमने उसे मुझसे छिपा दिया?’

`मेरे नाम पर आई किताब का क्या करना है क्या नहीं करना, ये कहनेवाली तुम कौन हो? बस अब मुझे चुपचाप सोने दो और तुम पढ नहीं रही हो और सिर्फ सोच रही हो तो बत्ती बुझाकर अंधेरे में सोचती रहो?’ कहने को तो कह दिया लेकिन दूसरे ही पल राजू को इतने कठोर शब्द बोलने पर पछतावा होने लगा. राजू के मन में रोजी से माफी मांगने का विचार आया.

आधे घंटे करवटें बदलने के बाद राजू ने लाइट चालू की. रोजी अब भी रो रही थी. राजू ने कहा,

`चलो, अब सो जाओ. क्या हो गया है तुम्हें?’

`आखिर वो मेरा पति है.’

`हां, पर इसमें रोने की क्या बात है? उसका नाम हो रहा है तो तुम्हें तो खुश होना चाहिए.’

`मैं खुश हूं.’

`तो फिर रोना बंद करके सो जाओ.’

`मैं उसके बारे में बात करती हूं तो चिढ क्यों जाते हो?’

`उसने तुम्हें कितनी बुरी तरह से छोड दिया. क्या उस पर गुस्सा नहीं आएगा?’

`आएगा. लेकिन तुम यह देखो कि पूरा महीना उसने मुझे किस तरह से सहा. मैने उसे अपने बारे में सबकुछ बता दिया उसके बाद भी उसने मेरा ख्याल रखा. दूसरा कोई पति होता तो मेरा गला दबा देता. उसने मेरे साथ बडे ही भलमनसाहत का बर्ताव किया था.’

`पर अब वो तुम्हें हाथ भी नहीं लगाएगा, समझीं? तुम्हारे स्पर्श से भी दूर रहेगा वो.’

`तुम मुझे यही सब सुनाना चाहते हो?’

राजू को समझ में नहीं आ रहा था कि रोजी क्यों इस तरह का बर्ताव कर रही थी. महीनों तक वह रोजी की याद में खाए पिए बिना बांवला बनकर भटका था. रोजी ने अपने पति के बारे में कितना बुरा बुरा कहा था. क्या वह सब झूठ था? उसे अपनी ओर आकर्षित करने की कोई चाल थी? जब वह उससे भी थक जाएगी तो उसके बारे में वह दूसरों के सामने भी ऐसे ही आरोप लगाएगी? रोजी के करियर के लिए उसने क्या क्या नहीं किया. और अब वह ऐसा प्रतीत करवा रही है मानो वह अपने पति के प्रेम में आकंठ डूबी हो. इसका उपाय क्या है?

कोई उपाय नहीं था. रोजी और राजू फिर से कोल्हू के बैल की तरह आगे पीछे देखे बिना काम में मग्न हो गए.

प्रोग्राम की बढती व्यवस्तता के बीच एक दिन राजू ने डाक में एक रजिस्टर्ड कवर देखा. मणि ने कुछ दिन पहले हस्ताक्षर करके उसे प्राप्त किया था लेकिन छुट्टी पर जाने से पहले वह अपने टेबल पर ही भूल गया था. राजू ने लिफाफा देखा, किसी लॉयर की ऑफिस से आया था. रोजी उर्फ नलिनी का नाम उस पर लिखा था. लाख की मुहर लगी थी. राजू ने कवर खोलकर उसमें रखा पत्र पढा:

`मैडम, हमारे क्लाइंट की सूचना से यह पत्र आपको भेजा जा रहा है. क्लाइंट के बैंक लॉकर में एक ज्वेलरी बॉक्स है जो कि आप दोनों के संयुक्त हस्ताक्षर से ऑपरेट होता है. साथ दिए गए कागज पर अपना हस्ताक्षर करके भेज दें तो हमारे क्लाइंट अपना हस्ताक्षर करके बैंक के लॉकर में पडा आभूषणों का डिब्बा निकालकर तुरंत आपको भेज देंगे.’

राजू पत्र पढकर ऊपर रोजी के कमरे में जाने के लिए सीढिया चढा और तुरंत ठहर गया. वह नीचे आया. अभी के अभी इस कागज पर रोजी का हस्ताक्षर लेना जरूरी है? उसने सोचा और पत्र लिफाफे में वापस रख दिया. लिफाफा शराब की बोतलों के साथ रखी किताब में रख दिया.

आज का विचार

अगर एक बार मोदीजी ये कह दें कि मुझे चुनाव नहीं लडना है तो अगले सेकंड सेही ये महागठबंधन वाले सदस्य एक दूसरे का पायजाम न फाड दें तो कहना!

– वॉट्सएप पर पढा हुआ.

एक मिनट!

बका: पका, उस जसलीन ने अनूप जलोटा में क्या देखा होगा?

पका: एक तो जलोटाजी की इनकम और दूसरा, उनके दिन-कम!

    

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