गिरावट से पहले की प्रगति

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, गुरुवार – ४ अक्टूबर २०१८)

रोजी के पहले सार्वजनिक कार्यक्रम की सफलता के बाद राजू बिलकुल बिजी हो गया. चारों तरफ से रोजी के कार्यक्रम आयोजित करने की डिमांड होने लगी. क्लासिकल डांसर के रूप में रोजी की ख्याति धीरे-धीरे बढती जा रही थी. रोजी के कारण राजू का रुआब भी बढ रहा था. रोजी के हर कार्यक्रम का बारीकी से आयोजन, पैसों की लेन-देन, नए कार्यक्रम तय करने के लिए संपर्क, यात्राओं की व्यवस्था- सब कुछ राजू ही संभाल रहा था. इस काम के लि राजू ने मणि नामक एक असिस्टेंट रखा था. रोजी का ध्यान आर्थिक मामलों में नहीं था. इसीलिए उसे अपनी कला की साधना करने का मौका मिल रहा था जो बहुत बडी बात थी. एक दिन रोजी कार्यक्रम से थकीमांदी लौटी और बडे उत्साह से राजू के गले लग गई और बोली: `तुम्हारा ये ऋण मैं सात जनम में भी नहीं चुका सकती…’ कार्यक्रम के दिन दोपहर में ही रोजी रात का खाना बना लेती ताकि आने में देर हो जाए तो भी भूखे पेट न सोना पडे. रसोइया रखा जा सकता था लेकिन रोजी कहती: `दो लोगों के लिए क्यों बेकार खर्च करना और मुझे खाना बनाना अच्छा लगता है.’

कुछ ही महीनों में राजू पर अपने पिता का बनाया पुराना घर छोडने की नौबत आ गई. मां तो ऑलरेडी राजू को छोडकर मामा के गांव चली गई थी. राजू का लेनदार सेठ कोर्ट से डिक्री करवाकर इस घर की जब्ती का आदेश ले आया. केस का अंतिम निर्णय आने में अभी देर थी. अदालत के फैसले के कगार पर पहुंचने पर राजू ने सोचा कि ऐसे भी इस जर्जर छोटे से घर में मेहमानों को बुलाने में असुविधा होती है, रोजी की प्रतिष्ठा के अनुरूप नया घर लेने का समय आ गया था. राजू ने अपनी उधारी के बदले में वह घर सेठ को लिख दिया, मां के हस्ताक्षर भी मंगवा लिए.

मालगुडी के न्यू एक्सटेंशन वाले इलाके में बडे कंपाउंड के साथ दो मंजिल का भव्य घर खरीदा गया. गार्डन था, लॉन था, गैरेज भी था. रोजी के रियाज के लिए ऊपरी मंजिल पर एक बडा हॉल था. घर की देखभाल के लिए दो बाली, वॉचमैन और दो रसोइया थे. गाडी ले ली गई थी जिसके लिए ड्रायवर था. मित्रों-मेहमानों को हमेशा आना जाना लगा रहता था. हर किसी की सुविधा के अनुसार और राजू-रोजी की जिंदगी में हर किसी की जरूरत के अनुसार स्वागत सत्कार होता था. मामली आगंतुकों से लेकर जज, राजनेता, उद्योगपति, म्युनिसिपल काउंसिलर, पुलिस सुपरिंटेंडेंट और संपादक जैसे लोगों का आना जाना था. संगीतकार, वादक, कवि, कलाकार भी रोजी से मिलने आते थे जो राजू को पसंद नहीं था. `ये लोग सारा दिन यहां क्यों पडे रहते हैं,’ राजू रोजी से पूछता था. `मुझे उनकी कंपनी अच्छी लगती है. ऐसे क्रिएटिव लोग मेरे आस पास होते हैं तो अच्छा लगता है.’ रोजी जवाब देती. राजू घबराता था कि कहीं रोजी ऐसे मुफलिसों के सामने अपने बिजनेस सिक्रेट्स शेयर ना कर बैठे. रोजी तर्क देती:`इन सभी के सिर पर सरस्वती के चारों हाथ हैं. बडे अच्छे लोग हैं ये.’

`पर तुम्हें समझना चाहिए कि इन सबको तुमसे खूब ईर्ष्या हो रही होगी. ये सब तुमसे बहुत छोटे हैं.’

राजू और रोजी के बीच मतभेद बढते और कहासुनी होती तो राजू को लगता था कि रोजी के साथ उसके संबंध अब पति-पत्नी जैसे रिश्ते में तब्दील हो रहे हैं.

दूर दराज के शहरों से कार्यक्रम आयोजित करने की मांग आती थी. कभी तो लगातार पंद्रह दिन की यात्रा होती. लगातार कार्यक्रम होते रहते. डाक से आनेवाला हर निमंत्रण सीधे राजू के पास आता. राजू ने रोजी की अपॉइंटमेंट डायरी में अगले तीन महीने की तारीखें बुक कर रखी हैं. मोटरकार, ट्रेन, जिस तरह से भी अनुकूल हो उस तरह से सफर होता था. रोजी की फीस में राजू लगातार बढोतरी करता जा रहा था. उनकी लाइफस्टाइल लगातार ऊंची होती जा रही थी. इनकम टैक्स के रूप में बडी राशि के रिटर्न्स भरे जाते. राजू को लगता था कि जब तक सितारा बुलंदी पर है तब तक हर आयोजक से निचोडकर पैसे ले लिए जाएं. अगर उसके और रोजी के पास पैसे नहीं होंगे तो कौन उनका भाव पूछने आएगा, कौन उनसे हंस हंस कर बातें करेगा? वह मानता था:`जब समय अच्छा चल रहा हो तब अगर हम काम और कमाई नही कर लेंगे तो वह हमारा पाप होगा. बुरे वक्त में कोई भी मदद के लिए नहीं आता.’ राजू सोचता था कि इन सभी बडे खर्चों को पूरा करने के बाद जो अतिरिक्त आय होती है तुरंत भविष्य के लिए कुछ तगडे निवेश कर लेने चाहिए, बाद में आराम रहेगा. रोजी कभी कभी कहती,`हम सिर्फ अपने दो लोगों पर दो हजार रुपए खर्च देते हैं. क्या ये ज्यादा नहीं है? सादगी से रहने का कोई तरीका नहीं है?’

`वह तुम मुझ पर छोड दो. हम दो हजार खर्च करते हैं क्योंकि इन्हें खर्च करना जरूरी है. अपना स्टेटस कायम रखना है.’

राजू कई बार शहर के रईस लोगों के साथ ताश खेलता. दो दो दिन तक लगातार तीन पत्ती के सेशन चलते. शराब के दौर पर दौर चलते. खाना पानी तो शुरू ही रहता था.

चारों तरफ राजू की ख्याति थी. देश के विभिन्न बाजारों में क्या चल रहा है, दिल्ली में पर्दे के पीछे की क्या राजनीति चल रही है, रेसकोर्स में कौन कितने पानी में है, आगामी समय में कौन कहां पहुंचनेवाला है- राजू के पास सारी गॉसिप होती. वह चुटकी बजाते ही किसी भी ट्रेन का रिजर्वेशन करवा सकता था, किसी का तबादला करवा सकता था, किसी को नौकरी दिला सकता था, सहकारी संस्थाओं के लिए चुनाव में वोट दिला सकता था, स्कुल में दाखिला दिला सकता था, थोडे में कहा जाय तो वह अपनी दुनिया का सर्वेसर्वा बन गया होता.

लेकिन इस सारी चमकदमक में वह भूल गया था कि इस दुनिया में मार्को नाम का भी कोई आदमी बसता है.

आज का विचार

सपने तो रुई की पूनी जैसे हैं,

हमारी जिंदगी चरखे जैसी है.

– मनोज खंडेरिया

एक मिनट!

बका पेट्रोल पंप पर गया.

अटेंडेंट: साहब, कितने का भरूं?

बका: दस-बीस रूपए का गाडी पर छिडक दे तो आग लगा दूं.

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