राजू की दो दुनिया: एक ख्वाबों की, दूसरी हकीकतों की

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, बुधवार – ३ अक्टूबर २०१८)

अच्छा हुआ जो मेरे घर आ गईं. अपने पुराने दिनों को भूल जाओ. उस हरामी को हम ऐसा पाठ पढाएंगे कि सारी जिंदगी नहीं भूलेगा. सारी दुनिया के सामने साबित करेंगे कि तुम इस जमाने की ग्रेटेस्ट आर्टिस्ट हो,’ राजू ने रोजी को कहा.

लेकिन मां के लिए ये सब कुछ ज्यादा ही हो रहा था. एक नाचनेवाली, जिसके बाप का ठिकाना नहीं है ऐसी नाचनेवाली अपने पति से झगडकर इस घर में आसरा ले और बेटा ऐसी औरत पर फिदा हो जाए, मां के लिए यह परिस्थिति असह्य थी. `राजू तू ये सब जल्दी खत्म कर और उसे वापस वहीं भेज दे, जहां से आई है!’

`मां तुम हमारे बीच मत आओ. मैं बडा हो गया हूं. मुझमें समझ में आता है कि मुझे क्या करना है, क्या नहीं करना.’

रोजी को लेकर मां और राजू के बीच झगडा बढता गया. राजू ने रोजी को होटल में रखने के विकल्प पर भी सोचा था, लेकिन राजू की आर्थिक हालत अभी तंग थी. स्टेशन की दुकान के लिए जिस लडके को रखा था वह धोखा दे रहा था. दुकान की कमाई से गबन कर रहा था. होलसेल के व्यापारियों ने राजू को उधार देना बंद कर दिया. ग्राहक शिकायत करने लगे कि राजू की दुकान में जो चीज चाहिए वह होती ही नहीं है. एक दिन रेलवे प्रशासन ने राजू से दुकान खाली कराकर नए कॉन्ट्रैक्टर को सौंप दी. नए कॉन्ट्रैक्टर ने रोजी का उल्लेख किए बिना उसके बारे में अनापशनाप कहा और राजू ने आपा खो दिया. हाथापाई हो गई.

पहले दुकान चलाने के लिए और फिर घर चलाने के लिए राजू ने एक सेठ से उधार पैसे लिए थे. अगले दिन रोजी घर में रियाज़ कर रही थी कि तभी सेठ पैसे मांगने आ गया. मां देख रही थी कि राजू के पिता ने पाई पाई जोडकर खडी की स्वाभिमानपूर्ण जिंदगी किस तरह से बर्बा हो रही थी, सेठ राजू का मित्र थां. वह अब भी राजू से अपनी उधारी मांगने से हिचकिचाता था. पहले राजू नियमित रूप से उसका पैसा-ब्याज चुका दिया करता था, लेकिन अब महीनों से एक पैसा नहीं दिया.

`व्यवसाय में थोडी मंदी है. स्थिति ठीक होते ही दे दूंगा.’ राजू ने कहा.

`आठ हजार रूपए चढ गए हैं,’ सेठ अपनी बही दिखाते हुए राजू से कहा. `इसी तरह रहा तो ज्यादा समय तक नहीं चलेगा.’

राजू ने मान-मनौवल करके सेठ को रवाना किया. सप्ताह भर की मोहलत मिली. सेठ के जाने के बाद रोजी अपना रियाज अधूरा छोडकर बाहर आई: `कौन था?’ `कोई नहीं, मेरा दोस्त था.’ जिसके कारण आर्थिक तंगी आई है उसी के सिर पर राजू सभी दोषों का ठीकरा नहीं फोडना चाहता था. उसके लिए अभी तो इतना ही काफी था कि उसे रोजी के साथ एक छत के नीचे रहने का सौभाग्य मिला है. राजू को अब रोजी के अलावा किसी भी सांसारिक बात में रूचि नहीं थी, वह व्यवहारों को भूल जाना चाहता था.

लेकिन राजू के लेनदार सेठ को लेन-देन की दुनिया में ही रुचि थी. सप्ताह बीत चुका था. दस दिन हो गए. तगादा कर कर के थक गए सेठ ने राजू पर आर्थिक धोखाधडी के लिए उसके साथ मारपीट करने की धमकी के लिए क्रिमिनल केस दर्ज करा दिया. राजू ने वकील के लिए दौड भाग शुरू कर दी. गफूर ने चेतावनी दी:`ये सब उस औरत के कारण हो रहा है. अब भी समय है. तू सुधर जा. गाइड का काम काज फिर से शुरू कर दे.’

राजू अब भी उसी ख्वाब में था कि मेरे पास अब भी अगर पांच सौ रूपए होते तो मेरी तकदीर बदल जाती. रोजी के भरत नाट्यम के कार्यक्रसों से अपार कमाई कर सकती है, लेकिन इन परिस्थितियों में उस जैसे कंगाल को पांच सौ रूपए जैसी बडी राशि देता कौन? घर में जो कुछ भी पैसे थे वे लॉयर की फीस में खर्च हो रहे थे. लॉयर राजू को सांत्वना दिया करता था कि `तुम्हें कुछ नहीं होगा. मैं बैठा हुं ना.’ राजू को अदालत में आरोपी के कठघरे में खडे होकर अपना बचाव करना पडा. वकील ने नई तारीख मांगी. राजू ने घर आकर मां से कहा,`चिंता का कोई कारण नहीं है. सबकुछ ठीक हो जाएगा.’

तारीख पर तारीख पडती रही. केस लंबा होता गया. राजू का संकट टलता रहा. उसी दौरान मामा आए. मां ने ही पत्र लिखकर बुलाया था. मां ने इन्हीं मामाजी की बेटी के साथ राजू की शादी करने का सपना देखा था. रोजी के बारे में मां ने मामा को सबकुछ लिख डाला था. रोजी की मौजूदगी में राजू ने मामा के साथ झगडा कर लिया. मां ने बीच बचाव किया लेकिन झगडा बढता गया. मामा ने रोजी को घर से निकल जाने की चेतावनी दी. राजू जिद पर अड गया. रोजी नहीं जाएगी. अंत में मां घर छोडकर मामा के यहां चली गई. राजू पूरी तरह से बिखर गया. अब एकमात्र रोजी ही बची थी उसकी दुनिया में. आंख में आंसू लिए रोजी इस सारी घटना की मूक गवाह बनी रही. राजू किसी भी स्थिति में उसे घर छोडने नहीं देना चाहता था.

मां के जाने के बाद राजू और रोजी एक विवाहित दंपति की तरह घर में रहने लगे. रोजी खाना बनाती, घर की देखरेख करती, रियाज करती. राजू छोटी-मोटी खरीदारी करने के अलावा शायद ही कभी घर से बाहर पांव रखता. राजू हर दिन जीभर के रोजी से प्यार करता. कुछ महीने बीत गए. रोजी के कार्यक्रमों का कोई प्रबंध नहीं हो पा रहा था. व्यवस्थित रूप से रिहर्सल करनी हो तो वादक और अन्य साजो सामान की जरूरत होती है. `होगा, बहुत जल्दी कुछ न कुछ इंतजाम हो जाएगा.’ राजू सपनों की दुनिया रचता रहा. इस तरफ व्यावहारिक दुनिया में बहुत तेजी से पासा पलट रहा था. एक तरफ रोजी का नाम मिस नलिनी रखकर उसके पहले सार्वजनिक कार्यक्रम की वह धुआंधार तैयारी कर रहा था तो दूसरी तरफ कोर्ट केस भी बिजली की गति से आगे बढ रहा था.

आज का विचार

जिनके साथ जीने की इच्छा हो उनके साथ जीतने का इरादा छोड देना चाहिए.

– वॉट्सएप पर पढा हुआ

एक मिनट!

आज सुबह बका जब ऑफिस जा रहा था तब पास के अपार्टमेंट से खूबसूरत पडोसन को हाथ हिलाते हुए देखा. बका भी काफी देर तक हाथ हिलाता रहा.

कुछ देर बाद बकी आई और उसने बका को थपकी देते हुए कहा.

`अब बस भी करो. बांवले मत बनो. दिवाली आ रही है इसीलिए वह कांच की खिडकी साफ कर रही है.’

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