कथा किससे सुननी चाहिए: पंडित, विद्वान या साधु?

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, शनिवार – २९ दिसंबर २०१८)

अयोध्या में `मानस:गणिका’ का आयोजन जब हुआ उस समय से मेरे मन में जो बात चल रही थी वह बात, कथा के सातवें दिन के आरंभ में ही पूज्य मोरारीबापू ने जो बात की वह, तथा कथा के दौरान एक और जो बात कही, उसके संदर्भ में मैं सार्वजनिक तौर पर कहना चाहता हूं. `मानस: गणिका’ के बारे में बापू के साथ रूबरू तथा फोन पर बात हो चुकी है, आज आपसे भी कहना चाहता हूं. लेकिन उससे पहले आज की कथा में कही गई दो बातों के साथ उसे शामिल करना है. इन तीनों बातें मेरी मान्यता का प्रमाण हैं: बापू में गजब का नैतिक साहस है. आदमी अंदर से सौ प्रतिशत प्योर न हो तो इस स्तर का नैतिक साहस आ ही नहीं सकता.

आज की कथा के आरंभ में ही बापू ने संपूर्ण सजगता और सतर्कता तथा विवेक के साथ एक निवेदन किया: `हनुमानजी की माता अंजनादेवी पूर्वजन्म में अप्सरा थीं.’

स्वर्ग की अप्सराएं देवताओं की गणिकाएं थीं. मेनका, ऊर्वशी इत्यादि जो नाम हम शास्त्रों में पढते हैं वे सारी देव गणिकाएँ थीं.

बापू निवेदन करने के बाद बात आगे बढाएं इससे पहले साधुगणों के मंच से एक साधु ने तेज आवाज में विरोध दर्ज कराया. बाकी के साधु उन्हें बैठाने की कोशिश कर रहे था लेकिन बापू ने कहा कि उन्हें जो कहना है कहने दीजिए. वे साधु क्रोधित हो गए थे. बापू ने शांति से उनकी संताप युक्त बातों को सुना. साधु द्वारा बात पूरी करने के बाद बापू ने सनातनी परंपरा के प्रमाण देकर कहा कि हनुमानजी का समग्र जीवनचरित्र उनके पास है और उसमें से यह बात मैं आपसे कह रहा हूं कि किसी के शाप के कारण जिस अप्सरा को पृथ्वीलोक में भेजा गया उस माता अंजनादेवी ने नया जन्म धारण कर केसरी नामक वानर के साथ विवाह किया और हनुमानजी को जन्म दिया.

बापू को हनुमानजी कितने प्यारे हैं यह सारी दुनिया जानती है. हनुमानजी छाती चीरकर रामसीता का दर्शन करा सकते हैं, उसी तरह से बापू हनुमानजी का दर्शन आपको करा सकते हैं ऐसी उनकी हनुमान भक्ति है. इसके बावजूद बापू हनुमानजी के जीवनचरित्र से प्रमाण देकर यह बात कह सकते हैं जो उनके नैतिक साहस का प्रमाण है. तथाकथित हनुमान प्रेमियों की आलोचना से यदि वे डरते तो उन्होंने यह बात इस व्यासपीठ से कही ही न होती.

आज की कथा की दूसरी बात जो बापू के नैतिक साहद का दूसरा प्रमाण है.

नॉर्मली कथा जब लगभग आधे पर आती है तो बापू गियर चेंज करने के लिए धुन गवाते हैं. आज गियर चेंज करते समय बापू ने कहा कि एक कथा के दौरान, दिन की कथा पूर्ण होने के बाद कई साधु मुझसे मिलने आए जिसमें से एक साधु ने विरोध के सुर में कहा: आप रामसीता की कथा कहते हैं तो जय जय राधे की धुन गवाते हैं जो अच्छा नहीं लगता आपको, ये सब बंद कीजिए. बापू ने कहा कि मेरा मौन था इसीलिए मैने प्रत्युत्तर नहीं दिया. केवल इशारे से बात की.

बापू ने इतनी बात कहकर आगे कहा: हर किसी की अपनी अपनी निष्ठा को प्रणाम. लेकिन अपनी निष्ठा को दूसरे पर नहीं थोपा जा सकता. जो राधा और सीता में फर्क करते हैं उससे मैं क्या कहूं. इस तरह से हम थोडे ही एक राष्ट्र, एक धर्म होंगे? राम और कृष्ण या कृष्ण और शिव के बीच भेदभावों की दीवार खडी करके समाज को बांटने की कोशिश करनेवाले तथाकथित लोगों को मानो खुलेआम चुनौती देने के अंदाज में बापू ने बुलंद आवाज में राधे राधे की धुन शुरू करके सभी को उसमें सराबोर कर दिया. रामकथा में एक बार नहीं, दो बार नहीं, एक सौ आठ बार राधे राधे बोला जाएगा, के कुछ ऐसे भाव से बापू तन्मयता से धुन गवाते रहे.

बापू के नैतिक साहस का यह दूसरा प्रमाण है. किसी के आवाहन पर भाग जाने वाले दूसरे हुआ करते होंगे.

उनका तीसरा नैतिक साहस `मानस: गणिका’ करना. मैने बापू से कहा: `मेरी छाप भले बेधडक लेखक की हो. आपने कई बार मुझे निर्भीक पत्रकार के रूप में पहचान देकर कथा के श्रोताओं तक पहुंचाया है लेकिन मैने संबंधों, भावनाओं, स्वभाव या प्रेम के बारे में खूब लिखा है और गणिकागमन तथा गणिकाओं के बारे में अपने निश्चित प्रमाणिक विचार होने के बावजूद इस विषय पर लिखने का मुझे कभी साहस नहीं हुआ, अब भी नहीं होता और आप साधु होकर पूरी रामकथा विषय को केंद्र में रखकर कर रहे हैं जो आपके नैतिक साहत का प्रमाण है. हम चाहे कितने भी बहादुर माने जाते होंगे लेकिन आपकी इस निडरता के सामने हम सभी की बहादुरी पानी भरती है.’

`मानस: गणिका’ करने की बात कोई सोच कर तो देखे. और इतने विशाल स्तर पर अमल में लाते हुए उसे सफलतापूर्वक संपन्न करने की क्षमता तो किसी में नहीं. बापू के नैतिक साहस का यह तीसरा प्रमाण है.

आज की कथा में बापू ने ऐसी बात की कि उनके विरोधियों को भी दाद देनी पडेगी: एक युवक का पत्र आया है. नाम-फोन नंबर सबकुछ लिखा है जो मैं नहीं बताऊंगा, ऐसा बापू ने कहा. पत्र कल जो घोषणा की गई उसके संदर्भ में है- हर वर्ष इनमें से १०० बेटियों को ब्याहने की जिम्मेदारी लेने के संकल्प के संदर्भ में युवक ने लिखा है कि बापू, मेरे पिता जीवित नहीं हैं, मां भाग गई है, मैं कुंवारा हूं. विरासत में संपत्ति के झगडे के अलावा और कुछ नहीं है. आप जिन्हें ब्याहना चाहते हैं ऐसी आपकी किसी भी बेटी के साथ विवाह करके घर बसाना चाहता हूं, इसीलिए मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ आपको लिख रहा हूं.

युवक के साहस को संपूर्ण कथामंडप ने तालियों की प्रचंड गडगडाहट से सराहा. `मानस: गणिका’ का परिणाम आने लगा है.

गांधीजी को लखनऊ अधिवेशन के समय आए अनुभव की बात बापू ने की. एक गणिका ने गांधीजी को अपने हाथ से सोने की चार चूडियां उतारकर समाज के जरूरतमंदों की सहायता के लिए दान में दीं थीं.

बापू ने बात बात में आज एक रोचक बात कहीं: २०२० में लॉर्ड पोपट के बेटे ने यू.के. की कैंब्रिज युनिवर्सिटी में बापू की नौ दिवसीय रामकथा का आयोजन किया है. बापू कहते हैं: ` एस.एस.सी. में तीन बार फेल होनेवाला मैं, कैंब्रिज युनिवर्सिटी में कथा करूंगा. इसे कलियुग कहते हैं!’

बापू ने आज कहा कि हमारे संतमंडल के जो श्रेष्ठ साधु हैं उनका कहना है कि यदि आप पंडित के मुख से कथा सुनेंगे तो उनके पास व्याकरणशुद्धि होगी, छंदबद्धता होगी, भाषा लालित्य खूब होगा लेकिन उनकी बातें आपकी बुद्धि से टकराकर जाती रहेंगी. विद्वान के मुख से कथा सुनेंगे तो वह तो विद्‌ है, जानकार है लेकिन जिसने अनुभव नहीं किया, उसकी बात आपके दिल को छुए बिना निकल जाएगी. कथा साधु के मुख से सुननी चाहिए. साधु १६ कलाओं का अवतार होता है. आज समय नहीं है कल समय रहा तो इन सोलहों कलाओं के बारे में आपसे बात करूंगा. ये १६ शील जिनमें हों वह साधु पूर्ण अवतार है…..`गोस्वामी तुलसीदास की साधुता का तो कहना ही क्या? लेकिन कोई साधु जब विद्यमान होता है (जीवित होता है) तब उसे सतानेवाले भी पैदा होते हैं. दुनिया का यह नियम है. लगता है कि तुलसी को भी दुनिया ने कम नहीं सताया होगा. तुलसी ने जब कहा कि `मांग के खाऊंगा’ तो ऐसा कहने की नौबत क्यों आई होगी?’

बापू द्वारा कही गई तुलसी की यह बात स्वाभिमान, निर्भीकता और प्रामाणिकता से जीने वाले हर व्यक्ति पर लागू होती है. सतानेवाले भले सताएं, अगर जरूरत पडी तो मांग कर खाऊंगा लेकिन अपनी निष्ठा के साथ समझौता नहीं करूंगा, किसी के आगे झुकूंगा नहीं, किसी की खुशामद करके नहीं कमाऊंगा- स्वाभिमान से जिऊंगा, निर्भयता से , प्रमाणिकता से जिऊंगा.

बापू की कथा का आनंद ये है कि उनका सारा कामकाज ही सहजता से होता है, मन में जो उल्लास चलता है उसे बापू सभी के साथ बांटते हैं. आज जय जय श्री राधे की धुन के बीच उसी ट्यून में मौज से एक पंक्ति गाई: दिल का खिलौना हाय टूट गया और कथा के अंत में एक गजल गाते गाते बीच में श्री राम जय राम जय जय राम की धुन आ गई! इसी तरह से जब महाराज दशरथ के चार पुत्रों के नामकरणविधि की कथा जब चल रही थी तब शत्रुघ्न के नाम की बात करते करते अजातशत्रु की बात करके कहा कि साधु या फकीर की किसी के साथ दुश्मनी नहीं होती. कोई उसका क्या बिगाड लेगा? वह तो फकीर है…आवारा हूं…आवारा यानी फकीर, साधु…और बापू राजकपूर वाली पंक्तियां गाते हैं: आवारा हूं….

बापू में नीरक्षीर विवेक कितना है इसका एक और प्रमाण आज मिला. गणिका में ६४ कला होनी चाहिए ऐसा ग्रंथों में लिखा है उसके बारे में गहराई से बोलते हुए बापू ने कहा कि इनमें से कई बातों का अर्थ मैं नहीं करूंगा और कई बातों का मुझे पता भी नहीं है. ६४ कलाओं में से पहली है गायन कला. गावत ब्रह्मादिक मुनि नारद. जो प्रेम करता है, वह गायन करता है. हर दिल जो प्यार करेगा, वो गाना गाएगा, गाएगा, गाएगा! मीरा ने गाया क्योंकि उसने प्रेम किया. कबीर ने गाया. नरसिंह ने गाया. तुलसी ने गाया. दूसरी कला है नृत्य कला, तीसरी वाद्य कला, चौथी चित्रकला, पुष्परचना कला, पाककला, सिलाई की कला, पुस्तक वाचन, नाट्यकला, वास्तु कला, रत्नपरीक्षा, मर्दन-मालिश कला, सांकेतिक भाषा, काव्य क्रिया, हठविद्या, द्यूत विद्या, बालक्रीडा, व्यायाम, शिकार विद्या, व्यंग्य कला इत्यादि ६४ कलाओं में गणिका को निपुणता प्राप्त करनी चाहिए.

बापू की कथा जो लोग टीवी पर लाइव देखते होंगे उन्हें पता होगा कि बापू रामचरित मानस की यदि कोई भी चौपाई या दोहा कोट करके उसका पहला शब्द गाते हैं कि तुरंत ही वह संपूर्ण चौपाई/ दोहा आपको स्क्रीन पर नजर आने लगता है. कथामंडप में भी बडे स्क्रीन पर `आस्था’ को लाइव प्रसारण के लिए भेजी जा रही फीड नजर आती है. आपको आश्चर्य होगा कि इतनी शीघ्रता से यह चौपाई कैसे डाली जाती है. बापू की कथा का लाइव प्रसारण तथा रेकॉर्डिंग का ऑडियो-वीडियो का काम महुवा के `संगीतनी दुनिया’ परिवार का है जिसके प्रमुख नरेश वावडिया तथा नीलेश वावडिया हैं. नरेशभाई ने मुझे जानकारी देते हुए बताया कि उन्होंने संपूर्ण रामचरित मानस के प्रत्येक सोपान को शामिल करनेवाली संपूर्ण चौपाइयों तथा दोहों का खास सॉफ्टवेयर बनाया है. सारा मानस उन्हें याद हो ही गया है लेकिन इस सॉफ्टवेयर के कारण वे बापू द्वारा गाई जानेवाली चौपाई बोलते ही झटपट स्क्रीन पर दिखा सकते हैं. नरेशभाई का काम केवल इतना ही नहीं है. कथामंडप में अनेक कैमरे, तथा कभी क्रेन के कैमरे, तो कभी ड्रोन कैमरे से तो कभी रिमोट कंट्रोल्ड कैमरे से जो भी फीड आता है उसका उसी क्षण ऑनलाइन एडिटिंग किया जाता है जो काफी कठिन काम है जो कि उन्हें एक सेकंड भी ध्यान भटके बिना करना होता है. उसमें भी बापू कथा में उपस्थित किसी महानुभाव का नाम बोलते हैं तो वे कहां बैठे हैं उनके बारे में कॉर्डलेस माइक से कैमरामैन को उसके हेडफोन में बोलकर दिशादर्शन करने का काम और तुरंत उनका चेहरा स्क्रीन पर लाना होता है, साथ ही गाई जा रही चौपाई का भी ध्यान रखने के लिए तैयार रहना होता है. ये सारी करामात करके बाहर खडी `आस्था’ की ओ.बी. वैन (आउटडोर ब्रॉडकास्टिंग वैन) को फीड भेजा जाता है जो सैटेलाइट से अपलिंक होकर आपके घर तक और १७० से अधिक देशों तक पहुंचता है.

वीडियो के अलावा कथा के लिए ऑडियो भी उतना ही महत्वपूर्ण है. यह काम नीलेश वावडिया संभालते हैं. बेस्ट ऑडियो सिस्टम `संगीतनी दुनिया’ के पास हैं. नीलेशभाई को आपने कई बार बापू के लिए माइक ठीक करते हुए देखा होगा. बडे भाई नरेशभाई बैकग्राउंड में ही रहना पसंद करते हैं. मंडप में कभी लाउडस्पीकर पर कभी प्रतिध्वनि न सुनाई दे ऐसी सावधानी रखने से लेकर बापू किसी भी एंगल में मुंह रखकर बोलें तो भी उसका क्रिस्प रेकॉर्डिंग हो. संगीतकार मंडली के हर सदस्य का स्वर, उनके वाद्यों का सुर उचित फ्रिक्वेंसी में रेकॉर्ड हो इसका ध्यान रखना, कभी कीर्तिदान गढवी, माह्याभाई आहिर या फिर उसमान मीर या राजभा कथा श्रवण कर रहे हों और बापू उन्हें गाने का निमंत्रण देते हैं तो तुरंत ही किसी जादूगर की तरह हवा से रुमाल निकालने की तर्ज पर उनके लिए माइक हाजिर कर देना- यह सारा काम खाने का खेल नहीं है. खासकर लाइव टेलिकास्ट जब हो रहा हो तब एक-एक सेकंड कीमती बन जाता है. नरेशभाई-नीलेशभाई यह जिम्मेदारी दशकों से संभाल रहे हैं. आधुनिक से आधुनिक साधनों में निवेश करते रहते हैं. यरुशलम हो या एथेंस, न्यूयॉर्क हो या फिर ठाणे, कैलाश मानसरोवर हो या अयोध्या हो, महुवा के वावडिया परिवार के और `संगीतनी दुनिया’ के दोनों प्रमुख अपनी विशाल टीम के साथ हाजिर होते हैं. बापू के साथ दशकों से जुडे ऐसे अनेक निष्ठावान लोगों द्वारा निरंतर किए जा रहे काम की सुगंध लेनी हो तो आपको टीवी पर लाइव प्रसारण देखना चाहिए और यदि संभव हो तो बोरिया-बिस्तर बांधकर हमारी तरह अयोध्या में आ जाना चाहिए.

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