परम अव्यवस्था का नाम परमात्मा है: मोरारीबापू

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, शुक्रवार – २८ दिसंबर २०१८)

अयोध्या में `मानस: गणिका’ का आज छठां दिन है. हरि अनंत, हरिकथा अनंता. काश, पूज्य मोरारीबापू की यह रामकथा नौ दिन में पूर्ण होने के बजाय अनंतकाल तक चलती, हम सुनते रहें और कभी मुंबई वापस न लौटें.

आज ठंड का जोर बढ़ा है. हम समय पर तैयार होकर क्विक ब्रेकफास्ट के लिए निकट के जैन दिगंबर देरासर की भोजनशाला में पहुंच जाते हैं. भगवान ऋषभदेव की संगमरमर की तीस फुट से भी अधिक ऊंची विराट प्रतिमा है वहां. भव्य दर्शन को आंखों में समाकर हम ताजा गरमागरम बनाए जा रहे नाश्ते (सींगदाना पड़ा स्वादिष्ट उपमा और मटर के साथ अतिस्वादिष्ट पोहा प्लस चाय) को पेट में विसर्जित करके कथामंडप में पहुंच जाते हैं.

बापू की संगीतकार मंडली के सदस्य एक एक करके व्यासपीठ के सामने अपना अपना स्थान ग्रहण कर अपने वाद्यों की ट्यूनिंग करने में व्यस्त है. मुंबई-ठाणे की कथा के दौरान इन संगीतकारों के साथ अच्छी मित्रता हो गई है. सभी को पवई के अपने घर पर आने निमंत्रण दिया है. उनके साथ एक पूरी शाम सत्संग किया था. कइयों के साथ तो पहले से ही परिचय था.

अभी तक सबसे करीब, सब-स्टेज के मेरी तरफ के सिरे पर गजानन सालुंखे दिखाई देते हैं. क्या शहनाई बजाते हैं ये महाराष्ट्रियन महाशय. उनके बगल में दलाभाई हैं. पक्के रामभक्त दलाभाई का यह पुकारने वाला नाम है. बहुत ही कम लोगों को पता होगा कि वे दिलावरभाई समा हैं. सुंदर गाते हैं. बाकी साथियों की तरह रामचरित मानस कंठस्थ है. मंजीरा और साइड रिदम द्वारा भी संगत करते हैं. दलाभाई के पास ही कीर्ति लिंबाणी हैं. बचपन से बापू के साथ हैं. गजब की आवाज पाई है उन्होंने. मुझे उनसे मंजीरा बजाना सीखना है. कीर्ति के बगल में रमेश चंदाराणा हामोर्नियम अर्थात संवादिनी पर संगत करते हैं. गाते भी हैं. हकाभाई के बगल में पंकज भट्ट बैठे हैं. तबलावादक के रूप में उन्हें बापू के असंख्य श्रोता पहचानते हैं. पंकजभाई के युवा पुत्र भगीरथ भट्ट सितारवादक हैं. कभी कभी भगीरथ भी इस वाद्य वृंद में सम्मिलित होते हैं. पंकजभाई के पास ही बैठे युवा कलाकार मेहंदी हसन भी तबला बजाते हैं. उनसे मैं पहली बार ही मिला हूं. मजेदार इंसान हैं. अब जो भाई बैठे हैं उनकी उंगलियों को आपने बेंजों पर नर्तन करते हुए कई बार देखा होगा. हितेश गोसाईं को सभी `हितेश बेंजो’ कहते हैं. बिलकुल उस छोर पर, और उस तरफ से देखें तो सबसे पहले हरिश्चंद्र जोशी तनी हुई मुद्रा में बैठे हैं. विद्वान प्रोफेसर, तत्वज्ञानी कवि. अपनी सुमधुर और बुलंद आवाज के लिए जाने जाते हैं. उन्हें ध्यान मग्न होकर हनुमान चालीसा, शिवस्तुति और लोकसंगीत की रचनाओं को गाते हुए आपने `आस्था’ चैनल पर कथा के लाइव टेलिकास्ट में देखा-सुना है.

बापू की यह संपूर्ण संगीत मंडली भी बापू की तरह घंटों तक एक ही आसन में बैठकर, पानी की एक बूंद भी पिए बिना ध्यान से प्रतीक्षा करते हैं कि बापू क्या गानेवाले हैं. मानस की चौपाई, भजन, गीत, लोकगीत या फिर कोई राग. कुछ भी पूर्व-निर्धारित नहीं होता, बापू अपनी मौज में कथा गाते हैं. किसी को उनके इशारे की भी जरूरत नहीं है. सेकंड के छट्ठे भाग में ये सारे संगीतकार बापू जो चौपाई गाते हैं, लोकगीत शुरू करते हैं तो उनका साथ देने लगते हैं. आपको आश्चर्य होगा कि इतनी सहजता से समन्वय कैसे होता होगा? यही तो उनकी तपस्या है, जो उनके रियाज को भगवे रंग की ऊंचाई प्रदान करती है.

आरंभ के घंटे भर में जो समा बंधता है उसमें विलंबित सुर में लोकाभिरामं रणरंगधीरं से लेकर मंगलभवन अमंगल हारी तक के पद, स्तुति, चौपाइयां गाई जाती हैं. बापू आरंभ करते हैं और सभी उसे दोहराते हैं.

उसके बाद कथा के विषय के अनुरूप केंद्रीय विचार को लेकर मानस की चौपाइ/ दोहे का बारंबार गान होता है. `मानस: गणिका’ का केंद्रीय विचार तुलसीदासजी के इन शब्दों में व्यक्त हुए हैं:

अपतु अजामिल गजु गणिकाऊ

भए मुकुत हरिनाम प्रभाऊ

पाई न केहि पतित पावन,

राम भजि सुनु दठ मना,

गनिका अजामिल व्याध गीध

गजादि खल तारे घना

दोनों का अर्थ एक एक कर समझ लेते हैं: नीच अजामिल, गज और गणिका भी हरि के नाम से मुक्त हो गए.

अरे मूरख मन, सुन! पतितों को पावन करनेवाले श्री राम को भजकर किसे परमगति नहीं मिली! गणिका, अजामिल, व्याध, गीध, गज आदि अनेक दुष्टों को उन्होंने तारा है. (व्याध यानी शिकारी).

गणिका मेडिकल फंड में अब तक ५ करोड १७ लाख रूपए जुटे हैं, ऐसी घोषणा की गई.

बापू ने आज ऋग्वेद से पांच श्लोक उद्धृत करके गणिका का स्थान समाज में किस जमाने से है, यह साबित करते हैं. बापू कहते हैं: `लेकिन ये कथा कुछ सिद्ध नहीं करने के लिए नहीं हो रही है, शुद्ध करने के लिए हो रही है.’

तर्क से आप कुछ भी सिद्ध कर सकते हैं और कुतर्क से बात को आप काट भी सकते हैं. बापू कहते हैं: तर्क-कुतर्क करनेवाले, आर्ग्यूमेंटेटिव स्वभाव रखने वाले हम सभी को बापू की इस बात से काफी बडी सीख लेनी चाहिए. लॉजिक से, तर्क से आप कुछ भी साबित कर सकते हैं लेकिन ये जरूरी नहीं है कि सत्य तक पहुंच ही जाएंगे, मेरी समझ से ऐसा बापू कहना चाहते हैं. समझने में अंतर हो सकता है.

रहीम को याद करके बापू ने कहा कि रामचरितमानस को उन्होंने हिंदुओं के लिए वेद और मुसलमानों के लिए कुरान का दर्जा दिया. आज रहीम की जरूरत है, तथाकथित लोगों की नहीं, बापू जोर देकर कहते हैं.

कथामंडप में ऊंचे आसन पर विराजमान साधु-संतों-पंडितों-धर्माचार्यों की मंडली के बारे में बापू कहते हैं कि साधु संतों की सभा जहां लगती है वहां अपने आप अयोध्या निर्मित हो जाती है. यहां तो अयोध्या भी है, साधु संतों की सभा भी है. बापू कहते हैं कि यहां की कथा पूर्ण करके १९ जनवरी को प्रयागराज जाऊंगा, कुंभमेले में कथा करने. एक तीर्थ से दूसरे तीर्थ स्थल पर.

ऋग्वेद के एक के बाद एक कुल पांच श्लोकों का उच्चारण करके उसमें निहित अर्थ में गहराई में उतरने के बजाय बापू विवेकपूर्वक जिज्ञासुओं को स्वयं से उसमें गहरे उतरने को कहते हैं. आज की कथा भी यूट्यूब पर उपलब्ध है. श्लोक उसमें सुन सकते हैं. हम कोट करने जाएंगे तो अनजाने में गलती हो सकती है.

बापू कहते हैं कि जब गणराज्य हुआ करते थे तब गणिकाएँ नागर पुत्रों के साथ वेदाध्ययन करती थीं. साम्राज्यवाद आने के बाद गणिकाओं को पोषिता से शोषिता बनना पडा.

बापू ने आज एक महत्वपूर्ण घोषणा की: मैं इन बेटियों का बाप हूं. जब तक जीवन है तब तक हर वर्ष उनकी सौ बेटियों का विवाह करने की जिम्मेदारी मेरी है. सिर्फ जोडी बनाकर मेरे आ जाओ, मंगलाष्टक तुम्हारा ये बाप गाएगा, तुम्हारा कन्यादान करेगा. भारत भर की कोई भी बेटी, भारत ही क्यों विश्व में कहीं भी यह काम करनेवाली कोई भी बेटी आए. तुम्हें युवकों की तलाश करने में कठिनाई होगी, जानता हूं. लेकिन तुम्हारे ही बीच कइयों को लडके भी होंगे. आपस में जिसकी जम जाय तय कर लेना चाहिए. मैं स्वीकार करने की बात केवल शब्दों से नहीं कर रहा हूं, स्वीकार कर रहा हूं. अयोध्या में संतों की उपस्थिति में उनके आशीर्वाद के साथ इतनी निर्भीकता से न बोलूं तो और कहां बोलूंगा?

बापू को ऐसे ध्यान में नहीं होगा (होगा भी कैसे? हमें भी अपने `ऐसे’ मित्रों द्वारा जानकारी मिलती है कि जो फर्स्ट हैंड जानकारी नहीं होती) कि बैंकॉक की बेटियों से विवाह करने के लिए यूरोपियन युवक उत्सुक रहते हैं. पिछले दशक से यह नया ट्रेंड शुरू हुआ है (और हॉलिवुड की फिल्मों में इसे दर्शाया भी गया है). इसका मुख्य कारण ये है कि बैंकॉक की इन बेटियों को घर चलाने की पक्की तालीम भी मिलती है. वे यदि किसी के साथ दो-चार दिन या सप्ताह रहती हं तो पत्नी की तरह उनकी सेवा भी करती हैं. उनके कपडे इस्थी करना, भोजन की व्यवस्था करना, अगले दिन के लिए कपडे ठीक करके रखती हैं इत्यादि. कार्येषु मंत्री, भोजयेषु माता और शयनेषु रंभा जैसा ही कुछ. इसीलिए यूरोप के युवक उनसे विवाह करने, उनके साथ घर बसाने के लिए आतुर होते हैं. बापू की इस दीर्घदृष्टि से भरी घोषणा द्वारा भारत में भी ऐसा ट्रेंड शुरू होगा. जो बेटियां घर बसाकर स्थिर होना चाहती हैं उन्हें बापू के आशीर्वाद से अवश्य मनपसंद वर मिलेगा.

बापू ने आज एक बात जोर देकर कही. जोर देकर यानी एक ही सांस में तीन बार की: `परम अव्यवस्था का नाम परमात्मा है.’

किसी को समझने में गलती न हो इसीलिए तीन बार यह वाक्य दोहराया. इस सृष्टि में आसपास की दुनिया में, निकट जगत में, हमारे अपने जीवन में, हमारे आंतरिक विश्व में सबकुछ ठीक होता है, सबकुछ एकदम व्यवस्थित- इस्त्रीटाइट घडी किया गया हो- ऐसी आशा रखकर दुखी होनेवाले लोगों के लिए यह काफी उपयोगी शिलालेख बापू ने उत्कीर्णित करके दिया है: परम अव्यवस्था का नाम परमात्मा है.

दूसरे शब्दों में समझना हो तो: यह अव्यवस्था ही परमात्मा की सिस्टम (व्यवस्था) का हिस्सा है.

कल रामजन्म उत्साह से मनाया गया लेकिन खुशी में नाचना तो रह ही गया. बापू ने याद दिलाया. सभी को अपनी जगह पर खडे होकर गरबा के स्टेप्स लेने के लिए कहा और शुरू किया: अवध में आनंद भयो, जय रघवर लाल की, हाथी, दियो घोडा दियो और दियो पालकी, अवध में आनंद भयो जय रघुवर लाल की…हम भी खडे होकर, अपने थैले से मंजीरा निकालकर ताल मिलाने लगे. एकाध मिनट के बाद आस-पास के कुछ लोग मेरे सामने देखकर इशारा करने लगे. मुझे लगा कि मेरा बेताल मंजीरा वादन उन्हें घटक रहा होगा, लेकिन मैं तो अपनी धुन था. तीन चार बार ऐसा हुआ तो बाद में किसी ने गोद कर इशारे से समझाया कि बापू बुला रहे हैं. बापू ने कीर्तिदान गढवी से `अमे महियारां रे गोकुल गामना’ रास शुरू कराया था. मंच पर आकर मंजीरे के साथ नर्तन करने का आग्रह वे कर रहे थे. मुझे तो नाचना नहीं आता. अंदर से होनेवाले नर्तन तक ही मेरी नृत्य कला सीमित है. लेकिन बापू के आग्रह को माथे चढाकर हम मंजीरा लेकर मंच पर पहुंच गए जो जैसा आता था वैसे स्टेप्स लेने लगे. बापू के एक तरफ रामजन्मभूमि शिलान्यास ट्रस्ट के वयोवृद्ध महंत श्री विराजमान थे. उनके चरणस्पर्श करके यूके से आए लॉर्ड पोपट, रमेश सचदेव और कई भक्त, साधुओं के वृद में हम शामिल हो गए. नृत्य कर रहे एक साधु ने आकर मुझसे मंजीरा मांग लिया. मैने तुरंत दे दिा. बापू ने खुद ताल देने के लिए करताल मंगा लिया. बस, फिर तो कहने ही क्या…नरसिंह मेहता के शब्द हैं, कीर्तिदान का स्वर है और बापू और हमारी करताल के साथ संगीत मंडली का आनंद है: मारे मही वेचवाने जावां महियारा रे गोकुल गामना… रामजी की अयोध्यानगरी में आज तो मानो गोकुल नगरी उतर आई थी.

समय सारणी कुछ इस तरह की बन गई है कि आज की कथा सुनने के बाद किसी जमाने में जहां बाबरी ढांचा था, उस स्थान पर रामजन्मभूमि पर जाकर वहां विराजमान रामलला की मूर्ति का दर्शन करना है. कुछ ही समय में वहां भव्य राम मंदिर का निर्माण आरंभ हो जाएगा ऐसी सभी की श्रद्धा है. मंदिर की इमारत के विभिन्न हिस्से गढकर तैयार हैं. निवास से कथामंडप में जाते समय हर दिन हम मंदिर के इन हिस्सों को जहां रखा गया है, वहां से गुजरते हैं. बस, `ऊपरवाले’ का आदेश होने भर की देर है!

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