दुनिया के सबसे प्राचीन गणपति एक गुजराती के कलेक्शन में हैं

अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सेक्सोलॉजिस्ट डॉ. प्रकाश कोठारी के पास करोडो रूपए मूल्य वाली सदियों पुरानी गणेश प्रतिमाओं- दुर्लभ वस्तुओं का संग्रह है जिसका दर्शन हजारों लोगों ने हाल ही में मुंबई की जहांगीर आर्ट गैलरी में किया.

न्यूज़प्रेमी स्पेशल स्टोरी- सौरभ शाह
(newspremi.com, गुरुवार, १२ सितंबर २०१९)

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त गुजरातियों में सबसे पहले आपको किसका नाम ध्यान में आता है? अरे भाईल हर समय मोदी मोदी के नारे मत लगाइए. अंबानी‍? हां. उसके बाद?

हमें जो नाम सबसे पहले याद आता है, वो है प्रकाश कोठारी का नाम. डॉ. प्रकाश कोठारी पत्रिका `प्लेबॉय’ और उसकी प्रतिस्पर्धी मैग्जीन `पेंटहाउस’ – दोनों के पैनल पर सलाहकार के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त कर चुके हैं. क्रेडिट बॉक्स में उनका नाम भी आया करता था. मास्टर्स एंड जॉन्सन से किसी जमाने में उन्होंने तालीम भी ली थी और अब तो उनके मार्गदर्शन में सीख कर और कुशलता प्राप्त कर चुके डॉ. मुकुल चोकसी से लेकर डॉ. पारस शाह सहित कई सेक्सोलॉजिस्ट तैयार हो चुके हैं. सेवेंथ वर्ल्ड कॉन्ग्रेस ऑफ सेक्सोलॉजिस्ट में डॉ. प्रकाश कोठारी को अध्यक्ष बनाया गया था. जानते हैं ये कब की बात है? तकरीबन ३५- ४० साल पहले की. १९८३-८४ की. डॉ. प्रकाश कोठारी को अपने नाम के आगे लगनेवाली डॉक्टर की पदवी का उपयोग दो बार करना चाहिए. एक तो मेडिकल डॉक्टर के लिए और दूसरी सेक्सोलॉजी के विषय में पीएचडी के लिए किए गए संशोधन हेतु मिली डॉक्टरेट की उपाधि के लिए.

श्री श्री रविशंकर की तरह आपको डॉ. डॉ. प्रकाश कोठारी कहना पडेगा. मजे की बात तो ये है कि अपने विजिटिंग कार्ड पर वे अपने नाम के आगे `डॉ’ नहीं लिखते. के.ई.एम. हॉस्पिटल के जी.ई.एस. मेडिकल कॉलेज में जब वे हेड ऑफ द डिपार्टमेंट के रूप में पढाया करते थे तब विदेशियों को दिए जानेवाले कार्ड में `प्रो’ लिखते थे. कहते थे कि वहां डॉक्टर की तुलना में प्रोफेसर का सम्मान अधिक होता है. प्रकाशभाई की बात सच है. हमारे यहां तो कोई भी टॉम, डिक या साहित्यकार यहां वहां से उठाकर तथाकथित रिसर्च करके पीएचडी की पदवी हासिल कर लेता है और फिर साहित्य समारोहों में अपने नाम के आगे डॉक्टर कहलाकर कॉलर ऊंचा करके घूमते हैं.

प्रकाशभाई बहुत बडे कलेक्टर हैं – संग्राहक हैं. इरोटिक आर्ट का बहुत बडा खजाना उन्होंने पिछले चार-पांच दशकों में कलेक्ट कया है. न जाने कहां कहां से दुर्लभ शिल्प, पुस्तकों की पांडुलिपियां, स्टैंप इत्यादि उन्होंने जमा की हैं. लेकिन इस समय उनके अन्य कलेक्शन की बात करनी है.

गणेश चतुर्थी के दिन मुंबई की प्रसिद्ध जहांगीर आर्ट गैलरी में डॉ. प्रकाश कोठारी के गणेश कलेक्शन की प्रदर्शनी का अंतिम दिन था. अगले सात दिनों के दौरान हजारों मुंबईवासियों ने इस प्रदर्शनी को देखा, उसका आनंद लिया और गणेशजी से जुडी पहली शताब्दी से लेकर इक्कीसवीं शताब्दी तक अति दुर्लभ प्रतिमाओं इत्यादि का घंटों तक अध्ययन भी किया.

अभी तक ये माना जाता था कि गणेशजी की सबसे पुरानी प्रतिमा चीन में है, जो छठीं शताब्दी की है. लेकिन प्रकाश कोठारी इस दावे को चुनौती देते हैं और उनके पास चार अलग-अलग अथॉरिटीज के लिखित प्रमाणपत्र हैं कि उनके संग्रह में एक नहीं बल्कि दो-दो गणेश रचनाएँ पहली शताब्दी से लेकर चौथी शताब्दी के बीच की हो सकती हैं. टेराकोटा पर उकेरी गई गणपति की तस्वीर मे पीछे की तरफ खिले हुए कमल का चिन्ह है. ३४.९ ग्राम वजन का यह पेंडेंट महाराष्ट्र में गोदावरी नदी के तट पर पैठण के क्षेत्र में मिला था. उसी काल के दूसरे एक टेराकोटा के सिक्के के आगेवाले भाग में गणपति की मुद्रा है और पीछे की तरफ उस जमाने की प्रचलित ब्राह्मी लिपि में लिखा है: जग-ईश्वर अर्थात जगेश्वर.

आज से करीब दो हजार साल पुरानी इन दो दुर्लभ गणेश आइटम्स के लिए यदि प्राचीन वस्तुओं के प्रशंसकों के लिए लंदन के नीलामघर में बोली लगाई जाए तो करोडो रूपए में उन्हें बेचा जा सकता है, लेकिन प्रकाश कोठारी ऐसी कोई पहल करने के बजाय अपने खजाने में नई नई वस्तुओं को शामिल करते रहते हैं. चार साल पहले `द इकोनॉमिक टाइम्स’ में समाचार छपा था कि डॉ. प्रकाश कोठारी ने एक सार्वजनिक ऑक्शन में सवा चार लाग रूपए देकर १८वीं सदी में `गणपति-पंतप्रधान’ नाम से विख्यात ११.४ ग्राम का २.३ सेमी व्यासवाला चांदी का पेशवाई सिक्का अपने कलेक्शन के लिए खरीदा था. महाराष्ट्र के मिरज के पटवर्धन शासकों द्वारा ई.स. १७९२ में जारी किए गए इस सिक्के की कीमत आज की तारीख में लाखों की होगी, जब कि बीस शताब्दियों पहले की गणेश संबंधी वस्तुओं की कीमत अगर करोडों रूपए आंकी जाय तो कोई नई बात नहीं है.

और इसीलिए प्रकाशभाई ने जहांगीर आर्ट गैलरी की प्रदर्शनी के दौरान सातों दिन चौबीस घंटे अपने खर्च पर प्रायवेट सिक्योरिटी का कडा इंतजाम किया था. इतना ही नहीं, इतनी चौकसी के बावजूद वे इस संग्रह की अनेक रेयरेस्ट ऑफ रेयर कलाकृतियां प्रति दिन रात को अपनी मर्सिडीज में घर ले जाकर सेफ में रख देते थे और अगले दिन सुबह दस बजे मेहमानों के लिए प्रदर्शनी का दरवाजा खुलने से पहले पुन: यथा स्थान रख देते. ये जानकारी हमें प्रकाशभाई की पत्नी वेणुबहन ने दी. एक्जिबिशन के सातों दिन प्रकाशभाई के साथ वेणुबहन भी हाजिर रहती थीं. प्रकाशभाई जब स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रिंट मीडिया तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकारों के हुजूम को संतोषजनक जवाब देने में व्यस्त रहते थे तब वेणुबहन खास तौर से आगंतुकों को सारी प्रदर्शनी साथ घूमकर दिखाती थीं और उनके पुत्र डॉ. रवि कोठारी खुद अपने विशेष आमंत्रितों को अपने घर की तरह स्वागत सत्कार करते हुए चाय-पानी की व्यवस्था करने में व्यस्त रहते थे.

कोठारी परिवार: वेणुबहन प्रकाश कोठारी ने कहा कि सिक्योरिटी होने के बाद भी कई अति दुर्लभ वस्तुएँ रोज रात को घर के सेफ में रखकर सुबह दस बजे फिर से प्रदर्शन केलिए रख दी जातीं. रवि प्रकाश कोठारी ने कहा कि तस्वीर में जो मंदिर घंटा नजर आ रहा है, उसका वजन सात किलो से अधिक है.

हम सभी जानते हैं कि भारत हजारों वर्ष से हिंदू परंपरा में पली-बढी जनता की बहुसंख्या वाला देश है. इसके बावजूद अभी तक किसी भी सरकार ने हिंदू देवी-देवताओं को अपनी मुद्रा पर स्थान नहीं दिया है. जब कि इंडोनेशिया जैसे ८७ प्रतिशत मुसलमान और केवल पौने दो प्रतिशत हिंदू जनसंख्या वाले देश में आज की तरीख में भी वहां की मुद्राओं पर गणपति की तस्वीर छापी जाती है. प्रदर्शनी में भी स्वाभाविक रूप से ये नोट भी जरूर होगी.

इंडोनेशिया के २,००० रूपए के नोट पर गणपति: भारत में आजादी के बाद भी गणपति का चित्र कभी करेंसी नोटों पर देखने को नहीं मिला है.

भारत में गणेशजी की मूर्ति में उनकी सूंड टेढी होती है (वक्रतुंड) लेकिन इंडोनेशिया में सीधी सूंडवाले गणपति की मूर्ति देखने को मिलती है. कलेक्शन में ऐसी साढे चार से.मी. ऊंचाई की २६.८ ग्राम वजन की पत्थर की गणेशजी की प्रतिमा है जो संभवत: इंडोनेशिया में बनी हो सकती है. उसका रचना काल छठी शताब्दी का है.

सातवीं शताब्दी में कसौटी के पत्थर (सोने की कसौटी करने के लिए जिस पत्थर का उपयोग किया जाता है) से बनी एक गणेश मूर्ति भी है. तमिलनाडु से मिले धातु का एक घंटा प्रकाशभाई के कलेक्शन में है. सोलहवीं सदी का. उस पर चारों दिशाओं में एक एक गणपति उत्कीर्णित हैं. सात किलो एक सौ ग्राम वजन वाले इस घंटे को तो हाथ भी नहीं लगा सकते हैं, लेकिन प्रकाशभाई के क्वीन्स नेकलेस पर स्थित समुद्र दर्शन करानेवाले विशाल घर के ड्रॉइंग रूप में सुशोभित ये भारी भरकम घंटा एक हाथ से उठाने की कोशिश करके उसका कर्णप्रिय स्वर सुनकर उनके मित्र समाधिस्थ हो जाया करते हैं.

कसौटी का पत्थर: सोने की परख करने के लिए जिस टच स्टोन का उपयोग होता है उससे बनी ये गणेश प्रतिमा सातवीं शताब्दी की है.

टेराकोटा, पत्थर, लकडी, तांबा, पीतल, कांसा- हर मीडियम से बनी और भारत के विभिन्न प्रदेशों से मिली गणेश प्रतिमाओं के इस आश्चर्यकारी प्रदर्शन का एक अनोखा पहलू गणेशजी की तस्वीर वाले पोस्टकार्ड, पोस्टल स्टैंप्स, स्टैम्प पेपर्स तथा कोर्ट फी स्टैंप्स का कलेक्शन है. गणेशजी की छाप वाले मैच बॉक्स भी है. सिंगापुर, श्रीलंका, थाईलैंड, इंडोनेशिया और अमेरिका की भी सरकारों ने डाक टिकटों पर गणेशजी को स्थान दिया है. आइवरी कोस्ट ने गणेश प्रतिमा वाले सिक्के दो बार जारी किए हैं, जिसमें एक पर अर्धगोलाकार स्वरूप में संस्कृत का श्लोक छपा है: वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ, निर्विघ्नं कुरू में देव सर्वकार्येषु सर्वदा.

विधिवत्‌ विघ्नहर्ता: कोर्ट के स्टाम्प पेपर पर किसी जमाने में गणपति की तस्वीर देखने को मिलती थी.
विदेश में गणपति: रिपब्लिक ऑफ आयवरी कोस्ट द्वारा २०१३ में जारी किए गए सिक्कों के पिछले भाग पर फ्रेंच भाषा में विवरण छपे हैं लेकिन सामनेवाले भाग में संस्कृत में पूरा श्लोक लिखा है:
वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ,
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा

१८वीं शताब्दी की एक पांडुलिपि इस कलेक्शन में है, जिसमें कुल ५९ पृष्ठ हैं. यह ग्रंथ कोकशास्थ का है (११वीं शताब्दी में कोका पंडित द्वारा लिखे इस ग्रंथ का मूल ४थी सदी के वात्स्यायन रचित कामसूत्र ग्रंथ का है). राजस्थान से प्राप्त हुई इस पांडुलिपि के पहले पृष्ठ पर गणेशजी का सुंदर रंगीन चित्र बनाया गया है.

कोकशास्त्र के पहले पृष्ठ पर: अठारहवीं शताब्दी की इस पांडुलिपि के पहले पृष्ठ पर गणेश के चित्र के साथ वंदना. कोकशास्त्र का मूल ग्रंथ ११वीं शताब्दी में लिखा गया था जो वात्स्यायन द्वारा ४थी शताब्दी में लिखे `कामसूत्र’ ग्रंथ पर आधारित है. ग्रंथ के रचयिता वात्स्यायन ऋषि भरुच के मूल निवासी थे, ऐसा संशोधन डॉ. प्रकाश कोठारी ने किया है.

संपूर्ण कलेक्शन में पर्सनल फेवरिट आइटम कौन सी है? १८वीं सदी में लकडी पर बना राजस्थानी शैली का एक चित्र है, जिसमें दाढीवाले गणेशजी हैं. उनके चार हाथों में से दो में त्रिशूल और परशु है, अन्य दो हाथों में से एक हाथ में पुस्तक थाम रखी है तो एक में लड्डू की बडी कटोरी है, जिसमें से सूंड से लड्डू ले रहे हैं. गणपति की ऐसी कल्पना करना ही कितना भव्य लगता है. यही नहीं, उनके सामने हंस (जो दिख रहा है मुर्गे जैसा) पर विराजमान मां सरस्वती हैं, जिनके एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ में ग्रंथ है. हंस के मुख में मोतियों की लंबी माला है.

दाढीवाले गणेशजी: अठारहवीं शताब्दी के इस चित्र में देवी सरस्वती के साथ दिखाई दे रहे गणपति के चार हाथों में से एक में त्रिशूल, दूसरे हाथ में परशु (कुल्हाडी), तीसरे हाथ में पुस्तक और चौथे हाथ में लड्डू से भरा पात्र है.

प्रकाश कोठारी बताते हैं कि पूर्व के कई देशों में गणपति को अलग अलग नामो से पहचाना जाता है. चीन में कुआन-शी त्येन तो नेपाल में हरम्ब गणपति तथा बिनायक के नाम से जाने जाते हैं. बर्मा (म्यांमार), कंबोडिया, जापान, जावा, मंगोलिया, थाईलैंड तथा तिब्बत में भी गणपति के लिए अलग अलग नाम हैं. जैसे कि भारत में कई नाम हैं: वक्रतुंड (टेढी सूंड), एकदंत (एक दंतशूल), विघ्नेश्वर अथवा विघ्नहर्ता (विघ्नों को दूर करनेवाले), विनायक (यानी जिसका कोई नायक न हो वह अर्थात जो खुद ही अपना नायक हो), सिद्धिदाता (सफलता प्रदान करनेवाले), ऋद्धिदाता (समृद्धि-संपत्ति देनेवाले), बुद्धिदाता (बुद्धि देनेवाले) इत्यादि.

प्रकाश कोठारी के संग्रह में बिहार, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और गुजरात तथा महाराष्ट्र से प्राप्त हुई पांचवीं सदी की गणेश प्रतिमाएं हैं. प्रत्येक मूर्ति के पीछे कोई न कोई इतिहास छिपा है. तिब्बत या नेपाल से मिली १७वीं शताब्दी की कांसे की मूर्ति कुछ विचित्र सी है. बौद्ध धर्म हिंदू धर्म का विरोध करने के लिए प्रसारित हुआ, ये हम जानते हैं. कई लोगों को पता होगा कि लुच्चा और बुद्धू शब्द हिंदुओ ने (केश) लुंचन करनेवाले बौद्ध साधुओं को हल्के तौर पर संबोधित करने के लिए बनाए थे. बौद्ध धर्म के अनुयायिओं ने किया क्या? प्रकाशभाई के संग्रह में षड्भुजा महाकाल नामक तांत्रिक बुद्ध भगवान की मूर्ति है, जिसमें (सांसें थाम लीजिए) गणपति को उस देवता के पैरों के नीचे कुचला हुआ दिखाया गया है. हिंदू गणेश भक्तों का दिल दुखाने के लिए बौद्धों द्वारा बनाई गई ये मूर्ति हिंदुओं के प्रति विधर्मियों की तथाकथित धार्मिक सहिष्णुता की कलई खोल देती है.

विधर्मियों द्वार बनाई गई १७वीं सदी की कांसे की मूर्ति: बौद्ध धर्म में भगवान के तांत्रिक स्वरूप की षड्भुजा महाकाल की इस मूर्ति में गणपति को उनके पैरों के नीचे कुचला हुआ देखकर हमें दुख होता है लेकिन उस जमाने में भी ऐसी असहिष्णुता थी.

संग्रह में १८वीं सदी की कांसे की अचमनी है, जिसमें हैंडल के किनारे पर गणपति का चित्र है. पूजा के समय पंचामृत या घी या जल इत्यादि की आहुति के लिए प्रयुक्त आचमनी (अपनी भाषा में कहें तो चम्मच) जैसी ही दूसरी कोई किस्म है सिंदूर रखने की डिब्बी. १८वीं सदी की इस कांसे की डिब्बी के ढक्कन पर गणपति हैं. कछुए के आकर के पीतल के धूप पात्र के ढक्कन पर भी गणपति का चित्र है.

१९वीं सदी में जापान से मिले गणेशजी को पोर्सेलेन से बनाया गया है. सफेद दागरहित मूर्ति के ललाट पर लाल रंग के सिंदूर का तिलक बनाया गया है मानो अभी अभी किसी ने लगाया हो.

गणपति पेंडेंट, अंगूठी, बाली तथा ब्रेसलेट के अलावा पंजाब या हिमाचल में बना चांदी का मौर है जिसे विवाह के समय दूल्हे के सिर पर पहनाया जाता है. कर्नाटक में बनी करीब साढे पांच किलो की सोना चढाई गई कांसे की पंचमुखी गणपति की मूर्ति है. पांच मुंह वाले गणेशजी के बारे में हमने अभी तक सुना या देखा नहीं होगा. साढे छह सेंटीमीटर व्यासवाला ७ से.मी. ऊंचा एक प्याला है जो केरल से लाया गया है. इस प्याले पर गणेशजी का चित्र बना है. जानते हैं किस पदार्थ से बना है! हड्डी से. चांदी का एक दिया है जिसे लटकाया जा सकता है. उसके लटकाने वाले भाग पर एकदम मॉडर्न आर्ट पेंटिंग में गणपति की लाइन ड्रॉइंग की गई है.

पहली सदी से लेकर इक्कीसवीं सदी तक फैली इस प्रदर्शनी में मुंबई के मोहनकुमार नामक कलाकार ने पीपल के पत्ते को कांच पर एनग्रेव करके उसे गणेशजी का आकार दिया है. करीब पौने बाई पौने फुट की यह फ्रेम प्रकाशभाई के घर में प्रवेश करते ही पैसेज में बाएं हाथ पर देखने को मिलती है. यह २००५ की कलाकृति है. अहमदाबाद के सुप्रसिद्ध कलाकार वृंदावन सोलंकी द्वारा २००९ में फाउंटेन पेन से कागज पर बनाया गया गणेशजी का मिनीमलिस्टिक चित्र इस प्राचीन प्रदर्शनी को आधुनिकता की छटा प्रदान करता है.

कांच में पत्ता, पत्ते में गणेश: मोहनकुमार नामक कलाकार द्वारा पीपल के पत्ते को गणपति के आकार में रचने के बाद कांच पर जड कर सुंदर कलाकृति बनाई गई है.
गुजराती गणपति: अहमदाबाद के जानेमाने गुजराती चित्रकार वृंदावन सोलंकी ने केवल फाउंटेन पेन से कागज पर गणेशजी का मिनिमलिस्टिक चित्र बडी स्टाइल से बनाया है जिसकी बारीकियां देखने लायक हैं.

२०१२ में झांसी के राजेश देवरिया ने भंगार से लिए गए मेटल से एक ताला बनाया जो पहली नजर में तो आपको ताले जैसा लगेगा ही नहीं. गणपति के माथे के आकार का ये एक किलो से भी अधिक वजन वाला आधा फुट लंबा ताला और चाबी करीब पाव फुट (साढे आठ से.मी.) जितना है. गणपति की सूंड के पीछे के भाग में चाबी लगाने पर कडी दबते ही ताला खुल जाता है.

प्रभु को लॉक किया जाय: झांसी के राजेश देवरिया ने भंगार की धातुओं से आधा फुट लंबे गणपति के आकार का ताला बनाया है जिसमें सूंड के पिछले भाग में चाबी लगाते ही लॉक खुल जाता है.

गणपति के साथ ऐसे अनेक रहस्य जुडे हैं, जिन्हें उजागर करने के लिए पूरा दिन भी कम पडेगा. प्रकाश कोठारी के कलेक्शन में एक सौ से अधिक दुर्लभ वस्तुएं हैं जिसमें से केवल दो तिहाई वस्तुएँ ही प्रदर्शनी की सीमित जगह को ध्यान में रखकर प्रस्तुत की गई थीं. तीसरे हिस्से की वस्तुएँ तो अभी सार्वजनिक होना बाकी हैं.

देश विदेश में गणपति: बाईं तरफ बिलकुल ऊपर अमेरिका के डाक विभाग द्वारा जारी किया गया गणपति के स्टैंपवाला फर्स्ट डे कवर है.

मनुष्य के पास लगन हो, पैसा हो और धैर्य हो तो ही ऐसा कलेक्शन हो सकता है. सेक्सोलॉजिस्ट के नाते व्यस्ततम प्रैक्टिस करना, मित्रों के साथ महफिलें करना, गुजराती-हिंदी-उर्दू कविता-गजल- शायरियों में डूब जाना और इसके बावजूद कोई आदमी का अपने जीवन में एक बार ऐसे कलेक्शन की प्रदर्शनी करे तो भी उसका नाम इतिहास के पन्नों पर दर्ज हो जाए, इस प्रकार का संग्रह करके उसके संशोधन में गहराई तक उतर जाना. आयु के आठवें दशक के अंत में पहुंच रहे प्रकाश कोठारी अपने युवा मित्रों को हमउम्र जैसे लगते हैं, इसका कारण ही ये होगा- कोई भी काम करो तो उसमें पूरी तरह से उतर जाओ, पैशनेट बनकर काम करो, आस-पास की दुनिया को भूलकर काम करो और दिल की सच्चाई के साथ काम करो.

आशा है कि भविष्य में इस प्रदर्शनी को लेकर डॉ. प्रकाश कोठारी अहमदाबाद भी आएं, दिल्ली ले जाएं और लंदन -पेरिस-न्यू यॉर्क वासियों को भी गणेश जी के दर्शन कराकर आशीर्वाद दिलाएंगे.

ताजा जानकारी: आज गणेश विसर्जन के पावन अवसर (गुरुवार, १२ सितंबर २०१९) पर डॉ. प्रकाश कोठारी ने अपने गणेश कलेक्शन के बारे में अपार मेहनत और सावधानी से निर्मित की गर्स कॉफीटेबल बुक “गणेश थ्रू द एजेस” के बारे में सूरत में एक कार्यक्रम का आयोजन किया है. डॉ. प्रकाश कोठारी स्वयं उसमें उपस्थित होंगे. कार्यक्रम का आयोजन डॉ. मुकुल चोकसी, एषा दादावाला तथा मित्रों ने किया है. स्थान: संस्कार भारती स्कूल का ऑडिटोरियम, पालनपुर पाटिया, सूरत. समय: रात ९.०० बजे.

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