गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह
(मुंबई समाचार, मंगलवार – २५ सितंबर २०१८)
गाइड के रूप में राजू के पास गजब की कुशलता थी. ट्रेन अभी मालगुडी स्टेशन के आउटर सिग्नल पर ही रहती कि राजू को गंध आ जाती थी कि उसमें अपने लिए कोई टूरिस्ट उतरेगा या नहीं. देश में कई लोग किस जमीन के नीचे से पानी निकलेगा और कहां पर कुंआं खोदना चाहिए, इस संबंध में कुशलता रखते हैं. राजू में ऐसी कोई छठीं इंद्रीय थी जो उसे बता देती थी कि आनेवाली ट्रेन के किस डिब्बे के पास खडे रहना है. ऐसा नहीं था कि वह यात्री के गले में लटकती दूरबीन या कंधे पर लटकते कैमरे से पहचान लेता था कि यात्री टूरिस्ट है या नहीं, बल्कि उसे इन सबके बिना भी गंध आ जाती थी. अगर इंजिन के प्लेटफॉर्म पर आने के बावजूद राजू यदि इंजिन जिस दिशा में जा रहा है, उसी दिशा में जाने लगता तो समझ लीजिए कि उस ट्रेन से कोई टूरिस्ट नहीं उतरेगा. पहले राजू को लगता था कि गाइड बनना उसका शौक है और उसका व्यवसाय दुकान चलाना है, लेकिन अब उसे लगता था कि वह पेशेवर गाइड बन गया है, जब कि दुकान उसका साइड बिजनेस है.
जब कोई टूरिस्ट नहीं आता था तब भी राजू दुकान संभालने के बजाय बाजार में फौवारे के चबूतरे पर बैठ कर टैक्सी ड्रायवर गफूर के साथ गप्पे लडाता रहता.
राजू को अब पता चल गया था कि टूरिस्ट कितने प्रकार के होते हैं. राजू ग्राहक देखकर अपना अंदाज बदल लेता था. कई टूरिस्टों को फोटो खींचने का बडा शौक होता है. सामने दिख रहा हर दृश्य कैमरे के व्यूफाइंडर में से देखते हैं. ट्रेन से उतरने पर अभी हमाल आकर उनका सामान उठा ही रहा है कि वे पूछते हैं: इस गांव में कैमरे का रोल धोकर देनेवाली कोई दुकान है?
`है ना. मालगुडी फोटो ब्यूरो. इस इलाके की सबसे बडी…’
`मेरे पास फिल्म के रोल्स तो पर्याप्त हैं, लेकिन यदि कम पड जाते हैं तो मुझे सुपर पेंको थ्री-कार मिल जाएगी ना?’
`साहब, यही तो उसकी खासियत है,’ राजू तुरंत अपने क्लाइंट को जवाब देता. टूरिस्ट पूछता कि यहां पर देखने जैसा क्या कया है तो राजू उसका जवाब तुरंत नहीं देता था, पहले वह टूरिस्ट को परखता था कि उसके पास कितने दिन हैं, खर्च करने के लिए कितने पैसे हैं. मालगुडी और उसके आस पास के इलाकों में राजू किसी भी टूरिस्ट को झटपट आस-पास की जगहों पर सभी दर्शनीय स्थलों की सैर करा सकता था और चाहता तो हर जगह ले जाकर घंटों तक वहां टूरिस्ट को घुमा सकता था जिसमें कुल मिलाकर सारा सप्ताह बिताया जा सकता था. टूरिस्ट के पास जेब में कितने पैसे हैं उस पर राजू के मालगुडी दर्शन की समयावधि आश्रित रहती थी.
टूरिस्ट की आर्थिक सक्षमता को मापने के कई तरीके थे. ट्रेन से उतरते ही राजू उसकी बैग और सामान की हालत देख लेता, कितना सामान उसके साथ है यह भी मन ही मन गिन लेता, सामान उठाने के लिए मजदूर करता है या नहीं करता. पलक झपकते ही राजू के मन में सारा कुछ अंकित हो जाता. होटल पर जाते समय वह पैदल जाता है, टैक्सी करता है या फिर तांगेवाले के साथ मोलभाव की झिकझिक करने में समय बिगाडता है. कौन सी होटल पसंद करता है. होटल में किस प्रकार का रूम लेता है. कोई टूरिस्ट साधारण होटल में जाकर धर्मशाला की तरह डॉर्मिटरी में रहना पसंद करता है और कहता है कि,`हमें तो सिर्फ सोने के लिए यहां आना है. सिर्फ एक बिछौने की जरूरत है. सारा दिन तो बाहर घूमना ही है फिर बेकार में पैसे क्यों बर्बाद करने, है ना?
`बिलकुल सही. एकदम सच बात,’ राजू कहता. लेकिन `पहले हम क्या देखने जाएंगे?’ ऐसे सवालों का जवाब राजू अब भी नहीं देता. राजू का मानना था कि टूरिस्ट ट्रेन की यात्रा से हुई थकान को दूर कर फ्रेश हो जाय, कपडे बदल ले, इडली-कॉफी का नाश्ता कर ले तभी उसका कार्यक्रम तय करना चाहिए. टूरिस्ट यदि राजू को भी नाश्ता ऑफर करता तो समझ लो कि वह दूसरों की तुलना में उदार प्रकृति का है, लेकिन अभी अधिक गहरे संबंध बनने से पहले नाश्ते का ऑफर स्वीकार नहीं करना चाहिए. थोडी दोस्ती होने के बाद राजू पूछता,`मालगुडी में आप कितने दिन ठहरना चाहते हैं?
`ज्यादा से ज्यादा तीन दिन. क्या लगता है इतने समय में सब कवर हो जाएगा?’
`बिलकुल हो जाएगा. वैसे यह इस बात पर निर्भर है कि आप जाना कहां कहां चाहते हैं.’
मालगुडी में तो सब कुछ देखने जैसा था. ऐतिहासिक स्थल थे, प्राकृतिक सौंदर्य के नजारे थे, तीर्थ स्थल थे, हायड्रोइलेक्ट्रिक वर्क्स और डैम जैसे आधुनिक समय की गवाही देनेवाले स्थल भी थे. टूरिस्ट के मिजाज के अनुसार राजू उन्हें झरना देखने ले जाता, बारह के बारह मंदिरों की यात्रा कराता, हर मंदिर के कुंड में स्नान भी करवाता और किसी को रुचि हो तो खंडहर भी देखने ले जाता.
राजू को पता चल गया था कि हर टूरिस्ट दूसरे से कुछ अलग खासियत रखता है. जैसे खाने पीने में सबकी रूचि अलग अलग होती है उसी प्रकार पर्यटकों का भी था. राजू हर किसी की पसंदगी का ख्याल रखता था. अगर किसी जानकार टूरिस्ट से मुलाकात हो जाती तो वह खुद के मनगढंत इतिहास के विवरण बताने के बजाय टूरिस्ट को ही बोलने देता. गाइड के सामने अपना ज्ञान बघारते हुए टूरिस्ट को भी आनंद आता. और कहीं पर कोई अति जिज्ञासू मिल जाता तो राजू नॉन स्टॉप बोलकर उसे प्रभावित कर देता. और कभी ऊब जाता तो कह देता कि,`ये खंडहर कुछ प्राचीन वाचीन नहीं है. बीस साल पहले एक इमारत धराशायी हो गई थी और लोग इसे प्राचीन स्मारक कहने लगे, आगे चलिए….’
इसी तरह से दिन बीत रहे थे कि एक दिन मद्रास से मालगुडी आए टूरिस्ट युगल में से उस खूबसूरत स्त्री ने राजू से पूछा:`यहां संपेरों की कोई बस्ती है? मुझे किंग कोब्रा देखना है जो बीन की आवाज सुनते ही उसकी धुन पर डोलने लगे, नाचने लगे.’
आज का विचार
खिंचते चक्कर काटते पलों में जिया,
मैं खुद ही अपनी भंवर के बीच जिया.
– मनोज खंडेरिया
एक मिनट!
केबीसी में मोदी ने बच्चनजी से कहा: मैं फोन अ फ्रेंड करना चाहूंगा…
बच्चनष क्या करते हैं आपके मित्र.
मोदी: भाजपा को इलेक्शन में जिताते हैं.
बच्चन: कंप्यूटरजी, अमित शाह को …..
मोदी: रुकिए मैं राहुल की बात कर रहा था!