आचार्य रत्नसुंदरसुरिश्वरजी कहते हैं: गरूड बनना हो तो चिडियों की संगत छोडो

गुड मॉर्निंग एक्सक्लुसिव – सौरभ शाह

(सोमवार – ८ अक्टूबर २०१८)

`वन मिनट, प्लीज’. आचार्य विजयरत्नसुंदरसूरि महाराज साहब की ३३२ वीं पुस्तक है. गुरुदेव की सबसे लोकप्रिय पुस्तक `लखी राखो आरसनी तकती पर’ (यानी `लिखकर रखिए संगमरमर की तख्ती पर’) की अभी तक कुल ५१ आवृत्तियां प्रकाशित हो चुकी है और साढे तीन लाख प्रतियां पाठकों के घर पहुंच चुकी हैं. `वन मिनट, प्लीज’, भविष्य में यह रेकॉर्ड को तोडकर नया कीर्तिमान स्थापित करने की क्षमता रखनेवाली दमदार पुस्तक है. इसके एक एक वाक्य पर आपको ठहरकर एक घंटों नहीं दिनों तक चिंतन करना पडेगा. एक पंक्ति का सवाल और एक पंक्ति का जवाब- इस स्वरूप में ५०४ प्रश्न-उत्तर हैं. हर पंक्ति में एक सूत्र है, श्लोक है जिसका विश्लेषण करने के लिए तीन घंटे का प्रवचन भी कम पड जाए. एक एक जवाब में इतनी समझ सूत्र रूप में ठूंस ठूंस कर भरी हुई है. जीवन, प्रेम, परमात्मा, अध्यात्म, संबंध, मन, विचार, दुर्गुण, समय, धन और विज्ञान जैसे विभिन्न विषयों पर मौलिक चिंतन इस पुस्तक में है.

सलाह देना सभी को अच्छा लगता है और उस पर भी किसी का नकारात्मक पक्ष आपको पता चल जाए तो तुरंत आप उस व्यक्ति को सुधारने की जिम्मेदारी अपनी है ऐसा मानकर उसे क्या करना चाहिए, कैसे करना चाहिए, उसने कहां गलती की इत्यादि बातों की बौछार शुरू कर देते हैं. व्यक्ति आपसे उम्र में छोटा हो तो ताना मारने बैठ जाते हैं. ऐसे समय में सामनेवाले व्यक्ति की मनोदशा का शायद ही हमें ध्यान होता है. महाराज साहब के पास प्रश्न है: `किसी को ताना मारते समय पालन करनेयोग्य सावधानी?’ महाराज साहब का उत्तर है: `टांकते समय पत्थर टूट न जाए.’

छह शब्दों में ही कितनी बडी बात गुरूदेव ने कही है. लाघव इस पुस्तक का अलंकार है. मां सरस्वती के चारों हाथ जब किसी के माथे पर होते हैं तब इस दर्जे की पुस्तक रची जाती है.

कई लोगों को बडा शौक होता है अपने आस-पास के लोगों को हमेशा खुश रखने का, लोग हमेशा मेरे बारे में अच्छा बोलें ऐसा वे चाहते हैं: प्रश्न है: `संसार को प्रसन्न रखने का उपाय?’ उत्तर:`जगत्पति को प्रसन्न किया जा सकता है, जगत को नहीं.’

और प्रभु को प्रसन्न करने का क्या अर्थ है? स्वयं को प्रसन्न करना. हम खुद यदि प्रसन्न रहेंगे तो ही हमारे आसपास के जगत को प्रसन्नता की सुगंध पहुंचा सकेंगे. हमारे खुद में यदि क्लेश, द्वेष, ईर्ष्या भरी होगी तो हम कैसे दूसरों को प्रसन्न कर सकते हैं?

जीवन की व्याख्या हर महापुरुष ने अपने अपने चिंतन की परिपक्वता के रूप में दी है. गुरुदेव का नजरिया क्या है? `अपार संभावना और अगणित अनिश्चितता का नाम जीवन है.’ जीवन से संबंधित कोई भी प्रश्न भ्रमित करता है तब इस व्याख्या को याद रखना चाहिए. किसी से मिले बिना, किसी के भी साथ अपनी समस्या की चर्चा किए बिना, साइकेट्रिस्ट के पास गए बिना आपको समाधान मिल जाएगा बशर्ते आप जीवन में निहित अपार संभावनाओं और अनगिनत अनिश्चितता वाले गुरुदेव के कंसेप्ट का चिंतन मन में किया हो. चाहे कितनी भी ज्वलंत परिस्थिति हो, यह व्याख्या अत्यंत सुकून देती है.

जीवन है तो मुसीबत है, विघ्न हैं. कई बार मनुष्य इन तकलीफों से थक जाता है, हार जाता है. मेरे सिर पर कितनी सारी, कितनी बडी समस्याओं का बोझ है, इस विचार से ही वह हताश होकर बीच रास्ते में ही बैठा रहता है. प्रश्न: `समस्या से होनेवाली हताशा से बचने का उपाय?’ उत्तर: `समस्या पीडा नहीं बल्कि परिपक्वता देती है, इस बात को स्वीकार कर लेना चाहिए.’

कुंभार कच्ची मिट्टी का घडा चाक से उतार कर भट्ठी में पकाने के लिए रखता है. उस ताप को सहने के बाद ही घडे को अपना रूप मिलता है, वह अपने कर्तव्यव का पालन करने लायक बनता है. घडे का क्या कर्तव्य है? उसका जन्म किसलिए हुआ है? पानी संग्रह करने के लिए. जिस घडे में दरार हो, जिस घडे में पानी भरते ही पानी बाहर बह जाए तो वह घडा बेकार है. भट्ठी में पकाने के बाद ही घडा अपना काम करने में सक्षम बनता है. जीवन में आनेवाली कोई भी समस्या हमें हताश करने नहीं आती है यह समझ लेना चाहिए, ऐसा गुरुदेव कहते हैं. भगवान क्यों हमें विचलित करते हैं? फिर भी वे समस्याएं भेजते रहते हैं. इसका कारण क्या है? वह जानते हैं कि हमारा घडा अभी कच्चा है, मिट्टी अभी गीली है. हमें भविष्य में काफी बडे काम करने हैं. कई भगीरथ कार्य करने के लिए ऊपरवाले ने हमें पसंद करके पृथ्वी पर भेजा है. स्वयं की कृति कच्ची न रहे, इसीलिए भगवान हमें समस्याओं की आंच में पकाना चाहते हैं. तपकर तैयार होकर, सुसज्जित हो जाते हैं. समस्याओं का तो प्रयोजन ही यही होता है.

जीवन में हर कदम पर सावधानी रखनी होती है. स्वाभाविक बात है कि फुटपाथ पर चलते समय गड्ढा आने पर अगर हम सावधानी से चलते हैं तो पैरों में मोच नहीं आएगी, इस बात को हम समझते हैं. लेकिन प्रश्न है: `खूब सावधान कब रहना चाहिए?’ गुरूदेव का उत्तर है: `बात और वातावरण बिगडने पर.’ किसी के साथ बात कर रहे हैं और अचानक सामनेवाला व्यक्ति दलील पर उतर आए तब सावधान हो जाना चाहिए. वातावरण में अचानक बदलाव आ जाए तब सावधान हो जाना चाहिए. निजी जीवन की परिस्थिति में परिवर्तन आता हुआ महसूस हो तो सावधान हो जाना चाहिए. बिजनेस का- मार्केट का वातावरण बिगडने पर सावधान हो जाना चाहिए- ऐसे परिवर्तन काल में जितनी जल्दी सचेत होंगे उतना ही कम नुकसान होगा.

सफलता जब मिलती है तब मनुष्य बेलगाम चलने लगता है. आज कल पांव जमीं पर नहीं पडते मेरे वाला भाव प्रेम में सफलता मिलने पर उभरता है. आज मैं ऊपर, आसमां नीचे, आज मैं आगे, जमाना है पीछे वाले दौर से गुजरती जिंदगी किसी नाजुक पल में जमीन पर गिरकर बिखर न जाए, इसके लिए क्या करना चाहिए. व्यवसाय में तीव्रता से प्रगति हो रही है. चारों दिशाओं से धन बरस रहा है. ऐसे संयोगों में भ्रमित न हो जाएं इसके लिए क्या करना चाहिए? ऐसा प्रश्न आता है: `आसमान में उड रही पतंग की सुरक्षा कब तक है?’ जवाब मिलता है: `जमीन पर खडे व्यक्ति के हाथ में जब तक उसका नियंत्रण है तब तक.’

समय अच्छा हो, हवा अनुकूल बह रही हो तब उडाने में कोई परेशानी नहीं आती, उडनी भी चाहिए. लेकिन उडान के नियंत्रित करनेवाली व्यवस्था यदि नहीं की हो तो दिशाहीन होकर कहीं भी पटके जा सकते हैं. पांव जमीन पर रखने का मतलब है व्यावहारिक जगत को भूलना चाहिए. पतंग की डोर फिरकी के साथ जुडी रहे इसका मतलब ये है कि हवा मंद हो जाए या वातावरण विपरीत हो जाए तब हम डोर खींचकर उसे समय पर नीचे ला सकते हैं. ये नियंत्रण का फायदा है. जिंदगी में चाहे जितनी सफलता मिले, चाहे जितनी मौज-मस्ती करें लेकिन ये सब लिमिट में ही होना चाहिए, हमारे काबू में होना चाहिए. हम जब खुद के नियंत्रण में नहीं रहते हैं तब दूसरा कोई आप पर नियंत्रण कर लेता है, आपको परतंत्र बना देता है. स्वतंत्र रहना है तो अपनी स्वतंत्रता पर नियंत्रण रखना होगा.

जैसी संगत वैसी रंगत, यह तो सभी को पता है. फिर भी जीवन में इस पर अमल नहीं होता. कभी दो आंखों की कृत्रिम शर्म आडे आती है तो कभी इमोशनल ब्लैकमेलिंग का शिकार हो जाते हैं इसीलिए डरते हैं. जीवन में जहां हैं वहां से ऊंचाई पर जाना है तो अभी जो लोग आस पास हैं उन्हें त्यागना होगा. क्योंकि आप जैसे ही उडान भरेंगे वे लोग आपको रोकेंगे. वे आपको अपनी तरह बनाना चाहते हैं. इसी में उनकी इमोशनल सिक्योरिटी है. आपकी झोपडी के पास वाली झोपडी में रहनेवाले पडोसी को आप बंगले में रहने जाएंगे तो आपसे ईर्ष्या होने ही वाली है. हम रह गए वाली भावना ईर्ष्या की जन्मस्थली होती है. आप उनसे ऊंचे, अलग, बेहतर साबित होंगे तो लोग आपसे पूछेंगे कि धीरूभाई अंबानी तो आपके साथ स्कूल में पढते थे ना? वे कहां के कहां पहुंच गए और आप क्यों यहीं के यहीं रह गए? यह बात उजागर हो जाएगी कि उनमें कुछ भी नहीं है. वे आपकी तुलना में कमतर हैं, किसी मामले में इंफीरियर हैं, यह दुनिया को पता चल जाएगा. इसीलिए वे आपको निरुत्साहित करते रहते हैं. आपको आगे बढने से रोकते हैं, डराते हैं. आप कुछ विचित्र करने जा रहे हैं, ऐसा एहसास कराते हैं. अपनी नासमझी को चतुराई बता कर आपको सिद्धि प्राप्ति के मार्ग पर जाने से रोकते हैं. आपकी हंसी भी उडाते हैं.

यदि आपको जीवन में बडे कार्य करने हैं तो या तो आपके साथ जो लोग हैं उन्हें प्रेरणा देकर, वे जहां हैं वहां से उन्हें ऊंचा उठाकर, उन्हें अपने साथ यात्रा करने के लिए तैयार करना चाहिए, और जिनकी क्षमता नहीं है, ऐसे लोगों को छोडकर अपनी क्षमता बढाने में उपयोगी लोगों के साथ अपना उठना बैठना बढाना चाहिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हम सभी के सामने एक जीवंत उदाहरण हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक प्रचारक से देश के प्रधानमंत्री बनकर दुनिया के अत्यंत शक्तिशाली देशों के महारथी नेताओं के साथ उठने बैठने तक की यात्रा को देखिए. उन्होंने कैसे कैसे लोगों को छोडा. किसकी क्षमता बढाकर अपने साथ लिया. और अपनी क्षमता बढाने के लिए कैसे कैसे दिग्गजों के साथ उठना बैठना शुरू किया. अपने परिचितों में भी जो लोग ऊपर अधिक ऊपर गये हैं उनकी जीवनशैली भी देखिए. और उन लोगों को भी देखिए जिनमें क्षमता होने के बावजूद, जिनमें भरपूर संभावना होने के बावजूद वे वहीं के वहीं रह गए. इसका क्या कारण है? गुरूदेव ने `उत्तम बने रहने का उपाय?’ के प्रश्न के जवाब में जीवन भर गांठ बांधकर रखने जैसी बात कही है:`गरूड बनना हो तो चिडियों की संगत छोडो.’

आचार्य विजयरत्नसुंदरसुरि महाराज साहब की लिखी पुस्तक `वन मिनट, प्लीज’ के बारे में संपल्पित लेखमाला का अभी तो ये पहला सोपान है. जीवन की अनेक कठिन लगनेवाली बातों को गुरुदेव ने सहज और आकर्षक शैली में इस पुस्तक में उकेरा है. कल जारी.

आज का विचार

प्र: जागरण-निद्रा को सफल बनाने की प्रक्रिया?

उ: अरमान लेकर उडना और संतोष से सोना.

-आचार्य विजयरत्नसुंदरसुरि

(`वन मिनिट प्लीज’ पुस्तक से)

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