हमने देखी है उन आँखों की महकती खुशबू

गुड मॉर्निंग – सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, बुधवार- २० मार्च २०१९)

जावेद अख्तर जिस प्रकार उपमा अलंकार के कवि हैं उसी प्रकार से गुलजार वर्णन करने या उपमा का उपयोग के बजाय या कल्पना का चित्र उकेरने के बजाय अपने गीतों में और कविताओं में किसी भाव या अनुभूति का एहसास कराते हैं. ये कौन सी अनुभूति होती है? कवि जिस भाव को व्यक्त करने का प्रयास करता है, वही प्रयास कवि की अभिव्यक्ति बन जाता है. इसका उदाहरण देते हुए गुलजार साहब नसरीन मुन्नी कबीर को १९६९ की फिल्म ‘खामोशी’ के लिए लिखे यादगार गीत की बात करते हैं.

‘हमने देखी है उन आंखों की महकती खुशबू’ में आंख की ‘महकती खुशबू’ और वह भी ‘दिखाई देनेवाली’- इसी अभिव्यक्ति के कारण हर सुननेवाले, हर भावक इस गीत का निहितार्थ अपने अनुभव के अनुसार निकाल कर रसास्वादन कर सकता है. उसकी कल्पना सीमित नहीं होती, और हर किसी की कल्पना अलग अलग होती है. दो सुनने वालों की कल्पनाओं के बीच समानता नहीं होती. उपमा का उपयोग किया हो या फिर कोई इमेज क्रिएट की हो या फिर वर्णनात्मक शब्द रखे हों तो स्पून फीडिंग के कारण कवि ने जो लिखा होता है उसके अनुसार भावक कल्पना करता है. यहॉं पर कवि भावक को बांधता नहीं है, उसे अपनी कल्पना के अनुसार उडान भरने सुविधा निर्मित करता है, रनवे बनाकर देता है.

गुलजार समझाते हैं कि जब वह ‘आँखों की महकती खुशबू’ शब्द का उपयोग करते हैं तब उसका अर्थ शब्दश: नहीं लेना होता. आंख से कभी सुगंध निकलती है भला? ऐसी चतुराई दिखानी नहीं होती कि आंख से अधिक अधिक तो कीचड निकलता है! साहब कहते हैं कि आंखें भले ही बोलती न हों लेकिन क्रोध, धिक्कार, प्रेम इन सबकी अभिव्यक्ति आंखों से ही होती है. आंख इस प्रकार से जो कुछ ‘बोलती’ है उसका एक ‘टोन’ होता है, उसका अपना एक ‘फ्लेवर’ होता है. आप जब मासूम प्यारी आँखें देखते हैं तब आप कल्पना नहीं कर सकते कि उसमें खुशबू होगी! गुलजार साहब कहते हैं. वे बताते हैं कि इन शब्दों के लिए खूब आलोचना हुई थी!

इस गीत का अनुवाद करते समय प्रोसेस में गहरे उतरने का अपना ही आनंद होता है. लेट अस शेयर. हेमंत कुमार की धुन पर लता मंगेशकर के गाए इस गीत में ‘प्यार कोई बोल नहीं, प्यार आवाज नहीं’ पंक्ति आती है. नसरीन पूछती हैं: ‘आवाज’ के लिए ‘वॉइस’ और ‘साउंड’ दोनों का उपयोग किया जा सकता है. आप किन शब्दों को पसंद करेंगे?

गुलजार पूछते हैं: लव इज नॉट वर्ड, लव इज नॉट वॉइस….फिर कहते हैं:‘साउंड’ के बदले ‘वॉइस’ शब्द रखना चाहिए.

नसरीन पूछती हैं: ना ये बुझती है, ना रुकती है, ना ठहरती है कहीं…क्या लिखेंगे?

गुलजार: द फ्लेम कैन नॉट बी एक्स्टिंग्विश्ड….

नसरीन: इसके बजाय ‘स्नफ्ड आउट’ का उपयोग करें तो? थोडा भारी और पुराना शब्द प्रयोग है.

गुलजार: व्हाय नॉट्य? कीप इट!

नसरीन: ‘मुस्कुराहट सी खिली रहती है आंखों में कहीं’ का फ्लोइंग लाइक अ स्माइल इन योर आइज करें तो?

गुलजार: बिलकुल. अच्छा एक्सप्रेशन है.

नसरीन: ‘होंठ कुछ कहते हैं नहीं कांपते होंठों पे मगर’ के लिए द लिप्स नेवर पार्ट टू स्पीक यर दे क्विर सो- ऐसा किया हो तो?

गुलजार: ब्यूटीफुल. अब पूरा ट्रांसलेशन देख लेते हैं?

हमने देखी है उन

आँखों की महकती खुशबू

(आय हैव सीन द फ्रैगरेंस ऑफ योर आइज)

हाथ से छूके इसे

रिश्तों का इलजाम न दो

(डु नॉट टेंट इट विथ बर्डन आफ रिलेशनशिप… यहॉं आपने मार्क किया होगा कि ‘डु नॉट टच इट विद हैंड’ जैसे चालू, शब्दश: ट्रांसलेशन के बजाय कवि जो कहना चाहता है, उसका भाव पकडा गया है).

सिर्फ एहसास है ये

रुह से महसूस करो

(इट्स जस्ट अ फीलिंग, फील इट विथ योर सोल)

प्यार को प्यार ही रहने दो

कोई नाम न दो

(लेट लव बी लव, डु नॉट बर्डन इट विथ अ नेम)

हमने देखी है..

प्यार कोई बोल नहीं,

प्यार आवाज नहीं

(लव इज नॉट वर्ड, लव इज नॉट अ वॉइस)

एक खामोशी है सुनती है

कहा करती है

(इट्स अ सायलेंस दैट स्पीक्स, अ सायलेंस दैट हियर्स)

ना ये बुझती है, ना

रुकती है, ना ठहरती है कहीं

(इट कैन नॉट बी स्नफ्ड आउट, स्टॉप्ड ऑर स्टिल्ड)

नूर की बूंद है,

सदियों से बहा करती है

(इट्स अ ड्रॉपलेट आफ रेडिएंट लाइट दैट फॉल्स एटर्नली)

हमने देखी है….

मुस्कुराहट सी खिली रहती है

आँखों में कहीं

(फ्लॉवरिंग लाइक अ स्माइल इन योर आइज)

और पलकों पे उजाले से झुके रहते हैं

(ग्लोइंग ऑन योर लॉअर्ड आइलिड्स)

होंठ कुछ कहते नहीं,

कांपते होंठों पे मगर

(लिप्स नेवर पार्ट टू स्पीक यर दे क्विवर)

कितने खामोश से

अफसाने रुके रहते हैं

(सो मेनी सायलेंट टेल्स फ्रोजन इन टाइम)

हमने देखी है…

नसरीन मुन्नी कबीर पूछती हैं: आपने एक बार मुझसे कहा था कि ये गीत हेमंत कुमार को गाना था, लता मंगेशकर को नहीं. सच है?

गुलजार: हां, लेकिन हेमंतदा ने ना कह दिया. उन्होंने कहा: ‘नहीं, ये कंपोजिशन सिर्फ लता ही गा सकती है, मैं नहीं गा सकता. लता गाएगी.’ मैने कहा,‘दादा, ऐसा कैसे हो सकता है? पुरा गीत मेल पॉइंट ऑफ व्यू से लिखा गया है. हिरोइन किस तरह से अपने प्रेमी के बारे में ये शब्द कह सकती है? ऐसी नजाकत भरी बातें पुरुष की आंखों के लिए थोडे ही की जा सकती हैं! आपने कभी सुना है कि पुरुष की आंखों से सुगंध निकल रही हो? (हंसने लगती हैं फिर सीरियस होकर कहती हैं) मैं हमेशा कहता हूँ कि लताजी चाहें तो गीत का पॉइंट ऑफ व्यू बदल सकती हैं, पुरुष या स्त्री – जिसके भी पॉइंट ऑफ व्यू से बात करनी हो, की जा सकती है. आज तक मुझसे किसी ने भी ये नहीं पूछा है कि इस गीत को मेल सिंगर ने क्यों नहीं गाया. ये कमाल है लताजी का!

आज का विचार

मुझे फूंको तो मैं गाऊँ,

औ‘ मारो थाप तो बजूँ.

सुरीला वाद्य हूँ मैं

पर सभी खोखला ही मानते हैं.

धोखा-आघात पचाकर निरंतर

हंसता रहता हूं मैं,

अब तकलीफ ये है

कि सभी मुझे तस्वीर ही मानते हैं.

_डॉ. मनोज जोशी ‘मन’

एक मिनट!

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बका: दुनिया की किसी भी भाषा में प्रेमिका को कुछ नहीं कहते, पका, समझ जरा!

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