…आणि काशीनाथ घाणेकर

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, सोमवार – १२ नवंबर २०१८)

कोई ट्रैवल एजेंट आपको पेरिस का एफिल टावर दिखाने का वादा करे और आप उसे पैसे दे दें, फिर वह एफिल टावर का पिक्चर पोस्टकार्ड आपके हाथों में थमा दे तो आप उसका क्या करेंगे?

कोई ज्वेलर आपको २२ कैरट का सोने का आभूषण बेचने की बात कह कर आपसे उसकी कीमत वसूल ले और आपको सोने का पानी चढा पीतल का गहना बेच दे तो आप उसका क्या करेंगे?

ऐसे ज्वेलर या ऐसे ट्रैवल एजेंट का गला पकड कर उसे कॉलर से घसीट के लात मार मार कर आप पुलिस स्टेशन ले जाएं तो बिलकुल पाप नहीं लगेगा.

दुर्भाग्य से हिंदुस्तान के दर्शकों को ठगनेवाले प्रोड्यूसर-डायरेक्टर या अभिनेताओं के साथ आप ऐसा नहीं कर सकते.

देखिए, दो बातें बिलकुल अलग हैं. आपका इंटेंशन अच्छा हो लेकिन पचास कारणों से आप अपनी मनचाही फिल्म नहीं बना सके, यह संभव है.

दर्शक आपको माफ करे देंगे. `मेरा नाम जोकर’ से लेकर `सिलसिला’ तक की अनेक फिल्में याद आती हैं जो इम्परफेक्ट थीं, या कह लीजिए कि कमजोर थीं, लेकिन उन्हें दिखानेवालों की नीयत गलत नहीं थी.

`ठग्स ऑफ हिंदुस्तान’ तो लोगों को ठगने के लिए ही बनी है. दर्शकों से कोई फिल्म देखने के लिए जबरदस्ती नहीं करता है. मान लिया लेकिन कोई आपको एफिल टावर दिखाने का प्रॉमिस करके उसके अनुसार आपसे पैसे लेने के बाद एफिल टावर का फोटो दिखा दे तो ये अपराध है, धोखा है, चार सौ बीसी है. ठग लोग तो ठगेंगे ही, हमें सतर्क रहना चाहिए ऐसा तर्क देना भी बिलकुल वाहियात है. आप रास्ते से जा रहे हैं कोई आपका मंगलसूत्र छीन ले जाए या आपकी बेटी से छेडछाड करे तब आप इस तर्क को मानेंगे कि आपको या आपकी बेटी को सावधान रहना चाहिए?

`ठग्स’ की पहले दिन की कमाई पचास करोड रूपए थी, दूसरे दिन बढने के बजाय सिर्फ २८ करोड हो गई और तीसरे दिन शनिवार होने के बावजूद वह और भी घटकर २२-२३ कराषड पर आ गई. यह बात साबित करती है कि ऑडियन्स ने प्रोड्यूसर आदित्य चोपडा को और निर्देशक विजय कृष्ण आचार्य को गाल पर जोर का तमाचा और उचित जगह पर दनदना कर लात मारी है. दे वेरी वेल डिजर्व इट.र्

खैर, जाने दीजिए ये झंझट. नए वर्ष में `ठग्स’ देखने के बजाय मैं तो मराठी फिल्म `… आणि काशीनाथ घाणेकर’ देखने गया था ऐसा मैसेज एक मित्र ने मुझे भेजा और हम तुरंत घाटकोपर जैसे गुजराती बहुत इलाके में यह मराठी फिल्म देखने के लिए रवाना हो गए. रविवार को चार- चार शो होने के बावजूद हमारा दोपहर का साढे बारह बजे का शो हाउसफुल था. आगे से दूसरी रो में सिर ऊँचा करके फिल्म देखी. नहीं देखी नहीं, आनंद लिया. भरपूर रसास्वादन किया.

१९८५ में छप्पन वर्ष की कच्ची उम्र में दुनिया छोडकर गए मराठी नाट्य जगत के सबसे लोकप्रिय अभिनेता काशीनाथ घाणेकर की यह बायोपिक है. ठाणे में आज उनके नाम पर एक नाट्यगृह है. शराब-सुंदरी इत्यादि कारणों से बदनाम, अप्रिय तथा कभी नाट्य जगत फेंक दिए गए इस अभिनेता की कला, उनकी लोकप्रियता कितनी ऊँचाई पर पहुंची होगी कि म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन द्वारा निर्मित भव्य नाट्यगृह को स्व. काशीनाथ घाणेकर सभागृह नाम दिया गया.

काशीनाथ घाणेकर मराठी नाट्य इतिहास का एक गजब का चुंबकीय नाम है. `तो मी नव्हेच’ जैसे अभूतपूर्व नाटक के हीरो (लखोबा लोखंडे) प्रभाकर पणशीकर जिनके जिगरी दोस्त हुआ करते थे. `तो मी नव्हेच’ को गुजराती में उपेंद्र त्रिवेदी ने `अभिनय सम्राट’ के नाम से निभाया और `वो मैं नहीं’ फिल्म में नवीन निश्चल ने उस किरदार को निभाया. एक तरफ प्रभाकर पणशीकर जैसे दिग्गज कलाकार काशीनाथ घाणेकर मित्र और सुख दुख के साथी हैं तो दूसरी तरफ वैसे ही अन्य दिग्गज अभिनेता डॉ. श्रीराम लागू उनके कट्टर प्रतिस्पर्धी हैं. (बाय द वे, काशीनाथ घाणेकर खुद भी डॉक्टर थे- डेंटिस्ट के रूप में प्रैक्टिस करते थे. रंगभूमि का ऐसा आकर्षण था कि यह डेंटिस्ट बैक स्टेज करने के लिए, प्रॉम्पटर का काम करने के लिए नाटकों में काम किया करते थे और डॉक्टर की कमाई करनेवाला आदमी नाटक पूरा होने के बाद प्रोड्यूसर के सामने लाइन में खडे होकर अपना छोटा सा मेहनताना स्वीकार करता था.)

काशीनाथ घाणेकर को मराठी नाट्यजगत का सुपर स्टार बनाने में मराठी के बडे नाटककार वसंत कानेटकर बहुत बडा योगदान था. फिल्म में कानेटकर- घाणेकर की दोस्ती-दुश्मनी-दोस्ती की मजेदार बातें हैं जो आपको काशीनाथ घाणेकर की जीवनकथा `नाथ हा माझा…’ में विस्तार से जानने को मिलेगी. काशीनाथ की पत्नी कांचन काशीनाथ घाणेकर की लिखी यह जीवनी काशीनाथ के निधन के चार साल बाद १९८९ में पुणे के प्रसिद्ध प्रकाशक मेहता पब्लिशिंग हाउस ने प्रकाशित की थी.

ये कांचन कौन हैं? सुलोचना की बेटी. ये वही सुलोचनाजी हैं जो एक जमाने में हिरोइन का रोल किया करती थीं और बाद के वर्षों में हीरो की मां की भूमिका में आपने देखा. `जॉनी मेरा नाम’ में देवसाहब की मां के रूप में या `मजबूर’ में बच्चनजी की मां के रूप में तथा ऐसी अनेक फिल्मों में आपने उन्हें देखा है. ९० साल की आयु में वे मुंबई के प्रभादेवी इलाके में शांति से जीवन बिता रही हैं.

ये सुलोचनाजी काशीनाथ घाणेकर की गायनेकोलॉजिस्ट पत्नी डॉ. इरावती की परिचित हैं. इसी कारण से दोनों का एक दूसरे के घर आना जाना लगा रहता था. सुलोचनाजी की छोटी बेटी कांचन टीनेज से ही `काशीराम काका’ पर जान छिडकती थी. डीसेंट भाषा में कहें तो काफ-लव.

समय बीतने पर डॉ. इरावती घाणेकर ने पति का इस बालिका के साथ प्रेम को स्वीकार कर लिया. कुछ और समय बीतने के बाद डॉ. इरावती ने काशीनाथ से अलग होकर दूसरी शादी कर ली.

फिल्म में डॉ. श्रीराम लागू, डॉ. इरावती, सुलोचना, कांचन और बेशक वसंत कानेटकर तथा प्रभाकर पणशीकर के अलावा काशीनाथ घाणेकर के जीवन से जुडे अन्य कई महान व्यक्ति तथा कई छोटे बडे पात्र जीवंत हुए हैं.

मराठी जनता, उनकी रंगभूमि, उनके साहित्य की, उनकी फिल्मों की बात करते करते गला नहीं थकेगा. क्या आप जानते हैं कि ४ जनवरी को पु.ल. देशपांडे पर बनी बायोपिक प्रदर्शित होने जा रही है? उसे महेश मांजरेकर ने बनाया है. और २४ जनवरी को बालासाहब ठाकरे की बायोपिक मराठी में रिलीज हो रही है? नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने उसमें बालासाहब की भूमिका निभाई है. काशीनाथ घाणेकर की फिल्म का नाम `….आणि काशीनाथ घाणेकर’ क्यों है? आपकी जिज्ञासा जरूर होगी. ऐसी ही कई सारी बातें हम कल करेंगे और उसके बाद सरदार-नेहरू की बात को आगे बढाएंगे.

आज का विचार

ये तो भगवान की कृपा समझिए कि पति जन्म से ही सुंदर हुआ करते हैं. नहीं तो इस जमाने में दो-दो लोगों का ब्यूटी पार्लर का खर्च कैसे उठाया जा सकता था?

एक मिनट!

बका: अरे पका, ये रेगुलर बार्बी डॉल की कीमत १९ डॉलर और डिवोर्सी बार्बी डॉल की कीमत २९९ डॉलर क्यों है?

पका: डिवोर्सी बार्बी डॉल के साथ केन की कार, केन का घर, केन की बोट, केन का फर्नीचर, केन की ज्वेलरी, केन का पैसा, केन का कंप्यूटर और केन का बेस्ट फ्रेंड मिलता है.

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