घर जैसा बार नहीं, घर जैसी ऑफिस नहीं

गुड मॉर्निंग : सौरभ शाह

(newspremi.com, सोमवार, २९ फरवरी २०१६, मुंबई समाचार)

(वर्क फ्रॉम होम. कोरोना वायरस के इस कठिन पल में ये संकल्पना जोर पकड रही है. WFH- WORK FROM HOME- ये  शब्दावली कोई नई नहीं है. अभी कौन कौन घर से काम कर सकता है (मुझ जैसे अनेक लोग कर सकते हैं) और कौन कौन घर से काम नहीं कर सकते (फिदाइन आतंकवादी) इस बारे में एक अच्छी पोस्ट मैने अभी लिखी है ताकि वर्तमान डिप्रेस्ड और भयभीत माहौल से मुक्ति मिले. उस पोस्ट की लिंक को लेख के अंत में शेयर किया है.

एक पाठक ने कमेंट किया है कि:“सौरभ शाह ने घर से काम करते समय किस तरह से अनुशासन का पालन करना चाहिए, इस बारे में पहले लिखा भी है.”

यह पढ़कर सोशल मीडिया का मेरा काम नि:स्वार्थ भाव से शौक से संभालने वाले मेरे मित्र विनय भाई खत्री ने अपने अतिव्यस्त शेड्यूल से समय निकाल कर चार साल पहले २९ फरवरी २०१६ को लिखा हुआ वह लेख खोज निकाला.)

रोज सवेरे उठकर तैयार होकर हाथ में ब्रीफकेस-लंच बॉक्स- लैपटॉप लेकर रिक्शा-ट्रेन पकड कर या ट्रैफिक में फंसकर, ऑफिस पहुंचकर सारा दिन काम काम काम करके बारह घंटे थक कर घर लौटना किसे अच्छा लगता है? इसके बावजूद ऐसा करना पडता है. आजीविका कमाने के लिए करना पडता है.

घर बैठे आजीविका कमाने जैसा सुख इस दुनिया में और कहीं नहीं है. आठ घंटे के बदले आने जाने के दो दो घंटे जोड दें तो हर दिन के बारह घंटे काम कर सकते हैं तथा ऑफिस तक जाने में जो एनर्जी खर्च होती है उसे समय में रूपांतरित कर दें तो १४ घंटे जितना काम कर सकते हैं.

घर में ही एक रूम में ऑफिस बनाकर काम करने का आनंद वर्षों से ले रहा हूं लेकिन इस बारे में लिखने का विचार कभी नहीं आया था. कल `संडे ब्रंच` में सीमा गोस्वामी ने अपने `इंडल्ज’ कॉलम में इस विषय को उठाया है और सात मुद्दे गिनाए तब मुझे लगा कि यार, पहले मुझे ये विचार क्यों नहीं आया. यहां जो सात मुद्दे हैं वे सीमा गोस्वामी के हैं अैर मैं शत प्रतिशत एक एक मुद्दे से सहमत हूं इसीलिए उन्हें सैल्यूट करके उनकी बात को नीचे अपना भी हस्ताक्षर कर रहा हूं.

सीमा गोस्वामी जैसा कहती हैं, वह अनुभव मैने भी कई बार किया है कि जो लोग घर से काम करते हैं उन्हें शाम को चार बजते हुी ध्यान में आता है कि सुबह से घर के फुटकर कामों में इतना सारा समय खर्च हो गया कि आज का काम बाकी रह गया और आप फटाफट वर्किंग डे के शेष बचे घंटों में अपना दो दिन का काम निपटाने के लिए उतावले हो जाते हैं. इसका क्या इलाज है? सीमा गोस्वामी के ये सात मुद्दे हैं:

एक: रुटीन तय कीजिए. आपको ऑफिस जाकर समय के लिए कार्ड स्वाइप नहीं करना. अपने बॉस को रिपोर्टिंग नहीं करनी है. ऑफिस देर से पहुंचने की चिंता नहीं रहती. इतनी सारी आजादी है तो फिर खुद पर थोडा अनुशासन लादकर तय करें कि रोज आप कितने बजे काम शुरू करेंगे. लंच ब्रेक और टी ब्रेक का समय भी तय करें, कितने मिनट का ये ब्रेक होगा यह भी पक्का करें. और सबसे अधिक महत्वपूर्ण है कि काम पूरा करने का समय निश्चित करें. समय पूरा होने पर शटर गिरा देना चाहिए.

दो: काम करने का समय और सैर सपाटे का समय- इन दोनों के बीच लक्ष्मण रेखा खींच दें और इसे कभी पार नहीं करना चाहिए (वर्ना आलस नाम का बाबा आपका अपहरण कर लेगा). सुबह ब्रेकफास्ट करते समय काम पर लगते ही ईमेल्स चेक नहीं करना चाहिए और रात को बिस्तर में सोते सोते काम से संबंधित व्हॉट्सऐप नहीं खोलना चाहिए. जो टाइमटेबल तय किया है उसे इमरजेंसी के बिना तोडना नहीं चाहिए और इमरजेंसी सिचुएशन उसे कहते हैं जब दुनिया में प्रलय आ जाय और सारी दुनिया उसमें बह जानेवाली हो.

तीन: कपडे. घर में पहने जानेवाले कपडे पहनकर काम नहीं करना चाहिए. घर में ही तो रहना है, कौन देखने आनेवाला है ऐसा सोचकर अस्तव्यस्त कपडे पहन कर काम करेंगे तो काम भी अस्तव्यस्त जैसी ही होगा. ऑफिस में पहनने जैसे कपडे नहीं पहनने हों तो आपकी मर्जी लेकिन काम करते समय अलग कपडे पहनने चाहिए. इसमें आलस नहीं करना चाहिए और पैसे बचाने के लिए कंजूसी भी नहीं करनी चाहिए.

चार: घर छोटा हो या बडा, घर में काम करने के लिए जगह निश्चित होनी चाहिए. एक अलग डेस्क या एक अलग कमरा (और यदि भाग्यशाली हों तो एक अलग फ्लोर!) अपने काम के लिए खासकर होना चाहिए. एकाग्रता के लिए ये अनिवार्य है. अपने आस पास घर के सामान बिखरे पडे हों उसके बदले अपने काम से जुडे सामान बिखरे पडे हों तो काम करने का मूड आता है और मेंटली आप ऑफिस के सीरियस (यानी गंभीर नहीं पर प्रोफेशनल) वातावरण में हो, ऐसा लगता है.

पांच: आप जब घर से काम करते हैं तब लोगों को ये पता होता है और फिर लोग जब चाहे तब किसी भी समय पर फोन करते हैं, किसी भी समय पर व्हॉट्सऐप-ईमेल करके अपेक्षा करेंगे कि आप तुरंत जवाब देंगे- खाली तो बैठे हो, ऑफिस कहां जाना है? घर में आपने काम करने के लिए जो घंटे तय किए हैं, उसके दौरान अपने काम के संदर्भ में आनेवाले कॉल्स के अलावा किसी का कॉल नहीं लेना चाहिए. सामनेवाला व्यक्ति शायद खाली बैठा होगा, पर आप तो खाली नहीं हैं. काम के समय फोन पर सारे गांव की पंचायत करते समय आपको कोई सुननेवाला नहीं है, टोकनेवाला नहीं है, सीसीटीवी पर आपकी इस कामचोरी को रेकॉर्ड भी नही किया जा रहा है फिर भी फालतू कॉल्स नहीं उठाने चाहिए. अन्यथा आपकी एकाग्रता कम हो जाएगी और काम रखड जाएगा. ऑफिस में काम करनेवालों के लिए जो नियम नियम लागू होते हैं वही आपको अपने ऊपर लागू करना चाहिए. स्टेशन पर बूट पॉलिश करनेवाला क्रीम पॉलिश के साथ सॉफ्ट ब्रश से आपके जूते चमका रहा होता है तब वह अपना सेलफोन बजने पर उठाकर बात करता है? तो आपको नहीं करना चाहिए.

छह: दिन के समय में टीवी ऑन नहीं करना चाहिए. घर में हैं तो कोई रोचक न्यूज स्टोरी ब्रेक हो रही है या फिर कोई अच्छी फिल्म आ रही है या फिर कोई छूटा हुआ एपिसोड आ रहा है या फिर ऊबन हो रही है इसीलिए टीवी चालू करके नहीं बैठना चाहिए. ऑफिस में आपका बॉस आपको काम के समय टीवी देखते हुए देखेगा तो क्या करेगा? यहां घर में आप ही अपने बॉस हैं. तो अगली बार जब ऐसा करें तब आप खुद को ही धमकाएं.

सात: काम के लिए इंटरनेट की जरूरत हो तो उतने ही समय ऑनलाइन रहना चाहिए बाकी समय अपने लैपटॉप को वायफाय से दूर कर देना चाहिए. संभव हो तो स्मार्ट फोन को भी वायफाय से दूर रखना चाहिए. काम के समय काम बस. वाय फाय चालू होगा तो ईमेल-व्हॉट्सऐप-ट्विटर- इंस्टाग्राम-फेसबुक इत्यादि में झांकने का मन होगा ही.

इन सात मुद्दों के बाद सीमा गोस्वामी एक महत्वपूर्ण बात कहती हैं जो मुझे खास तौर पर सीखनी पडेगी और वह ये है कि घर से काम कर रहे हैं तो दिन में कम से कम एक बार घर से बाहर निकलकर घर के लिए छोटी मोटी खरीदारी करने जाइए, पास की कॉफी शॉप में जाइए और कुछ न हो तो बस टहलकर आइए, जिससे आप को दूसरों के चेहरे देखने को मिलेंगे. घर के घर में रहेंगे तो सोशलाइजिंग की आपकी चाहत आपको लगातार व्हॉट्सऐप-एफबी की तरफ ढकेलेगी.

मुझे खासकर इसीलिए अमल में लाना है कि मैं जब जब घर से बाहर निकलता हूं तब हमारी विंग के वॉचमैन के चेहरे पर इतना आनंद छा जाता है कि मानो उसे इस बात का संतोष हो रहा है कि हाश, ये आदमी अभी जिंदा है… बाकी इतने दिनों से उनका चेहरा नहीं देखा तो लगता था कि कहीं…

हरकिसन मेहता बाहर जाने के बजाय घर बैठकर पीने में अधिक आनंद आता है ऐसा मानते थे और बाहर (बा’र) शब्द पर श्लेष बिठाकर कहते थे कि घर जैसा बार नहीं. अब उसमें जोडते हैं कि घर जैसी ऑफिस भी नहीं.

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