`उडी: द सर्जिकल स्ट्राइक’: अभी तक की बेस्ट भारतीय वॉरफिल्म

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, मंगलवार – २२ जनवरी २०१९)

सेसलपिनिया डेकापेटाला नाम बोलने में कठिन लगता है और याद रखने में असंभव है. कश्मीर की स्थानीय भाषा में इस वृक्ष को उडी कहा जाता है और जिस क्षेत्र में पीले फूल वाले ये उडी वृक्ष विपुल मात्रा में उगते थे, वह संपूर्ण प्रदेश ही उडी सेक्टर के रूप में भारत के नक्शे में सबसे ऊपर स्थान रखता है. श्रीनगर से झेलम नदी के किनारे किनारे बारामुला तक जाने के बाद उडी आता है. यहां से लाइन ऑफ कंट्रोल सिर्फ दस किलोमीटर दूर है.

गुजराती उपन्यास `वेरवैभव’ के बाद दूसरा उपन्यास `जन्मोजनम’ (१९८९) जब लिखा तब उस कथा की पृष्ठभूमि में १९४६-४८ के दौरान का कश्मीर था. कश्मीर के संघर्ष काल पर लिखे गए उस उपन्यास के लिए रिसर्च करने मैं २५ दिन तक जम्मू और कश्मीर के विभिन्न प्रदेशों में घूमा, जानकारों से मिला, लायब्रेरियों में जाकर संदर्भ ग्रंथों का पठन करके नोट्स बनाए और भारतीय सेना के सहयोग से एक अफसर की जीप में उडी की सरहद तक गया था. मुझे उस भूमि पर चलना था. अनुमति मिली लेकिन साथ में चेतावनी भी मिली. चलते चलते भ्रमित हो गए तो भूल कर कब पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पी.ओ.के.) की सीमा में प्रवेश कर जाएंगे, इसका पता भी नहीं चलेगा.

`उडी: द सर्जिकल स्ट्राइक’ नामक उमदा फिल्म देखते देखते ये सब याद स्मरण होता गया. भारत में बनी अभी तक की ये सर्वश्रेष्ठ वॉर फिल्म है. यहां संदेशे आते हैं, जाते हैं, लाते हैं, गाते हैं नहीं है. यहां कर चले हम फिदा जानोतन साथियों भी नहीं है क्योंकि यहां पर वतन के लिए मरने की नहीं, मारने की बात है. सरहद पार लडने गया एक एक जवान वहां तबाही मचाकर हिफाजत के साथ वन पीस में लौटेगा, ये वादा निभाने की बाद है. यहां कोई नारेबाजी या अराजकतावाद नहीं है और यहां `पडोसी मुल्क’ जैसी अस्पष्ट शब्दावली भी नहीं है, सीधी स्पष्ट बात है- पाकिस्तान और उसके द्वारा बदमाशी से हडपा गया भारतीय इलाका.

`उडी’ सत्य घटना पर आधारित है और २०१७ में हुई सर्जिकल स्ट्राइक से आप परिचित हैं. भारत ने पहली बार पाकिस्तान के कब्जेवाले हमारे इलाके से पाकिस्तान जो आतंकी संगठन चलाता है, उसमें चार दलों ने, आधी रात को उनके घर में खुद घुसकर जलाकर मार दिया और फिर हमारे सभी बहादुर सैनिक-अफसर सही सलामत लौट भी आए. प्रधान मंत्री इन सभी के लौट आने तक हर मिनट की जानकारी पाने के लिए सैनिकों के साथ रात में जागरण किया ताकि ये सवा सौ करोड जनता चैन से सो सके. मिशन के लिए भेजते समय प्रधान मंत्री ने वचन मांगा कि मुझे एक एक जवान जीवित वापस चाहिए, चाहे जो हो जाए. और उन्हे वचन दिया गया कि सर, कुछ भी हो जाए, हम सभी, एक एक व्यक्ति, लौटकर आपके साथ डिनर करेगा. फिल्म का आखिरी सीन पीएम के साथ डिनर का है. और आप खुद को धिक्कारते हैं कि आप यहां थिएटर में बैठे बैठे पॉपकॉर्न खा रहे हैं. देश के लिए लडना हो तो सरहद पर ही जाना जरूरी नहीं है. जो जाते हैं उन्हें सलाम है, साष्टांग दंडवत है. लेकिन जो नहीं जाते उन्हें कम से कम मतदान केंद्र तक तो कूच करना ही चाहिए, वॉट्सएप पर व्यर्थ मैसेज भेजनेवाले कॉन्टैक्ट्स को मानो दो थप्पड मार रहे हों ऐसी सख्त भाषा में लिखकर उनकी बेवकूफी के लिए उन्हें फटकारना चाहिए और जो भारतीय इस देश के प्रति समर्पित लोगों के बारे में अनापशनाप बकता है, उन्हें खुले तौर पर ऐसे शब्दों से लताडना चाहिए कि उनकी पतलून गीली हो जाए और वे दोबारा फिर कभी देशद्रोह का काम करने की सोचें तक नहीं.

`उडी’ जब रिलीज होने वाली थी तब लुटियन्स मीडिया ने, जिसे हम सेकुलर बदमाश और वामपंथी मव्वाली मानते आए हैं, उन पत्रकारों ने `उइे प्रपोगेंडा फिल्म’ बताकर उसकी आलोचना की. पाकिस्तानी आतंकवादियों का अपनी गोद में बिठाकर लाड करनेवाला और उनके `अधिकारों’ के लिए आधी रात को सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे खुलवाने वाला और अमन की आशा का कैंपेन चलाकर भारत के इज्जत की धज्जियां उडानेवाला यह मीडिया पूर्वाग्रह से कितना ग्रस्त है इसका एक और प्रमाण `उडी’ रिलीज होने के बाद इस मीडिया के फिल्म समीक्षकों द्वारा की गई समीक्षा से मिला है. सेकुलरबाजी करनेवाली, भारती की कमजोरियों पर ध्यान देनेवाली फिल्में चाहे कितनी ही आधारहीन हों, तब भी उनकी प्रशंसा करनेवाले ये चापलूस समीक्षक `उडी’ की त्रुटियॉं आपको गिनाते हैं. कम बजट के कारण कई त्रुटियां हैं लेकिन बावजूद इसके हम ऐसी अभूतपूर्व दमदार हिंदी वॉर फिल्म भारत में बना सके हैं, इसका गौरव होना चाहिए या नहीं?

पर नहीं. क्योंकि यदि प्रशंसा करें तो वे मोदी समर्थक माने जाएंगे, हिंदूवादी करार दिए जाएंगे. आपको याद है, सितंबर २०१७ की इस सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में समाचार आने के बाद कॉन्ग्रेस की क्या प्रतिक्रिया थी? ऐसा कुछ हुआ ही नहीं है! और अपनी बात के पक्ष में कॉन्ग्रेसी नेता कह रहे थे कि: देखिए, पाकिस्तान खुद कह रहा है कि ऐसा कुछ नहीं हुआ है.

पाकिस्तान कैसे कहेगा कि हमने भारत का जो प्रदेश हडपा है, वहां पर हमारी सेना और हमारी सरकार के सहयोग से चल रहे आतंकवादियों के ४ ठिकानों को भारतीय सेना के जांबाज जवानों ने फूंक डाला है. यदि कोई ऐसी बात स्वीकार करता है या शिकायत करता है तो वह खुद ही फंस जाएगा कि भारत में आतंकवाद फैलाने की योजना कहां से बन रही थी.

उसके बाद सर्जिकल स्ट्राइक का प्रमाण दो, प्रमाण दो, का गाना राहुल गांधी ने गाना शुरू कर दिया. इस बात को खूब हवा दी. और जब प्रमाण के रूप में फूटेज जारी हुई तब क्या कहा? `मनमोहन सिंह की सरकार के दस वर्ष के दौरान ऐसी कई सर्जिकल स्ट्राइक्स हमने की हैं लेकिन कभी उसकी पब्लिसिटी नहीं की.’

राहुल की बात को गलत साबित करनेवाला बयान भारतीय सेना जारी किया: उन दस वर्षों के दौरान हमें एक भी सर्जिकल स्ट्राइक करने का आदेश नहीं मिला.

मनमोहन- सोनिया सरकार के दस वर्ष की अवधि में कई आतंकवादी घटनाएँ हुई जिसकी पूरी सूची नेट पर उपलब्ध है, देख लीजिएगा. मोदी सरकार आने के बाद जनता आतंकवाद के डर से मुक्त हो गई है, इसका हम सभी ने स्वयं अनुभव किया है, अनुभव कर रहे हैं, इसका क्या मतलब हुआ मित्रों. कॉन्ग्रेस शासन क्या आतंकवाद से निपटने में असमर्थ थी? नहीं. कॉन्ग्रेस के शासन में कई स्तरों पर ऐसे लोग थे जिनकी आतंकवादियों से सांठगांठ थी और जो आतंकवादियों को सक्रियता से साथ दे रहे थे, उनकी सुविधाओं का ख्याल रख रहे थे और तत्कालीन सरकार में बैठे सत्ताधीश उन्हें बढावा दे रहे थे. इसके प्रमाण सामने आ रहे हैं और वे पुस्तक के रूप में प्रकाशित भी होंगे, जरा धैर्य और विश्वास रखिए. ये कोई हवाई बात नहीं है, बिलकुल नहीं.

शुक्रवार को रिलीज हुई `उडी’ बिलकुल सातवें दिन- गुरूवार को देखने का संयोग हुआ और वो भी रात के दस बजकर बीस मिनट के शो में. कौन सा टिकट मिला? स्क्रीन से दूसरी रो का, भाई साहब. शो के समय थिएटर हाउसफुल हो गया.

उन फिल्म समीक्षकों की शरारती नजरों से देखी गई इस फिल्म की कई त्रुटियों को आप सहजता से नजरअंदाज कर सकते हैं. फिल्म के सभी कलाकारों- तकनीकी से जुडे लोगों का उल्लेख किए बिना इतना ही कहेंगे कि वे सभी बधाई के पात्र हैं. क्योंकि यहां फिल्म का टिपिकल रिव्यू करने का प्रयोजन नहीं है, आपको उसे देखने के लिए थिएटर में जाने के लिए प्रवृत्त करना है.

`उडी’ की अंग्रेजी स्पेलिंग यू.आर.आई. है इसीलिए कई लोग उसे `उरी’ कहते हैं. कोई बात नहीं. चोपडा, पुडी, पकौडा इत्यादि की स्पेलिंग `डी’ के बजाय `आर’ लिखी जाती है और हम भी उसे चोपरा, पुरी, पकोरा बोलने ही लगते हैं ना. पर असली उच्चारण `उडी’ है, `उरी’ नहीं.

इस देश की भी गजब बात है. जिस बहादुरी के लिए सारे देश को गौरवान्वित होना चाहिए, उस घटना की विपक्षी आलोचना करते हैं और विपक्षियों के टुकडों पर पलकर तगडी हुई लुटियन्स मीडिया इस फिल्म की आलोचना करती है! ऐसे विरोधी दलों और ऐसी मीडिया से भला आप क्या आशा कर सकते हैं.

एक विचार आ रहा है. वाजपेयी के शासन में ऐसी सर्जिकल स्ट्राइक यदि हुई होती तो क्या कांग्रेसी सरकार ऐसी फिल्म बनाने देती? रिलीज होने देती? देश में असहिष्णुता फैल जाने की बकवास करते हुए कांग्रेसियों ने `एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ के शो में थिएटर में जाकर जो तोडफोड की उसका ये प्रमाण है कि विपक्ष में बैठे लोगों को तोडने का काम ही करना है, कोई ठोस काम नहीं करना.

आज का विचार

कुंभमेले में सभी अखाडेवाले स्नान करके गए. यहां तक कि किन्नर अखाडे के लोगों ने भी डुबकी लगाई. लेकिन वह जनेऊधारी ब्राह्मण नहीं दिखा!

– वॉट्सएप पर पढा हुआ

एक मिनट!

बका ने छह वर्ष पुरानी सहेली को वॉट्सएप किया. हाय, मिस यू!

उस तरफ से जवाब आया: मम्मी की शादी हो गई है, अंकल. अब आप भी कर लीजिए!

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