पर्सेप्शन के वॉर में विवेक बुद्धि का सहारा लेना चाहिए

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, सोमवार – २१ जनवरी २०१९)

जब वातावरण बिगडा हो (असल में बिगाड दिया गया हो ताकि हम परिस्थिति को स्पष्ट देख न सकें) और चारों तरफ कंफ्यूजन ही कंफ्यूजन हो (यह भी जानबूझकर खडा किया जाता है अन्यथा सबकुछ स्पष्ट होता है लेकिन हम कोई फैसला न करे सकें इसलिए हमें दुविधा में डाल दिया जाता है) और यदि कोई निर्णय लेना अनिवार्य हो, आप उसे टाल न सकें तब आप क्या करेंगे?

जीवन की ऐसी कई छोटी-बडी परिस्थितियों में आपने फैसले लिए ही हैं इसीलिए आपको- अनुभवी लोगों को सलाह की जरूरत नहीं है. आपने ऐसे मौकों पर अपने विवेक का उपयोग करके निर्णय लिया है. अपने आंतरिक अनुभव के आधार पर निर्णय लिए हैं. आपने अपनी अंतरात्मा की आवाज का सम्मान किया है.

आपको यदि अपने मित्र पर विश्वास होगा तो फिर चाहे काई कुछ भी कहे आप विचलित नहीं होंगे. क्यों? आपको अपने जीवनसाथी पर विश्वास हो तो उसके बारे में कोई आपको चाहे जो कहकर जाए, आपका विश्वास नहीं टूटेगा. क्यों? क्योंकि आपको अपने मित्र पर, अपने जीवनसाथी पर भरोसा है. ऐसा भरोसा है कि वह आपका कोई नुकसान नहीं करेगा. ऐसी श्रद्धा है कि कभी वह आपकी समझ से बाहर का कदम भी उठाता है तो आप जानते हैं कि वह आपके भले के लिए ही किया गया होगा. ऐसी श्रद्धा होती है कि कभी वह कोई गलती कर दे तो इसके पीछे उसकी बदनीयती नहीं होगी और खुद से हुई गलती को लेकर वह कोई बहानेबाजी नहीं करेगा बल्कि आपके सामने उसे मानकर, अपने से हुई गलती की भरपाई करने की प्रामाणिकता से कोशिा करेगा.

क्या आप ये सोच रहे हैं कि मैं फिर से यहां संबंधों के मैनेजमेंट के बारे में लिखना चाहता हूं. नहीं. इस विषय पर ता बहुत लिख चुका हूँ और अब भी बहुत कुछ लिखना बाकी है. लेकिन आज का मेरा लेख राजनीतिक विश्लेषण का है, समसामयिक विषयों से संबंधित है, आगामी चुनाव के संबंध में है. लेख के ऊपरी परिच्छेदों को दोबारा पढिएगा, पहले वाक्य से आरंभ कीजिए, फिर यहां पर आइए.

आगामी चुनाव पर्सेप्शन (धारणाओं) पर लडा जाएगा. पर्सेप्शन का एक अर्थ है नजरिया. हमारे देखने की दृष्टि. वर्षों पहले एक अंग्रेजी न्यूज मैगजीन के विज्ञापन में पानी से आधा भरे गिलास में रखा चम्मच दिखाई देता था. एक खास कोण से देखने पर वह चम्मच टेढा नजर आता था. उनके दूसरे एक विज्ञापन में पुरानी और परिचित बात थी: आधा भरे पानी के गिलास को आप आधा खाली कहते हैं या आधा भरा हुआ कहते हैं, यह आपकी दृष्टि पर निर्भर है. आपके पर्सेप्शन पर निर्भर है. राहुल गांधी ने अभी तक के वर्षों जब उनकी मम्मी दस साल तक सरकार चला रही थीं, उस दौरान क्या काम किए हैं, पिछले साढे चार वर्ष के दौरान विपक्ष में रहकर कितने ठोस काम किए हैं, इसका हिसाब, और कुल मिलकार आपके परसेप्शन पर निर्भर है. आपका पर्सेप्शन चाहे जो हो, उसका सम्मान करते हैं. नरेंद्र मोदी ने गुजरात में १३-१४ वर्ष के शासन में क्या काम किए, पिछले साढे चार साल के दौरान प्रधानमंत्री के नाते क्या काम किए, इसकार हिसाब भी आपके परसेप्शन पर निर्भर है. आपने नोटबंदी के दौरान पांच-पंद्रह लाख या पांच पंद्रह करोड गंवाए होंगे तो आपको मोदी जरा भी अच्छा नहीं लगेगा. जीएसटी के कारण आपके व्यवसाय पर ताला लग गया होगा तो आप जरूर ये चाहेंगे कि ये आदमी फिर कभी दोबारा चुनकर न आए. मोदी के कारण आपकी अपनी अर्थव्यवस्था खराब हुई होगी तो आप ये जरूर कहेंगे कि मोदी के कारण इस देश की अर्थव्यवस्था गड्ढे में चली गई है. अपने घर के पास के फुटपाथ पर गटर का ढक्कन यदि टूट गया हो और अंधेरे में चलते हुए आपका पैर फंस जाय और आपके पैर की हड्डी टूट जाए तो आपको जरूर लगेगा कि इस शहर की म्युनिसिपैलिटी निठल्ली है, सभी कॉर्पोरेटर चोर हैं, सभी म्युनिसिपल कर्मचारी भ्रष्टाचारी हैं. कोई समझाने की कोशिश भी करेगा तो भी आपके भेजे में ये बात नहीं उतरेगी कि इतने बडे शहर में हर दिन टनों कचरों की निकासी आपको बाधित किए बिना की जाती है, आपके घर के लिए जो कई किलोमीटर दूर से पानी पहुंचाता है और आपके वाहन चल सकें, इसलिए जो निरंतर नए नए रास्ते- फ्लायओवर्स बनाता है, मेट्रो रेल की आपको सुविधा देने के लिए वे लोगों के साथ दिन-रात समन्वय के साथ काम करते हैं, आपके घर तक बिजली के तार पहुंचाते हैं, आपके शहर के गरीब बच्चों के लिए मुफ्त विदयालय चलाते हैं, पुस्तकालय चलाते हैं, फेरीवालों को नियंत्रण में रखते हैं और उनके लिए हॉकिंग जोन की सुविधा निर्मित करते हैं, सरकारी दवाखाने और अस्पताल चलाते हैं- ऐसे हजारों छोटे बडे काम जो करती है वह म्युनिसिपैलिटी या म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन जैसा संस्थान आपके लिए लुच्चा, कामचोर या करप्ट है. क्यों? आपके पांव खुली गटर में गिर कर टूट गए इसीलिए. अपनी पर्सनल तकलीफ को आपने राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया है. बस कल्पना कीजिए कि ये महानगरपालिका के कर्मचारी अचानक छुट्टी लेकर एक महीने के लिए अपने अपने गांव आराम करने चले जाएं तो? आप घर में जो कचरा चौबीस घंटे तैयार करते हैं, उसका निपटारा करने कहां जाएंगे. आपके घर में बिजली और बाथरूम में पानी कहां से आएगा? आपकी शौचक्रिया की गंदगी का निपटारा आप क्या खुद कर सकेंगे? आए बात करनेवाले…

भई परफेक्ट तो आपकी अपनी जिंदगी भी नहीं है और आप राजीनीतिकों के हर काम में परफेक्शन चाहते हैं. वे लोग हमारे आपके बीच से ही तो आए हैं. जो व्यक्ति कम से कम करप्ट होगा, जो आदमी अधिक से अधिक काम करता हो और जो आदमी पब्लिक फिगर के रूप में चाहे जितना परफेक्ट बनने की वास्तविक कोशिश कर रहा हो तो वह आदमी राजनीतिज्ञ के रू में आपके काम का है- फिर वो चाहे राहुल हों या मोदी- यह आपको अपने परसेप्शन के आधार पर तय करना है. आपने अपना विश्वास किसमें रखा है, इस आधार पर तय करना है. इस समय तो आपको यह फैसला अपनी आंतरिक भावना के आधार पर ही करना होगा, अपनी अंतरआत्मा का ही अनुसरण करना होगा. क्योंकि मीडिया और सोशल मीडिया की बातों में आप जितना उलझेंगे, उतना ही अधिक भ्रम में पडते जाएंगे. मीडिया का एक बडा हिस्सा `इस बार किसे जिताना है और किसे हराना है’ की फिराक में है. मीडिया का तो ये काम ही नहीं है. मीडिया का काम तो आप तक समाचार पहुंचाने का है और उन समाचारों का भगवान द्वारा दी गई सद्बुद्धि से विश्लेषण करना है, उसका अर्थ निकालना है. इसके बजाय कई प्रिंट-टीवी मीडिया तथा इंटरनेट पर शुरू हुए न्यूज पोर्टल्स दलाली का धंधा करने में लगे हैं. (सभ्यता का ख्याल रखते हुए `दलाली’ शब्द का उपयोग करना पड रहा है वर्ना भौंरे के `भ’ से शुरू होनेवाला शब्द अधिक उपयुक्त लगता है).

सोशल मीडिया फेक न्यूज को वायरल करने का माध्यम बन गया है. रोजाना कम से कम आधा दर्जन अनजाने पाठक मेरे वॉट्सएप पर फॉरवर्ड्स भेजकर सलाह मांगते हैं कि सर, क्या ये बात सच है? पहले तो मैं उन्हें जवाब देता था. खूब मेहनत करके उन्हें समझाता था कि क्यों ये फेक न्यूज है, उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता.

अब मैं थक गया हूं, ऊब चुका हूं. इतने समय बाद भी यदि आपको किसी झूठी खबर पर विश्वास रखने का मन करता है तो आप सोशल मीडिया में रहने योग्य नहीं हैं. अब तो आपके अंदर नीरक्षीर विवेकबुद्धि आ ही जानी चाहिए. अब तो आपको ये तय कर लेना चाहिए कि जो समाचार (टीवी, अखबार या सोशल मीडिया में घूम रहे हैं) आपके अनुसार असत्य लगते हैं, तो वे गलत ही होंगे. पूर्णविराम. बस, ज्यादा सोचने की जरूरत हीं नहीं है. हम सोचने लगते हैं इसीलिए फेक न्यूज (या फेक परसेप्शन) निर्मित करनेवालों को प्रश्रय मिलता है. आप तो तथ्यों की जांच-पडताल करने जाएंगे नहीं. जो लोग तथ्यों की जॉंच करने की काबिलियत रखते हैं, उन्हें भी भ्रमित कर दे, इस प्रकार की बनावटी जानकारी का आक्रमण चारों ओर से हो रहा है. ऐसे में आपको वही करना चाहिए जो आप अपने मित्र के लिए या अपने जीवनसाथी के लिए करते हैं. कोई कुछ भी कहे, पर आपको जिन पर विश्वास है उनके प्रति श्रद्धा को अटूट रखना चाहिए. कोई कहेगा कि ये मोदी के पक्ष में लिखा लेख है. मैं तो कहूंगा कि आपको यदि राहुल पर विश्वास हो तो उसे भी आप अटूट रखिएगा!

आज का विचार

प्रयागराज के कुंभ मेले की सुरक्षा व्यवस्था से लोग नाराज हैं. तीन-तीन बार घरवाली खो गई और तीनों बार प्रशासन के लोगों ने उसे खोज निकाला.

– वॉट्सएप पर पढा हुआ

एक मिनट!

लडकेवाले पंडितजी को लेकर लडकी देखने गए. पंडितजी ने कुंडली मिलाते हुए कहा: बधाई हो, छत्तीस के छत्तीस गुण मिल रहे हैं.’

पर लडके वालों ने इनकार कर दिया. जब वे खडे होकर जाने लगे तब लडकी के पिता ने पूछा: `क्यों, क्या हुआ? गुण तो बिलकुल सटीक मिले हैं. इससे बेहतर जोडी कहां मिलेगी?

लडके के बाप ने तपाक से जवाब दिया:

`साहब, हमारा बेटा तो लफंगा है, अब क्या हम बहू भी लफंगी लेकर आएं!

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