शिशुपाल, शाहीनबाग और दिल्ली के दंगे


न्यूज़ व्यूज़: सौरभ शाह

(newspremi.com, गुरुवार, २७ फरवरी २०२०)

अजित डोभाल वो माया हैं जिसने आज से ठीक एक साल पहले, २६ फरवरी २०१९ को बालकोट के पाकिस्तानी आतंकवादी ट्रेनिंग कैंप पर भारतीय वायुसेना द्वारा हमले की योजना बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था. सोनिया-मनमोहन के राज में इंटेलिजेंस ब्यूरो के चीफ रह चुके अजित डोभाल की प्रोफेशनल क्रेडिबिलिटी इतनी ऊंची है कि मोदी सरकार ने २०१४ में आते ही उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बना दिया. एन.एस.ए. डोभाल को आपने ७५ वर्ष की उम्र में कल काम करते हुए देखा है. एयर कंडिशन्ड केबिन में नहीं बल्कि पैदल फुर्ती के साथ चलते हुए देखा है. दिल्ली के दंगाग्रस्त इलाकों में. उनका ओहदा केंद्र के कैबिनेट मिनिस्टर के समतुल्य है. इसीलिए उनके आस पास जेड प्लस सिक्योरिटी का सुरक्षा कवच तो रहने ही वाला है. लेकिन सिक्योरिटी चाहे कितनी भी हो, जब आप दिल्ली के सीलमपुर, जाफराबाद, मौजपुर और गोकुलपुरी जैसे दंगा ग्रस्त इलाकों में खुले आम एक घंटे तक पैदल घूमकर प्रभावित लोगों से मिलते हैं तब जान का जोखिम कई गुना बढ जाता है.

बालाकोट की एयरस्ट्राइक की योजना बनाने में साथ देनेवाले अजित डोभाल को प्रधान मंत्री मोदी जब शाहीनबाग की चिंगारी से भडकी आग को बुझाने के लिए भेजते हैं तब उनकी पसंदगी का महत्व बढ जाता है. गृह मंत्री का ये विषय है. पुलिस कमिशनर द्वारा मामले को नियंत्रित करने के बारे में किसी ने भी सोचा होता. इसके बावजूद इसका इलाज पुलिस कमिशनर जैसे फैमिली डॉक्टर से करवाने के बजाय एनएसए जैसे सुपर स्पेश्यालिटी सर्जन को सौंपा गया है. एक्स रे, ब्लड रिपोर्ट्स और एमआरआई स्कैन जैसे अन्य दो दर्जन इनवेस्टिगेशन की रिपोर्ट जैसी इंटेलिजेंस ब्यूरो की खूफिया जानकारी ने पी.एम और एच.एम. को संकेत दिया होगा कि शाहीन बाग से शुरू हुआ ये हुडदंग ईशान्य दिल्ली तक आकर रुकने वाला नहीं है. ये कोई सर्दी खांसी या मलेरिया जैसी मामूली बीमारी नहीं है. एंटी सीएए नामक वायरस कोरोना वायरस से भी ज्यादा खतरनाक साबित हो रहा है. शाहीनबाग या ईशान्य दिल्ली को शांत करने गए तो अलीगढ, हैदराबाद और केरल में जाकर फैलेगा. सारे देश में और पांच सौ शाहीनबाग बनाने का प्लान है. इतनी फंडिंग भी आ चुकी है और स्थानीय जनता की भावनाओं को पलीता लगाने के लिए नेतागिरी भी तैयार है.

अजित डोभाल को सडक पर उतार कर मोदी-शाह ने इस देश की सारी सहिष्णु जनता को विश्वास दिलाया है कि देश को अशांत करने की साजिश के मूल कहां हैं, इसके बारे में वे जानते हैं और ऊपर निकली डालियों को काटकर दिल्ली में शांति स्थापित करने का दिखावा करके वे बैठे रहनेवाले नहीं हैं. ये समस्या जड से खत्म करने की उनकी इच्छा है और उसे साकार करने के लिए डिटेल्ड प्लानिंग भी है.

“मोदी-शाह क्या कर रहे हैं? हाथ पर हाथ रखकर क्यों बैठे हैं? सख्त कदम क्यों नहीं उठा रहे? एक शासक के रूप में उनसे ऐसी अपेक्षा नहीं थी. अफसोस की बात है कि हमने उन्हें वोट दिया है. वे बेकार साबित हुए हैं. सरकार में बैठने के लायक नहीं है.’’

अभी तक बडे उत्साह से मोदी सरकार की सराहना करनेवाले कई लोग पिछले दो-ढाई महीने से ऐसा कहने लगे हैं. शाहीन बाग की उलझन मोदी – शाह के धैर्य की कसौटी थी. शाहीनबाग में कितने प्रदर्शनकारी थे? ज्यादा से ज्यादा पांच हजार? इतने लोग तो मोदी की फूंक से उड जाते. आप उनकी ताकत जानते हैं तो क्या उन्हें पता नहीं होगा. एक घंटे में पुलिस आकर शाहीन बाग की दादियों को घर भेज सकती है.

शाहीनबाग में जुटी वामपंथी मीडिया द्वारा देशभर में कोहराम मचा रहे पांच हजार लोगों के खिलाफ सख्ती से पुलिसी ने कदम उठाया होता तो उसी समय दंगे भडक उठते और इस मार काट में न जाने कितने बच्चों-महिलाओं की मौत हो जाती. जिन बच्चों को मताधिकार तक नहीं है उन्हें शाहीनबाग में प्रदर्शन करने के लिए क्यों लाया जा रहा है? `मोदी को हम मारकर-काट देंगे!’ ऐसा उनके मुंह से क्यों बुलवा रहे हैं? शाहीनबाग में प्रदर्शन करनेवाली भारतीय मुस्लिम महिलाओं का सीएए द्वारा बाल भी बांका नहीं होगा, ऐसा कहने के बजाय क्यों उनके आका/हैंडलर्स उन्हें उल्टी पट्टी पढा रहे हैं? ऐसे सवाल पूछने के बजाय मीडिया ने शाहीनबाग के खिलाफ कदम उठाने के लिए मोदी-शाह के सिर पर ठीकरा फोडा होता. `शांतिपूर्ण प्रदर्शन’ कर रहे लोगों को भी ये अत्याचारी तानाशाह सहन नहीं सकते, ऐसा वातावरण भारतीयों और विदेशी मीडिया के दिमाग में भर दिया गया होता.

मोदी-शाह इस चालबाजी को जानते थे. इसीलिए वे रणनीति के तहत उन्हें ढील देते गए- तब तक जब तक कि उनकी सच्चाई सामने नहीं आ जाती. और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे का दिन जैसे जैसे करीब आया कि तुरंत उन लोगों की असलियत सामने आ गई.
शिशुपाल की ९९ गालियां माफ करनेवाले श्रीकृष्ण की तरह शाहीनबाग वालों को ९९ माफ करने के बाद मोदी-शाह ने गलती करते ही अजित डोभाल नामक सुदर्शन चक्र छोड दिया. शिशुपाल का किस्सा महाभारत के युद्ध से पहले हुआ था. कुरुक्षेत्र की अठारह दिन की लडाई तो अभी शेष है.

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