ये धुआं कहां से उठता है: इस देश में असंतोष, अविश्वास और अराजकता कौन फैला रहा है

न्यूज़ व्यूज़: सौरभ शाह
(newspremi.com, गुरुवार, २० फरवरी २०२०)

किसी भी सामान्य आदमी को पॉलिटिक्स में उतनी रुचि नहीं होती जितनी अपने काम में होती है, अपने जीवन को सुधारने में होती है, अपने परिवार की उन्नति में और अपने सुखी संतुष्ट भविष्य में होती है. राजनीतिक गतिविधियों के बारे में लंबी लंबी गप्प लगाने के बजाय वह सुबह से शाम तक अपने ही क्षेत्र में मेहनत करेगा, पसीना बहाएगा और संतोष की नींद लेगा.

एक सामान्य आदमी के जीवन में भरपूर संतोष होता है. और भगवान पर भरोसा  होता है. जो मिलता है वह मुझे भगवान मेरी काबिलियत के अनुसार देते हैं और जो नहीं है वह भविष्य में देंगे, ऊपर वाला मेरा सपना जरूर साकार करेगा. हर  व्यक्ति जानता है कि उसकी काबिलियत कितनी है और कितनी नहीं है. कोई भी जानबूझकर अपनी क्षमता को ओवर एस्टिमेट नहीं करता. कभी दोस्त की मेहफिल में उसे चने के पेड पर चढाने की बात अलग है. ऐसी बातों को हल्के से लेना चाहिए, ये बात वो जानता है. इस देश में सामान्य जीवन जीनेवाले करोडों लोगों के पास सपने होंगे, उन्हें साकार  करने के लिए वे मेहनत भी करेंगे, हर कोई निष्ठा और प्रमाणिकता से जीने की कोशिश करता है. और जीवन में आनेवाली छोटी बडी तकलीफों को वह हंसते हंसते सह लेता है. मौज में रहता है. संतुष्ट होकर जीता है.

पर इस देश में अनेक ऐसे लोग हैं जिनके लिए जनता का ऐसा सामान्य जीवन उनकी बेकारी का कारण बन जाएगा. लोगों में असंतोष की चिंगारी लगाना और अराजकता की आग में झोंकना और बाद में उसस ज्वाला पर अपनी रोटियां सेंककर स्विट्जरलैंड की बैंकों के सेफ डिपॉजिट वॉल्ट में जमा करना, यह उनकी बेकारी के निवारण का एक सूत्री कार्यक्रम होता है. संतोष से जी रही जनता में गुस्सा किस तरह से पैदा करना? उन्हें कहो कि तुम्हें तुम्हारी मेहनत का फल नहीं मिल रहा, इस देश को तुम्हारी कद्र नहीं  है, देश की आर्थिक स्थिति देखो बिलकुल गड्ढे में चली गई है. रसोई गैस के सिलिंडर अब तुम्हें हर दिन डेढ रूपए ज्यादा खर्च करने पडेंगे जिससे आपके ऊपर भारी बोझ पडनेवाला है. डॉलर की तुलना में रूपया  दो पैसा गिर गया है इसीलिए आपके जीवन में खूब महंगाई आनेवाली है. आप अपने मासिक बजट में एक बात सुधारेंगे तो दूसरी बिगडेगी, देश में हर तरफ भ्रष्टाचार है. देश में हर तरफ नफरत का वातावरण है. देश की सडकें दयनीय हैं, ट्रेनें लेट चल रही हैं. बलात्कार पर बलात्कार हो रहे हैं. दलितों पर अत्याचार और माइनॉरिटीज पर अन्याय हो रहा है. देश की सुरक्षा अब खतरे में है. देश की फायनांस मिनिस्टर बुद्धू है. देश का शिक्षा मंत्री नकारा है. देश में कानून-व्यवस्था का नामोनिशान नहीं है. पुलिस अक्षम है, अदालतों मे देर और अंधेर चल रहा है, महंगाई बेहिसाब है और करोडो बेकार युवा बिना काम के सडकों पर भटक रहे हैं. राजनीतिक और सामाजिक संगठनों को बोलने का भान नहीं है, कुछ भी बोलकर अपने दिमाग का प्रदर्शन कर रहे हैं.

आपके मन में सवाल उठेगा: इस देश का क्या होगा? अभी तक संतोष भरा जीवन जी रहे आप लोग व्याकुल हो जाते हैं. हर जगह यही सारी चर्चा हो रही है तो ये सच ही होगा ना? ऐसा मान कर आपके पास नौकरी व्यवसाय, पर्याप्त आमदनी के साधन होने के बाद भी आपको देश की भीषण बेरोजगारी  को लेकर भयानक सपने आ रहे हैं. शाम को वॉक करने जाते हैं तो कहीं पर खुदा हुआ गड्ढा देखकर आपको तुरंत याद आता है कि सारे देश की सडकें बेकार हैं, सडकें बनानेवाले कॉन्ट्रैक्टर साले  चोर हैं, कॉन्ट्रैक्ट देने वाली सरकार हरामी है.

कोई आपके सामने जेनुइन आंकडे पेश करे तो आप कहेंगे कि ऐसे सरकारी आंकडों में मुझे रुचि नहीं है, जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिए विकास की बातें होती रहती है, पर देश तो दिनोंदिन पिछडता जा रहा है- आज सुबह आपने पढा नहीं? देश कितना बर्बाद हो गया है? रात को टीवी की चर्चा नहीं सुनी? ये देश कंगाली की कगार पर खडा है.

आपके अच्छे भले जीवन की हालत खराब कर दी गई है. असंतोष, अविश्वास और अराजकता- इसी पर अपना व्यवसाय चलाते हैं, ये बेकार हो चुके लोग. और जब अपनी ये तीन `अ’वाली चाल को पर्याप्त सफलता नहीं मिलती है तो क्या करते हैं ये लोग? चौथा `अ’ लेकर आते हैं. अंधाधुंधी का `अ’. अपनी बातें गलत साबित होती दिखती हैं, अपनी कलई खुलती हुई नजर आती है तब ये लोग आपके मन में शंका पैदा करके अंधाधुंधी फैला कर वे आपकी मान्यता को- जिसमें आपका विश्वास रहा है, वे विचार-विवादास्पद है ऐसा वातावरण बनाने में ये लोग उस्ताद हैं. कंधे पर रखे बकरे को कुत्ता बताकर बकरा लेकर भाग जानेवालों का ये गिरोह अब बालकथाओं में  से निकलकर वामपंथियों, सेकुलरों और लिब्रांडुओं की गैंग में रूपांतरित हो गई है. खुद को लिबरल बतानेवाले असल में लिबरल नहीं होते, जैसे कि खुद को सेकुलर कहलानेवाले सेकुलर नहीं होते. और वे लोग आपको सांप्रदायिक कहते हैं, आपको संकुचित मानसिकतावाला कहते हैं, आपको असहिष्णु कहते हैं. दे अक्यूज यू व्हॉट दे आर. ये लिबरल गुंडे (जिसे लाड से लिबरांडू कहते हैं) खुद जैसे हैं, वैसे तो असल में आप हो, ऐसा आक्षेप करके  अपनी वास्तविकता को छिपाना चाहते हैं. पर्सनल लाइफ में भी आपने मार्क किया होगा कि जो व्यक्ति दूसरों के चरित्र की निंदा करता है, वह असल में खुद भी चरित्रहीन होगा. यहां पर चरित्र केवल सेक्स के बारे में ही नहीं, जीवन के हर  पहलू के बारे में है.

कंफ्यूज हो गए हैं, इस अंधाधुंधी में, इस धुंध में कुछ नजर नहीं आता. क्या सचमुच कोई हमारी शांति छीन रहा है? हमारे भीतर असंतोष पैदा कर रहा है? पेट्रोल की कीमतों में आग लगाने के समाचार पढकर अब जब पेट्रोल सस्ता हो  गया है तब भी पेट्रोल पंप पर कीमत देते समय जान क्यों जलती है? कल तक तो हर महीने हो रही आमदनी घर चलाने के लिए काफी लग रही थी जो आज अचानक ही अखबारों की हेडलाइन्स पढकर, टीवी पर प्राइम टाइम के ब्रेकिंग न्यूज देखकर और मछली  बाजार की कोलाहल वाली डिबेट सुनकर क्यों कम लगने लगी है. कल तक तो परिवार का भविष्य सलामत लग रहा था जो आज अचानक असुरक्षित क्यों लगने लगा? सार्वजनिक जीवन के जिन जिन व्यक्तियों  पर अभी तक आपको भरोसा था, वे सभी आपके मान-सम्मान के लायक नहीं हैं क्योंकि देखो ना सार्वजनिक रूप से कितनी बेवकूफी भरी बातें कर रहे हैं, ऐसा आपको क्यों लग रहा है?

इसका कारण है कि आप तक जो पहुंचती हैं, वे बातें या तो संदर्भहीन होती हैं, और उनका संदर्भ निकाला  जाता है या तो बिलकुल मनमाने  तरीके से उनका अर्थ निकाला जाता है. या फिर उन्हें तोडामरोडा जाता है- वीडियो की क्लिप भी ऑल्टर की जाती है. आदरणीय महानुभावों के भाषण का असली ऑडियो क्लिप जब तक आप नहीं सुनेंगे तब तक  आपके मन में शंका रहती है कि इतनी  बेवकूफी भरी बात  इन्होंने क्यों की? रात दिन आपके मन में ये बातें घुमडती रहती हैं और तब एक समय आता है जब आपके मन में असंतोष जन्म लेता है, आपके मन में अविश्यास जन्म लेता है, अराजकता आापके मन में  भी घर बना लेती है और अंत में मन पर संदेह के बादल छाते जाते हैं- मैं जिन्हें पिछली बार वोट देकर आया, वे लोग ऐसे निकले? मैं जिन पर विश्वास करके मन में गौरव का अनुभव कर रहा  था और दूसरों के सामने भी छाती फुलाकर बातें करता था, वे लोग बौने निकले?

आपके कंधे पर रखे बकरे को कुत्ता बताकर छीन लेनेवाले ठगों की टोली अधिक आक्रामक बनती जा रही है. पिछले सत्तर साल में उन्होने जो किया है और पिछले पांच-छह साल में जिनकी दुकाने बंद हो गई हैं, उनकी एनजीओ (यानी बेकार गधों के संस्थान) को मिलनेवाली करोडो डॉलर्स की गुप्त विदेशी सहायता की पाइपलाइन को बंद कर दिया गया है इसीलिए अब उनकी जान पर आ बनी है जिस कारण से वे तडप रहे हैं. मरता आदमी दुगुना जोर लगाता है.

अब ऐसे वातावरण में हमें क्या करना चाहिए?

कल से इस श्रृंखला में जो विचार व्यक्त होनेवाले हैं वे सामूहिक चिंतन, मनन, मंथन और डिस्कशन का मक्खन है. ये कोई इक्के दुक्के व्यक्ति के विचार नहीं हैं, और न ही किसी पुस्तक-ग्रंथों में पढी हुई बातें हैं. कई समविचारी और एक दूसरे के लिए सम्मान का भाव रखनेवाले जब आपस में बैठकर कुछ ठोस करने का विचार करते हैं तब कैसे शुभ परिणाम आता है इसके प्रमाणस्वरूप ये श्रृंखला लिखनी है जिसमें आपको अभी आपके मन में चल रही उलझनों और सवालों के जवाब  मिल जाएंगे, तकरीबन सारे. इस श्रृंखला  को लिखनेवाला मात्र माध्यम है, दूसरों के विचारों का संचय करके आप तक पहुंचानेवाला डाकिया है- बस इतना ध्यान में रखिए. कल से शुरू.

2 COMMENTS

  1. बिल्कुल सही है सर। अब ये सरदार स्टेचू को ले कर भी कितनी काँवकाँव मची थी मीडिया और लेफ्टिस्ट मोर्चे में, बिना उधर गए। हम कल ही उधर जा कर आये है। लेज़र लाइट शो के दरम्यान, वंदे मातरम और भारत माता की जय, के नारे लग रहे थे! राष्ट्रगीत के वक्त करीबन दस हजार लोग स्थिर खड़े थे और जोर से गा रहे थे! ????
    और इतना अच्छा मोनुमेंट, वहाँ आये लोगों के अहोभाव और उनकी इतनी उत्सुकता; मैंने देश के कोई भी दूसरे सरकारी पर्यटन स्थान पर नहीं देखी। ????
    ये मीडिया, लिबेरल्स और लेफ्टियों को सिर्फ अनारचीसम फैलाना है, ताकि उनकी खिचड़ी पकती रहे। ??

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